मेरी मां – सुषमा यादव

आज़ मातृत्व दिवस पर मेरी मां के साथ, सभी मां  को सादर प्रणाम

मेरी प्यारी मां का नाम था मालती,,

बहुत ही खूबसूरत, सीधी सादी, और उदात्त विचारों वाली,,,

मध्यम स्तर की आर्थिक स्थिति होते हुए भी मेरी मां ने हम सब का बहुत ही उचित ढंग से लालन पालन किया,,, इकलौती बेटी होने के कारण मेरा तो  बहुत ही ख्याल रखा जाता था,,

वो सबको खाना खिलाने के बाद जो कुछ भी बचता , खाकर, पानी पी कर सो जाती,, कभी कभी तो नीचे की बची या बासी रोटी खाकर रह जाती,, जो अक्सर हर मां करती हैं,,

मैं बी,ए, प्रथम वर्ष में पहुंच गई थी,पर मेरी मां ने कभी मुझसे चाय तक नहीं बनवाई,, कहती,बस पढ़ो, तुम एक गिलास पानी भी उठ कर लेने नहीं जावोगी,,,, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता, बेहोश हो जाती,,पर थोड़ा सा ठीक होते ही काम करने लगती,,

एक बार मैं स्कूल अपनी नौकरी पर बिना खाना खाए गुस्सा होकर चली गई,,लंच अवकाश में मां टिफिन लेकर स्कूल आ गई, सबसे कहा कि, मेरी बेटी भूखी स्कूल आ गई है,, मैंने भी अभी तक मुंह में कुछ नहीं डाला, मेरे आंखों में आसूं आ गये, मैं उन्हें लेकर तुरंत ही घर आ गई और हमने साथ में खाना खाया,,



मेरी मां जब दो महीने की थी, तभी उनकी मां खत्म हो गई थी,, नानाजी ने अकेले ही बड़ी मुश्किल से पाला था,, वो बताती हैं कि पड़ोसी के भरोसे छोड़कर वो नौकरी पर जाते थे,,सच में मेरी मां ने कितनी तकलीफ़े झेली होगीं,,नौ बरस में शादी हो गई,, पन्द्रह साल में गौना,, ससुराल में सबसे छोटी बहू थी, छः भाई थे, बाबू जी,, भाभियों ने खूब अत्याचार किए,सबका खाना बनवाती,, सभी काम करवाती,

क्यों कि मां एक तो बहुत ही सुन्दर थी और दूसरे पढ़ीलिखी थी, बाबू जी भी पढ़ रहे थे,पर बचपन से ही बिना मां के सबका अनादर सहते, सहते,उनको इन सब की आदत पड़ गई थी,,

मार भी खाई, पर कभी भी किसी से शिकायत नहीं किया,,करती भी किससे,,उस समय तो पति की जुबान ही नहीं खुलती थी किसी के सामने,,

बाद में बाबू जी की नौकरी लगी और वो मां को हम सबको लेकर बाहर निकल आए,,

मां सब घर का काम करती और बाजार जाकर सब घर का सामान भी ले आती,,हम तीन भाई और मैं एक बहन,चार लोग तथा बाबू जी,सबके कपड़े घर पर ही सिले जाते , एक भी कपड़ा दर्जी के पास सिलने नहीं जाता था,,

बाबू जी तो एक काम को हाथ नहीं लगाते थे,,

गांव की खेती करने भी पहुंच जाती थी,, यदि घर में असमय कोई मेहमान आ जाये तो बिना चेहरे पर कोई शिकन लाये भरी गर्मी में दोपहर चूल्हा जला कर स्वादिष्ट खाना तैयार कर देती,,

भोजन से लेकर,अचार, बड़ी, पापड़, तरह तरह की मिठाईयां,

इतना बेहतरीन तरीके से बनाती,कि सब बहुत ही तारीफ़ करते थकते नहीं थे,,



मेरी बेटियां अभी भी कहती हैं। मम्मी,आप नानी जी के जैसा स्वादिष्ट खाना और बढ़िया पतली रोटियां नहीं बना सकती हो,,,

