मेरे लिए मेरे पति का स्वाभिमान मेरे बेटे के मोह से कहीं बढ़कर है। – गीतू महाजन

रत्न जी की रिटायरमेंट में बस कुछ ही समय बचा था। वह चाहते थे कि रिटायरमेंट से पहले अपने बेटे की शादी कर दें।बेटी को तो उन्होंने लगभग 3 साल पहले ही ब्याह दिया था और वह अपने घर में खुश थी।इस बात को लेकर रत्न जी और उनकी पत्नी सुगंधा जी को बहुत तसल्ली थी। उनका बेटा एमबीए कर एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे ओहदे पर काम कर रहा था।उसकी आय भी अच्छी थी इसलिए रत्न जी अब उसके रिश्ते की बात करना चाहते थे।इसके लिए उन्होंने दो-चार लोगों को कहा भी था और सुगंधा जी ने भी अपनी सहेलियों और रिश्तेदारी में अपने बेटे अमन के लिए कोई अच्छी सी लड़की देखने के लिए कहा था।

 उनकी कोई मांग नहीं थी..लड़की चाहे नौकरी वाली हो या घरेलू हो उन्हें किसी भी किस्म की कोई परेशानी नहीं थी।बस लड़की का स्वभाव उन्हें अच्छा चाहिए था ताकि वह घर में मिलजुल कर रह सके।सुगंधा जी खुद भी शुरू से संयुक्त परिवार में रही थी लेकिन अभी कुछ सालों पहले ही उनके देवर ने अपना मकान बनवा लिया था और वह अलग रहने चले गए थे लेकिन अब भी सारे परिवार में बहुत प्यार था।

रिश्ते की बात चली तो आए दिन कोई ना कोई रिश्ता आया रहता था।रत्न जी ने अमन और उसकी मां सुगंधा जी पर ही सारी ज़िम्मेदारी छोड़ रखी थी।सुगंधा जी को तो बस अमन की पसंद पर ही मुहर लगानी थी।देख भाल के अमन ने अपनी बहन वर्षा के साथ सलाह कर एक लड़की निशा को पसंद किया था जो कि उसकी तरह ही एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थी। 

अमन को लगता कि एक जैसी कंपनी में काम करने से वह उसके काम के दबाव को भी समझ पाएगी और साथ ही उसे देखने में और बात करने में भी वह अच्छी लगी थी।सुगंधा जी और रत्न जी को भी निशा का परिवार बहुत भला लगा था।देखने में वे लोग बहुत अच्छे थे और बातचीत में बहुत भले।सुगंधा जी की एक सहेली ने यह रिश्ता करवाया था। 

देखते ही देखते ब्याह का दिन आ गया था और निशा ससुराल में अमन की दुल्हन बन प्रवेश कर गई थी।बाकी सारे रिश्तेदार तो शादी के अगले दिन चले गए थे पर वर्षा कुछ दिन रुक गई थी।वर्षा के होते ही सुगंधा जी ने निशा से पहली रसोई बनवाने की रस्म करवा ली थी।निशा ने बहुत स्वादिष्ट हलवा बनाया था और उसे सब घरवालों ने बहुत अच्छे तोहफे दिए थे।

उसके अगले दिन अमन निशा को लेकर घूमने फिरने के लिए चला गया था।वर्षा के जाने से पहले ही अमन और निशा घूम फिर कर वापिस आ गए थे और सबके लिए तोहफ़े लाए थे।वर्षा ने महसूस किया कि निशा अपने मायके वालों के लिए उनकी तुलना में ज़्यादा अच्छे और महंगे तोहफे लाई थी।

सुगंधा जी से बात करने पर वह बोली,” तुझे ऐसे ही वहम है..अभी नई-नई शादी की शुरुआत है..मायके की तरफ थोड़ा झुकाव हमेशा लड़की का रहता ही है तो तुझे ऐसे नहीं सोचना चाहिए..तेरी इकलौती भाभी है”, वर्षा को मां की बात ठीक लगी और वैसे भी उसे अगले दिन अपने घर वापिस जाना था तो वह खुशी-खुशी अगले दिन अपने घर विदा हो गई। 




