Monday, June 5, 2023
No menu items!
Homeविभा गुप्तामैं हूँ ना -  विभा गुप्ता

मैं हूँ ना –  विभा गुप्ता

 ” भईया, रुनझुन की शादी कैसे होगी?लड़के वालों की डिमांड तो कुछ भी नहीं है, फिर भी खाली हाथ बेटी को कैसे विदा कर दूॅं।जेठ जी ने तो पल्ला झाड़ लिया है।रुनझुन के पापा रहते तो मुझे कोई चिंता ही नहीं रहती लेकिन….।”

कहते हुए देवकी रोने लगी तो नारायण बाबू बहन के कंधों पर अपने दोनों हाथ रखते हुए बोले, ” रोती क्यों है देवकी,भगवान सब ठीक कर देंगे और फिर हम हैं ना।रुनझुन के मामा- मामी। “

  ” हाँ देवकी, अपने भईया-भाभी पर भरोसा रख, खूब धूमधाम से हम अपनी रुनझुन का ब्याह करेंगे।अब चाय पी ले, तेरी पसंद की अदरक वाली बनाई है।” हॅंसते हुए नारायण बाबू की पत्नी ने कहा तो देवकी अभिभूत हो गई।

       देवकी, नारायण बाबू की फुफ़ेरी बहन थी।संपत्ति के बॅंटवारे को लेकर उनकी अपनी बहन सावित्री ने तो भाई से संबंध तोड़ लिया था लेकिन देवकी बहिन का फ़र्ज़ निभाने में कभी पीछे नहीं रही थी।चार साल पहले जब मुंबई में उनकी पत्नी की गंभीर सर्जरी हो रही थी, वो अकेले पड़ गये थें तब देवकी के पति ने ही आगे बढ़कर कहा था कि भाईसाहब, आप चिंता क्यों करते हैं, हम सब हैं ना और देवकी ही साथ रहकर अपनी भाभी की सेवा की थी।किशोरावस्था में जब उनका दीपक गलत संगत में पड़कर पढ़ाई से जी चुराने लगा था,दोनों पति-पत्नी बेटे को सही राह पर लाने में नाकाम हो गयें थें तब देवकी भतीजे को यह कहकर अपने साथ ले गई थी कि अब आपका वाला दीपक ही लौटाऊॅंगी और उसने अपना वादा पूरा किया भी।उसी की मेहनत का फल था कि आज उनका बेटा जर्मनी की एक कंपनी में सौफ़्टवेयर इंजीनियर है।




        पिछले साल देवकी के पति की मृत्यु हो गई और बेटी को दुल्हन बने देखने की साध उसके पति की अधूरी रह गई।अपने पहचान वालों की मदद से देवकी को बेटी के लिए रिश्ता तो अच्छा मिल गया था लेकिन लेन-देन करने में उसके हाथ ज़रा तंग हो रहे थें, ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ इसीलिए वो मदद की आस लेकर भाई के पास आई थी।

      शाम की चाय पीते हुए नारायण बाबू ज़रा चिंतित थें। पत्नी ने उनके मस्तक पर चिंता की रेखाएँ देखीं तो पूछने लगीं कि क्या बात है?

    तब नारायण बाबू बोले, ” देवकी को कह तो दिया कि सब हो जाएगा लेकिन तुम ही बताओ कि पेंशन के पैसे में कैसे संभव है।कपड़े-लत्ते हो भी जाएं तो जेवर की व्यवस्था तो मुश्किल….। “

    ” मुश्किल कैसी जी, रुनझुन हमारी भी तो बच्ची है, मेरी उमर तो बीत गयी,जेवर पहनने से रही, वही देवकी को दे दूॅंगी, बदलकर …”

     ” क्या बात है माँ? ये जेवर की क्या चर्चा हो रही है? ” पास के कमरे में बैठा दीपक ने सुना तो अपनी माँ से पूछा।




” कुछ नहीं, रुनझुन की शादी है ना तो‌… “

” हाँ पर उसमें तो अभी एक महीना है। “

” एक महीना तो है लेकिन .. ” नारायण बाबू ने पत्नी को बेटे को न बताने का इशारा किया तो दीपक पिता की ओर देखकर बोला, ” आपको मेरी सौगंध पापा, बताइये, क्या बात है? बुआ को कोई प्राॅब्लम?

  “हाँ दीपक, हम उसी की बात कर रहें थें, तुम्हारी माँ अपने जेवर देवकी को देने की कह रहीं ….”

” पापा, मैं हूँ ना।मैं देश से बाहर गया हूँ, परिवार से नहीं।बुआ ने जो हम सब के लिए किया है, वो मैं कैसे भूल सकता हूँ।रुनझुन मेरी भी तो बहन है। उसकी शादी की पूरी ज़िम्मेदारी मेरी है।” कहकर उसने देवकी को फ़ोन लगाया और बोला कि बुआ, मैं हूँ ना, रुनझुन की शादी उसका भाई इतनी धूमधाम से करेगा कि लोग देखते रह जाएंगे।आपको किसी भी प्रकार की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मैंने छुट्टी की अर्ज़ी दे दी है, बहन को विदा करके ही वापस जाऊँगा बुआ।”

      दीपक ने हॅंसते हुए कहा तो देवकी खुशी- से रो पड़ी।नारायण बाबू पत्नी से बोले कि हमारे पुण्य-कर्मों का फल है कि हमें दीपक जैसा बेटा मिला है जो परिवार के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझता है और निभाता भी है। फिर तीनों बैठकर बारात, कैटरिंग, जेवर इत्यादि की प्लानिंग करने लगें। 

                                   विभा गुप्ता

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular