मेरी बहू सब से अच्छी – उमा वर्मा 

।जी हाँ ।मै अपनी प्यारी बहु की कहानी कहने जा रही हूँ ।एक सुखी गृहस्थी थी उमा की।अच्छे पति, दो प्यारे बच्चे ।घर में सम्मिलित परिवार ।सास ससुर, जेठ जेठानी उनके बच्चे ।सब साथ रहते हुए भी बहुत खुश थे।पति की सरकारी नौकरी थी ।सारी सुख सुविधा मिली हुई थी ।पैसे भले ही थोड़े कम थे।पर एक संतुष्टि था ।कम में भी सुख था ।जीवन हंसी खुशी बीत रहा था ।

बच्चे शिक्षा पूरी करके अपने अपने काम में लग गये ।बेटा पढ़ लिख कर नौकरी में लग जाए तो रिश्ते आने लगते हैं ।बेटा रोहन था भी बहुत लायक।उमा को लगता खूब अच्छी कन्या मिले तो ब्याह रचा दे।खूब देख भाल के बाद एक कन्या पसंद आ गई ।रिश्ते की एक बुआ ने ही रिश्ता सुझाया था ।धूमधाम से शादी हो गई रोहन की।कन्या अद्वितीय सुन्दर ।लोगों ने कहा वाह बहुत सुन्दर है ।कहाँ से लाए ऐसी गुलाब की कली? उमा गदगद हो गई थी ।लेकिन लोगों से सुना था सुन्दर लड़की का व्यवहार ठीक नहीं होता ।उमा आशंकित थी बहू के प्रति ।शादी निबट गई ।

रिश्ते दार भी अपने घर लौट गये।मन में बहुत खराब धारणा ने उसकी नींद हराम कर दी थी ।बहू श्वेता कुछ भी अच्छा करती, उमा को उसमें खोट नजर  आता ।इन्ही विचारों में खोयी थी वह तभी  एक दिन बहू ने पूछा ” माँ खाना क्या बनायें?” ” जो तुम्हारी इच्छा, वही बना लो” ।” नहीं मां,आपकी पसंद क्या है?” अरे, मै तो भूल ही गयी थी कि मेरी पसंद क्या है ।सबकी पसंद का खयाल रखते अपना तो कभी सोचा ही नहीं ।उमा अब निश्चिन्त हो गई ।बहू तो बहुत प्यारी है ।बेकार ही मै गलत सोचती रही ।रोज समय से सबका नाशता खाना तैयार करती ।फिर सास के सिर में बैठ कर तेल मालिश कर देती ” लाइए माँ, आपकी मालिश कर दूँ ।कब उमा की आख लग गई पता ही नहीं चला ।दोनों पिता पुत्र काम से बाहर गये हुए थे ।न जाने कितनी देर तक सो गयी थी जब बहू ने पुकारा ” माँ, खाना तैयार है ” हाथ में दो थाली लिए खड़ी थी वह।” अरे वाह! मेरी पसंद शाही पनीर, दही बड़ा और गुलाब जामुन? ” तुम्हे कैसे पता, मेरी पसंद का? ” ” आपने ही एक दिन बातों बातों में बताया था ।” कितना खयाल रखती है बहू मेरा।आखों में खुशी के आँसू भर आए थे उमा के ।शुरुआत में श्वेता थोड़ी अलहड़ थी।न समय पर उठती, न ,साफ सफाई का ध्यान रखती ।घर भी अस्त व्यस्त रहता ।सुबह सो कर देर से उठती तो बाल बिखराए रहती ।उमा को यह सब एक दम पसंद नहीं आता ।फिर एक दिन समझाया ” देखो श्वेता,अब तक तुम बेटी थी ।




