मैं अपने घरवालों के सामने कोई नाजायज़ मांग नहीं रख सकती –  शीनम सिंह

“अमित अपने ससुराल वालों से मदद मांगने में कैसी शर्म?? तू दामाद हैं उस घर का,आखिर उनका भी कोई फर्ज़ हैं तेरे लिए,4 पैसों की मदद कर देंगे तो वो गरीब नहीं हो जायेंगे,अब तू अपने भाई को ही देख ले जब भी पैसे की जरूरत होती हैं वो बेझिझक अपने ससुराल वालों से मांग लेता हैं और वो लड़की वाले होने के नाते दे भी देते हैं, तू भी उनसे बात कर और पैसों के लिए बोल देखना वो तेरी मदद जरूर करेंगे” विमला जी अपने बड़े बेटे अमित से बोली अमित का मन इस बात की गवाही नहीं दे रहा था,उसे लग रहा था कि ये गलत हैं। अपने भाई को सोच विचार करता देख रवि बोला,” क्या भैया??

इतना क्या सोच रहे हैं मांग लीजिए ना पैसे.. कब तक हम किराए की दुकान से काम चलाएंगे? अब समय आ गया है कि हम अपनी दुकान ले, जो दुकान हमने बड़े बाजार में देखी हैं वो मौके की जगह हैं उस जगह को हम ऐसे ही नहीं जाने दे सकते.. आप बोल दो अपने ससुराल वालों को कि अभी के लिए मदद कर दो,बाद में लौटा दूंगा, मैं भी यही बोलकर पैसे लेता हूं और एक दो बार नहीं कई बार ले चुका हूं,अब वो ठहरे बेटी वाले दामाद से पैसे मांगने की हिम्मत कभी नहीं करेंगे,किसी और से पैसे लेंगे तो पैसे लौटाने का झंझट रहता हैं इसीलिए पैसे ससुराल वालों से लो,ताकि पैसे वापिस भी ना करने पड़े” अमित पर मां और भाई की बातों का जादू चल गया और वो अपनी बीवी से बात करने कमरे में चला गया “मनीषा तुम तो जानती हो मैं और रवि बाजार में अपनी दुकान लेना चाहते हैं आखिर कब तक किराए की दुकान में व्यापार करते रहेंगे,दुकान का मालिक भी आए महीने किराया बढ़ाने की बातें करता हैं ऐसे में मैं और रवि चाहते हैं कि अब अपनी बड़ी सी दुकान खरीद ली जाएं,हर महीने किराए के पैसे भी बचेंगे और अपनी दुकान को हम जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकते हैं वर्ना दुकान में एक कील तक ठोकने से पहले मालिक से इज़ाजत लेने पड़ती है. ”

“ये तो बहुत ही अच्छी बात हैं अमित,हमारी आपकी दुकान होगी इससे अच्छा और क्या हो सकता हैं भला,लेकिन बड़े बाजार में तो इस समय दुकान का भाव बहुत ज्यादा चल रहा है इतने पैसे कहां से आयेंगे?? क्या मां बाबू जी मदद कर रहे हैं???” “मेरे और रवि की अपनी सेविंग तो कुछ ज्यादा नहीं हैं इसीलिए लोन पर पैसे उठाने पड़ेंगे,रवि के ससुराल वालों के पास मोटा पैसा है रवि के कहने से वीना ने अपने पिता जी से बात की तो वो पैसे देने को तैयार हो गए, मैं चाहता हूं तुम भी घर बात करो और अपने पिता जी से कहो हमारी कुछ मदद कर दें” अमित की बातें सुन मनीषा हक्की बक्की रह गई,अमित जानते थे कि मनीषा के घर की हालत कैसी है। मनीषा अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी थी,भाई और बहन दोनों कॉलेज में पढ़ रहे थे,पिता जी सरकारी विभाग में क्लर्क थे बस आमदनी इतनी थी कि जैसे तैसे गुजरा चल रहा था,मनीषा की मां भी सिलाई का काम करती थी ताकि 4 पैसे ज्यादा जुड़ सकें,ऐसे में अपने घरवालों से पैसे मांगना तो दूर वो तो उनसे पैसे लेने की सोच भी नहीं सकती थी। “मनीषा… मनीषा… अरे कहां खो गई??




