मेरी पहचान घर के काम से है ( भाग 1) -निशा जैन : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : आज सुहाना बहुत घबराई हुई थी अपनी पहचान, अपने परिचय को लेकर

क्योंकि वो सुबोध के साथ ऑफिस पार्टी में जो जा रही थी।

“सुबोध के सारे दोस्तों की पत्नियों की पहचान उनके काम से थी क्योंकि कोई इंजीनियर तो कोई डॉक्टर या कोई टीचर जो थी। वो सोच रही थी सारे दोस्त अपनी पत्नियों का  परिचय बड़ी शान से देंगे क्योंकि वो तो सब वर्किंग वुमन है जबकि मेरी पहचान तो  एक साधारण गृहिणी की है। सुबोध को मेरी वजह से नीचा देखना पड़ेगा यही सोचकर वो बहुत परेशान थी क्योंकि वो समझती कि औरत की पहचान उसके नौकरी या ओहदे से  होती है जबकि हाउसवाइफ का तो कोई स्टेटस होता नही है।वो वर्किंग वुमन को हाउसवाइफ से  बेहतर समझती थी।

इसलिए पार्टी में जाने पर उसके चेहरे पर डर साफ नजर आ रहा था।

अभी तक तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब सुबोध ने उसके लाख मना करने पर भी साथ चलने को मना लिया था क्या पहनूं, कैसे पहनूं,कौनसा रंग मुझ पर फबेगा? यही सब सोच कर परेशान हुए जा रही थी और जब जा रही है तो डर के मारे हालत पतली हो रही है।

सुहाना का रंग थोड़ा दबता हुआ था बाकी नैन नक्श में तो वो अच्छे अच्छों को मात देती थी। लंबे काले बाल, मोटी आंखे और काजल लगाने के बाद तो और भी कहर ढाता था उसका सौन्दर्य तभी तो सुबोध ने सुहाना को देखते ही पसंद कर लिया हालांकि सुबोध का रंग बहुत गोरा था पर सुहाना के श्याम वर्ण ने तो जैसे उस पर जादू ही कर दिया। और चट मंगनी पट ब्याह हो गया दोनो का।

सुहाना रूप रंग में खुद को हमेशा कमतर आंकती थी । उसे लगता कि वो गोरी नही है तो सुंदर नही है जबकि जो उसे एक बार मिलता बस दीवाना हो जाता उसके व्यक्तित्व से।

इतनी मिश्री घुली बोली बोलती कि नफरत करने वाला भी प्यार करने लग जाए। जितना उसकी बोली में जादू था उतना ही प्रभावी उसका व्यक्तित्व भी था।पढ़ी लिखी भी थी और ग्रह विज्ञान में स्नातक की डिग्री भी थी  उसके पास  इसलिए तरह तरह का खाना बनाना, केक बनाना, कोई भी मिठाई सब बनाना आता था उसे 

यहां तक कि घर की साज सज्जा,मेहमानों की आवभगत सब मामलो में अव्वल थी बस उसे इंग्लिश बोलना नही आता था हालांकि समझने में उसे कोई दिक्कत नही थी इसलिए ज्यादातर सुबोध की ऑफिस पार्टी में जाने से बचती थी । उसे लगता सब वहां इंग्लिश में बात करेंगी और वो हिंदी में तो थोड़ा अच्छा नही लगेगा जबकि सुबोध को उससे कोई दिक्कत नही थी। सब घर वाले भी सुहाना को बहुत प्यार और सम्मान देते थे।

अगला भाग 

मेरी पहचान घर के काम से है ( भाग 2) -निशा जैन : Moral stories in hindi

स्वरचित और मौलिक

निशा जैन

दिल्ली

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