मेरा साँया – बेला पुनिवाला 

ईश्वर :  ( drawing room से आवाज़ लगाते हुए ) सुधा, अभी कितनी देर है, टिफ़िन बनने में ? मुझे ऑफिस जाने में देरी हो रही है ? और मेरा चाय-नास्ता ready हुआ के नहीं ?

सुधा : ( किचन में से आवाज़ लगाती है। ) अरे, समझो बस हो ही गया। एक नज़र dining table पे डालो तो ज़रा !आप का चाय-नास्ता मैंने टेबल पे ऱख दिया है। आप नास्ता कर लो, उतनी देर में मैं आपका टिफ़िन लेके आती हूँ।

सुधा किचन में से बाहर आते हुए ईश्वर को कहती है,

सुधा : अजी सुनते हो, आज शाम को घर आते वक़्त वो गिफ़्ट याद से लेते आना। कल सुबह जल्दी निकलना पड़ेगा, ऑफिस के मुहरत के लिए। सुबह इतना वक़्त नहीं मिलेगा।

 सुधा का पति नास्ता करते हुए

ईश्वर : अच्छा, ठीक है बाबा, याद से लेता आऊँगा। मगर हमारे लड़को का क्या करेंगे ? वो तो साथ में नहीं आनेवाले ?

सुधा : उनकी फ़िक्र आप मत करो, मैंने हमारे दोनों लड़को  के लिए सुबह के लिए सब्जी और पराठा और रात के लिए पानी-पूरी का इंतेज़ाम कर लिया है, बाहर का खाना खाएंगे, तो फ़िर से पेट ख़राब होगा, मैं ऐसा रिस्क एक दिन के लिए भी नहीं लेना चाहती।

ईश्वर : कल सुबह कितने बजे निकलना है ? मुंबई से पूना जाने तक ४ घंटे तो लग ही जाएँगे।

सुधा : इसीलिए तो कहा, जल्दी चले जाएँगे, वार्ना मेरी दोस्त को बुरा लग जाएगा और आप तो जानते ही हो उसे। वो मेरे बगैर पूजा शुरू करनेवाली नहीं। सुबह 5 बजे निकल जायेंगे, तो 9 बजे तक पहुंच जाएँगे, ऑफिस का मुहरत १० बजे का है, लेकिन थोड़ा जल्दी जाएँगे, तो उसे थोड़ी मदद भी मिल जाएगी।

ईश्वर : अच्छा ठीक है, मैं ऑफिस चलता हूँ, शाम को आते वक़्त गिफ्ट लेता आऊँगा।

सुधा : अरे, जल्दी में कहाँ जा रहे हो ? अपना टिफ़िन तो लेकर जाओ।

ईश्वर : हां, हाँ अच्छा हुआ, याद कराया तो ?

सुधा : अरे,अरे रुको तो ! अपना चश्मा और मोबाइल तो टेबल पे ही भूल गए !

ईश्वर : अच्छा हुआ, याद कराया तो, अगर तुम नहीं होती, तो नाजाने मेरा क्या होता ?

सुधा : आप गभराइए मत। मैं इतनी जल्दी कहीं नहीं जानेवाली ? ये लीजिए, आपका चश्मा और मोबाइल।

सुधा : ( बड़बड़ाते हुए ) हर वक़्त जल्दी में ही रहते है।

विरल  अपने बैडरूम में से माँ को आवाज़ लगाता है।

विरल : माँ, मेरी नई जीन्स और टी-शर्ट कहाँ है ? और मेरी वॉच भी नहीं मिल रही ? मुझे ऑफिस जाने में लेट हो रहा है।

सुधा : अरे, वही cupboard में ही तो है, ठीक से देखो तो ज़रा, अपने आप कुछ लेने की आदत ही नहीं, अगर मैं  नहीं हूँ, एक दिन तो इस घर का क्या होगा ?

विरल : हां, माँ मिल गया। मेरा टिफ़िन बन गया क्या ? आज मुझे जल्दी जाना है, पहले रास्ते में client के साथ एक मीटिंग भी है।

सुधा : हाँ, बाबा समझो बस हो ही गया। अपने पापा की तरह हर वक़्त जल्दी में ही रहते हो ! ध्यान से जाना, बाइक ज़्यादा तेज़ मत चलाना। वहां पहुँचते ही फ़ोन कर देना।

विरल : हां, माँ ज़रूर। अब मैं निकलता हूँ।

विराज : माँ, मुझे अभी जाने में थोड़ी देर है, तुम पूरा दिन कितना काम करती हो, मेरा टिफ़िन मैं खुद भर दूँगा।  आज मुझे जाने की कोई जल्दी नहीं ।  माँ, तुम थोड़ी देर बस आराम से बैठो मेरे पास।

सुधा : आजा, मेरा राजा  बेटा, इस घर में एक तू ही तो है, जिसे मेरी इतनी परवाह है, वार्ना वो दोनों तो हर पल जल्दी में ही लगे रहते है।

विराज : देखना माँ, एक दिन मैं जब बड़ा आदमी बन जाऊंगा ना, तब तुझे इतना भी काम नहीं करने दूंगा। पुरे दिन के लिए ही बाई रख देंगे, तू बस आराम करना।

सुधा : चलो, मेरे बारे में किसी ने इतना सोचा, उतना ही मेरे लिए बहुत है।

विराज : अच्छा माँ, अब मैं भी ऑफिस के लिए निकलता हूँ, वार्ना मेरा वो खड्डूस बॉस मुझ पे फिर से चिल्लाएगा।

सुधा : ठीक है, बेटा, संभलकर जाना, पहुंचते ही फ़ोन कर देना।

 दूसरे दिन

सुधा :  ( विरल और विराज से ) हम दोनों जा रहे है, तुम अपना ख्याल रखना, खाना मैंने बना लिया है, वक़्त पे खा लेना।

विरल : हां, माँ आप आराम से जाओ, हमारी फ़िक्र मत करो।

 ईश्वर और सुधा कार से पूना अपनी सहेली की ऑफिस के मुहरत के लिए जल्दी ही निकल जाते है। वहां पे पूजा ख़तम कर के शाम को वापस  घर के लिए  को निकल जाते है।  रास्ते में से ईश्वर अपने बड़े बेटे आकाश को फ़ोन लगाता है।

ईश्वर : विरल बेटा, तुम्हारी मम्मी और मैं पूना से निकल गए है, रास्ते में traffic ज़्यादा है, तो आने में शायद देर भी हो जाए, तुम दोनों खाना खाके सो जाना।  कल बातें करेंगे।

विरल : हां पापा, आप लोग आराम से आइए, वैसे भी मुझे ऑफिस में आज काम कुछ ज़्यादा ही है, इसलिए शायद मुझे घर जाने में लेट भी हो जाए, मैं विराज को फ़ोन करके बता दूंगा।

ईश्वर : ठीक है। ४ घंटे बाद

विराज : मम्मी, आप लोग अब तक वापस क्यों नहीं आए ? विरल भैया ने बताया था, कि आप लोग कब के वहां से तो निकल गए हो, तो बात क्या है ?

सुधा :  रास्ते में traffic बहुत था, अब ज़रा रास्ता खुला तो दिख रहा है, बाहर सारी दूकान बंद हो रही है, सब लोग जल्दी में भाग रहे नज़र आ रहे है, न्यूज़ में आया है, अभी से lockdown जारी हो गया है, सब को घर से निकलने की मनाई की गई है, आप दोनों घर पे ही रहना और विरल को भी बता देना, वार्ना उसके पाँव तो घर में टिकते ही नहीं।

विराज : हां माँ, आप अपना ख्याल रखना, मैं अभी विरल भैया  को फ़ोन कर के घर बुला लेता हूँ।

आधे घंटे बाद ही

ईश्वर : तुम्हारी मम्मी… सुधा… (रोते हुए), पुलिस वाले उसकी बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए ले गए है, कह रहे है, कि वापस घर नहीं ले जा सकते।  ( रोते हुए ) मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा।

विरल : ( गभराया हुआ ) क्या हुआ मम्मी को ? आप ये सब क्या कह रहे है ?  ये सब कैसे हुआ पापा ?

ईश्वर : हमारी कार एक ट्रक से टकरा गई और ये हादसा हो गया। आसपास वाले लोगों ने हमें अस्पातल भर्ती किया, मुझे तो  इतनी चोट नहीं लगी थी मगर सुधा ने सीट बेल्ट नहीं पहना था, उसके सिर पे कांच लग गया, सिर से खून बहुत बह रहा था, अस्पताल ले जाते उस से पहले ही सुधा ने अपनी अंतिम साँस लेली। जाते-जाते सुधा बस तुम दोनों का ही नाम लेती रही।

