मेरा अधिकार – सरोज माहेश्वरी : Moral stories in hindi

   रमन और शीतल जोर जोर से चिल्ला रहे थे.. शीतल कह रही थी मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकती…. रमन बोला.. ऐसा क्या हुआ ? ऐसे क्यों कह रही हो? शीतल गुस्से में बोली… रहो तुम अपनी प्रेमिका के साथ जिसे रोज तुम अपनी गाड़ी में अगली सीट पर बैठाकर ले जाते हों… अरे शीतल! गुस्सा क्यों कह रही हों?

क्या तुम्हें मेरे प्यार पर भरोसा नहीं…. शीतल बोली ..गाड़ी में आगे की सीट पर मेरे अतिरिक्त अन्य किसी महिला को बैठने का अधिकार नहीं हैं तुम्हारे साथ आगे की सीट पर बैठने का अधिकार सिर्फ मेरा है…. इस तरह तुम पर सिर्फ मेरा ही अधिकार है… रमन बोला.. ठीक हैं कल से मैं अपनी किसी भी सहकर्मिनी को अपने साथ नहीं ले जाऊँगा मुझ पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार है अब तुम खुश हो जाओ ।

            शक का कीड़ा शीतल के दिल और दिमाग को विषाक्त कर चुका था शीतल रोज छुप छुपकर रमन का पीछा करती… एक दिन रमन दूसरे ऑफिस में मीटिंग पर जा रहा था पीछा करती शीतल के दिमाग में शक के कीड़े ने झूठे सत्य को जगह दे दी…  फिर क्या था तर्क वितर्क के बाद दोऩों ने आपसी सहमति से कोर्ट से तलाक ले लिया ,

परन्तु अपने दुधमुंहे ६ महीने के बच्चे रोहन को अपने साथ रखने से शीतल ने साफ़ इंकार कर दिया… शीतल का मानना था कि अब रमन छोटे बच्चे के कारण अपनी प्रेमिका से रंगरेलियां नहीं मना पाएग़ा जबकि रमन अपने परिवार एवं बच्चे के लिए समर्पित पिता था… अधिकार के अभिमान के कारण अब दोनों के रास्तें अलग अलग थे ।

              रमन के माता पिता बूढ़े हो गए थे… उन्हें नन्हे पोते रोहन की देखभाल करना कठिन हो रहा था …..माता पिता ने दूसरी शादी का प्रस्ताव रखा पहले तो रमन ने इंकार कर दिया, परन्तु माता पिता के आग्रह पर उनकी वृद्धावस्था को देखते हुए रमन ने दूसरा विवाह करना स्वीकार कर लिया….

एक दुर्घटना में अपने पति को खोने वाली ममता को रमन ने अपनी जीवन संगिनी बना लिया… ममता दिल की बहुत अच्छी स्त्री थी…  चार साल बाद उसने एक बच्चे को जन्म दिया नाम रखा मोहन… दोनों बेटों का वह अच्छी तरह से ध्यान रखती…. दोनों में तनिक़ भेद-भाव नहीं करती… दोनों ही उसकी जिगर के टुकडे थे… मातापिता द्वारा अच्छी देखभाल और दोनों बच्चों क़े कुशाग्रबुद्धि होने से रोहन, मोहन दोनों भाई अच्छे डॉक्टर बन गए मास्टर करने के बाद दोनों भाइयों ने अपना अस्पताल खोल लिया और कुशल डॉक्टर बनकर ख्याति प्राप्त करते लगे।’

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               एकदिन एक बूढ़ी स्त्री रिसेप्शन पर आकर बोली… मैडम! मैं डॉक्टर रोहन से मिलना चाहती हूं थोड़ी देर में डॉक्टर रोहन बाहर आए…  स्त्री बोली.. बेटा ! मैं तुम्हारी जन्मदात्री शीतल हूं तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है अब मैं तुम्हारे साथ रहूंगी फिर पूरी कहानी सुनाई… यही यर्थाथ रमन और ममता ने बड़े होने पर रोहन को बताया था…

रोहन बोला.. माँजी! जब आप अपने दुधमुंहे बच्चें को छोड़कर चली गईं थीं तब मां का कर्तव्य आप कैसे भूल गई?.. मांजी! आप जानती हैं अधिकार के साथ कर्तव्य भी जुड़े होते हैं जब मुझे मेरी यशोदा माँ ने पालपोष कर लायक बनाया तब आपकों अपने अधिकार याद आ गए,  परन्तु माँ जी आप मेरी जन्मदात्री हैं मैं अपने कर्तव्य का पालन करते हुए आपको अपने पास रख कर आपकी सभी जरूरतों को पूरा करूंगा परन्तु मुझपर मेरी यशोदा माँ अर्थात्‌  ममता मां का ही पूरा अधिकार होगा …

स्वरचित मौलिक रचना़ 

सरोज माहेश्वरी पुणे ( महाराष्ट्र)

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