
मलाल – अमित किशोर
- Betiyan Team
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- on Mar 07, 2023
बात पिछले दिनों की ही है। जब मैं दशहरे की छुट्टियों के बाद लौटकर वापिस दिल्ली जा रहा था। अगले दिन से ऑफिस खुलने वाली थी। मन तो कर नहीं रहा था वापिस जाने को, पर नौकरी की मजबूरी भी थी। पटना से दिल्ली तक का सफर अमूमन, मैं हर तीसरे और चौथे महीने कर ही लिया करता था। बैचलर जिंदगी थी, तो, घूमना फिरना एक मौज की तरह था। बस, इस मौज के आड़े मेरी नौकरी आ जाती थी, कभी कभी।
छुट्टियों के कारण एसी कोच में रिजर्वेशन की जुगाड़ न कर सका। अलबत्ता स्लीपर क्लास में भी टीटी से कहकर इंतजाम किया और अपनी जगह पर आकर बैठ गया। ट्रेन में जबरदस्त भीड़ थी। इतनी कि बोगी में केवल सर और लटके हुए पैर ही दिख रहे थे। एक बार तो सोचा, कुछ बहाना बनाकर टाल दूं एकाध दिन दिल्ली पहुंचने का कार्यक्रम, पर पापा का डर और उनकी बातें सताने लगी। ऐसे मौकों के लिए उनका परमानेंट लाइन दिमाग में कौंधने लगता, ” खुद से ईमानदार बनिए, नहीं तो जिंदगी में कहीं नहीं पहुंच पाइएगा। हमेशा सफर करते रह जाइयेगा।और ये हिंदी वाला सफर नहीं, अंग्रेजी वाला सफर।”
जैसे तैसे अपने बर्थ पर बैठा ही था कि देखा सामने वाले बर्थ पर एक अधेड़ उम्र की महिला भी बैठी हुई थी। साधारण सा चेहरा और चेहरे के ऊपर निराशा साफ देखी जा सकती थी। ट्रेन के अंदर हो रहे किसी भी आवाज को सुनकर बार बार सशंकित हो जा रही थी। कपड़े और पहनावे उनके मामूली से ही थें , पर कहीं कुछ तो था, जो मुझे बार बार उनकी तरफ देखने को मजबूर कर रहा था। गाड़ी चली और तकरीबन पैंतीस चालीस मिनट के बाद रुकी। मुझसे कहा, ” बाबू, एक काम कर दीजियेगा मेरा ? पानी का बोतल तो आ गया है साथ में, पर हम पानी भरना ही भूल गए हैं। थोड़ा उतरकर, पानी भर दीजिएगा ? बड़ा मेहरबानी होगा।” मैं ना नहीं कर सका। बोतल में पानी भरकर ला दिया।
गाड़ी सरपट पटरियों पर भागने लगी।थोड़ी देर मैंने अपना अकेलापन मोबाइल के हवाले किया पर ज्यादा देर तक कर नहीं सका। बैटरी के डेड होने के डर से मोबाइल को जेब में रख लिया। सोचा, समय बिताने के लिए आस पास कुछ बातचीत ही कर लेता हूं। अक्सर सफर में, बातचीत टाइम पास का सबसे कारगर जरिया होता था और इसका मुझे बहुत तजुर्बा था। मैंने महिला से बोला, ” आंटी जी, अगर पानी खत्म हो जाए, तो बेझिझक बोलिएगा। मैं फिर ला दूंगा। वैसे, आप जा कहां तक रहीं हैं ? ” आंटी जी ने जवाब दिया, ” बाबू, दिल्ली जाना है। एक जरूरी, बहुत जरूरी काम है। आप भी दिल्ली तक ही जाइयेगा क्या ? ” मैंने हां में गर्दन हिला दिया।
अब तो बातों का सिलसिला चल पड़ा। आंटी जी की हालत देखकर मुझसे रहा नहीं गया। बात आगे बढ़ाते हुए पूछ डाला। ” कुछ परेशान लग रही हैं आप। हजार किलोमीटर से ज्यादा का सफर, इस तरह अकेले तय कर रही हैं। घर है क्या अपना वहां आपका ?”
