माता-पिता से बड़ी जब चाहत हो जाए..! – निधि शर्मा
- Betiyan Team
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- on Dec 26, 2022
“कमलेश कितने व्यस्त हो गए हो कि हमारे लिए थोड़ा सा भी समय नहीं निकाल पा रहे हो..! मानता हूं बच्चों की पढ़ाई, तुम्हारा काम और बहू की नौकरी सब जरूरी है। बेटा मैं तो पीता हूं अपने हृदय को कठोर बना लेता हूं पर तुम्हारी मां की ममता तुम्हें देखने के लिए तड़पती है, सोचो पहले वो बस मां थी अब वो दादी बन गई है। हमारा राहुल(पोता) 5 साल का हो गया और हमने अब तक उसे गिनके पांच बार देखा है.! कुछ तो हमारे बुढ़ापे के बारे में सोचो, अभी तो स्कूल में भी छुट्टियां हो जाएगी तुम लोग यहां क्यों नहीं आ जाते।” नारायण बाबू अपने बेटे कमलेश से फोन पर कहते हैं।
कमलेश बोला “पापा कहना बहुत आसान है आपकी सरकारी नौकरी थी अपनी मर्जी से छुट्टी मिल जाती थी पर प्राइवेट जॉब में बहुत मुश्किलों से पैसा कमाया जाता है। आप प्रिया (पत्नी) के बारे में जानते हैं वो बस इस शहर में नौकरी नहीं करती बल्कि उसके मां-बाप भी यही रहते हैं तो फुर्सत कहां मिलती है। “
नारायण बाबू बोले “बेटा नौकरी तो तुम्हारी बहन कुसुम भी करती है पर साल में एक बार समय निकालकर हमसे मिलने जरूर आ जाती है। पर तुम्हारी मां की जान तुम में अटकी रहती है तुम ये बात समझ नहीं रहे हो, मां का दिल अपने हर बच्चे के लिए तड़पता है। जब तुम्हारा बेटा तुम्हारी उम्र का होगा तब ये बात तुम्हें समझ में आएगी।”
कमलेश बोला “पापा आप कुसुम की बात मत कीजिए वो तरक्की करना चाहती ही नहीं तभी तो आज भी उसी शहर में उस छोटे से मकान में रह रही है। न जाने जीजाजी भी कैसे मान गए जो अमेरिका जैसी जगह को छोड़कर बस मां-बाप के साथ रहने के लिए इस शहर में रह गए..!”
नारायण बाबू बोले “बेटा जब बच्चे मां-बाप के किए हुए त्याग को याद करते हैं तब उनके लिए अपना फर्ज कुछ ऐसे ही निभाते हैं। वहीं कुछ बच्चे जब मां-बाप की तड़प और अपनी दौलत की तृष्णा में फर्क भूल जाते हैं, आज हमसे बढ़कर तुम्हारी चाहत काम और पैसा हो गया है इसलिए तुम ऐसी बातें कर रहे हो।”
कमलेश बोला “पापा मैं आपसे बहस नहीं करना चाहता अभी मैं ऑफिस में हूं। घर जाकर प्रिया से बात करता हूं फिर मैं आपको बताता हूं, अगर आपको कुछ पैसों की जरूरत है तो मुझे बताइए मैं अभी ट्रांसफर कर देता हूं।” नारायण बाबू बोले “बेटा जीवन काटने के लिए जितने की जरूरत है उतना मुझे पेंशन मिल जाता है, हमें पैसों की चाहत नहीं तुम्हारा साथ चाहिए अगर दे सको तो वो दे देना।” इतना कहकर नारायण बाबू ने फोन रख दिया।
प्रिया नौकरी करती थी वो ससुराल से दूर रहना चाहती थी इसीलिए उसने अपना ट्रांसफर अपने शहर में करवाया। अपने बच्चे को भी वो अपने सास-ससुर से बहुत कम मिलने देती, वहीं कमलेश की बहन प्रिया साल में एक बार वक्त निकालकर अपने माता-पिता से मिलने जाती थी। जबकि दोनों भाई-बहन एक ही शहर में रहते फिर भी मन की दूरियों को मिटाने के लिए वही हमेशा प्रयास करती थी।
जैसे ही नारायण बाबू ने फोन रखा उनकी पत्नी कल्याणी बोली “क्या हुआ क्या इस बार कमलेश आ रहा है..? पता नहीं राहुल हमें पहचानेगा कि नहीं, याद है आपको पिछली बार जब वो आया था 2 दिन तो हमें पहचानने में ही बीत गया और अगले दिन फिर वो चला भी गया।”
