मार देंगे ठोंक देगे – श्रीप्रकाश श्रीवास्तव 

कहानी

उस  रोज मीटिंग में पंधारी आउट आफ कंट्रोल था। ‘‘कहिए तो साले को बाहर ठोंक देते है। सारी हेकडी निकल जाएगी।’’ उसके तेवर देखकर सारे स्टाफ मन ही मन हंसने लगे। सब जानते थे कि वह ऐसा कुछ करने वाला नही। विभागीय कार्यवाही में वह भी फंसा था लिहाजा साहब पर विश्वास जताने के लिए बोला। 

‘‘ पंधारी, तुम शांत बैठो।अर्धनिमीलित पलकों के साथ चेहरे पर सलज्ज मुस्कुराहट हो तो क्या कहने। कभी कभी हाथेंा से चेहरे को छुपाते हुए साहब की अधरें चंचल होती तो लगाता मानेा नयी नयी बहुरियां घूंघट उठा रही हो। वह एक आज्ञाकारी बालक की तरह बैठ गया। इकहरे बदन का पंधारी के तेवर हमेशा ऐठ में रहते। साहब भी उसके खिलाफ एक्शन लेने से डरते। पता नहीं क्या कर बैठे। नौकरी उन्हे भी करनी थी। कई बार उसने दूसरे स्टाफ को डराया धमकाया भी है। यहां तक की मारने पीटने पर उतारू हो गया। लोग जब इतने से ही डर जाते है तो क्येां हाथ पैर की सेवा ली जाए। यही उसका फार्मूला था। सुनते थे उसका किसी महिला से इश्क विश्क का चक्कर था। अक्सर अपनी पे्रमिका के साथ वह दिन मंे ही चांद से बातें करने चला जाता। जिसकी बातें आम आदमी को समझ में नहीं आये उसे चांद कैसे समझता होगा? इश्क के मामले में भी उसने मारपीट का सहारा लिया होगा। तभी तेा प्रेमिका छिंटक गयी।  अगले दिन वह स्टाफ आया। जिसके खिलाफ मीटिंग हुयी थी। उसे देखते ही पंधारी ने ऐसा चेहरा बनाया, मानेा ंिजंदा खा जाएगा। लंच में जब वह बाहर गया तो साहब के कान में फुसफुसाया,‘‘उसे देखते ही मेरा खून खैाल गया। आपकी काफी बेइज्जती हुयी। आज मैं उसे छोडूॅगा नही।’’ साहब चुप रहे। क्या बोले पंधारी के स्वभाव वह जानते था। पंधारी किसी को मारने का जहमत नहंी उठाना चाहता था। पांच सालों से हमेशा किसी को सिर्फ ठोक देना का धौंस देता। मगर जब उसे लगने लगा कि स्टाफ उसे गंभीरता से नहीं ले रहा तो मन ही मन यह निश्चय किया कि उस स्टाफ को ठोंक देगा जिसके लिए साहब से वादा किया था। लोगों में यह विश्वास जम जाएगा कि पंधारी जो कहता है वह करके रहता है।

एक दिन मौका पाकर उसने उस स्टाफ को चाकुओं से गोंद डाला। कत्ल करने के बाद साहब को फोन किया कि मैंने स्टाफ का मार डाला। सुनकर साहब को काटों तो खून नहीं। वह क्षणांश किकर्तव्यविमूढ हो गये। उन्हे समझ में नहंी आंया कि पंधारी को क्या जवाब दे। जिस पंधारी केा वह बपेदी का लोटा मानते थे या फिर एक छिछोर दंबग । उसने इतना बडा कारनामा कर दिया। उन्होने मोबाइल का स्वीच आफ कर दिया। ‘‘अब लेागो को समझ में आ जाएगा कि पंधारी जो कहता है वह कर दिखाता है।’’ इसी विजयी भाव से वह अपने घर की तरफ बढा। रात का सन्नाटा था। किसी का ध्यान उसकी तरफ नहंी गया। वह घर आया। कपडे पर पडे खून के छींटे साफ किये। मन ही मन आह्लादित था। कल से विभाग के सारे कर्मचारी उससे खैाफ खाएगे। पता नहीं पंधारी अब किसका कत्ल करेगा? इस बार प्रमेाशन रूक गया। अगली बार रूका तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहेगा साहब। कहता है कि मुझ क ख ग तक नहीं आताहूूॅ…………….। तभी साहब का फोन आया,‘‘पंधारी, तुम कहां हो?’’