“नहीं बाबू, बेटी ब्याहे हैं वहां दिल्ली में। उत्तमनगर जानते हैं, आप ? वहीं रहती है, बेटी।”
“आपके दामाद क्या करते हैं, आंटी जी ? “
” कुछ नहीं बाबू, इंश्योरेंस का काम करते हैं। वो एजेंट सब होता है ना, बीमा वाला, बीमा करते हैं पब्लिक का।”
” बहुत बढ़िया तो है। परिवार में और कौन कौन है ? ”
” अब तो कोई भी नहीं है, बाबू । एक बेटी थी जिसका ब्याह हो गया । ई फरवरी में तीन साल हो जायेगा उसका ब्याह का। हमरे मालिक को गुजरे तो ज़माना हो गया। गोदिये में थी बेटी मेरी, जब मालिक छोड़ कर चले गए।”
“तो, बेटी से मिलने जा रही हैं, आप दिल्ली।”
” अब का बताएं बाबू, आपको। बेटी का शादी बड़ी धूमधाम से किए। जिससे कही, उसी से किए। जिद्दियाई हुई थी कि उसी लड़का से करेंगे, नहीं तो जहर खाके मर जायेंगे। का करते, बताइए ? बेटी को समझाते तो बेटी को खो देने का ही डर था। कर्जा पैंचा करके जैसे तैसे इंतजाम किए और ब्याह हुआ। मिलने ही जा रहे हैं, समझिए।
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद जब मैंने उनकी आंखों में आंसू देखे तो समझ गया कि मामला बस मिलने मिलाने का नहीं था, बल्कि कुछ और ही था। मैंने उनकी तरफ फिर से देखकर धीरे से कहा, ” दुख बांटने से कम होता है, आंटी जी। ” मेरा इतना कहते ही वो फफक फफक कर रोने लगी। मुझे लगा बाकी यात्री मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे। कहीं कोई तमाशा न बन जाए। आंटी जी ने अपनी साड़ी के पल्लू से अपने आंसू पोंछे और आगे बताया। कहने लगी, ” जानते हैं, बाबू !!! इस जीवन में कुछ दुःख बांटने से भी कम नहीं हो सकता है। आप मेरे बेटे के उमर के हैं। अगर मेरा बेटा होता, तो आपकी तरह ही दिखता। मेरी बेटी का नाम लता है और प्रमोद मेरे दामाद का नाम है। यहीं पटना में ही दोनों एक ही मोहल्ला में साथ रहा। हमको उस लड़का में कुछ भी अच्छा नहीं लगा आज तक पर लता को तो उसके साथ ही जिंदगी गुजारना था। लगी ज़िद करने, धमकाने कि अगर प्रमोद से शादी न हुआ तो जहर खा लेगी। बहुत समझाए, यहां तक बोले कि, शादी कर लोगी तो हम किसके सहारे रहेंगे, बताओ ? पर पता नहीं, कौन सा भूत सवार था, उसके माथा पर कि शादी करके ही मानी।”
“तो, फिर समस्या क्या है, आंटी जी ? शादी हो ही गई। लता खुश है , तो, फिर आप क्यों परेशान हैं ?”
“नहीं ना है, खुश वो। पिछला तीन साल से खुश रहने का दिखावा कर रही है। आप ही बताइए, बाबू। आप तो पढ़े लिखे लगते हैं, कोई कैसे इतना दिन से जुल्म बर्दाश्त कर सकता है ? पहले बता नहीं सकती थी ? ब्याह ही न किए थे उसका, त्याग थोड़े ना दिए थे।”
“अच्छा, लीजिए पहले पानी पीजिए, आप। सफर लंबा है अभी।”
” का बताएं, बाबू आपको। कर्जा काढ़ कर बेटी का उसका मर्जी से ही ब्याह करवाए और आज उसका नतीजा है कि ये दिन देखना पड़ रहा है। प्रमोद को अब पांच लाख रुपया चाहिए दहेज का। बताइए, तीन साल के बाद कौन दहेज मांगता है ? और इसके लिए लता को मारता है, पिटता है। इतना कि मेरी लता चार चार घंटा तक बेहोश रहती है। दुर्गापूजा में विजयादशमी के दिन जब उसका हाल चाल लेने के लिए फोन किए उसको तो पता चला कि बेटी मेरी बेहोश है और खुद मेहमान हमकोनी बात बताए। कहे कि आइए और साथ में पांच लाख लेते आइएगा। बेटी का जिंदगी और गृहस्थी बचाना है तो बिना इंतजाम मत आइएगा।”
” इंतजाम करके जा रही हैं, क्या आप दिल्ली ?”
” कहां से इंतजाम होता। सब कुछ जो था, और कर्जा लेकर शादी में ही डाल दिए। अभी भी कर्जा नहीं चुका है। मन नहीं माना। बेटी है ना, अपना कोख से जनम दिए हैं। कैसे छोड़ दें उसको इस हालत में ? एक बार नजर से देख लें, जो होगा बाकि देखा जायेगा।”
” अकेले कैसे मैनेज कीजिएगा, ये सब आंटी जी आप ?”
” अब छोड़ भी तो नहीं सकते, बाबू। अपना कलेजा का ही टुकड़ा है। पता है !!!बड़ी रोई थी, वो बिदाई के समय । सीना फट गया था मेरा। इतना तो हम उस दिन भी नहीं रोए थे जब मालिक छोड़ कर चले गए थे। हथेली भर की थी लता उस समय। मालिक की अर्थी उठ रही थी और लता दूध पीने के लिए रो रही थी। उस वक्त भी हम चूल्हा पर दूध गरम कर रहे थें ताकि लता की भूख मिट सके। बताइए, जब उस समय बेटी को नहीं छोड़े, तो, आज कैसे छोड़ दें उसको हम।”
मुझे लगा, आंटी जी का ये दर्द अंतहीन था। जितनी पूछता, उतनी वो बताती जाती। दिल अपना हल्का करती जाती। रात का खाना पीना कराकर मैं भी सो गया और आंटी जी अपनी बर्थ पर लेट गई। मुझे यकीन था, रात भर नींद नहीं आने वाली थी उन्हें।
सुबह जब गाड़ी दिल्ली पहुंची तो मैंने उन्हें तेजी से उतरते देखा। मानो, बस उन्हें लता को ही देखना था। मैं भी गाड़ी से उतरा और अपनी मंजिल की और बढ़ गया पर इस बार की यात्रा सबसे अलग थी। सीखने, जानने और समझने का जो मौका आंटी जी से मिला, शायद जिंदगी में दुबारा मुझे नहीं मिलता।
अपनी उसी यात्रा और यात्रा के अनुभव को कलमबद्ध कर रहा हूं……………..
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित
#5वा_जन्मोत्सव #जन्मदिवस_विशेषांक
बेटियां जन्मोत्सव कहानी प्रतियोगिता
कहानी : पंचम
अमित किशोर