मुनमुन बहुत ही शांत प्रकृति की बच्ची थी।वह नौवीं कक्षा में पढ़ती थी। उसके माता-पिता सुकेश और सुजाता नौकरी करते थे। जब मुनमुन का जन्म हुआ था तब तो दोनों बहुत ही खुश थे। जैसे-जैसे मुनमुन बड़ी होती गई उसे माता-पिता की बातें कुछ कुछ समझ आने लगी थी। सुकेश और सुजाता के बीच हमेशा किसी ना किसी बात को लेकर बहस होती रहती थी ।
बचपन से मुनमुन यही सब सुनते आ रही थी लेकिन धीरे-धीरे जब वह बड़ी होने लगी तो उसके मन पर इन सब बातों का प्रभाव पड़ने लगा जिसका सुकेश और सुजाता को बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। इसी कारण ही मुनमुन बहुत ही शांत हो गई थी। जब भी दोनों में बहस होती थी तो वह अपने कमरे में चली जाती थी। वह पढ़ाई में मन लगाने की कोशिश करती थी पर उसका मन पढ़ने में नहीं लगता था। अब तो बात इतनी बढ़ गई थी कि सुकेश और सुजाता तलाक लेने की बातें करने लगे थे। दोनों में से कोई भी मुनमुन के बारे में नहीं सोचते थे कि हमारा तलाक हो जाएगा तो फिर उसका क्या होगा। मुनमुन को उनकी बातें सुन बहुत ज्यादा घुटन होती थी लेकिन उसकी बात सुनने और समझने वाला कोई नहीं था ।वह धीरे-धीरे अंतर्मुखी होती जा रही थी।
वह सुबह उठकर अपनी तैयारी करती और स्कूल चली जाती। दोपहर को आकर खाना खाती। अपना होमवर्क करती ।वह चाहती थी कि शाम आये ही मत। क्योंकि जैसे ही शाम होती थी तो सुजाता और सुकेश घर आते थे और किसी न किसी बात पर एकदूसरे पर मिथ्या दोषारोपण करने लगते थे। अब तो उनकी आवाज भी बहुत जोर जोर से आने लगी थी।
ऐसे ही एक दिन जब मुनमुन स्कूल से आयी तो मुनमुन की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी ।वह सुजाता के आने का इंतजार कर रही थी कि वह आए तो मां को बताये कि आज उसके पेट में बहुत दर्द हो रहा है। लेकिन उस दिन सुकेश पहले आए और सुजाता थोड़ी देर में आई। जैसे ही सुजाता ने घर में कदम रखा सुकेश उसके ऊपर चिल्लाने लगे” इतनी देर तक कहां थी, क्या कर रही थी, क्यों देर हो गई। तुम्हारा तो यही है अक्सर देर से आती हो।”
सुजाता ने भी चिल्ला चिल्ला कर जवाब दिया” मैं भी काम करने ही जाती हूं।आज ऑफिस में देर हो गई तो मैं क्या करूं।”
आज मुनमुन से उनकी बातें सहन नहीं हुई ।वह अपने कमरे से बाहर आई और जोर से दोनों कान बंद करके चीखने लगी। उसकी चीख सुनकर दोनों हक्के बक्के रह गए और मुनमुन को देखने लगे। मुनमुन चिल्ला चिल्ला कर रोने लगी। उसने रोते हुए ही कहा ” सभी मम्मी पापा अपने बच्चों को कितना प्यार करते हैं। उनकी बातें सुनते लेकिन आपके लिए तो जैसे मैं हूं ही नहीं। मेरे होने ना होने का आप लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता है ।आप लोग हमेशा इसी तरह से लड़ते झगड़ते रहते हैं जो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है। यहां तक कि आप लोग तो तलाक भी लेने वाले हैं।
मैं कहां रहूंगी, मेरे बारे में तो आप लोग कभी नहीं सोचते। तो फिर मुझे जन्म क्यों दिया। इससे अच्छा आप मुझे किसी बोर्डिंग स्कूल में भेज दीजिए जहां मैं शांति से रह सकूंगी और पढ़ाई कर सकूंगी। मैं बोर्डिंग स्कूल जाऊंगी तो कभी घर वापस नहीं आऊंगी क्योंकि घर आऊंगी तो आप लोग ऐसे ही रहोगे या फिर आप लोगों के अलग-अलग घर हो जाएंगे। मैं किसके पास आऊंगी।”
सुकेश और सुजाता उसकी बात सुनकर आवाक रह गए और सोचने लगे कि यही हमारी प्यारी बेटी मुनमुन है जिसके लिए हम इतनी मेहनत कर रहे हैं ।हमने आज तक कभी यह नहीं सोचा कि हमारी लड़ाई का इस मासूम पर क्या असर होता होगा ।उन्होंने मुनमुन को शांत किया। एक दूसरे से बात की और यह निर्णय लिया कि अब हम मुनमुन की तरफ ध्यान देंगे। हमारे आपस के जो भी मतभेद हैं उसका प्रभाव कभी भी मुनमुन के जीवन पर नहीं पड़ने देंगे। हम मुनमुन को एक खुशहाल जीवन देंगे। हालांकि यह तुरंत नहीं हो पाएगा लेकिन हम धीरे-धीरे कोशिश करेंगे ।जो मुनमुन हमेशा शांत रहती थी आज उसकी चीख ने उसके माता-पिता की आंखें खोल दी थी।
स्वरचित
नीरजा नामदेव
छत्तीसगढ़