मर्यादा-एक सीख – शुभ्रा बनर्जी

आज बच्चों का लंच बॉक्स पैक करते हुए विनीता की आंखों से आंसू गिर रहें थे।सुबह से उठकर सास ससुर की देखभाल,नाश्ता,खाना सब कुछ करके बच्चों को तैयार‌ करके फिर ख़ुद स्कूल जाती थी।हर दिन देर हो जाती थी पहुंचने में।दौड़ते दौड़ते थक‌ गई थी।फ़िर दोपहर में आकर सब को खाना परोस कर दो।पांच मिनट भी आराम नहीं कर पाती कि शाम हो जाती।छोड़ दूंगी ये सब।अब और नहीं होता।

“अरे रमा!इतनी देर क्यों कर दी आज तूने?”

कब से तेरा रास्ता देख रहीं हूं। सब्जियों को धोकर‌ काटना‌ है।आटा भी लगा लें।परांठे बनाना‌ है।और सुन कुकर में थोड़े आलू डाल दें उबलने के लिए।” 

“दीदी आप भी न,अलग अलग नाश्ता बनाने की क्या जरूरत है?

“मुझे शौक‌नहीं है रे।बच्चे आलू परांठे के‌अलावा‌ कुछ खाते भी तो नहीं।और‌ तेरे भैया को परांठे सब्जी चाहिए।”विनीता ने अपनी मजबूरी बताकर बोझ हल्का किया।

“लो दीदी चाय।रमा ने एक कप भरकर‌ लेमन टी दी।

“ये चाय मेरी सारी थकान मिटा देती है।तू भी पी लें,फिर काम करना।

“अरे!रमा, ये तेरे माथे पर चोट का निशान क्यों है?”

“ये ,कुछ नहीं दीदी,पलंग से टकरा गई थी।””अच्छा!आंखें तो तेरी सही सलामत हैं,फिर आए दिन तू टकरातीं कैसे हैं?सच क्यों नहीं बोलतीं?पति ने फिर मारा है ना?”विनीता ने रमा को‌ डांटते हुए पूछा।

रमा हर बार की तरह मुस्कुराकर अपने काम में लग गई।

“उफ्फ!ये अनपढ़‌ लोगों को कितना भी समझाओ,कुछ सुनना ही नहीं चाहते।बैठ कर मार खाएंगी,जलील होंगी,पर पति को छोड़ने को बोलो तो मर्यादा का जाप करने लगेंगी।”

“मम्मी बस आ गई।मेरी चोटी कर दो जल्दी।बेटी ने कहा।हां हां‌आ जा।फ़िर आज आटा लगे हाथों से चोटी कर रही हो मेरी।पूरे साल में आटा लगा रहता‌है।सब चिढ़ातें हैं मुझे स्कूल में।”बेटी के उलाहने का विनीता‌ ने कोई जवाब नहीं दिया।ले पोंछ लिए मैंने हांथ।

बच्चों को‌ दादी ही‌बस में तोड़तीं थीं।उनका बड़ा सहारा‌ मिला विनीता को।नहीं तो स्कूल‌ की नौकरी कहां कर पाती विनीता।




जल्दी जल्दी ऑटो में बैठ गई विनीता, स्कूल जाने के लिए।वो भी उसी स्कूल में टीचर थी जहां बच्चे पढ़ते थे।पूरे स्कूल में दबदबा था उसका।बच्चे बस उसी से डरते थे।बड़ी बड़ी आंखें दिखाकर खूब डराती थी बच्चों को,पर हां प्यार भी बहुत करती थी उनसे।कभी अपने बच्चों को प्राथमिकता नहीं दी थी उसने।सभी बच्चे बहुत प्यार करते थे।यही तो है उसके जीवन भर की कमाई ।

घर आकर देखा ,सुधीर आ चुके थे।मां बाबूजी कोऔर‌ बच्चों क़ो‌ खाना खिला‌कर खुद‌भी का रहीं थीं।”मां आपके बेटे ने खाया?

