जब भी विनय गुप्ता कनाडा से भारत आकर अपने बंगले में रहते , कदम्ब उन्हीं के बंगले में रहता और उन्हीं के साथ खाना खाता। जब वह जाने लगते तो उसे दस हजार रुपये के साथ खूब सारे कपड़े आदि दे जाते। ग्रेजुएशन करने के बाद कदम्ब के बहुत प्रयत्न करने पर भी नौकरी नहीं मिल पाई तो उसने उसी फैक्टरी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी जारी रखी। रहने की जगह उसके पास थी ही, शहर में साफ सुथरा दो कमरे का छोटा सा घर किसी वरदान से कम नहीं था उसके लिये।
बहन का विवाह हो गया तो अम्मा और बाबू उसके विवाह के लिये भी उसके पीछे पड़ गये और कदम्ब ने भी मना नहीं किया। शहर में परिवार से अलग अकेले रहते – रहते वह ऊब गया था। वह भी चाहता था कि उसके दुःख – सुख का कोई साथी हो जिससे वह अपने मन की बात कह सके।
अम्मा बाबू ने वीथिका को पसंद किया तो उसकी फोटो देखकर ही उसने विवाह के लिये हामी भर दी। इस तरह वीथिका उसकी पत्नी बनकर उसके जीवन में सम्मिलित होने आ गई। अब उसके खर्चे बढ़ गये थे, इसलिये वह अधिक मेहनत करने लगा।
कदम्ब के विवाह के बाद जब विनय गुप्ता भारत आये तो जितने दिन रहे वीथिका ने उनका अपने घर के पिता या ससुर की तरह ख्याल रखा। विनय गुप्ता वीथिका के सरल स्वभाव से इतना प्रभावित और प्रसन्न हुये कि उन्होंने वीथिका को कई उपहार देने के साथ अपनी पत्नी की सभी साड़ियां भी दे दी और जाते समय कदम्ब की ही तरह वीथिका को भी दस हजार रुपए दिये।
वीथिका ने रुपये लेने से मना करते हुये कहा – ” बाबूजी, ये रुपये रहने दीजिये। अगर आप सचमुच हमें कुछ देना चाहते हैं तो हमें एक बात की इजाजत दे दीजिये।”
” बोलो बहू, क्या कहना है तुम्हें?
” यदि आप आज्ञा दें तो हम इस बंगले में कुछ सब्जियां और फूल आदि उगा लिया करें जिससे यह जमीन हरी भरी रहे और हमारी कुछ आमदनी भी बढ़ जाये। मेरे पिताजी कहते हैं कि खाली उजाड़ जमीन दुखी रहती है, रोती रहती है और उसे देखकर एक अजीब तरह की नकारात्मकता महसूस होती है।”
विनय गुप्ता कुछ देर तो सोचते रहे फिर कदम्ब की ओर देखकर बोले – ” कदम्ब, मेरी बहू तो बहुत बुद्धिमान है। आज तक तुमने और मैंने यह तो सोंचा ही नहीं। सचमुच यह सच कह रही है, हरी भरी भूमि को देखकर अपने आप मन खुश हो जाता है। ठीक है, अब से बंगले के आसपास जमीन का तुम लोग उपयोग कर सकते हो और बहू ये पैसे तो तुम्हारे हैं तो तुम्हें लेने ही पड़ेंगे। इन पैसों से बीज, खाद और जो आवश्यक हो ले आना।”
वीथिका गांव की परिश्रमी लड़की थी। दोनों ने बंगले के चारो ओर खाली पड़ी जमीन पर सब्जियां और फूल के बीज लाकर अपनी मेहनत से सब्जियां और फूल उगाने शुरू कर दिये। जैसे जैसे सबको पता चलता गया अधिकतर लोग आकर घर से आकर ताजी बिना केमिकल की सब्जियां ले जाते। फूलों को कदम्ब जाकर दुकानों पर दे आता। दोनों का खर्च आसानी से चल जाता लेकिन वीथिका कदम्ब के वेतन से ही घर का खर्च चलाया करती, सब्जियों और फूलों से उन्हें जो पैसे मिलते उन्हें वह बचत के रूप में बैंक में जमा कर देती –
” ये पैसे हमारे पास किसी आकस्मिक विपत्ति या खर्च के लिये सुरक्षित रहने चाहिये ताकि हमें किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े। “
एक सुखी गृहस्थी थी दोनों की। तभी वीथिका और कदम्ब को अपने छोटे से संसार में किसी तीसरे के आने की आहट सुनाई दी।
सुनकर अम्मा और बाबू भी खुश हुये क्योंकि दोनों की शादी को पॉच वर्ष पूरे हो गये थे। हालांकि एक दूसरे के प्यार में डूबे होने के कारण पहले तो दोनों स्वयं ही बच्चा नहीं चाहते थे लेकिन अम्मा और समाज के लगातार बढ़ते दबाव और तानों से घबड़ाने लगे थे।
वीथिका चाहती थी कि वह और कदम्ब मिलकर बच्चे के आने के अनुभव को साथ रहकर साझा करें । इसलिये वह ऐसे समय अपने मायके या अम्मा के पास नहीं जाना चाहती थी – ” यह हमारा पहला बच्चा है, मैं एक दिन के लिये भी तुमसे दूर नहीं जाऊंगी। बच्चे के जन्म के बाद मैं मायके और अम्मा के पास दोनों जगह एक – एक महीने के लिये चली जाऊंगी।”
” भेजना तो मैं भी नहीं चाहता लेकिन अकेले डर लगता है कि कोई ऊंच- नींच हो गई तो क्या करूंगा ?”
” ऊंच – नींच तो कहीं भी हो सकती है। यहां कम से कम हर परिस्थिति में हम एक दूसरे के साथ तो रहेंगे। मैंने बगल के बंगले की सावित्री अम्मा से बात कर ली है, रात में जब तुम ड्यूटी जाओगे, वह मेरे पास रहा करेंगी।”
कदम्ब हॅस पड़ा -” तुमने तो पूरी योजना बना ली है, अब कहने के लिये बचा ही क्या है ? लेकिन अम्मा बाबू बहुत नाराज होंगे।”
” उन लोगों को मनाना तुम्हारा काम है ?”
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मंगला मुखी (भाग-4) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर