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मर के भी ना होंगे जुदा – सुषमा यादव

एक प्यारा सा गांव,,उस गांव की एक खूबसूरत लड़की ऋतु कालेज पढ़ने गई, बहुत कम ही लड़कियां कालेज तक पहुंच पाती।  पर ऋतु के घरवालों को अपनी बेटी को उच्च शिक्षा दिलवाना था, अतः बेरोकटोक किसी की भी परवाह किए बगैर ऋतु कालेज पढ़ने जाने लगी,,नये नये लोग,कालेज की नई जिंदगी, उसे बहुत रास आने लगी थी,,

बहुत शर्मीली और सीधी सादी ऋतु थी,, मासूमियत भरी आंखें और प्यारी सी मुस्कान लिए बहुत जल्दी सब में लोकप्रिय हो गई थी। पढ़ने में तो बहुत होशियार थी ही।

ऐसे ही एक दिन कालेज जाते समय हड़बड़ी में एक लड़के से टकरा गई, उसकी किताबें बिखर गई,, दोनों ने एक दूसरे से माफी मांगी, और किताबें समेटने लगे,,उनकी नजरें आपस में मिली,शरमा कर ऋतु ने अपनी आंखें झुका ली और चली गई, वो लड़का पीछे से बोला,,मेरा नाम ऋषि है,अपना नाम बताते जाईए,पर वो लगभग भागती हुई चली गई।

धीरे धीरे परिचय हुआ, परिचय दोस्ती में बदल गई, दोस्ती असीम प्यार में बदल गई,, दोनों एक ही समाज के थे, उन्हें पूर्ण विश्वास था कि दोनों के प्यार की परिणति शादी में बदल जायेगी,, उन्हें विश्वास था कि समय आने पर उनके परिवार वाले उनकी शादी में कोई रुकावट नहीं डालेंगे और उनके प्यार पर अपनी अनुमति की मुहर लगा देंगे,

पर वो  ग़लत थे। एक दिन ऋषि ने अपने घर में अपने और ऋतु के बारे में बताया, मां तो बेटे की खुशी के आगे चुप रही पर पिता ने बेटे को बहुत ही फटकारा,, नालायक,, मैं तुझे पढ़ने भेजता हूं या इश्कबाज़ी करने,, गांव में मेरी नाक कटवा कर रहेगा। गांव में मेरी कितनी इज्जत है,,सब मिट्टी में मिला देगा,, आज़ से उस लड़की से मिला या तूने बात भी किया तो मैं उस लड़की के घर जाकर उसके मां बाप से शिकायत करूंगा,,उनकी इतनी बदनामी होगी कि उनका गांव में रहना मुश्किल हो जाएगा।

ऋषि अवाक रह गया, उसे अपने पिता से यह उम्मीद नहीं थी,, वो बेचारी लड़की तो बदनाम हो जायेगी,। मैं क्या करूं,, वो बहुत ही व्यथित था।



रात भर वो बेचैन रहा, वो ऋतु से अलग होने की सोच भी नहीं सकता। दूसरे दिन ऋषि ने ऋतु को सब कुछ बता दिया, और बोला,हमारा प्यार सच्चा है,, हमें कोई अलग नहीं कर सकता,हम एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते,

अब तुम्ही बताओ, हमें क्या करना चाहिए,,।

ऋतु रोने लगी,, मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती, तुम जैसा कहो, मैं करने को तैयार हूं,, जहां ले जाओगे,चल दूंगी, बिना कुछ पूछे।

ऋषि ने कहा, नहीं,हम भाग कर कहीं नहीं जायेंगे, अपने माता पिता की बदनामी नहीं करेंगे।

दोनों ने आपस में कुछ कठोर फैसला किया और दूसरे दिन गांव के एक पेड़ की एक ही डाली में झूल गये,।।

गांव में जब सुबह पता चला तो हाहाकार मच गया,, ऋषि के पिता ने अपना सिर पीट लिया,, इतना सा डांटने पर कोई ऐसा कठोर कैसे हो सकता है, तुम दोनों तो एक साथ चले गए, मेरे लिए अपनी मां के लिए एक बार भी नहीं सोचा,,

दोनों परिवारों का रो रोकर बुरा हाल था।



दोनों परिवारों ने मिलकर एक ऐसा निर्णय लिया,कि सब आश्चर्य चकित रह गए।

दोनों परिवारों ने मिलकर अपने समाज की रीति रिवाजों के अनुसार दोनों बच्चों की शादी करने का निश्चय किया और दोनों की खूबसूरत प्रतिमा बनवाई,।दुल्हा, दुल्हन की अद्भुत प्रतिमा बन कर तैयार हुई, पूरे साजो श्रृंगार के साथ।

लग रहा था जैसे साक्षात ऋषि और ऋतु दुल्हा दुल्हन के वेश में बैठे हैं,,इस शादी में दोनों परिवार के रिश्तेदार शामिल हुए। बाकायदा गठबंधन हुआ, जयमाल डाली गई और पूरी रश्मों के साथ शादी संपन्न कराई गई,,ऐसी अनोखी शादी आज तक ना देखी ना सुनी।

इस विचित्र शादी को देखकर सब वाह वाह कर रहे थे, दोनों के परिवार वाले दुःखी भी थे,काश, उन्होंने उनके सच्चे प्यार की कद्र की होती, तो आज कितने धूमधाम से ये शादी होती,,

आसमां से ऋषि और ऋतु अपनी इस अनोखी शादी को देखकर मुस्कुरा रहे थे,, आखिर हमारे सच्चे प्यार को हमारे परिवार वालों ने अपनी स्वीकृति की मुहर लगा ही दी।।

जीते जी तो दोनों एक ना हो सके,पर मर कर वो दोनों अमर हो गये।

ये खबर अखबार की सुर्खियां बन गई,, समाज के लिए एक सबक दे गया,, अपने बच्चों की कदर करना चाहिए,, उनकी भी बातें सुनने का हौसला रखना चाहिए,,

ताकि ऐसी दुखद ह्रदय विदारक घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके। बच्चों को भी अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने परिवार वालों के विषय में भी सोचना चाहिए,, माता पिता सर्वोपरि हैं,, उन्हें अपने विश्वास में लेना चाहिए।।

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ, प्र,

 

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