अब यहाँ की बहू बन गई ।थोड़ा कायदा और तौर तरीका होना चाहिये कि नहीं “? मुझे ऐसा जीवन पसंद नहीं है ।मै अपनी बेटी को भी सिखाती ।अच्छा से रहने में क्या बुराई है? थोड़ा बाल संवार लिया करो।कमरे को ठीक कर लिया करो ।तुम को भी अच्छा लगेगा ।रोहन भी खुश रहेगा ।” मै सवेरे उठना चाहती हूँ माँ, नींद ही नहीं खुलती ” फिर मम्मी ने कुछ सिखाया नहीं ।उमा देख रही थी श्वेता अब सवेरे उठ जाती ।साफ सफाई का भी ख्याल रखने लगी।उमा को लगता बच्ची है अभी, सीख जायेगी धीरे-धीरे ।उमा भी रसोई में साथ साथ लगी रहती ।शाम को अब रोज तैयार हो कर बेटा बहू निकल जाते तो रात गये खा पी कर लौटते ।बहुत बुरा लगता उमा को।अन्दर की सास सचेत हो जाती ” मै दिन रात खटती रही और ये,इसे मेरी जरा भी परवाह नहीं ।” फिर मन को खुद ही समझाती ” आखिर अब वह मेरी बेटी बनकर आई है उसे भी तो एक सुखी जीवन बिताने का हक है ।अभी नहीं जायेगी तो कब घूमेगी, फिरेगी”? उमा के मन में माँ और सास की खींच तान चलती रहती ।वह सोचती खूब प्यार करेगी बहू को ।वह खुद ही ठीक हो जाएगी ।उम्र का तकाजा था ।एक दिन किचन में ही बेहोश हो कर गिर गई ।दौड़ कर बहू ने संभाला ।तुरंत फोन किया तो बेटा दौड़ कर आया ।उमा को अस्पताल में भर्ती कराया गया ।” कोई बात नहीं है, कमजोरी के कारण ऐसा हुआ है ।आपलोग खयाल रखिएगा ” डॉक्टर ने कहा तो रोहन को संतोष हुआ ।

बहू दिन रात सेवा में लगी रहती ।रसोई भी संभाल लिया, घर भी साफ सुथरा रखने लगी ।उमा बिस्तर पर पड़ी पड़ी सोचती ” कितनी अच्छी है मेरी बहू” नाहक ही मैंने गलत सोच लिया ।थोड़े दिन के बाद उमा घर आ गई ।इसी तरह समय बीत रहा था ।पति भी एक छोटी सी बीमारी में चल बसे थे ।पति के जाने से वह दिन रात रोती रहती ।और फिर एक दिन उमा की तबियत खराब होने लगी थी ।बहू ने कहा ” इनको बुला दें ?” उसने हाँ में इशारा किया ।बेटा आफिस से दौड़ कर आया ।देखते देखते उमा को होश ही नहीं रहा ।वह घर में ही बेहोश हो गई ।फिर अस्पताल में भर्ती कराया गया ।डाक्टर ने जवाब दे दिया था कहा ” थोड़ी देर की मेहमान है ” आई सी यु में बहुत सारी मशीनें लगा दी गई ।बेटा बहू ईश्वर से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते रहे ।तीन दिन के बाद होश आया तो सब के चेहरे पर खुशी छा गई ” अब माँ ने आँखे खोली है ” ।आठ दिन के बाद उमा घर आ गई ।श्वेता दिन रात सेवा में लगी रहती ।कितनी अच्छी है मेरी बहू ।कौन कहता है बहू बेटी नहीं हो सकती? अरे बहू को बेटी बनने की जरूरत ही क्या है? बहू के रूप में भी वह बहुत अच्छी हो सकती है ।बेटी तो चार दिन देखने के लिए आयेगी ।सेवा तो बहू ही करेगी न? परिवार साथ हो तो कभी टकराव की गुंजाइश भी हो सकती है ।लेकिन उमा गलत होती तो श्वेता  चुप रहती ।श्वेता  कभी गलत होती तो उमा चुप रहती ।लेकिन दोनों ही एक दूसरे से बहुत प्रेम करती।दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह सकती।ऐसी थी इनकी कहानी ।जीवन सुख पूर्वक  बीत रहा था ।गुलाब की कली श्वेता थी।अगर बचकर चलें तो काटों को नजर अंदाज किया जा सकता है सामने मुसकुराते हुए गुलाब का खिलना जीवन को एक नयी दिशा दे सकती है ।

#बहू 

उमा वर्मा ।नोयेडा ।स्वरचित ।मौलिक ।अप्रसारित ।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!