‘‘कमरे में लेट रहा हॅॅू,’’ पंधारी ने निश्चिंत भाव से जवाब दिया।

  ‘‘जितना जल्दी हो कहीं भाग जाओ। पुलिस तुम्हारे पीछे पडी है,’’साहब घबराया।

पुलिस?’’पंधारी ऐसे बोला मानेा पहली बार पुलिस का नाम सुन रहा हो।

‘‘हां,पुलिस। तुम्हारे भेजे में कुछ नहीं घुसता।’’ 


‘‘मेरी नौकरी का क्या होगा?’’

‘‘नौकरी जाये भाड में। तुम अपनी जान बचाओ।’’ कहकर साहब ने फोन काट दिया। एकाएक पंधारी के समझ में क्या आया वह थोडे से रूपये लेकर अपने एक रिश्तेदार के यहां नेपाल भाग गया। दो दिन वहां पडा रहा। वे लेाग पूछते ही रह गये मगर उसने यहां आने का मकसद नहीं बताया। जब उसे लगा कि यहां ज्यादा दिन तक रह पाना संभव नही ंतो बिना बताए वहंा से निकल गया। सारा दिन इधर उधर भटकता रहा। इसबीच आफिस छूटा तो उसे लगा ये क्या हो गया? जिस नौकरी में जमे रहने के लिए उसने स्टाफ का कत्ल किया वही नोैकरी छोडकर भाग गया। कहीं यह साहब की साजिश तो नही? ये पुलिस क्या होती है? पुलिस करती क्या है? दरअसल पंधारी जानता ही नहीं था कि किसी को मारने पीटने या कत्ल करने पर पुलिस पकडती है। जेल जाना पडता है। फांसी की सजा होती है। इसे हास्यापद ही कहेगे क्येांकि वह अतिआत्मविश्वास का शिकार था।  उम्र के तीस साल होने के आये कभी पुलिस का ख्याल जेहन में आया ही नही। हाॅ दबंगई का जरूर आया। एक बार आफिस के एक कर्मी पर हाथ छोड दिया।  सब डर गये। उसके बाद मजाल है जो कोई पंधारी से पंगा ले।

प्ंाधारी कुंवारा  था। शादी के लिए लडकी वाले आते। पता नहीं क्या सोचकर दुबारा नहीं आते। इस बात को लेकर कभी कभी पंधारी झुंझला जाता। एक दिन कहने लगा,‘‘नहीं करनी है मुझे शादी वादी। शादी करके क्या मिलेगा जिससे अबतक वंचित रहा हॅॅू।’’ वह एक अजीबोगरीब स्टाफ था। कभी बिल्कुल शांत रहता या फिर किसी महिला कर्मी के बगल में बैठकर वाजिद अलिशाह की तरह उसे निहारता। 

निरूदेश्य टहलते हुए पंधारी की हालत सांप छछूंदर सी हो गयी थी। उसे रात की चिंता सताने लगी। रात कहां बिताएगाजेब में नाममात्र रूपयंे बचे थे। चोैथे दिन उसने साहब को फोन किया। संयोग से साहब ने उठा लिया।

‘‘मैं तुम्हारी कोई मद्द नहीं कर सकता। तुम्हारे जो समझ में आये करो।’’

‘‘आपने ही तो भागने के लिए कहा था,’’पंधारी के स्वर से निराशा साफ झलक रही थी।

‘‘मेैंने कब कहा था?’’ साहब साफ मुकर गया। वह आगे बोला, ‘‘पुलिस तुम्हें तलाश  रही है। आफिस में आयी थी पूछताछ करने।’’