अमन और निशा अगले दिन निशा के मायके चले गए जो कि उसी शहर में था।सारा दिन वहां बिताने के बाद रात को वहीं से खाना खाकर दोनों लौटे थे और अगले दिन दोनों को अपना ऑफिस ज्वाइन करना था।अगले दिन सुबह हर बार की तरह सुगंधा जी उठी और उन्होंने अमन के साथ साथ निशा का भी टिफिन बना दिया था और दोनों के लिए नाश्ता भी बना दिया था। निशा और अमन एक ही गाड़ी में दफ्तर के लिए निकल गए। निशा का दफ्तर अमन के रास्ते में ही पड़ता था तो यही तय हुआ कि अमन उसे छोड़ भी दिया करेगा और वापसी में ले भी आएगा।

कुछ दिन तो यही दिनचर्या चलती रही।सुगंधा जी ने महसूस किया कि निशा उनके साथ बिल्कुल भी काम करवाने में दिलचस्पी नहीं लेती थी और सीधा अमन के साथ वापिस आती और उसके बाद अपने कमरे में चली जाती।सुगंधा जी रात के खाने का इंतज़ाम करती रहती। शाम की चाय भी वह दोनों को कमरे में दे आती।

 निशा सिर्फ रात के खाने के लिए ही बाहर कमरे से आती और खाने के बाद दुबारा कमरे में चली जाती..ना तो वह सुगंधा जी और ना ही रत्न जी के साथ खुलकर बात करती थी।पहले पहले तो सुगंधा जी को लगा कि शायद नई नई होने की वजह से और नया माहौल होने से वो अभी खुलकर बोल नहीं पा रही है लेकिन अब तो शादी को लगभग 4 महीने होने को आ रहे थे। 

वर्षा भी अपनी सास की बीमारी की वजह से दोबारा मायके नहीं आ पाई।सुगंधा जी उसे यह सब बातें बता कर परेशान नहीं करना चाहती थी।रत्न जी की रिटायरमेंट का समय आ गया था और 2 दिन बाद उन्होंने रिटायर होना था।खैर,रिटायरमेंट के बाद उन्होंने एक छोटी सी पार्टी रखी जिसमें वर्षा भी अपने पति अभिजीत के साथ शामिल हुई और 1 दिन रह कर ही चली गई क्योंकि उसकी सास की तबीयत अभी भी ठीक नहीं थी।

निशा ने उस मौके पर भी वर्षा के साथ अच्छी तरह से बातचीत नहीं की यह बात वर्षा ने तो शायद ना सोची हो लेकिन सुगंधा जी के मन को ठेस पहुंचा गई थी।खैर रत्न जी रिटायरमेंट के बाद सोच रहे थे कि वह अपना वक्त अब कैसे बिताएं इसलिए उन्होंने सुबह अपनी काॅलोनी के एक पार्क में योगा की क्लास शुरु कर दी और दोपहर को वह लाइब्रेरी में जाकर किताबें पढ़ते जिनको पढ़ने का उनका शुरू से ही बहुत मन था पर समय के अभाव से वह पढ़ नहीं पाते थे।

इधर घर में सुगंधा जी ने रत्न जी से कोई बात नहीं की थी।लेकिन रत्न जी देख रहे थे कि सुगंधा जी कुछ उलझी उलझी सी रहती हैं।उन्होंने जब पूछा तो सुगंधा जी पहले तो बात को टाल गई फिर बाद में बहू के व्यवहार के बारे में बोली तो रत्न जी बोले,” कई बार बच्चों को नई जगह में सहज होने में समय लगता है।तुम फिक्र ना करो..सब ठीक हो जाएगा”..लेकिन हुआ इसका उल्टा। 

