मन की चाहतों को सदा जिंदा रखो.. – निधि शर्मा
- Betiyan Team
- 0
- on Dec 28, 2022
“पापा जी बुरा ना माने तो एक बात कहूं..? आप पूरे दिन फोन में लगे रहते हैं कहीं जाते जाते नहीं, इंसान का शरीर भी मशीन की तरह होता है। जब तक काम करते रहो सब पार्ट पुर्जे सही सलामत रहते हैं, रिटायरमेंट के बाद जब आदमी अपनी चाहतों को सीमित कर देता तो शरीर के साथ मन और दिमाग में भी जंग लग जाते हैं। फिर फालतू की बातों पर हम नाराज हो जाते, बे बात चिरचिरे होते जाते हैं, क्या मैं गलत कह रही हूं..?” कुसुम अपने ससुर कमलेश जी से कहती है।
वहीं बैठे कुसुम के पति प्रवीण बोले “तुम कहना क्या चाहती हो इस उम्र में पापा काम करेंगे, क्या बुढ़ापे में तुम मेरे पिता से काम करवाना चाहती हो..! ये अपने बेटे की कमाई खाते हैं कोई तुम्हारी नहीं, काम करने की भी कोई उम्र होती है, वरना सरकार एक उम्र के बाद इंसान को रिटायरमेंट क्यों दे देता है।”
कुसुम बोली “आप बुरा मत मानिए मेरी बातों को समझने की कोशिश कीजिए। आप ये भी देखिए अगर इंसान मन में कुछ चाहते हैं जिंदा रहे और एक उम्र हो जाने के बाद भी काम करने की इच्छा शक्ति रखता है तो क्यों ना काम करें..? ससुर जी मैं तो कहूंगी आप पैसों के लिए नहीं, अपनी चाहतों को जिंदा रखने के लिए काम कीजिए। जब आप काम करते थे तो कितने खुश रहते थे, 4 लोगों से मिलते थे उनकी सुनते थे और अपनी कहते थे।”
कमलेश जी बोले “बहू कह तो तुम सही रही हो। जब तक मैं काम करता था मुझे कोई बीमारी भी नहीं थी, विमला के जाने के बाद एक काम ही तो था जिसमें में व्यस्त रहता था। रिटायरमेंट के बाद तो मानो घर में बैठ गया और मुझ में जंग लग गया है, फालतू में दिमाग उल्टी-पुल्टी बातें सोचता रहता है तुम्हारी बातों पर विचार किया जा सकता है।”
प्रवीण बोला “अरे पापा आप कहां इसकी बातों में आ रहे हैं! आपने पढ़ा लिखा कर मुझे इस काबिल बनाया है कि मैं आपको बैठाकर खिला सकता हूं। कुसुम तुम्हारे पिता को इस उम्र में अगर काम पर भेजा जाता तो तुम्हें कैसा लगता, मेरे पिता को भी अपने पिता की तरह समझो तब कुछ बोलो..।”
कुसुम दुखी होकर बोली “काश कि मैं अपने पिता के लिए कुछ कर पाती..! रिटायरमेंट के बाद उन्होंने भी यही गलती की और शारीरिक रूप से वो परेशान हो गए फिर तो वो अतना काम करने लायक भी नहीं रहे। बस परिवार पर बोझ बनकर रह गए और यही पीरा उन्हें अंदर ही अंदर खाती गई और एक दिन वे इस दुनिया से चले गए।”
कुसुम ससुर जी से बोली “पापा जी कोई जबरदस्ती नहीं है आप आराम से सोचिए। ईश्वर की दया से हमें पैसों की कोई कमी नहीं है, बस मैं ये चाहती हूं कि आप स्वस्थ रहें और दिल से खुश रहिए आपको जो अच्छा लगता है आप किजिए।” इतना कहकर वो अपने कमरे में चली गई।
पत्नी के जाने के बाद प्रवीण बोला “पापा आप इसकी बातों में मत जाओ इसका मानना है कि इंसान मन में जब तक चाहते हैं जिंदा रहती है तब तक वो स्वस्थ रहता है। अरे काम करने की भी एक उम्र होती है, क्या पूरी जिंदगी इंसान काम करेगा! एक समय के बाद तो लोग तो आराम करना ही चाहेंगे।”
कमलेश जी बोले “बेटा देखा जाए तो बहू सही कह रही है। याद है तुम्हें तुम्हारी मां कहती थी, इंसान जब तक चाहतों को जिंदा रखता तब तक जवान रहता है। जिस रोज चाहते खत्म हो जाती वो बुड्ढा हो जाता है और कंपनी के मालिक भी उसे निकाल देते हैं, वरना मालिक तो बुढ़ा ही रहता है फिर भी वो काम करता रहता है आखिर क्यों..!”