‘‘पुलिस , पुलिस, पुलिस,’’ पंधारी उखडा। ‘‘ये पुलिस क्या चीज होती है? कहीं आप मुझे डरा तो नहीं रहे है?मेरी जगह केाई दूसरा स्टाफ तो नहीं आ गया? याद रखिए अगर मेरी नौकरी को कुछ हो गया तो मैं आपको छोडूॅगा नही।’’ पंधारी की चेतावनी पर साहब सहम गया। उसे अपनी वीबी और इकलौते बेटे का ख्याल आया। उसने सोचविचार कर स्वीच आफ कर दिया।

प्ंाधारी को लगने लगा कि उसने साहब की बात मानकर बहुत बडी गलती की। उसने उसके साथ दगा किया। वह उसकी चाल का शिकार हो गया। क्या जरूरत थी कत्ल करने के बाद शहर छोडने की? किसकी मजाल जो उसको हाथ लगाये। पुलिस वुलिस महज साहब का बुना एक जाल है। बहरहाल अंधेरा होने को था। तभी उसका ध्यान एक हिंदुस्तानी सा दिखने वाले नेपाली दुकानदार पर गया। उसे लगा कि अगर इससे एक रात रहने की गुहार लगायी जाए तो कोइ्र्र जुगाड लग सकता है।  

‘‘क्या आप एक रात के लिए अपने यहां जगह दे सकते है?’’ स्वभाव के विपरीत पंधारी ने मनुहार की। उसने उसे नीचे से उपर तक देखा। कुछ सोचकर बोला। 

‘‘कहां से आये हो?’’

काशी से।’’

‘‘आने की वजह?’’ अब पंधारी क्या जवाब दे। क्षणांश सोचने के बाद बोला।

‘‘घूमने आये थे रूपये खत्म हो गये। कल सुबह निकल जाएगे।’’ पंधारी के जवाब से वह संतुष्ट दिखा। एक रात रहने की जगह उसे मिल गयी। उसे नींद नहीं आ रही थी। करवटें बदलते सोचता रहा कि उसने स्टाफ का कत्ल क्येां किया? हांलाकि वह असमीक्ष्यकारी था। पहली बार उसके सोचने समझने की प्रक्रिया सक्रिय हुयी। ‘‘सिर्फ इसलिए कि उसकी धाक बन जाए?’’ इसके पहले कितनी बार उसने अनेक स्टाफों को मारने का घैांस दिया मगर मारा नही। लिहाजा स्टाफ पीठ पीछे उसका मजाक उडाने लगे। इसी चिढ ने उससे कत्ल करवाया। उसे विश्वास था कि हेड उसके इस कृत्य से बहुत खुश होगा। मगर यहां तो उल्टा हो गया। हेड ने उससे कभी नहीं बताया था कि कत्ल के बाद पुलिस पकडती है। खाकी वर्दी वालों को वह सडको पर घूमते देखता मगर कभी उसके दिल में उनसे खैाफ पैदा नहीं हुआ। वह हमेशा अकड कर चलता। सोचते सोचते कब उसे नींद आ गयी पता ही नहीं चला। भोर में उसके मकान के आसपास हल्का का शोर उभरा। नेपाली आश्रयदाता की नींद टूटी। वह भी उठ चुका था। नेपाली ने खिडकी के ओट से देखा। पुलिस खडी थी। वह एकाएक घबरा गया। कहंी यह इस लडके को तो पकडने नहीं आ गयी। उसने पंधारी की तरफ गौर से देखा। पंधारी सकपका गया। 

‘‘आप परेशान दीख रहे है?’’ पंधारी बोला।

‘‘बाहर पुलिस खडी है,’’ आश्रयदाता किचिंत् परेशान दिखा। कहीं तुम्हें तो पकडने नहीं आयी।’’ वह आगे बोला।

‘‘मुझे, भला मुझे क्यों पकडने आयेगी,’’ पंधारी अंदर से डर गया। उसे साहब की बात याद आयी। आश्रयदाता छत से देखने लगा। उसने यह जानकर राहत महसूस की कि पुलिस उसके घर नहीं ब्लकि बगल वालेे पडोसी के लडके को पकडने आयी थी। पडोसी का लडका हेराइन बचने का काम करता था। 

‘‘यहां हेराइन बेचना गैरकानूनी हैं। पडोस का लडका बेच रहा था।’’ इत्मीनान से बैठते हुए आश्रयदाता पंधारी से बोला।

‘‘कानून क्या होता है?,’’पंधारी पूछा।

‘‘बडे मूर्ख हो। कानून तक नहंी जानते? दुनिया कानून से चलती है?’’ आश्रयदाता को उसपर हंसी आयी। 

कानून मेरे यहां तो नहीं है?’’पंधारी के कथन पर आश्रयदाता ने सिर पकड लिया।


तुम्हारी बुद्वि पर तरस आता है। कानून हर जगह है।’’

‘‘कानून करता क्या है?’’

‘‘देश समाज नियम से चलता है। इसी नियम को कानून कहते हेै। जो नियम तोडता हेै उसे गैरकानूनी कहते हेै। पुलिस उसे पकडती है। मुकदमा चलता है। जज फैसला सुनाता है। पुलिस उसे जेल भेजती हेै।’’

‘‘किसी का खून करना क्या है?’’

‘‘गैर कानूनी।

‘‘किसी को मारना पीटना?’’

‘‘वह भी गैरकानूनी।’’

‘‘मगर मेरे बाप चाचा हमेशा से यही कहते रहे मार के आ। एक बार  मैं मार खाकर आ गया तो उल्टे मुझे पीटने लगे।’’ कहने लगे,‘‘हमारी जाति के लोग मार खाते नहीं, मारते पीटते है। बेहूदा बिरादरी का नाक कटवा दी।’’

‘‘तब क्या किया?’’ आश्रयदाता की जिज्ञासा बढी।

‘‘मेैं गुस्से में उठा। दूसरे टोलो के लडको को पीटकर ही घर आया।’’ आश्रयदाता मन ही मन ऐसे पागल लडके को लेकर सशंकित हो गया।

पिताजी खुश हेा गये होगे?’’

‘‘हाॅ, पीठ थपथपाई। शबाशी दी। मगर पुलिस ने नहीं पकडा।’’  पंधारी के कथन पर आश्रयदाता सोचा, हो सकता हो नाबालिग समझ कर छोड दिया हेा। 

‘‘तुम नेपाल में क्या कर रहे हो? एकाध दिन में मेरा घर खाली कर देा,’’ नेपाली कुछ कुछ उसे समझने लगा था। पंधारी उसके सामने हाथ  जोडकर खडा हो गया। वह पंधारी जो किसी स्टाफ से हाथ मिलाना अपनी शान के खिलाफ समझता था वह नेपाली के सामने दयनीय खडा था। क्यों? वह खुद समझ नहीं पा रहा था। उसके दिमाग में अनापशनाप उथलपुथल मचा था। कहां जाए? किधर जाए? पुलिस का भय इस कदर उसमें समा गया था कि कुछ सूझ ही नहीं रहा था। कभी सोचता यह सब वहम है? मुझे डराने का तरीका। साहब नहीं चाहता कि मैं लेैाटकर बनारस आउॅ। काफी सोचविचार कर उसने बनारस लौटने का मन बनाया। मगर वापस जाए तो कैसे? पास में रूपये भी तो नहीं थे। इधर नेपाली पूरी रौ में था।

‘‘तुम यहां छिप कर क्यों रह रहे हो?’’

मैं छिपा कहां हॅॅू।अपने अंदर के चोर को बचाने का असफल प्रयास करते हुए वह बोला। ’’एक रात ही तो आपके घर रहा। आज ही चला जाउॅगा।’’ नेपाली ने राहत की सांस ली। नेपाली ने अपनी पत्नी से चाय बनाने के लिए कहा। चाय के चुस्कियों के बीच नेपाली ने कहा, ‘‘अगर तुम मुझे सच सच बात देा तो हो सकता है मैं तुम्हारी र्कोइं मद्द कर सकूॅ।’’ मद्द की दरकार तो उसे थी है। सबसे बडी समस्या थी रूपयों की। बनारस वापस ही आना पडे तो वह कैसे जाएगा

तुमसे कोई अपराध तो नहीं हुआ है?’’नेपाली के इस कथन पर उसका चेहरा सफेद पड गया। नेपाली ने ताड लिया। लिहाजा उसने शुरू से अंत तक सारी कहानी बता दी। नेपाली के चेहरे पर चिंता की रेखाएं खिंच गयी। ‘‘तुमने खून किया है?’’