विरल : ये आप क्या कह रहे हो पापा ? अभी आधे घंटे  पहले ही तो मैंने मम्मी से बात की थी, तब तो वो ठीक थी। इतनी देर में ये सब क्या हो गया ? मैं विराज को लेकर अभी आता हूँ। आप बस वही रुकिए। 

ईश्वर : इसकी ज़रूरत नहीं है, lockdown की वजह से अस्पताल वाले मिलने नहीं देंगे। मैं ही घर आ जाता हूँ।

 ईश्वर घर जाकर अपने लड़को से

विराज : ये सब क्या हो गया, पापा ? ( रोते हुए )

ईश्वर : मेरी भी कुछ समझ में नहीं आ रहा। ये सब अचनाक क्या हो  गया ? ना जाने हमारी हस्ती खेलती ज़िंदगी को किस की नज़र लग गई ? lockdown की वज़ह से सुधा की अनितम्क्रिया भी ठीक से ना कर पाएगे। कोई पंडित आने को राज़ी नहीं है।

विरल : कोई बात नहीं, हम lockdown ख़तम होने के बाद मम्मी की अन्तिमक्रिया करेंगे। तब तक देखते है क्या हो सकता है।

एक महीने बाद lockdown खुल  जाता है,

ईश्वर : खाना बन गया है, मुझे जल्दी जाना है। दोनों  खाना खा लेना और विरल कल तुम्हारी बारी है, खाना बनाने की, तो तुम खाना बना लेना।

विरल : हां पापा और कर भी तो क्या सकते है ? माँ ने आदत जो डाली है, घर का खाना खाने की !

विरल और विराज : हां पापा, माँ की बहुत याद आति है, वो थी तो घर-घर था, अब तो घर आने का भी मन नहीं करता।

 ईश्वर बात को बदलते हुए

ईश्वर : चलो, इसी बहाने तुम लोग खाना बनाना तो सिख लोगे ? चल, अब में ऑफिस जा रहा हूँ। कहते हुए ईश्वर अपना टिफ़िन लेकर घर से निकल जाता है।

  कुछ दिनों बाद

विरल :  ( खाना खाते वक़्त विराज को फ़ोन किया। ) यार विराज, आज तो ये छोले पूरी की सब्जी बहुत ही लाजवाब बनी है, बिलकुल माँ के हाथो का स्वाद याद आ गया।

विराज : ( बड़बड़ाते हुए ) यार मैंने तो आज, जल्दी में खाना बनाया ही नहीं, तो फ़िर ये किस छोले-पूरी की बात कर रहा है ? कोई बात नहीं शायद पापा ने बनाया होगा। मेरे लिए भी थोड़ा बचाना हां।

विरल : ज़रूर।

  दूसरे दिन

विराज : ( खाना खाते वक़्त पापा को फ़ोन करता है। )

अरे, पापा ! आज तो आपने आलू-प्याज़ की सब्जी बहुत अच्छी बनाई है, मुझे भी सीखा देना।  जब भी मैं खाना बनाता हूँ, तब खाना बहुत बच जाता है, मैं जानता हूँ, मुझ से इतना अच्छा खाना नहीं बनता, तभी तो !

ईश्वर : ( सोच में पड़ गया, यार आज तो मैंने कुछ भी  नहीं बनाया, तो फ़िर ये किस आलू-प्याज़ की सब्जी की बात कर रहा है ? जो भी हो, छोड़ो, खाना तो खाया ) अच्छा ठीक है, सब्जी बचे तो फ्रीज़ में रख देना।

 तीसरे दिन

ईश्वर : ( खाना खाता है, तभी )

वाहह, हलवा बहुत अच्छा है, धीरे-धीरे विरलने खाना  बनाना सिख ही लिया।  very good. विरल वाह… विरल,  अगर तू नहीं होता तो हम भूखे ही रह जाते।

विरल : ( बड़बड़ाता है, यार… आज तो मुझे सुबह उठने में ही लेट हो गया था, तो ये किस हलवे की बात कर रहे  है ? शायद विराज भैया ने बनाया होगा। ) चलो छोड़ो, हलवा खाने को तो मिला !