“कहां ,कितनी बार पूछा।बोल देता है हर बार‌ की तरह । विनीता को आने दो।साथ में खाएंगे

उफ्फ!!!!”अब सब कुछ गर्म करना पड़ेगा।पापड़ सेंको,सलाद‌ काटो।मेरे पेट में चूहे कूद रहें हैं।”विनीता बड़बड़ाती जा रही थी और साथ में खाना भी लगा रही थी।

आओ !खाना लग गया है।पतिदेव‌आते और दो चार कौर खाकर‌ मानो उद्धार‌ कर देते मेरा।

फ़िर शाम होती ,चाय नाश्ता बनाना। बच्चों को होमवर्क करवाना।खुद‌भी स्कूल में पढ़ाने‌ की तैयारी करना।

“लो महारानी का‌ आज भी पता नहीं।कह आएगी न?त्रस्त हो गई हूं मैं।

“मां!मां! देखो रमा आंटी के यहां पुलिस आई है।भोला अंकल‌ को पकड़कर ले जा रही है।आंटी के सिर से खून निकल रहा है।”बेटी ने जोर से मुझे आवाज़ दी।मैंने निकलकर देखा।भोला पुलिस के साथ बेशर्मी से हंसता हुआ जा रहा था,और रमा गिड़गिड़ाते हुए उसे छोड़ने की दुहाई दे रही थी।

अच्छा हुआ।रहे कुछ दिन जाने में।जब चार डंडे रोज़ ख़ुद को पड़ेंगे तो बीवी‌ को मारना भूल जाएगा।

“क्या हुआ है मां?अंकल‌को पुलिस क्यों ले जा रही? बेटी ने दुखी होकर पूछा।”मार पीट की होगी रमा आंटी के साथ।इन अनपढ़ गंवार लोगों का यही तो रोना है। मारपीट करते रहेंगे पर घर नहीं छोड़ेंगे।”विनीता ने समझाया बेटी को।

तभी रमा रोते हुए आई और मेरे पैर के पास बैठ गई।”दीदी कुछ करिये ना।इन्हें छुड़ाने की व्यवस्था करिए।जितना पैसा लगेगा मैं दूंगी।आपकी तो पहचान है थाने में,देखिए न”।

“क्यों इतनी तकलीफ़ हो रही है तुझे?ज़िंदगी भर मार खाती रही उससे।सिर पर इतना बड़ा‌चोट लगा है।फ़िर तुझे क्यों छुड़ाना है उसे?”

सड़ने दे थाने में।सारी‌ हेकड़ी निकल जाएगी।”

“दीदी एक बात बोलूं ?बुरा मत मानिएगा,भैया के साथ आपकी भी तो रोज ही लड़ाई होती रहती है।आप छोड़ पांईं क्या?”

“ऐ!

 तूने मुझे अपने जैसा अनपढ़ गंवार‌ समझा है क्या?मेरे घर में पुलिस आई क्या कभी?मुझे चोट लगी क्या कभी?




हम तुम लोगों की तरह जाहिल नहीं हैं।”

नहीं नहीं दीदी,मेरा मतलब यह नहीं था।आप मेरी मदद कीजिए ना।रमा‌ हांथ‌ जोड़कर‌ बोली।

विनीता ने झल्लाते हुए कहा”क्या होगा उसे छुड़ाने से?आएगा, फिर तुझे मारेगा।फ़िर तू नया बहाना बनाएगी।”

तू ऐसा कर अब छोड़ छुट्टी कर।केस बना उसके खिलाफ।आराम से जीत जाएगी।हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।”

रमा ने अपने आंसू पोंछते हुए अपनी असहमति जताई।मुझे दो टूक जवाब दिया उसने-“दीदी औरत की एक मर्यादा होती है।पति को छोड़कर जाने‌ वाली औरतों की कहीं कोई इज्जत नहीं होती।बच्चे भी साथ नहीं देते आगे चलकर।ना मायके में सम्मान मिलता है और ना समाज में।”

और‌ दीदी हर पति पत्नी के बीच में तू तू मैं मैं होती है।तो क्या सभी अपना घर छोड़कर चलीं जाएं?”

रमा ने अच्छी‌ वकालत कर ली अपने पति की।

विनीता हार मानने वाली नहीं थी,झट से पूछा”तो क्यों पड़ी रहे पत्नी पति के घर?मार खाने के लिए?”

“नहीं दीदी,पति चाहे कितना भी झगड़ा करें,अपनी पत्नी को प्यार करता है,उस पर अपना‌ हक समझता है।परिवार‌ टूटने से बच जाए बस यही हम पत्नियों की जिम्मेदारी है।हमारी मर्यादा है।”

भैया के साथ आपकी भी तो बहस होती रहती है।रोज़ सुबह आपकी आंखें भी तो लाल रहतीं हैं।चोट शरीर पर ना सही आपके मन पर तो रोज़ पढ़ती है।आप कितनी सहजता से अपना दर्द छिपा लेती हो।कब से सुन‌ रहीं हूं,आप चली जाएंगी किसी और जगह ,किसी और स्कूल में,क्यों नहीं जा पांईं आप?”