‘‘हाॅ।

यह तो बहुत बुरा हुआ। तुम्हें फांसी हो सकती है?’’

‘‘फंासी वह क्या होता है?’’

‘‘किसी का खून करना गैरकानूनी होता है।’’

‘‘मेरे दादा ने गांव के एक हरवार का कत्ल किया था। मगर उन्हें तो फांसी नहीं हुयी। वे जेल तक नहंी गये।  उल्टे गांव के लोग उनके नाम से कांपते थे।’’

‘‘दादा क्या थे?’’

‘‘जमींदार थे।’’

‘‘क्या अब भी लेाग डरते है?’’

‘‘हमारी जाति ही ऐसी है। जानकर ही लोग डर जाते है।’’ पंधारी आगे बोला,‘‘ दादा कहते थे बल के आगे सब बौने हो जाते है। इसलिए बुद्वि विकास पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए। एक ही संस्कार दिया मारेा दो ठोक दो। घर में दोनाली बंदूख हमेशा रहती है।’’नेपाली को पंधारी ठीक लडका नहीं लगा। वह अंदर ही अंदर उसके संस्कारो को लेकर संशय में पड गया। पता नहंी हमारे साथ क्या करे? इसलिए जोर देकर बोला,‘आज जितना जल्दी हेा निकल लो। पता नहीं पुलिस तुम्हें खोजते हुए यहां तक आ जाए। तुम्हारे साथ मैं भी कहीं का नहीं रहॅूगा।’’ नेपाली की चेतावनी का उसपर असर पडा। वह सचमुच में डर गया। पुलिस का खैाफ उसके चेहरे पर साफ दीख रहा था। दिन के दस बजते बजते नेपाली ने उसे बाहर का रास्ता दिया। हाॅ, राह खर्च के लिए कुछ रूपये दे दिये। 

जैसे ही वह मुख्य सडक पर आया। उसे चारों तरफ पुलिस ही पुलिस नजर आ रही थी। अब पकडी तब। तभी पीछे से एक आदमी ने उसे आवाज दी। वह भय से सिहर गया। हो न हो पुलिस हो? भागने के मुद्रा में आया तबतक वह आदमी उसके पास  आ गया। आपका मोबाइल गिरा था।’’ देखकर उसके जान में जान आयी। उसे अपनेआप पर हंसी भी आयी तो रोना भी आया। मन ही मन ईश्वर को याद करके अपने किये पर पछताने लगा। बिलावजह स्टाफ का खून किया। जब लेाग उसके शक्ल से ही डरते थे तो क्यांे खून करने का जहमत उठाया? सोचा साहब खुश हो जाएगा तो नोैकरी पर कभी आंच नहीं आयेगी। मगर यहां तो साहब साफ मुकर गया। उल्टे उसे भाग जाने की राय दी। अब तो फोन तक नहीं उठा रहा। उसके व्यवहार में इस तरह का देागलापन होगा उसने सपने में भी भान नहीं था। गांव जाता तो वहां से गुड, देशी घी उसे लाकर देता था। आफिस के रोजाना के चाय के पैसे भी वही चुकता करता था। ताकि साहब खुश रहे। साहब ने उसे नाउम्मीद भी नहीं किया। उसका प्रमोशन बिना हुज्जत के होता रहा। चाहता तो उसे भी ठोक सकता था मगर जब वह उसके फेवर में है तो क्येां बिलावजह उससे पंगा ले। 


‘‘ये पुलिस पता नहीं कहां से आ गयी? यह सोचसोचकर वह परेशान था। कानून भी होता है? जबकि उसे हमेशा से यही बताया गया था कि कानून तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड सकती। कानून जिसके लिए भी हो मगर उसके लिए तो कत्तई नहीं। बहरहाल  उसके मन में साहब को  भी सबक सिखाने का ख्याल आ गया। फांसी होगी तो एक ही बार न। चाहे एक कत्ल करूॅ या दो। यही निश्चय के साथ उसने बनारस जाने का मन बनाया। जैसे ही नेपाल का बार्डर पार करने लगा देखा रास्ते में भारतीय पुलिस बसों को चेक कर रहे थे। वह असहज हो गया। मगर जाहिर होने नहीं दिया। एक यात्री से पूछा,‘‘ पुलिस बसेां को चेक  क्यों कर रही है?’’ यात्री ने जवाब दिया,’’ यह रोज का नियम है।’’ सुनकर उसे तसल्ली हुयी। क्षणांश इंतजारी के बाद उसके बस नंबर आया। दो पुलिस वाले अंदर घुसे। लोगो के सामानेा की तलाशी ली।  उसके पास भी पुलिस वालें आये। वह नजरें बचाने की कोशिश करने लगा। तुम्हारा सामान कहंा है?’’ पुलिस वाला डपटने के अंदाज में बोला। सुनकर पंधारी को अच्छा  न लगा। अगर लेागो ने उसके दिल में पुलिस का भय न पैदा किया होता तो निश्चय ही उस पुलिस वाले केा अच्छा जवाब देता।

‘‘मेरे पास कोई सामान नहीं है।’’ पंधारी दबे कंठ से बोला।

नीचे उतरों,’’ पुलिस वाले का स्वर तल्ख था। 

क्यों?’’

‘‘यह साहब तुम्हें बाद में बतायेगे।’’ वह सहमते हुए बस से बाहर आया।

‘‘साहब, पता नहीं क्येां यह लडका मुझे ठीक नहंी लग रहा।’’ पुलिस वालें के कथन पर इंस्पेक्टर ने उसे नीचे से ऊपर तक गौर से देखा। एकाएक कुछ सोचकर उसने अपने जेब से एक फोटो निकाली। मिलान किया। उसकी बांछे खिल गयी।

‘‘रामवचन, तुमने तो सचमुच में बहुत बडा काम कर दिया।’’

‘‘क्या साहब?’

‘‘यह तो खूनी है।’’

‘‘खूनी?’’उसके माथे पर बल पड गये।

‘‘हाॅ, इसी की तलाश में हम नेपाल गये थे। इससे पहले पकड मंे आता यह भाग चुका था।’’ इंस्पेक्टर के कथन पर वहां मौजूद पुलिसकर्मिओं में हर्ष की लहर दौड पडी। 

इंस्पेक्टर के निर्देश पर देानो पुलिसकर्मी ने पंधारी केा पूरे जोर के साथ पकड कर कुर्सी पर बिठा लिया। इंस्पेक्टर ने तत्काल अपने कप्तान को फोन किया। यह सब देखकर पंधारी बुरी तरह घबरा गया। अब क्या होगा? इसी चिंता ने उसे बुरी तरह बेचैन कर दिया। थोडी देर में एक पुलिस वैन आयी। पंधारी को उसमे बिठाया गया। वैन नजदीकी थाने आयी। उसे थाने के लाकर में डाल कर इंक्पेक्टर कप्तान के आदेश की प्रतीक्षा करने लगी। आधे घंटे बाद कप्तान साहब आये। दोनो पुलिसकर्मिओं को शबासी दी।  कुछ कागजी कार्यवाही के बाद पंधारी को बनारस ले जाया गया।

कोतवाली का दृश्य उसके लिए बिल्कुल नया था। चारों तरफ पुलिसकर्मी चहलकदमी कर रहे थे। एक बडी सी कुर्सी पर रूबीले मूछांेवाला थानेदार बैठा था। तभी उसकी नजर थाने ंके लाकर में पुलिस कर्मी से पीट रहा एक लडके पर गयी। पुलिस वाला बडी बेरहमी से उसकी पिटायी कर रहा था।

‘‘बता कहंा छुपा रखे है गहने।’’

साहब, मुझे नहंी मालूम।’’ लडका रिरियाया। तभी दूसरे पुलिसकर्मी ने उसकी पेैंट उतरवा दी। अब वह नीचे से नंगा था। उसकी चूतड पर जोर दार बेंत जैसे ही जमाया वह दर्द से तिलमिला गया। देखकर पंधारी की रूह कांप गयीं। 

‘‘कल इसे अदालत में पेश करेगे। लिहाजा आज जितना उगलवाना हो उगलवा लो,’’थानेदार बोला। अब बारी पंधारी की थी। उसे एक ऐसे लाकर में ले जाया गया  जो थोडे एकांत में था। जाहिर है उसकी अच्छी खातिर होने वाली थी। लाकर में  एक हल्की सी लाइट जल रही थी। उसे एक कुर्सी पर बिठाया गया। पंधारी के चारों तरफ पुलिस वालों ने घेरा बना लिया था। लाकर का वातावरण बेहद डरावना था। पंधारी अंदर ही अंदर बुरी तरह डरा हुआ था।


‘‘चाकू कहंा है?’’ इंस्पेक्टर पूछा।

‘‘मेैंने उसे वही कूडेदान में फेंक दिया था।’’पंधारी जानता था कि यहां किसी तरह की चालाकी चलने वाली नहीं थी। वैसे भी उसके पास इतनी बु़िद्व भी नहंी थी कि अपने बचाव में पुलिस वालों केा चकमा दे सके। सो सारी बातें सचसच बताने लगा। तिसपर पुलिसवालों केा उसपर भरोसा नहंी हो रहा था। एक पुलिस वाले ने आदतन उसे माॅ की गाली दे दी। सुनकर पंधारी तिलमिला गया।

‘‘जुबान संभाल कर बात करो वर्ना।’’ पंधारी का इतना कहना भर था कि इंस्पेक्टर ने उसके जोरदार तमाचा मारा। ’’साले हमें तमीज सिखाता है। इसके पैंट उतारेा।’’ वहां खडे पुलिस वाले उसका पैंट उतरवाने लगे। पंधारी उससे बचने के लिए इधर उधर छंटकने लगा।

‘‘ये ऐसे नहंी मानेगा। इसके हाथ पाव बांध दो।’’ चारों पुलिसकर्मी उसके हाथ पाव बांधने लगे। चूतड  पर कई बेंत लगने के बाद पंधारी ने जाना कि पुलिस  क्या चीज है। वर्ना अपने पिता से यही सुनते आ रहा था कि पुलिस उसके दरवाजे पर सिर झुकाती है। पुलिस की मार खाकर पंधारी पूरे समय कराहता रहा। पुुलिस उसकी निशानदेही पर कूडेदान की तलाशी ली मगर उसे कुछ नहीं मिला। मिलेगा कहंा से। कत्ल हुए पंाच दिन से ज्यादा हो चुके थे। अगर कूडेदान में होता भी है तो निश्चय ही उस कूडे केा उठाने वाले सफाईकर्मी को दिखा होगा। अब पुलिस के सामने यह सवाल उठा कि उस दिन कौन सफाईकर्मी कूडा उठाने आया था। उससे पूछताछ किया जाए तो पता लग सकता है। पंधारी के खिलाफ और सुबूत जुटाने के लिए पुलिस उसके मकान पर आयी।  तलाशी ली मगर कमरे में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला। हाॅ एक गंजी जरूर मिली जिसपर निश्चय ही खून के निशान थे। रंग सूखकर काला पड गया था। पुलिस उसे कब्जे में लेकर जांच के लिए प्रयोगशाले में भेज दी। पुलिस थाने आयी। उसे पंधारी पर तीव्र गुस्सा आ रहा  था। 

‘‘शर्ट कहां रखा है?’’ इंस्पेक्टर पूछा।

‘‘मेैंने कत्ल करने के बाद उसे धो डाला,’’पंधारी रूआंसे स्वर में बोला। उस दिन की मार को वह भूला नहीं था। लिहाज उसे याद करके उसके बदन में सिरहन सी दौड गयी। 

‘‘झूठ बोलता है। इसे उल्टा लटका दो। देखते है कैसे नहंी सच बताता है।’’ इंस्पेक्टर के कहने पर  उसे उल्टा लटका दिया गया। उल्टा लटकते ही वह रेाने लगा। ‘‘मेैं आपके हाथ जोडता हॅू। मुझे छोड दीजिए। मैंने कुछ भी झूठ नहीं बोला है। मैंने स्टाफ का कत्ल करके कपडे धो डाले थे। आप चाहे तो मेरे घर से उसे बरामद कर सकते है।’’