सबके जाने के बाद बैठे-बैठे कमलेश जी बहू की बातों पर गौर कर रहे थे और अपनी बहू की बातों को वो अपनी स्वर्गवासी पत्नी की बातों से मिला रहे थे। करीब एक हफ्ते बाद उन्होंने बहुत सोचा फिर निर्णय लिया, बेटे बहू को बुलाकर अपना फैसला सुनाना चाहा। कुसुम बहुत उत्साहित थी कि आखिर ससुर जी ने क्या फैसला लिया।
वो बेटे से बोले “बेटा तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो मेरा ख्याल भी रखते हो, आज के जमाने में जहां बच्चे अपने पिता को पूछते नहीं तुम मुझसे पूछे बिना कोई काम नहीं करते मुझे तुम पर गर्व है। पर मैं बहू की बहुत बातों से सहमत हूं, तुम्हारी मां भी यही चाहती थी कि जिस काम से मन को खुशी मिले उस काम को ताउम्र करना चाहिए। क्योंकि काम करने से इंसान मन से खुश रहता है।”
ससुर जी की बातें सुनकर कुसुम बहुत खुश हुई और बच्चों की तरह वो हंसने लगी। वो बोली “पापा जी आज आपने साबित कर दिया कि आप इनसे ज्यादा मुझे प्यार करते हैं।” बहू की बातें सुनकर कमलेश जी के चेहरे पर हंसी आ गई। एक बेटे की यही चाहत होती है कि पिता के चेहरे पर खुशी हो इससे बड़ी दौलत तो उसके लिए कुछ हो ही नहीं सकती।
कमलेश जी पहले टाटा की कंपनी में सिक्योरिटी डिपार्टमेंट में अफसर थे। उन्होंने घर से ही सोसाइटी ,अस्पतालों के लिए सिक्योरिटी की व्यवस्था उपलब्ध कराने की एक छोटी सी कंपनी खोली। धीरे-धीरे वो चलने भी लगी, कमलेश जी के जान पहचान के कुछ रिटायर्ड दोस्त भी उनके साथ जुड़ने लगे। उन लोगों ने भी उन्हें संपर्क किया और धीरे-धीरे वो भी उस काम का हिस्सा बनने लगे, और अपने दिनचर्या को बदलने लगे।
जहां पहले वो सभी अपने कमरों में एक फोन के साथ बैठे गुम रहते थे! आज एक जगह इकट्ठे होते हैं, मेहनत के पैसे भी मिल जाते हैं और हंसी मजाक होती है तो मन की बातें भी बाहर आ जाती है। पैसा सब कुछ नहीं है परंतु जिस काम से खुशी मिले रातों को हमेशा जिंदा रखें, बहू की कोशिश रंग लाई और उसके ससुर अब मन और दिमाग दोनों से खुश रहते थे।
दोस्तों जरूरी नहीं कि हर बार बेटे का सुझाव ही सही हो और बहू का सुझाव गलत हो! एक बार सुने और उस पर विचार करें, हो सकता है आपकी बहू का विचार आपके मन को पसंद आए और आपकी मन की कुछ दुविधा खत्म हो जाए और पुरानी खुशियां आपके चेहरे पर आ जाए।
आपको ये कहानी कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें बहुत-बहुत आभार
#चाहत
निधि शर्मा