रमा से विनीता हार नहीं सकती थी।पूरा खून खौल उठा।”इतनी हिम्मत तेरी कैसे हो गई,तू मुझसे अपनी तुलना कर रही है।”

रमा ने विनीता के पैर पकड़ लिए।




“तू जा अभी रमा,मेरा बात करने का बिल्कुल भी मन नहीं।तू किसी और से मदद लेकर अपने पति को छुड़ा ले।जा यहां से।” विनीता रमा के सामने‌अपनी पराजय स्वीकार नहीं कर सकती।

इस पूरे घटनाक्रम को विनीता की बेटी गंभीरता से सुन रही थी।सुन क्या रही थी समझ रही थी।

विनीता ने जब उसकी तरफ देखा तो बेटी की नजरों ने मानो तमाचा सा मारा गाल पर।

विनीता अपने कमरे में आकर लेट गई।

आज रमा ने कैसे मेरे मुंह पर तमाचा लगा दिया।एक अनपढ़ गंवार औरत‌और मैं एक हीं हैं क्या?मां मेरी कब से बोल रही थी,यहीं आजा।डी ए वी में बच्चों का एडमिशन करवा देना।तुझे भी आराम से रख लेंगे यहां।आज‌भी तेरा नाम है।लोग तेरी पढ़ाने की तारीफ करतें हैं।चैन से रहेगी।जब सुधीर तुझसे और‌ बच्चों से दूर रहेगा ना तब तेरी कद्र समझ आएगी उसे।सारा गुस्सा भूल जाएगा।तुझसे सब बरतें हैं और तू अपने पति से डरती है। शर्म आती है मुझे।पढ़ीलिखी गंवार रह गई तू।अपने पति के सामने मुंह भी खोल‌ नहीं पाती।और भी जाने‌ क्या क्या बोलती रहतीं थीं मां और मैं चुपचाप वहां से उठ जाती थी।पर पिछले महीने ही मैंने अपना रेज्यूम भेजा था।सास को बताया था।मायके तो नहीं जाऊंगी मैं।एक अच्छे रेशिडेंशियल स्कूल में टीचर की वैकेंसी थी।मेरी एक सहेली ने बताया था। इंटरव्यू के बारे में।मैंने सांस को समझा लिया था।मैं बच्चों को लेकर जाऊंगी मां वहां।पढ़ाई फ्री होगी उनकी।अच्छा‌ माहौल‌ मिलेगा उनको।मुझे भी अच्छी सैलरी मिलेगी।

सासू मां मेरी मां से भी बढ़कर थीं।समझदार और‌ पढ़ीलिखी।उन्होंने तुरंत मंजूरी दे दी इस शर्त पर कि मैं उन्हें अपने साथ ले जाऊंगी।वो‌ नाती‌ के बिना भी नहीं रह सकतीं और अपने बेटे के गुस्से को‌ झेल‌ नहीं सकतीं ।मैंने भी सहमति जताई अपनी।वो साथ में रहेंगी तो मुझे असुरक्षित महसूस नहीं होगा।

देखो कब तक कॉल आता है।तभी सुधीर को बताऊंगी।बखेड़ा तो खड़ा होगा।पर इस बार मैं पीछे नहीं हटूंगी।

मां!मां!”ये देखो पोस्टमैन ये लिफाफा दिए।आपको‌ बुला रहें हैं साइन करने के लिए।”

मैं जल्दी से उठी और पेपर में साइन कर दिया।लिफाफे पर पता देखकर समझ गई कि स्कूल‌ के इंटरव्यू का लैटर है।तभी सुधीर आ गए।बेटी चहक चहक कर‌ पापा को  बताने लगी रमा आंटी के घर का किस्सा।और वो सुन रहे थे बड़े‌ मनोयोग से।उन्होंने‌पूछा‌फिर तुम्हारी मम्मी ने‌क्या कहा?मदद नहीं करेगी, कर्ण जी।सबकी भलाई का ठेका जो ले रखा है।मैंने चाय और बिस्कुट उनके हाथों में लिया।हां मेज़ पर रखना‌ पसंद नहीं था,उन्हें।चाय पीते पीते मैंने अपने इंटरव्यू की बात‌ छेड़ी। घुमाफिरा कर उन्हें‌ समझाने में कामयाब हो गई कि बच्चों के भविष्य के लिए यह करना पड़ेगा।बड़े‌ हो‌ रहें हैं वो‌ अब ।हायर स्टडीज के लिए‌ यहां‌ ट्यूशन‌ की भी तो दिक्कत है।और‌वहां फीस लगेगी ही नहीं।मेरी सैलरी भी अच्छी होगी।यहां के लिए रमा को पूरे दिन रख लूंगी।मैंने सामान्य रहने का प्रयास किया भरपूर।