‘‘तेरे घर पर ही तो गये थे। मुझे वह शर्ट नहंी मिला। एक  गंजी मिली है।’’

‘‘हाॅ तो वही होगा। मैंने जल्दबाजी में उसे नहीं साफ किया था।’’ पुलिसवालो को उसके कथन पर भरोसा होने लगा। 

उतारो उसे।’’ इंस्पेक्टर के कहने पर उसे सीधा किया गया। 


‘‘वह चाकू अगर नहंी मिला तो समझ लेना तेरी खैर नही।’’चेतावनी देकर पुलिस वाले बाहर आये। रात वह ठीक से सो न सका। उसके सामने कभी पुलिस की मार तो कभी फांसी का फंदा नजर आता। उसे ऐसी अपेक्षा नहीं थी। हमेशा मारने पीटने वाला आदमी पुलिस की मार खा रहा था। वह सोचने लगा पुलिस की इतनी हिम्मत की उसपर हाथ छोडे। क्या उसे मेरी जाति का पता नहीं? हो सकता हो न पता हो। मौका पाकर उसने एक  पुलिसकर्मी को  अपने पास बुलाया।

‘‘थानेदार साहब किस जाति के है?’’

‘‘क्या करेगा जानकर?’’पुलिसवाला बोला।

‘‘बस ऐसे ही पूछ रहा था।’’

‘‘ज्यादा दिमाग मत लगा वर्ना इतनी मार पडेगी कि कभी उठ नहंी पायेगा।’’ पुलिसवालें की चेतावनी पर वह कुछ नहीं बोला। दर्द के मारे रह रह कर वह कराह उठाता। उसे याद आने लगा कैसे कालेज की पढायी के दौरान कई दोस्तों के साथ मिलकर उसने एक दुश्मन छात्र को हाकियों से पीटा था। तब अपनी दंबगई पर सीना चैका करके वह पूरे कालेज घूमा था। मजाल था जो कोई उसकी तरफ आंख उठा करके भी देख ले। जिधर जाता उधर सब हटबढ जाते। उसे लगा था कि वही एक शेर है। बाकी सब गीदड। उसे अपनी मर्दनगी पर रश्क भी हुआ। मगर यहां जिस तरह से पुलिसवालों ने उसके साथ व्यवहार किया उसकी सारी हेकडी निकल गयी। 

पुलिसवाले ने किसी तरह उस चाकू को बरामद कर ही लिया। पांच साल मुकदमा चला। पंधारी के बाप ने ख्ेात बेचकर मुकदमा लडा। तो भी वे पंधारी केा न बचा सके। उसे आजीवन कारावास की सजा मिली। 

‘‘क्या मुझे उम्रभर  जेल में रहना पडेगा?’’ पंधारी का स्वर घुटा हुआ था।

हाॅ।’’ उसके वकील ने जवाब दिया। वह आगे बोला,‘‘चिंता मत करना मेैं तुम्हें बचाने के लिए आगे की अदालत में चुनौती दूॅगा।’’

‘‘मैं नहंी रहूॅगा जेल में। मैं नहीं रहूॅगा जेल में।’’अलसुबह अचानक पंधारी के कमरे से शोर उभरा तो घर के बाकी सदस्य जो उठ चुके थे भागते हुए उसके कमरे में आये। वे पंधारी को उठाने का प्रयास करने लगे।

पंधारी की माॅ परेशान हो गयी।  कुछ  समय लगा पंधारी केा सामान्य होने में। उसने अपने आसपास बिस्तर को टटोलने की कोशिश की। बिजली जल रही थी।

‘‘मैं कहंा हॅॅू?’ उसके सवाल पर उसके पिता बोले,’’तुम अपने घर के बिस्तर पर हो। क्या कोई बुरा सपना देखे हो?’’ पंधारी लजा गया। अब वह क्या बताये कि उसने क्या किया है। हाॅ, मार देगे ठोक देगे के प्रति सजग हो गया।

 

श्रीप्रकाश श्रीवास्तव 

वाराणसी 

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