नारायण बाबू ने जब कुछ जवाब नहीं दिया तो वो बोलीं “मैं भी कितनी बुद्धू हूं वो तो अभी दफ्तर में होगा। घर जाएगा फिर बहू से बात विचार करेगा तब तो बताएगा, या हो सकता है काम का बोझ ज्यादा हो तो ना भी आए। कोई बात नहीं कुछ रोज बाद आ जाएगा आप मन छोटा मत कीजिए, जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो मां-बाप को उनके हिसाब से चलना पड़ता है।” अपने मन को वहलाते हुए कल्याणी जी रसोई में चली गईं।
नारायण बाबू बोले “अब तो कोई खाने वाला भी नहीं है फिर भी तुम क्यों इतनी जल्दी रसोई में जा रही हो.।” कल्याणी जी बोलीं “बस चाय बनाकर लाती हूं इसी बहाने हम दोनों पुरानी यादों को एक बार फिर याद कर लेंगे।” थोड़ी देर में कल्याणी जी दो प्याली चाय लेकर आई और उन्हें देते हुए बोलीं “याद है आपको पहले जब पूरा परिवार साथ था तो मुझे समय नहीं मिलता था, आज जब मेरे पास समय ही समय है तो परिवार नहीं है।”
नारायण बाबू बोले “पहले तो तुम घड़ी की सूई की तरह चलती थी।” कल्याणी जी मुस्कुराकर बोलीं “हां आज भी याद है 5 मिनट भी अगर लेट हो जाती तो सारा काम उलट-पुलट हो जाता था। अब तो हर रोज वही दलिया और खिचड़ी बनती है क्या किया जाए पाचन शक्ति भी तो पहले जैसी नहीं रही।” कुछ देर दोनों पुरानी बातों को ही याद करके अपना मन बहला दे रहे।
नारायण बाबू इंतजार करते रहे कि कब बेटा फोन करके आने की खबर देगा पर कोई खबर नहीं आई। कुछ रोज बाद कुसुम का फोन आया “मां दिल्ली में बहुत सर्दी पड़ रही है आप ऐसा क्यों नहीं करती कुछ रोज हमारे पास बेंगलुरु आ जाइए। यहां ठंडी नहीं पड़ती है।”
कल्याणी जी बोलीं “बेटा तुम क्या-क्या करोगी अपना परिवार, सास ससुर और बच्चे ये संभालना चुनौती से कम नहीं है। वहां आकर मैं तुम्हारा बोझ नहीं बढ़ाना चाहती, काश कि एक बार कमलेश यही बात कहता आखिर वो भी तो उसी शहर में रहता है।”
कुसुम बोली “मां आप तो हमेशा आशावादी थी जो नहीं है उसके बारे में क्यों सोचना जो है उसकी परवाह करनी चाहिए। मैं तो कहती हूं आप दिल्ली वाला मकान बेच दीजिए और बेंगलुरु में घर ले लीजिए, एक ही शहर में रहेंगे तो मिलना जुलना होता ही रहेगा। आप एक बार पापा से बात करके देखिएगा, 27 दिसंबर का टिकट मैं आप लोगों का करवा रही हूं आप लोग बस यहां आ जाइए।”
कल्याणी जी ने नारायण बाबू को बेटी की कही हुई बात बताई नारायण बाबू को बेटी का सुझाव पसंद आया फिर अगले ही दिन बेटी ने फोन में टिकट भेज दिया और दोनों कुछ उसके लिए बेटी के पास चले गए। वहां बात विचार करने के बाद दिल्ली वाला मकान बेचने का निर्णय लिया गया तो ये बात नारायण बाबू ने कमलेश को भी बताया तो वो खुश नहीं था।
कमलेश बोला “पापा आपको पता है दिल्ली में प्रॉपर्टी का दाम कितना बढ़ गया है और जब सब फैसला आप लोगों ने ले ही लिया तो बताने की क्या जरूरत है। और आप लोग इस शहर में रहना चाहते हैं तो मेरे लिए भी ठीक है, कम से कम यहां कुसुम आपको देखती रहेगी तो आपको मुझसे भी शिकायत कम होगी।”
कुसुम के पति की कई डीलरों से जान पहचान थी उन्होंने दिल्ली का मकान अच्छे दाम में बिकवा दिया। बेंगलुरु में एक छोटा सा फ्लैट लेकर बचे हुए पैसे नारायण बाबू के अकाउंट में जमा कर दिए गए ताकि जो भी इंटरेस्ट है उससे उन दोनों का खर्चा चलता रहे।
इन सभी बातों से प्रिया खुश नहीं थी क्योंकि वो हमेशा से कमलेश को उसके परिवार से दूर रखना चाहती थी। तभी तो एक शहर में रहते हुए भी कमलेश अपनी बहन से साल में बस एक बार रक्षाबंधन पर मिलता था। एक रोज उसने कमलेश से कहा “पहले क्या इस शहर में रिश्तेदार कम थे जो तुम्हारे मां-बाप भी यहां आ गए। मैं पहले ही कह देती हूं उन लोगों की वजह से ना तो मेरे बच्चे की पढ़ाई ना मेरा काम कुछ भी नहीं छूटना चाहिए।”