अभी रिटायरमेंट को 15 दिन ही बीते थे कि निशा एक दिन कमरे से बाहर आई और बोली,” पापा, आप यहां ऐसे सुबह फालतू बैठकर अखबार पढ़ते रहते हो और दोपहर को लाइब्रेरी में जाकर किताबें इससे अच्छा कोई नौकरी क्यों नहीं शुरू कर देते।एक तो आमदनी हो जाएगी और देखो आपकी तो पेंशन भी नहीं आती इससे अमन के ऊपर जो आप का बोझ बढ़ गया है वह भी थोड़ा कम होगा…क्योंकि अमन ने बताया है कि आपके पास कोई बहुत अच्छी सेविंग भी नहीं है तो कल को हमें ही आपका सब कुछ करना है तो जितनी देर आपके हाथ पैर चल रहे हैं तब तक क्यों ना आप कोई नौकरी शुरू कर दें”।




रत्न जी और सुगंधा जी निशा के बात करने का अंदाज़ और उसकी बात सुनकर हैरान रह गए।रत्न जी ने एक बार अमन की तरफ देखा जो कि चुपचाप खड़ा था और जिसने अपनी बीवी को एक बार भी यह बात कहने के लिए मना नहीं किया था।

“कैसी बात कर रही हो बहू, हम दोनों क्या अब तुम्हारे ऊपर…अपने बेटे के ऊपर बोझ हैं”, सुगंधा जी ने पूछा।

“हां, तो और नहीं तो क्या…कोई भी बूढ़ा ,बेकार और खाली इंसान दूसरे इंसान के ऊपर बोझ ही तो बन जाता है जैसा आप बन गए हो”,कहकर निशा मुंह बनाती हुई अपने कमरे में चली गई ।

रत्न जी को तो जैसे तो काटो खून नहीं।उन्हें लगा कि जैसे उनके स्वाभिमान पर एक बहुत बड़ी ठेस पहुंची है।जिस आदमी ने हमेशा से डटकर काम किया था, जिसकी ईमानदारी के चर्चे पूरे दफ्तर में किए जाते थे..जिसने अपनी बच्चों की शिक्षा के लिए भी एक पैसा कभी उधार ना लिया हो उस आदमी के स्वाभिमान को कितनी ठेस पहुंची होगी सुगंधा जी ही जानती थी और सबसे बड़ी बात थी कि उस समय अमन के चाचा जी और चाची जी भी आए हुए थे।

दोनों भाई एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे कि आखिर ऐसा हो क्या गया।अमन और निशा जब दफ्तर चले गए तब रत्न जी ने गुस्से में कहा कि अब हम इस घर में एक पल भी नहीं रहेंगे।रतन जी को शांत कराते हुए उन का छोटा भाई शरद बोला,” भैया, आप यह बात कैसे कह सकते

हो।यह घर आपका खरीदा हुआ है और आप इस घर को छोड़कर क्यों जाओगे भला..अगर किसी को जाना होगा तो वह अमन और निशा होंगे।एक बार उनको भी तो पता चले कि जिस आदमी को वह बेकार समझ रहे हैं उस आदमी ने उनके लिए सिर ढकने की छत बनाई है”। 

दोनों भाई आपस में बैठ गए और सुगंधा जी की देवरानी नमिता उन्हें चुप कराने लगी क्योंकि सुगंधा जी बहू की बातें सुन बहुत ही अपमानित महसूस कर रही थी और उनकी आंखों में आंसू आ गए थे।कुछ दिन घर में मातम सा माहौल रहा।सुगंधा जी वैसे ही खाना बनाती रही और अमन और निशा बेशर्मों की तरह नाश्ता कर अपना टिफिन ले जाते और  रात को बहुत बार बाहर से ही खाना खाकर आते।

रत्न जी के दिमाग में क्या चल रहा था कोई नहीं जानता था।वो सुबह के निकलते और शाम को वापस आते। सुगंधा जी जब भी कुछ पूछती तो यही जवाब देते,” वक्त आने पर बता दूंगा”।

फिर एक दिन रत्न जी मिठाई का डिब्बा लेकर आए और सुगंधा जी के मुंह में एक लड्डू भरते हुए बोले,” बधाई हो इस बूढ़े और बेकार आदमी को नौकरी मिल गई है”।




