मायके का बटवारा

सुचिता को शादी के तीन साल बीत जाते है. और तीन साल बाद सुचिता की सास कोकिला को अचानक उसके शादी में मिले दहेज की बात याद आती है. दरअसल वो अचानक तो नही पर पड़ोस में जब सहेली की बहु अपने शादी के दहेज में मोटरकार और सोने के बहुत सारे गहने लाती है तो वह अपनी बहू से जा कर कहती है,

“अरे शादी के इतने साल बाद बहु तुम अपने मायके से आखिर क्या ही लाई हो! पड़ोस में विभा की बहु को देखो शादी में पूरा घर भर दिया!”

“हां माजी पर उनकी बहू के पिता भी तो सरकारी सिविल सर्विस ऑफिसर के रिटायर्ड पर्सन है, और आपको तो पता ही है ऐसे में पद पर टेबल के ऊपर से जितना मिलता है इस से दुगना टेबल के नीचे से भी मिलता है. तो लाएगी ही ना! और मेरे माता पिता का इतना कहां है जो मुझे शादी में पूरा घर भर दे!”

“हां बहु पर तेरे दोनों भाई भी तो अब अच्छे मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं और वेतन भी अच्छा मिलता है और मुझे पता है तुम्हारे पिता मगन जी ने अपने पुरखों की कई सारी जमीन ऐसे ही पड़ी रखी है वह आखिर कब काम आएगी!”

“हां माजी जमीन तो हमारे पास भी है, लेकिन अब क्या अब तो मेरी शादी हो गई है और आज अचानक आप दहेज की बात क्यों कर रही हो!”

“अरे बहु दहेज की बात थोड़ी ना है! यह तो मैं तेरे हिस्से की बात कर रही हूं… आजकल भाइयों के साथ बहन का भी एक हिस्सा होता है, तुम्हें उसके लिए लड़ना तो होगा वरना सारा प्रॉपर्टी का हिस्सा तुम्हारे दोनों भाई ही ले जाएंगे और तुम्हें ठेंगा मिलेगा!”

“हां माजी बात तो आप सही कह रही है फिर मैं अब क्या करूं!”

“अरे करना क्या है तू कुछ दिनों के लिए बहाना करके मायके चली जा, और वहां जा कर अपने हिस्से के लिए लड़… मेरा मतलब है अपने दोनों भाइयों का बटवारा कर और ऐसे में तू हाथ साफ करके अपने ससुराल आ जा फिर तू भी तो रानी बन कर रहेगी ना! देख बिट्टू और कार्तिक भी तो जरूरी ट्रिप पर गए है… और बोल देना की मैं और तेरे ससुर भी वैष्णोदेवी गए है!”

सुचिता अपनी सास के कहने पर मायके चली जाती है. सुचिता के मायके में पिता मगन और मां शारदा होती है. छोटा भाई गौतम और पत्नी गरिमा और उनका दो साल का बेटा नक्श होता है. और उधर बड़ा भाई अजय और पत्नी भूमिका और उनका भी चार साल का बेटा दक्ष होता है. ऐसे में अचानक सुचिता को मायके आ कर कुछ दिन आराम का बहाना कर रहने लगती है. और उधर अपनी सास के साथ मिल कर मायके के बटवारा करने की सारी प्लानिंग करती है. और सास के कहने पर वह अपने काम में लग जाती है. यानी अब सुचिता अपने दोनों भाइयों के बीच में लड़वाने की कोशिश करती है.



एक दिन जब छोटा भाई गौतम अपनी मेहनत से अपने कंपनी का प्रेजिडेंट बन जाता है तो उसकी खुशी में वह घर आ कर सबको मिठाई बांटता है. सब उसकी तरक्की से खूब खुश होते है. लेकिन सुचिता को तो रास्ता मिल जाता है, ऐसे में सूचित अपने बड़े भाई के पास जाती है और कहती है,

“देखा आपने भैया सब गौतम भाई की ही वाह वाह कर रहे है, कभी आज तक इस घर में आपको ऐसी वाह वाह हुई है क्या! जब को मेरी शादी से लेकर गौतम के आधे पढ़ाई की जिम्मेदारी तो आपने ही उठाई है जब पिता जी उस दौरान बहुत बीमार थे…”

“हां तो क्या हुआ सुचिता, आखिर गौतम को इस मुकाम पर देखने के लिए ही तो मैने उस पर इतनी मेहनत की थी… आखिर बड़ा भाई छोटे भाई के लिए कुछ नहीं करेगा तो कौन करेगा!”

सुचिता की की कोशिश तो नाकामियाब रही वह अपने बड़े भाई को छोटे भाई के खिलाफ भड़का नही सकी और वही पैंतरा उसने अपने छोटे भाई से जा कर बड़े भाई के खिलाफ भड़काने की कोशिश की तो वह भी वह फैल हुई. ऐसे में एक रात जब गौतम कमरे में देर रात तक अपने कंप्यूटर पर एक जरूरी प्रेजेंटेशन बना रहा था तो सुचिता खिड़की से देख रही थी और रह देख रही थी की कह उसका भाई सो जाए.

जब भाई सो जाता है तो चुपके से सुचिता भाई गौतम के कमरे से लैपटॉप चुरा कर सारी जरूरी फाइल्स डिलीट कर देती है और बड़े भाई के कमरे में जा कर रख देती है. जब सुबह होती है तो गौतम अपना लैपटॉप इधर-उधर ढूंढता है उसे नहीं मिलता और अंत में बड़ा भाई अजय आता है और कहता है,

“अरे भाई लगता है तूने रात को नींद मैं होने की वजह से अपना लैपटॉप मेरे कमरे में ही छोड़ गया था मैंने उसमें देखा तो कुछ फाइल से भी जरूरी थी वह डिलीट हो चुकी थी लेकिन मैंने फिर भी उसे रिट्रिव करके फिर से सेव कर लिया है यह लो संभाल के रखो…”

“अरे भैया हां मैं तो सुबह से परेशान हूं और यह कितना जरूरी भी था थैंक्यू भैया अगर आज आप नहीं होते तो पता नहीं क्या होता तो मुझे यह समझ में नहीं आता कि रात को मुझे याद है कि मैंने कमरे में ही लैपटॉप छोड़ा था फिर पता नहीं कैसे हो गया!”

“अरे कोई बात नहीं ज्यादा दिमाग पर जोर मत दो हो जाता है कभी कभी…”

पर यह क्या सुचिता की ये कोशिश भी बरबाद हो जाती है. कुछ दिन बाद जब छोटे बेटे गौतम के दो साल के बच्चे का जन्मदिन होता है तो पिता मगन और मां शारदा मिल कर ये फैसल करते है की उनकी गांव की पड़ी हुई एक बीघा जमीन अपने पोते नक्श के नाम कर दे और फिर क्या था सुचिता के पास ये तो सुनहरा मौका था. अब सुचिता भाई अजय के पास जाती है और कहती है,

“क्या भैया आपको तो कुछ समझ में नहीं आता उधर गौतम भैया के बेटे को अभी दो साल हुआ है. और मां पिताजी बात कर रहे हैं कि उसको गांव की पड़ी हुई जमीन भेंट में देंगे ऐसे में हमारा दक्ष भी तो चार साल का है फिर भी आज तक मां पिताजी ने उसे कुछ हिस्से में क्यों नहीं दिया!”

“हां सुचिता यह बात तो तुम सही कह रही हो इस पर तो मैंने आज तक ध्यान ही नहीं दिया मां पिताजी अगर नक्श को कुछ देर है तो मेरे बेटे दक्ष को भी तो कुछ देना चाहिए उसका भी तो हक बनता है!”

सुचिता के भड़काने पर अजय गुस्से में अपने मां पिता के कमरे में जाकर कहता है,

“अगर छोटे भाई गौतम के बेटे को जमीन भेंट में दे रहे है तो मेरा बेटा दक्ष भी इसका हकदार है तो सिर्फ आपके पोते नक्श को ही जमीन भेंट में क्यों मिल रही है? आज तक आपने मेरे बेटे दक्ष को तो कुछ नहीं दिया!”



“अरे बेटा अचानक यह बात कैसे आ गई! हमे तो बस ऐसे ही चर्चा कर रहे थे, दिया तो नहीं…  और हम यही चर्चा कर रहे थे कि दोनों ही पोते को एक समान जमीन का हिस्सा दे दिया जाए!”

और इतने में गौतम वहां पर आता है और कहता है,

“नहीं मां, पिताजी मुझे और मेरे बेटे के लिए अभी यह सब जरूरी नहीं है… आपको अगर जमीन देना ही है तो आप बड़े भाई को ही दे दीजिए मुझे इसमें से कुछ नहीं चाहिए!”

और फिर बड़े भाई अजय को अपने विचार पर शर्मिंदगी होती है. और वो गौतम से माफी मांगता है और कहता है,

“थोड़े समय के लिए मैं बहक गया था भाई और मुझे लगा कि तुम इस घर का जायदाद हड़पना चाहते हो लेकिन मेरी सोच गलत थी मुझे माफ कर देना!”

और इतने में गौतम की पत्नी गरिमा आती है,

“अरे भैया आपने यह कैसे सोच लिया कि हम सारी जायदाद हड़प लेंगे, ऐसा तो हम सपने में भी नहीं सोच सकते… आखिर हम एक परिवार है तो हड़पने और लूटने की बात कैसे कर सकते है, और मेरे पति गौतम खुद इतने काबिल है कि उन्हें पिताजी की जमीन जायदाद की कोई जरूरत नहीं, इस पर पूरा हक आपका है… भैया क्योंकि आपने बहुत मेहनत से मेरे पति गौतम यानी आपके छोटे भाई को इस काबिल बनाया है कि आज वह किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है!”

“नहीं नहीं गरिमा, तुम मुझे शर्मिंदा कर रही हो,  यह तो एक बड़े भाई का फर्ज था इसमें इतनी बड़ी कोई बात नहीं!”

इतने में ही अजय की पत्नी पूनम भी वहां आती है और कहती है,

“हां गरिमा बड़े भाई और भाभी तो माता पिता समान होते है…”

और एक बार फिर सुचिता का बुना हुआ खेल पूरा बिगड़ जाता है. उनके भी झगड़े होने के बजाय वह और करीब आ जाते है. उनका रिश्ता और मजबूत हो जाता है. ऐसे में सुचिता अपनी सास को फोन करती है कि एक के बाद एक उसका सारा प्लान चौपट हो गया. उसकी कोई भी कोशिश कामयाब नहीं हुई. तब सास कोकिला बहु सुचिता को सलाह देती है कि वह अपने भाइयों के बीच लड़ाई की कोशिश ना कर वह दोनों भाभियों के बीच लड़ाई करवाएं, यानी देवरानी और जेठानी के बीच लड़ाई करवाएं!

और अपनी सास की यह बात मान कर सुचिता अब उस चक्कर में लग जाती है. वह अपनी छोटी भाभी गरिमा और पूनम के बीच लड़ाई करवाने की कोशिश करती है. जैसे की गरिमा थोड़ी सांवली थी और पूनम उसकी जेठानी का रंग बहुत साफ था ऐसे में सुचिता गरिमा के पास जाकर कहती, “अरे भाभी आसपास तो सिर्फ पूनम भाभी के ही चर्चे रहते है, आपकी तो कोई बात भी नहीं करता… और पूनम भाभी को भी देखो पूरा दिन पता नहीं कौन सा फेयरनेस क्रीम लगाकर बैठी रहती है, और ज्यादातर घर का काम भी तो आप ही कर रही हो मैं जब से आई हूं तब से देख रही हूं… पूनम भाभी बस खुद को सजने संवरने में ही लगी रहती है. इसीलिए तो देखो उनका रंग भी कितना गोरा है… पर आप एक काम क्यों नहीं करती पूनम भाभी से ही उनके साफ रंग का राज क्यों नहीं पूछ लेती!”



गरिमा सुचिता की बात से सहमत होती है. और वह दूसरे ही दिन भाभी पूनम के पास जाकर कहती है,

“भाभी आप कौन सा फेयरनेस क्रीम इस्तेमाल करती है जरा मुझे भी तो देना आपका चेहरा हर दिन खिलता ही जा रहा है इसका क्या राज है?”

“अरे गरिमा अचानक तुम्हें यह ख्याल कैसे आया? इसका तो कोई राज नहीं मैं बस इस कंपनी का क्रीम यूज़ करती हूं… अगर तुम्हें चाहिए तो तुम भी ले जाओ इसमें राज की तो कोई बात ही नहीं है.. लेकिन एक बात कहूं तो इंसान का दिल खूबसूरत होना चाहिए बाहरी खूबसूरती तो उम्र के साथ-साथ कम पड़ जाती है.”

पूनम गरिमा को क्रीम देती है. लेकिन सुचिता बड़ी चालाकी से उस क्रीम को कोई और दूसरी एक्सपायर क्रीम के साथ बदल देती है. जब गरिमा क्रीम को लगाकर रात को सो जाती है तो सुबह उठकर देखती है कि उसके चेहरे पर लाल रंग के दाग हो गए थे और काफी जलन भी हो रही थी. यह देखकर सुचिता तुरंत गरिमा के पास जाती है और कहती,

“अरे गरिमा भाभी यह क्या आपका चेहरा तो पूरा खराब हो गया है ऐसा कैसे हुआ?”

“अरे सुचिता पता नहीं कल रात को पूनम भाभी से उनकी क्रीम लेकर लगाई थी तब के बाद से मेरे चेहरे का यह हाल हो गया…”

“देखा आपने यही है पूनम भाभी का असली रंग बिगाड़ दिया ना आपका सुंदर सा चेहरा…”

सुचिता अब भड़क जाती है और तुरंत अपने जेठानी पूनम के कमरे में जाती है और लड़ने लगती है…

“क्या पूनम भाभी आपने यह क्या किया! मेरा चेहरा कैसे बिगाड़ दिया? आपको मुझसे इतनी जलन थी तो मुझे पहले ही बता देती पर ऐसे एक्सपायर क्रीम मुझे देकर मेरा चेहरा बिगड़ने की जरूरत क्या थी…!”

“अरे नहीं नहीं गरिमा तुम्हें गलतफहमी हो रही है, यह तो मैं रोज लगा रही हूं मुझे तो कुछ नहीं हो रहा… जाओ ले आओ तुम्हारी क्रीम ले आओ जरा मैं भी देखूं ऐसा क्या हो गया जो कि मैं लगाती हूं मुझे कुछ नहीं हुआ और तुम्हारा चेहरा इतना बिगड़ गया… मुझे माफ करना लेकिन मुझे नहीं पता ऐसा कैसे हो गया!”



गरिमा जल्दी अपने कमरे में से अपनी जेठानी की दी हुई क्रीम ले कर पूनम के कमरे में आती है, तो पीछे से पति गौतम और पूनम का पति अजय भी आता है. और गरिमा के हाथ से  गौतम क्रीम की डब्बी को छीन कर कहता है,

“अरे यह क्रीम तो एक्सपायर हो चुकी है यह तो इस्तेमाल करने के लायक ही नहीं है…”

और जब पूनम भी इस क्रीम को देखती है तो कहती है,

“अरे हां यह क्रीम तो एक्सपायर हो चुकी है… सच में इस बात का मुझे पता नहीं था पर मैंने तो तुम्हें एक्सपायरी डेट चेक करके ही दी थी फिर ऐसा कैसे हो गया!”

“अरे कोई बात नहीं गरिमा यह एक्सपायर क्रीम लगाने की वजह से तुम्हारे चेहरे पर लाल दाग हो गए जो अगले 24 घंटों में ठीक भी हो जाएंगे… एक दिन पूनम को भी ऐसा ही हुआ था पूनम को इन सब चीजों का ध्यान ही नहीं रहता तुम चिंता मत करो यह दाग 24 घंटे में ठीक हो जाएंगे!”

“हां भाभी ऐसा ही हो तो ठीक है… नहीं तो मुझे तो लगा था कि आपने जानबूझकर मेरा चेहरा बिगाड़ने के लिए एक्सपायर डेट वाली क्रीम दी है लेकिन मैं गलत थी मुझे माफ कर देना भाभी!”

और एक बार फिर से सुचिता का बनाया हुआ खेल बिगड़ जाता है. और दोनों भाभियों में भी सुलह जाती है. और अब सुचिता से रहा नहीं जाता जब एक साथ दोपहर का खाना खाने बैठते है तो सुचिता अपने मन की बात सबके सामने रख देती है,

“देखिए आप सब मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूं आजकल तो मां-बाप के जमीन जायदाद में भाइयों के साथ-साथ बहन का भी हिस्सा होता है. तो मेरी यह चिंता है कि क्या मुझे अपना हिस्सा मिलेगा या नहीं? क्योंकि आप लोगों के जमीन जायदाद में जितना हिस्सा आपका है उतना ही बराबर की हकदार मैं भी हूं!”

“हां यह बात तो ठीक कही है तुमने सुचिता हम इस बारे में जरूर बात करेंगे…” पिता मगन बोले.

इतने में सुचिता को पति राजीव का फोन आता है और फोन में राजीव कहता है कि उसके बिट्टू को अचानक पानी बदलने से बुखार चढ़ गया है. इसलिए वह जल्दी ही घर वापस चले आए. और फिर क्या था सुजीता उसी वक्त मायके के बटवारें का अधूरा सपना और अपना सामान बांधकर मायके से ससुराल खाली हाथ ही लौट आती है. और उधर सासू मां कोकिला के सारे अरमान ही पानी में बिखर जाते है क्योंकि सुचिता अगर मायके से अपने हक की जो भी जमीन जायदाद लाती उसे हडपसर कोकिला सुचिता को एक नौकरानी बनाकर रखना चाहती थी जो उसमे वह कामियाब नही हुई. आखिर भगवान जो करता है अच्छे के लिए ही करता है.

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