समय धीरे-धीरे बीता नए घर को संभालने में कुसुम ने माता-पिता की मदद की। वहीं कमलेश गृह प्रवेश के दिन परिवार के साथ आया और मेहमानों की तरह मिठाई का डब्बा पकड़कर चला गया। होली की छुट्टी थी तो कुसुम ने माता पिता के घर पर सबको बुलाया। कुसुम के साथ ससुर बहुत मिलनसार थे वो कल्याणी जी को कहते “अच्छा हुआ आप इस शहर में आ गईं अब बहू की चिंता थोड़ी कम हो जाएगी।”
वहीं प्रिया कहती “आंटी जी इस उम्र में भी आप सबको अपनी चाहत की पड़ी है..! इतना महंगा शहर है कि एक मां-बाप तो संभलते नहीं इतने सारे मां बाप को कैसे संभालेंगे।”
कल्याणी जी बोलीं “बहू माता पिता बिना किसी चाहत के चार बच्चों को संभाल लेते हैं लेकिन बच्चे मां बाप को नहीं संभाल पाते..! ये बात तुम आज नहीं समझोगी क्योंकि आज बच्चों ने मां-बाप की तड़प और दौलत को पाने की तृष्णा को एक तराजू में तोला है, जिस दिन ये एहसास होगा उस दिन सब समझ में आएगा।”
जब भी प्रिया वहां आती पूरे वक्त अपने फोन में लगी रहती और कुसुम मां की हर जरूरत को पूरा करती। बहु तो बहु बेटा भी कभी नारायण बाबू के काम में हाथ नहीं बटाता बल्कि हर समय अपनी मुश्किलों को उनके सामने रख देता था।
कुसुम के परिवार का आना जाना लगा रहता ये बात प्रिया को पसंद नहीं आती एक रोज प्रिया कमलेश से बोली “मुझे तुम्हारी बहन की मनसा कुछ ठीक नहीं लग रही है! ऐसा ना हो कि मेलजोल बढ़ाते बढ़ाते जो तुम्हारा है वो अपने नाम करवा लें, बेहतर होगा समय रहते ही पापा जी से बात कर लो।”
धीरे-धीरे समय बीता शहर बदलने से भी कोई फायदा नहीं हुआ कमलेश को अभी भी मां-बाप के लिए फुर्सत नहीं मिलती थी। एक रोज कमलेश अकेला मां बाप के घर पर आया और अपने मन की बात कही नारायण बाबू बोले “बेटा अभी भी तुम्हें मां-बाप की चिंता नहीं बल्कि उनके पैसों की चाहत है..! तुमने हमेशा पैसे और हमारी ममता को एक तराजू में तोला है, वरना तुम आज पैसों की बात नहीं करते याद रखो अगर आज तुम नहीं समझे तो वक्त तुम्हें सबक सिखाएगा।”
कल्याणी जी बोलीं “बेटा पैसा तो हाथ का मैल है क्या पैसों ने तुम्हें इतना बदल दिया कि भाई बहन के प्यार को तुम भूल गए..! अगर तुम्हारे लिए पैसा ही सब कुछ है तो याद रखो आज हमारे पास जो कुछ भी है वो तुम्हारे पापा ने मेहनत से कमाई है। अब वो पैसे हम किसे देंगे ये हमारा निर्णय होगा, बेहतर होगा तुम अपना समय और पैसा अपनी पत्नी पर खर्च करो हम अपना ख्याल खुद रख लेंगे तुम जा सकते हो।”
कल्याणी जी ने पहली बार अपनी ममता को एक किनारे रख के खुद को इतना कठोर बनाया। समय रहते ही नारायण बाबू ने अपनी पूरी संपत्ति अपनी बेटी के दोनों बच्चे और अपने पोते के नाम कर दिया। अब कमलेश से रिश्तेदारों की तरह ही मिलना होता था, दोनों दंपत्ति अपने जीवन को भरपूर जीते थे क्योंकि वो भी समझ चुके थे कि आजकल के बच्चों में बस पैसों की तृष्णा है मां-बाप के तड़प का कोई मोल नहीं है।
दोस्तों कभी आपने सोचा है जिस पैसे को पाने के लिए हम जितनी जद्दोजहद करते वो आज आता और कल खर्च भी हो जाता पर मां बाप की ममता जीवन भर हमारे लिए एक जैसी होती है अगर समय रहते हम ये नहीं समझे तो वक्त बड़ी कठोरता से हमें समझाता है
आपको ये रचना कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें बहुत-बहुत आभार
#चाहत
निधि शर्मा