मां, बिना मां की बेटी होकर भी आप सर्वगुण संपन्न कैसे हो गई,,

आपका पहनावा सीधासादा रहता, आपने कभी किसी पर गुस्सा किया हो, नहीं देखा,,

अपने पति को आप पति परमेश्वर समझतीं थी,,जब तक वो खाना ना खाए,, वो खाना नहीं खाती थीं,भले ही शाम हो जाए,,

********बेटा,बहू,नाती, पोतों से संपन्न मां ,पिता जी के सेवा निवृत्त होने के बाद गांव चलीं गईं,, आराम से जिंदगी बीत रही थी,

मेरा एक छोटा भाई था,जो पच्चीस साल का होते हुए भी शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ तथा अपरिपक्व बुद्धि का था,, तो सवाल ही नहीं उठता, पढ़ने का,,पर अपना सभी  काम कर लेता था,,

*****,, एक बार मां ने गांव में अखंड रामायण पाठ करवाया,,बेटे, बहू को बुलाया,,वो बहुत कहने ‌पर भी नहीं आये,, बोले कि,, क्या हमसे पूछ कर रखा था,,,

मां बहुत आहत हुई, मुझे पीलिया हो गया था,पर मैं और मेरे पति दोनों पहुंचे,, गांव में कोई भी आयोजन बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है,, बहुत रिश्तेदार आए थे,, दूसरे दिन हवन , खाना पीना हुआ,,, गांव में जितने मुंह उतनी बातें,,,आपके बेटे बहू नहीं आये,, मां सफाई देते देते तक गई, बहुत ही अपमानित महसूस कर रही थी,,सबकी बहू, बेटियां आई थीं,पर अपने ही नदारद थे,



बस तब से मां को इतना सदमा लगा कि,रात दिन सोचती ही रहती थी,,,, मेरे साथ ये लोग ऐसा सलूक कर रहे हैं,, मेरे बाद मेरे इस बच्चे को कौन देखेगा,, और वो इस तरह सोचते,,अनिंद्रा की शिकार हो गई,,

मेरे पिता जी ने बेटा को बताया,कि तुम्हारी मां की तबीयत ठीक नहीं है,, विक्षिप्त सी हो रही है,,भाई ने मना कर दिया,,

मैंने इन्हें बताया तो ये फौरन जाकर सबको ले आये,, हमने, हमारी बेटियों ने बहुत समझाया कि,,हम सब मामा से बहुत प्यार करते हैं,,हम देख भाल करेंगे,पर मां को अपने बेटे पर ज्यादा भरोसा था,, वो पूरी तरह से अब पागल होने लगी थी,, हमने डाक्टर को दिखाया, बहुत इलाज कराया,, वो सबका गला भी दबाने लगी थी, और कहती,सब लोग मुझे जहर देकर मार डालोगे,,भाई उसी शहर में चार किलोमीटर की दूरी पर रहता था,पर कभी नहीं आया,,

किसी के कहने पर मैं और मेरे पति, मेहंदीपुर बालाजी मां को ले गये,, बहुत परेशान कर दिया था,,पर हमने देखा कि वो ठीक हो रही हैं,, हमने सोचा कि चलो, इन्हें हरिद्वार ,हर की पौड़ी में गंगा स्नान करवा देते हैं,, शांति कुंज भी घुमा देंगे, और अच्छी हो जायेंगी,,उस समय शायद कुंभ मेला था, बड़ी भीड़ थी, हमने उन्हें खूब कस कर पकड़ रखा था,, एक जगह हम चाय पीने बैठ गये,