सुगंधा जी हैरानी से उनका मुंह देखने लगी तो वह बोले कि शरद ने उनकी नौकरी अपने ही दफ्तर में एक अकाउंटेंट के पद पर लगवा दी हैं जहां पर उनका वेतन भी अच्छा है और शाम को शरद और उनकी पत्नी नमिता भी आ गए।अमन और निशा जब घर आए तो सबको हंसते मुस्कुराते देख हैरान रह गए।ऐसा लग रहा था जैसे आज बड़े दिनों बाद घर में खुशी का माहौल था।रत्न जी तो बहुत ही खुश थे।

 

कुछ ही देर बाद रत्न जी के सारे दोस्त भी आ गए।अब निशा की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी कि ऐसा क्या हो गया है  जो सुगंधा जी और नमिता ने खाने पीने की पूरी व्यवस्था कर रखी थी।अमन ने रत्न जी से पूछा,” पापा,आज क्या कोई पार्टी है घर में..यह सब आपके दोस्त जो इकट्ठा हो रहे हैं”।

 रत्न जी ने उसे जवाब दिया,” रुक जा, अभी थोड़ी देर में बताता हूं।जब सारे इकट्ठा हो गए तो रत्न जी के एक दोस्त ने पूछा,” अरे यार, अब बता भी दो कि तुम ने हम सब को अचानक से क्यों बुलाया है”।तो रत्न जी बोले,” आज खुशियों का दिन है इस बूढ़े को नौकरी मिल गई है। अब मैं बेकार आदमी नहीं हूं…अब मैं किसी पर बोझ नहीं हूं..अब मैं अपना और अपनी बीवी का पूरा खर्चा उठा सकता हूं और किसी की भी हिम्मत नहीं होगी अब मुझे बूढ़ा और बेकार कहने की”, यह सब कहते कहते रत्न जी अमन और निशा की तरफ देख रहे थे।

सबकी समझ में अब सारी बातें आ रही थी लेकिन कोई कुछ बोला नहीं।रत्न जी खुशी-खुशी बोले,” आज मेरी तरफ से सबको पार्टी है।सब खा पीकर और उन्हें बधाइयां देकर चले गए।अब रत्न जी, सुगंधा जी और उनके छोटे शरद और नमिता बाकी रह गए थे।रत्न जी ने अमन और निशा को बुलाकर कहा ,”तुम दोनों 15 दिन के अंदर अंदर अपने लिए नया मकान देख लो क्योंकि मैं अपने घर में अपनी मर्ज़ी से रहना चाहता हूं और मैं नहीं चाहता कि मेरे घर में वो लोग रहें जो मुझे बेकार समझते हों। अब मैं अपने स्वाभिमान के साथ जीना चाहता हूं।इसलिए तुम्हें 15 दिन की मोहलत दे रहा हूं”।

यह बात सुनकर अमन का मुंह खुला का खुला रह गया। क्योंकि वह जानता था कि दिल्ली जैसे शहर में नया घर किराए पर ढूंढने का मतलब है उसकी आधी तनख़ाह उसी में निकल जाएगी और घर के अन्य खर्चे जो होंगे वह अलग।उसने अंदर कमरे में जाकर निशा को समझाया। दोनों आकर माता पिता के पांव में गिर पड़े और माफी मांगने लग पड़े।

 सुगंधा जी बोली,” अमन बेटे, हमें तुमसे कोई गिला नहीं है लेकिन तुम्हारे पापा सही कह रहे हैं तुम्हें तो 15 दिन के अंदर अपना आशियाना ढूंढना ही पड़ेगा  तांकि हम स्वाभिमान से रह सकें।तुम मुझे बहुत प्यारे हो लेकिन मेरे पति का स्वाभिमान मेरे बेटे के मोह से कहीं बढ़कर है”, यह कहते हुए सुगंधा जी वहां से उठी और रसोई घर में चली गई।

शरद और नमिता जी भी अपने घर के लिए निकल पड़े अमन और निशा वहीं खड़े थे उन्हें अब समझ आ रहा था कि अपने पापा के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाकर उन्होंने कितनी बड़ी गलती कर दी है।

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गीतू महाजन।

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