मैं मां बन गई – संगीता अग्रवाल

मैं सुमेधा आज मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है क्योंकि मैं  मां बनने वाली हूं। आप मुझे बधाई देंगे हैना? पर जब मैं आपको बताऊंगी मैं अविवाहित हूं तो आप मुझे बेशर्म , कुलटा और ना जाने किस नाम से नवाजेंगे। पर रुकिए रुकिए इससे पहले की आप मुझे अपशब्द कहें कम से कम मेरी कहानी तो सुन लीजिए फिर फैसला कीजिएगा मुझे बधाई देना है की लानते।

तो चलिए आपको पहले अपने यानी सुमेधा के अतीत से लेकर अब तक की कहानी से रूबरू करवाते हैं।

” देखिए रमेश जी आपकी बेटी का बहुत सीरियस ऐक्सिडेंट हुआ है बहुत मुश्किल से जान बची है पर अब ये कभी मां नहीं बन पाएगी !” डॉक्टर सुमेधा के पिता से बोले।

” ऐसा ना कहिए डॉक्टर मेरी बेटी की अगले महीने शादी है !” रमेश जी रोते हुए बोले।

” रमेश जी अब शादी की बात तो भूल ही जाइए हमे अपने वंश को बढ़ाने वाली चाहिए हमारी वंश बेल खत्म करने वाली नहीं !” तभी वहां सुमेधा के होने वाले ससुर आ बोले।

” ऐसा ना कहे समधी जी सुमेधा तो आपके बेटे सरस के साथ ही थी ना जब ये ऐक्सिडेंट हुआ अब इसमें सुमेधा का क्या दोष बल्कि सुमेधा ने तो सरस को पहाड़ी इलाके में बाइक से जाने को मना ही किया था। आज जो उसको चोट ज्यादा आईं अगर सरस को चोट आती और उसके साथ कुछ ऐसा होता तो ?” सुधीर जी हाथ जोड़ बोले

” मुझे कुछ नहीं सुनना आप ये रिश्ता तो ख़तम समझिए अब रही सुमेधा की बात उससे हमे हमदर्दी है तो कल को जब उसकी शादी होगी तो हम कुछ रुपए से मदद कर देंगे उसकी पर अपनी बहू नहीं बना सकते अब !” ये बोल सरस के पिता चले गए।

सुमेधा और सरस का रिश्ता अभी दो महीने पहले ही हुआ रहा दोनों एक ऑफिस में काम करते थे एक दूसरे को पसंद करते थे तो दोनों परिवारों की रजामंदी से रिश्ता हो गया। आज सरस सुमेधा को ज़िद करके बाइक से घुमाने ले गया था। वापिसी में उसकी बाइक एक कार से टकराई जिसमें सरस को तो मामूली चोटें आईं पर सुमेधा का पेट एक पत्थर से टकराया और ये हादसा हो गया।



खैर शरीर के जख्म तो सुमेधा के दो महीने में ठीक हो गए पर उसके दिल पर लगी चोट भरने का नाम नहीं ले रही थी उसे सरस से ऐसी उम्मीद बिल्कुल ना थी। तो उसने सीधा सरस से बात करने का निश्चय किया और फोन किया।

” हैलो सरस कैसे हो मुझसे मिलने अस्पताल में भी नहीं आए मैं तुमसे एक बार मिलना चाहती हूं!” सुमेधा बोली।

” देखो सुमेधा मैं तुमसे नहीं मिलना चाहता ये बात अब तक तो तुम्हे समझ आ जानी चाहिए !” सरस उखड़े मूड में बोला।

” पर सरस तुम क्यों कर रहे ऐसा वो प्यार वो कसमे उनका क्या ?” सुमेधा रुधे स्वर में बोली।

 

” प्यार से जरूरी होता है वंश बढ़ाना जो तुमसे शादी कर नहीं हो सकता अच्छा यही होगा आइंदा मुझे फोन मत करो मैने नौकरी भी कहीं और ज्वाइन कर ली है अब हम कभी नहीं मिलेंगे वैसे भी मेरा रिश्ता कही और हो गया है !” सरस ने ये बोल फोन काट दिया।