“अच्छा!कब है इंटरव्यू?सुधीर ने पूछा”

“परसों ही।मैंने लैटर दिखाया उन्हें”।

ठीक है मैं चलता हूं साथ में।देख लूंगा कैसा माहौल‌ है।मैं तत्काल में टिकट बुक करा लेता हूं।”सुधीर‌ से इतने‌ सहज आचरण की अपेक्षा नहीं‌थी मुझे।मां की तरफ आश्चर्य से देखा मैंने।

वो हंस दीं।

जल्दी जल्दी अपने सर्टिफिकेट निकाला मैंने,कपड़े पैक किए‌ दोनों के।

सुधीर का इतनी आसानी से मान जाना मेरे गले नहीं उतर रहा था।रमा को बुलवाया।और‌ उसकी‌ जिम्मेदारियां समझाने लगीं।




दूसरे दिन मैं स्कूल नहीं गई।शाम को ट्रेन थी ग्वालियर की।मां पूड़ियां तल रहीं थीं।सुधीर भी काम से जल्दी आ गए‌।आज सुधीर के चेहरे में हार दिखीं मुझे पहली‌ बार।मुरझा गया था एक दिन में।शायद बच्चों से दूर जाने‌ का डर था।मैंने स्वाभाविक रहना ही उचित समझा।

रमा आ चुकी थी।काम में हांथ बंटाने।तभी सुधीर को चक्कर आने लगे।बेहोश गए देखते देखते।घर के पास ही था‌ हॉस्पिटल।डाक्टर‌ भी सारे पहचान के ही थे। उन्होंने बताया,शुगर लेवल‌ बहुत बढ़ गया है।कोई टेंशन‌ है क्या उन्हें मैडम?

मैंने नहीं में सिर‌ हिलाया।एक घंटे बाद हम घर‌आ गए।सुधीर‌ने कहा जल्दी करो ट्रेन का‌ टाइम हो रहा है।रमा चाय तो बनाना ज़रा।

रमा ने मुझसे भी चाय के लिए पूछा।मैंने हां कहा और कमरे में चली गई।

सास ने खाना अच्छे से पैक कर कहा ,टाइम से का लेना ।यहां की चिंता मत‌ करना।मैं संभाल‌ लूंगी दो दिन। तुम निश्चिन्त होकर जाओ।

रमा चाय लेकर जैसे ही कमरे में आई,मुझे देखकर बोली”ये क्या कर रहीं हैं‌ दीदी?कपड़े‌ क्यों निकाल‌ रहीं हैं?गाड़ी‌ का टैम हो गया ना।”

विनीता ने चाय का कप लेते हुए कहा”जा जाकर रात के लिए‌ सब्जी  काट ले चल।”फिर तू चली‌ जाना।”

“तो आप क्या नहीं जा रहीं?कहां तो बताया था मां ने गबालियर।”

नहीं, विनीता ने तटस्थ होकर कहा।कहीं नहीं जा रही मैं।और हां वो‌ गबालियर नहीं ग्वालियर है।

रमा भौंचक्की‌ होकर‌ देखने लगी।अरे‌ ये क्या बात हुई भला,क्यों नहीं जा रहीं आप?भैया तो ठीक हैं अब।मैं भी घर संभाल लूंगी।क्या हो गया दीदी?क्या रोक रहा है आपको?आप तो पढ़ी लिखीं हैं।फिर‌ क्यों नहीं जाना चाहतीं आप?”

उसकी आवाज‌ सुनकर सभी कमरे में आ गए।क्या हुआ विनीता?सुधीर‌ ने पूछा?बहू तू क्यों इतना अच्छा मौका छोड़ रही है?सास ने भी  टोका।

विनीता‌ ने शांत होकर कहा “मैं कहीं नहीं जा रही।

चलो सब अपना काम करो।

रमा ने जब सवालिया नजर डाली , विनीता ने कहा तू पूछ रही थी ना किसने रोका है मुझे?

मेरी मर्यादा ने।समझी।

रमा खुश होकर लिपट गई विनीता से।थैंक गाड दीदी।

हैं चल चल।और हां अपने पति का फोटो मोबाइल में भेज देना।मेरी पहचान के हैं एक पैरेंट्स।बात करती हूं उनसे।देख तेरा पति शायद आप जाए वापस।

#मर्यादा 

शुभ्रा बनर्जी 

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