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मत कुचलो स्वाभिमान – ऋतु अग्रवाल 

  अनीता आज बहुत खुश थी। कोरोनावायरस में लगा लॉकडाउन समाप्ति पर था। यह छह-सात महीनों का लंबा अंतराल उसने कैसे काटा है, वहीं जानती है। लॉक डाउन के चलते लोगों ने अपने घरेलू सहायकों को सेवानिवृत्ति दे दी थी। कोई भी अपने घर में बाहरी व्यक्ति को प्रवेश की अनुमति देकर खतरे में नहीं आना चाहता था। अनीता जैसे न जाने कितने ही लोग कोविड के चलते जैसे तैसे जीवनयापन को मजबूर थे। ना कोई जमापूँजी ना कोई काम, भला ऐसे में गुजारा कैसे होता?

वह तो भला हो सरकार और स्वयंसेवकों की भलमनसाहत का जो रोज रोटियों का इंतजाम हो जाता था।

         लॉकडाउन समाप्त होते ही अनीता अपने पुराने कामों पर लौटी। एकाध काम तो उसे फिर से मिल गया पर कुछ जगहों पर लोगों ने नयी महरी को लगा लिया था। काम की तलाश में अनीता कई जगह भटकी। आखिरकार तीन-चार नई जगहों पर उसे काम मिल ही गया। अनीता खुश थी कि बच्चों के पढ़ने-खाने का इंतजाम हो जाएगा अब। पति की मृत्यु के बाद सारी जिम्मेदारी अनीता की थी।

          तकरीबन पैंतीस वर्ष की मझोले कद,साँवले रंग, तीखे नैन नक्श वाली अनीता अपने मधुर व्यवहार से सबका मन मोह लेती थी। नई जगहों पर काम करते लगभग चार माह हो चले थे पर कभी-कभी शर्मा मैडम के यहाँ काम करते करते अचानक ही अनीता के हाथ ठिठक जाते। ना जाने क्यों उसे लगता कि यहाँ कुछ ठीक सा नहीं है।

           एक दिन शर्मा मैडम बोली,”अनीता मैं चार दिनों के लिए अपने मायके जा रही हूँ। मेरी मम्मी की तबीयत काफी खराब है। वह अस्पताल में भर्ती हैं। मेरे आने तक तुम साहब और बच्चों का खाना बना दोगी तो मैं तुम्हें अलग से पैसा दूँगी।”

       “मैडम! अगर आप पैसे नहीं भी दोगी तो भी मैं खाना बना दूँगी।आप चिंता मत कीजिए। आप निश्चिंत होकर अम्मा जी की तीमारदारी करने के लिए जाइए।”कहकर अनीता काम में लग गई।

      शर्मा मैडम निश्चिंत होकर मायके चली गई। तीन दिन तो राजी खुशी बीते पर चौथे दिन अचानक घर में कोहराम मच गया। शर्मा सर फोन पर गुस्से में किसी से बात कर रहे थे।  दो घंटे के अंदर ही शर्मा मैडम घर लौट आई। पीछे पीछे पुलिस की जीप भी घर के बाहर आ पहुँची। पुलिस ने आते ही अनीता से पूछताछ करनी शुरू कर दी। तभी अनीता को मालूम पड़ा कि घर में रखे सत्तर हजार रूपये अलमारी से गायब हो गए हैं। 




         अनीता ने बहुत कहा कि वह रुपयों के बारे में कुछ नहीं जानती है पर पुलिस ने उसकी एक नहीं सुनी और पुलिस अनीता को जीप में बिठा कर उसके घर ले गई और उसके घर की तलाशी ली। सारे बस्ती वाले वहाँ एकत्रित हो गए और अनीता की हँसी उड़ाने लगे। अनीता चुप खड़ी थी पर उसकी आँखों से बेबसी और अपमान के आँसू बह रहे थे।  पुलिस को अनीता के घर से कुछ नहीं मिला। चोरी का आरोप लगने के कारण सभी घरों से अनीता की छुट्टी कर दी गई। विवश होकर अनीता बेलदारी पर काम करने लगी।

        अचानक ही दो महीने पश्चात शर्मा मैडम, अनीता से मिलने आई।

         “मैडम, आप यहाँ? मैं सच कह रही हूँ कि मैंने आपके रुपये नहीं चुराये। मेरे घर पर भी पुलिस को कुछ नहीं मिला था।” अनीता ने हाथ जोड़ दिए।

       “अनीता! हमसे गलती हो गई। तुमने पैसे नहीं चुराए थे। कपड़े निकालते हुए रुपयों का पैकेट गलती से गिरकर अलमारी के नीचे सरक गया था। जब दीवाली पर घर में पेंट कराने के लिए अलमारी खिसकाई गई तो वह पैकेट मिला। अनीता, हम बहुत शर्मिंदा हैं। तुम चाहो तो फिर से काम पर आ सकती हो।” शर्मा मैडम अनीता से नजर नहीं मिला पा रही थी।

        “मैडम! आपके रुपए मिल गये,इसकी मुझे बहुत खुशी है पर मैडम आपकी लापरवाही ने मेरा स्वाभिमान, मान सम्मान कुचलकर रख दिया। हर जगह पर मुझे चोर कह कर बुलाया गया। मेरी बस्ती वाले भी मुझ पर हँसते हैं। कोई ना मेरे घर आता है और ना ही मुझे अपने घर बुलाता है। आपके माफी माँगने से मेरा सम्मान वापस नहीं आ जाएगा। बस आपसे इतना जरूर कहूँगी कि हम लोग गरीब जरूर है पर चोर नहीं। आप बड़े लोगों से तो हम गरीब लोग ही भले जो किसी के मान सम्मान और स्वाभिमान को कुचलते नहीं।” कहकर अनीता ईटों का ढेर उठाने लगी।

       शर्मा मैडम का सिर शर्म से झुक गया। 

 

मौलिक सृजन 

ऋतु अग्रवाल 

मेरठ

 

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