” क्यों सरस क्यों किया तुमने मेरे साथ ऐसा मैने तो तुम्हे सच्चा प्यार किया था फिर एक छोटी सी कमी के कारण तुमने…..अगर यही तुम्हारे साथ होता तो मैं खुशी खुशी जिंदगी बिता देती तुम्हारे साथ पर तुम …..!” सुमेधा फोन रखते ही सिसक पड़ी।

धीरे धीरे सुमेधा सामान्य होने लगी ऑफिस भी जाना शुरू कर दिया था उसने। उसके माता पिता ने कई बार उससे शादी की बात की पर अपनी कमी को देखते हुए उसने हर बार इनकार कर दिया।

” बेटा हमारे बाद किसके सहारे रहेगी तू ?” सुमेधा की मां अक्सर कहती।

” मां जिसका कोई सहारा नहीं होता वो भी तो जिंदगी जीते हैं ना जिससे मैने प्यार किया उसने ही मुझसे किनारा कर लिया तो मेरी कमी को देखते हुए कोई दूसरा मुझसे शादी क्यों करेगा और झूठ बोल कर मैं करना नहीं चाहती इससे अच्छा है मैं आजीवन कंवारी रहूं!”। सुमेधा ने अपना अंतिम फैसला सुनाया।

सुमेधा के मां बाप ने भी उसकी इच्छा का सम्मान करते हुएअभी चुपी लगाने का फैसला किया। उन्हे लगा वक्त शायद सब ठीक कर दे।

वक़्त अपनी रफ्तार से गुजरने लगा। धीरे धीरे सुमेधा चौतीस साल की हो गई। अपनी सभी सहेलियों को सुखी विवाहित जीवन व्यतीत करते देख उसके मन में भी हूक सी उठती जिसे वो दबा देती। फिर अचानक उसने अपनी सुनी जिंदगी को रोशन करने का फैसला किया।



” मां पापा मैं आप दोनों से एक बात कहना चाहती हूं !” एक दिन सुमेधा घर आकर बोली।

” हां बेटा बोलो इतना खुश क्यों हो ?” सुमेधा के पापा रमेश जी बोले।

” पापा मैने फैसला किया है एक बच्ची गोद लेने का जो मेरी सूनी जिंदगी रोशन करेगी और मेरा अकेलापन भरेगी। जिस कमी के लिए सरस ने मुझे ठुकराया वो कमी वो बच्ची भरेगी मेरे जीवन की उस बच्ची के कारण मैं भी मां बन सकती हूं !” सुमेधा खुश होते हुए बोली।

” पर बेटा ऐसे अकेले कैसे बच्चे की परवरिश करेगी तू ?” सुमेधा की मां बोली।

” मां मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं फिर आप भी तो हो ना !” सुमेधा बोली।

” बहुत अच्छा सोचा तुमने बेटा तुम्हारी खुशी में हमारी खुशी है !” रमेश जी उसके फैसले का सम्मान करते उसके सिर पर हाथ फेरते बोले।

सुमेधा ने एक अनाथाश्रम में बच्ची गोद लेने का फॉर्म भर दिया । हालाकि अकेली होने के कारण ये थोड़ा मुश्किल था पर उसकी अच्छी नौकरी और मां बाप का साथ देखते हुए नामुमकिन नहीं था।

और आज सुमेधा के पास बच्ची पसंद करने आने के लिए अनाथाश्रम से फोन आया और सुमेधा को जैसे ही पता लगा वो मां बनने वाली है उसी खुशी का ठिकाना ना रहा। उसने फूलों और गुब्बारे वालों को बुला पूरा घर सजाने को कहा और खुद चल दी अपनी बेटी को घर लाने।

दोस्तों ऐक्सिडेंट किसी के साथ भी हो सकते कमी किसी में भी हो सकती पर उस वजह से किसी से रिश्ता तोड़ लेना कहां तक जायज है । कितने बच्चे है जो मां बाप के प्यार को तरस रहे उन्हें घर लाइए अपना घर रोशन कीजिए क्योंकि बच्चे तो बच्चे हैं क्या गोद लिए क्या अपने।

अब बताइए आप सुमेधा को बधाई तो देंगे ना उसके मां बनने पर?

उम्मीद है आपको मेरी रचना पसंद आई होगी और अब आप भी रागिनी के मां बनने से खुश होंगे। कृपया अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाएं । 

आपकी दोस्त 

संगीता

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