  ४ डे

ईश्वर ने फ्रीज़ पे चिठ्ठी चिपका दी, जिस पे लिखा था, कि आज saturday नाईट है,  हम सब रात १० बजे साथ मिलकर खाना खाएँगे। इसी बहाने बातें भी हो जाएगी। सबने वो चिठ्ठी पढ़ी और रात को १० बजे तक सब साथ खाना खाने बैठे।

ईश्वर : अरे बच्चो, अब तो तुम दोनों भी खाना अच्छा बना लेते  हो। किसने सिखाया, माँ के जैसा ही खाना बनाना ? विराज आज तूने खाना बनाया है, ना ? पाव-भाजी बिलकुल सुधा जैसी ही बनाई है। 

विराज : आज मैंने पाव-भाजी नहीं बनाई, मुझे लगा आप में से किसी ने बनाई होगी ? क्योंकि मैं जब खाना बनाने गया, तब पाव-भाजी प्लेटफार्म पे ही थी।

अंदर ही अंदर सब सोच रहे है, तीन-चार दिन से हमने तो खाना बनाया नहीं, तो खाना किसने बनाया होगा ?

ईश्वर : मैं भी यही सोच रहा हूँ, कि इतना अच्छा खाना बनाना कैसे सिख गए, वो भी इतनी जल्दी ?

वीरल : हां, पापा ! मैं भी यही सोच रहा हूँ। हमारे घर कोई कामवाली बाई भी नहीं आती। तो फ़िर, घर की साफ-सफ़ाई कौन करता होगा ? ऐसा करते है, कल sunday है, हम चोरो में से कोई खाना नहीं बनाएगा। फ़िर देखते है, कौन खाना बनाता है ?

 सब को ये idea सही लगा। रात को movie देखते-देखते सब सो गए। तो सुबह ईश्वर ११ बजे उठे। ईश्वर ने किचन में जाकर देखा तो खाना बन चूका था और घर का दरवाज़ा भी अंदर से ही बंद था, दोनों लड़के अभी भी सो रहे थे।

ईश्वर : ( विरल को जगाते हुए ) विरल, विरल उठो, आज खाना किसने बनाया और घर की सफाई किसने की ? तुमने किया क्या ?

विरल : नहीं पापा ! मैं तो सोया हुआ था, आपने ही तो जगाया मुझे ?

ईश्वर : तो फ़िर खाना किसने बनाया होगा ?

विराज, विरल तुम दोनों ने खाना बनाया क्या ?

अब सबको डर लगने लगा, ये क्या हो रहा है ?

ईश्वर : इतने दिनों से हम किस के हाथ का बना खाना खा रहे है ? कुछ समझ में नहीं आ रहा।

 उस दिन शाम को ईश्वर के घर उसका एक पुराना दोस्त बहुत दिनों के बाद अचनाक से आता है।

  डोरबैल की घंटी बजती है। दरवाज़ा खोलते ही

ईश्वर : अरे, अरविंद तू, इतने दिनों के बाद ? कैसा है यार तू ? अच्छा किया आ गया तो ! वैसे भी आज sunday है, तो हम सब घर में ही है।

 अरविन्द घर में आकर सोफे पे बैठता है।

अरविंद : मेरे एक यजमान के वहां पूजा थी, वही गया था, अभी वापस घर ही जा रहा था, रास्ते में ही तेरा घर देखा, सोचा मिलता चलू ! तुम्हारी पत्नी सुधा के बारे में सुना था, मगर उस वक़्त lockdown लग गया था, पुरे शहर में। इसलिए आ न सका।

ईश्वर : अरे, बहुत अच्छा किया यार तूने, यहाँ आ गया तो। तू थोड़ी देर बैठ तेरे लिए मैं अभी चाय बनाके लाता हूँ।

अरविंद : अरे, तू यहाँ बैठ, चाय तो मैं अभी मेरे यजमान के वहा पीकर आया। तू तो जानता ही है मेरा काम, होम, हवन, पूजा, पाठ, वशीकरण, जादूटोना यही सब तो करता हूँ, मैं।  मेरे पापा के जाने के बाद मुझे ही तो संभालना पड़ा ये सब। सब लोग कहते थे, तेरे पापा बहुत अच्छा हवन, पूजा कराते थे, अब तू ही हमारे घर पे आना। और पूजा, हवन कराना।  तब से मैं देखो सच मैं पूरा पंडित ही बन गया।

ईश्वर : तूने जो इंजीनियर की पढाई शुरू की थी, उसका क्या हुआ ?

अरविंद : हम्म, पापा के जाने  सब छूट गया और वैसे भी पापा से थोड़ा बहुत तो सीखा ही था, क्योंकि मैं उनके साथ भी कभी-कभी जाता था। तू मेरी छोड़, अपनी सुना। सुधा के जाने के बाद तो तुम सब अकेले ही पड़ गए होंगे ना ! कामवाली बाई खाना बनाने और घर की सफाई के लिए तो आती होगी, ना ?

ईश्वर : नहीं, यार। हमने कोई कामवाली बाई नहीं रखी,  काम बांट दिया है, इसलिए हो जाता है। मगर अरविंद, यार मुझे तुम से एक बात पूछनी है। आज कल मेरे घर में  कुछ अजीब सा हो रहा है, समझ नहीं आता क्या करू ? किस से बात करू ?

अरविंद : क्यों ? क्या हुआ ? मुझे तो तू बता ही सकता है, मैं तेरा दोस्त जो हु ! चल, बता क्या हो रहा है ?

ईश्वर : तुझे तो पता ही है, यार कि सुधा के जाने के बाद मैं और मेरे दो लड़के बहुत अकेले पड गए थे, मगर वक़्त रहते मैंने दोनों को संभाल तो लिया, मगर कुछ दिनों से  हमारे घर में अजीब सी घटनाएं हो रही है, कुछ समझ में नहीं आ रहा !

अरविंद : अरे, कुछ बताएगा भी, कि क्या हुआ ?

ईश्वर : यार, पता नहीं, कुछ दिनों से हमारे घर में अपने आप खाना बन जाता है और घर की सफाई भी अपने आप हो जाती है। ये कैसे हो रहा है, कुछ समझ में नहीं आ रहा है।  कामवाली बाई हमने रखी नहीं और दूसरा कोई हमारे घर में आता-जाता नहीं। एक डर सा महसूस होता है।

अरविंद : अच्छा, ये बात है। कितने दिनों से हो रहा है ये सब ?

ईश्वर : सुधा को गए हुए २ महीने हो गए है, उसके कुछ ही दिनों बाद।

अरविंद : तेरे घर में चावल और कुमकुम होंगे ना ? वो ज़रा लेकर आ  और एक लोटे में पानी भी लेते आना।

ईश्वर : है, ना।  अभी लाया।

अरविंद : और हां, नारियल भी अगर घर में हो, तो वो भी लेते आना।

ईश्वर : हां, लाता हूँ।

अरविंद चावल, कुमकुम और पानी, नारियल लेकर घर के बिच में बैठ जाता है, चावल और कुमकुम को साथ में कर देता है और ज़मीन पे चावल के दाने कुछ मंत्र पढ़ते हुए गिराता है।

अरविंद : सुधा को गए कितने महीने हुए होंगे ?

ईश्वर : कुछ दो महीने हुए होंगे, अभी तो।

अरविंद : तूने सुधा की मौत के बाद उसका क्रियाकर्म सब कुछ  अच्छे से कराया था ना ? 

ईश्वर : नहीं, उस वक़्त lockdown जो लग गया था, उसी दिन तो ये सब हुआ और उसे हम घर भी नहीं ला सके।इसीलिए तो उसके पीछे कुछ कर भी ना पाए और सच कहु तो इन सब के बारे में मुझे कुछ पता भी नहीं, कहीं पे अगर कुछ हुआ हो तो, वो  सब तो सुधा ही संभालती थी। हम को हमारे काम से फुर्सत ही कहाँ ?

 कुछ देर बाद 

अरविंद : हहम…, तो ये बात है। अब मैं समझा, ये सब जो तुम्हारे घर में हो रहा है, ना ! वो और कोई नहीं, तुम्हारी सुधा ही कर रही है। तो अब तुमको अपनी बीवी के पीछे जो भी क्रिया करम है, वह पूरा करना होगा, तभी उसकी आत्मा को शांति मिलेगी, क्योंकि अचनाक हुई मौत से इंसान की काफी इच्छ्यायें अधूरी रह जाती है उसी की वजह से ऐसा होता है, वह आत्मा अपनों को छोड़ नहीं सकती। अगर ऐसा ही चलता रहा तो उसे मुक्ति कभी नहीं मिलेगी।

ईश्वर : ऐसा है अरविंद ! तभी तो मैं सोचु ये सब कौन कर रहा है ? तो अरविंद अब जल्दी से तुम ही हमें बताओ, इसके लिए हमें क्या करना होगा ? और सारी विधी वैसे ही करा दीजिए। 

 अरविंद के बताए मुताबिक सुधा की पूजा विधि करते है और सुधा की आत्मा को शांति मिलती है और सुधा की आत्मा अपने लड़को को आशीर्वाद देकर आसमान में चली जाती है।

  ईश्वर अपने दोस्त का बहुत-बहुत धन्यवाद करता है।

  Bela…

 

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