अचानक हमारा हाथ झटक कर वो जोर से दौड़ी,जब तक हम पकड़ने दौड़े, तब तक वो कहीं जाकर छुप गई,, हमने वहां तैनात पुलिस कर्मियों से भी बात की, उन्होंने भी बहुत खोजा,पर नहीं मिली,,हम दिन भर रोते रहे और खोजते रहे,, रात होने को आई, वापसी का टिकट था,, दरअसल, मेरी बेटी दिल्ली में होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही थी,उस दिन उसे होस्टल छोड़ना था, उसकी डिग्री पूरी हो गई थी, दूसरे को कमरा देना था,सब पहले से ही तय था,अब मेरी बेटी रात्रि में दिल्ली रेल्वे स्टेशन पर सामान सहित हमारा इंतजार कर रही थी, और इधर मेरी मां मिल नहीं रही थी,उस समय फोन की सुविधा तो थी नहीं,हम दोनों पागल हुए जा रहे थे,,अंत में पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज किया और अपनी बेबसी बताई, सबने कहा, आप जाकर अपनी बेटी को देखिए,,

वो मिल जायेंगी तो हम उन्हें अपने पास संभाल कर रख लेंगे,,आप अपनी बेटी को घर पहुंचा कर वापस लौट आना,,

हम मजबूर हो कर चले आए, मुझे  और बेटी को वापस छोड़कर ये अपने आफिस के बाबू के साथ, हरिद्वार गए,, बहुत खोजा,जब निराश हो गए तो अचानक रेल्वे स्टेशन भागे, मां एक कोने में बैठी थी,,मेरा रो रोकर बुरा हाल हो रहा था,भाई ने भी कहा कि यदि मेरी मां नहीं मिली तो मैं तुम दोनों को जेल की चक्की पिसवाऊंगा, नौकरी हर लूंगा, मेरी मां को गंगा में डुबाकर आ गए हो,,,, खैर, धन्यवाद आभार, प्रभू का,, मां को लेकर घर आ गए,, मेरे भाई ने सबको अपने घर ले जाकर, एक सप्ताह बाद गांव भेज दिया,,



जब मैं एक साल बाद मिलने गई,

तो मैंने मां से कहा कि,,आप तो काफी ठीक हो गई थी, फिर आपने क्यों ऐसा किया था,

मां ने जो जवाब दिया,,,हम आश्चर्य चकित रह गए,,,, कोई मां इतनी महान भी हो सकती है,,,

,,,, मां ने बताया,,, मैंने तुम दोनों की बातें सुन ली थी, तुम सोच रहे थे कि अम्मा सोई है, तुम आपस में बात कर रहे थे कि बेटी को दिल्ली से लेना है,उसकी पढ़ाई खत्म हो गई है, तो मैंने सोचा कि मेरा पागलपन देख कर मेरी नातिन घबरा जायेगी,,तो मैं भाग गई, तुम सब ढूंढ रहे थे, मैं एक जगह छुपकर सब देख रही थी,,

तुमने मुझे दो हजार रुपए और पानी की बोतल दिया था, उसे किसी ने चोरी कर ली,, मैं एक साड़ी में नहाती और वहीं कहीं भंडारे में जो मिलता,खा लेती,, मैं उनसे लिपट कर बहुत रोई,, मां आपने ऐसा क्यों किया,,, वो आपको कितना मानती है,,

मैंने उनसे अपनी मजबूरी की क्षमायाचना की और वापस आ गई,,हम इस बात के लिए उनके सदा ऋणी रहेंगे,,

उसके बाद मेरी मां हमेशा के लिए हम सबको छोड़कर चली गई,,

,,, मां तुम बहुत याद आती हो,,

बस यही तमन्ना है,,,

,, मां, मुझे अपने आंचल में छुपा लो,,, गले से लगा लो,,,के और मेरा कोई नहीं,,,

मैं बहुत तन्हां हो गई हूं,,

भगवान आप की आत्मा को शांति प्रदान करें

आज़ मातृत्व दिवस पर आपको भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए , पुष्पांजलि के साथ, शत् शत् नमन,,, ,,

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