मैं तुमसे इतनी जरूरी बात कर रहा हूं और एक तुम हो जो अपने ख्यालों में खोई हो,अपने पिता जी से बात करना और कहना थोड़ी बहुत मदद कर दे, मैं मुसीबत में हूं वर्ना तुम्हें ऐसे धर्म संकट में कभी नहीं डालता” इतना बोल अमित कमरे से बाहर जा ही रहा था कि मनीषा बोली,”रुकिए अमित, कुछ बातें साफ़ साफ़ कह दी जाएं तो सही हैं,मुझसे ये नहीं होगा.. मेरा स्वाभिमान मुझे इस बात की इज़ाजत नहीं दे रहा हैं… मैं सिर्फ़ आपकी बीवी ही नहीं किसी की बेटी भी हूं,बीवी होने के नाते मैं आपकी मदद करना चाहती हूं लेकिन मुझे बेटी होने के नाते अपने पिता का दर्द भी समझना होगा, मैं चाह कर भी उनकी मदद नहीं कर पाती लेकिन मैं इतना जरूर कर सकती हूं कि उनकी माली हालत को समझते हुए उन पर कोई अतिरिक्त बोझ ना डालूं,मुझे माफ़ करदो अमित.. मुझसे ये नहीं होगा… मुझे माफ़ करदो…” इतना बोल रोती रोती मनीषा ज़मीन पर बैठ गई मनीषा को इस तरह रोते देख अमित का मन आत्मगिलानी से भर गया वो बोला “मनीषा उठो.. उठो,एक पल के लिए भाई और मां की बातों में आकर मैं बहक गया था

और तुम्हारे आगे ऐसे फालतू की फरमाहिश रख दी,बिना ये सोचे कि इस फालतू की मांग को तुम्हारे माता पिता पूरी भी कर पायेंगे या नहीं,मुझे उनकी हालत भी समझनी चाहिए थी और अच्छा हुआ तुमने अपने दिल की बात खुल कर मेरे सामने रख दी अब मुझे भी एहसास हो रहा हैं कि अगर तुम उनसे पैसे मांगती तो मैं हमेशा के लिए उनकी नजरों में गिर जाता,तुम परेशान मत रहो मैं कोई और रास्ता निकलता हूं” “देखिए मेरे पिता जी ने मुझे भले ही धन दौलत देकर विदा नहीं किया लेकिन उन्होंने मुझे शिक्षा का उपहार जरूर दिया हैं, मैं नौकरी के लिए आवेदन दे देती हूं कहीं न कहीं बात बन जायेगी,हम बैंक से लोन ले लेंगे और धीरे धीरे करके अपना कर्ज़ा उतर देंगे,अमित मैं चाहती हूं हम जो करें अपने दम पर करें,जो बने अपनी मेहनत से बने,किसे से एहसान लेकर या किसी से पैसे लेकर नहीं,स्वाभिमानी व्यक्ति जो बनते हैं अपने दम पर बनते हैं किसी का एहसान लेना उन्हें बिल्कुल ग्वारा नहीं होता,अपना स्वाभिमान एक तरफ रख कर हाथ फैलाना ही जीवन की सबसे बड़ी गलती होती हैं ” “सही कह रही हो मनीषा,जब हुनर हैं तो किसी के आगे हाथ क्यों फैलाना..




हम अपने दम पर ही बहुत कुछ कर सकते हैं” ये बोलते समय अमित की आंखों में आत्मविश्वास झलक रहा था कुछ समय बाद अमित ने बैंक से लोन ले लिया और वो पैसा दुकान में लगा दिया।उधर मनीषा भी नौकरी करने लगी,तनख्वाह ज्यादा नहीं थी लेकिन जितना वो कमाती उससे अमित को काफ़ी सहारा मिलता समय के साथ अमित का बिजनेस भी अच्छा चल पड़ा था

उसने धीरे धीरे करके अपना सारा कर्ज़ उतार दिया जहां रवि अपने ससुराल वालों से पैसे लेकर हमेशा के लिए उनका कर्जदार हो गया तो वही अमित अपने ही बलबूते पर अपना नाम कमाने में लग गया कुछ समय बाद रवि के साले व ससुर को बिजनेस में नुकसान हो गया तो उन्होनें अपना दिया पैसा सूद समेत वापिस मांग लिया ,शुरुवात में तो रवि ने आनाकानी की लेकिन फिर उसे पैसे वापिस लौटने ही पड़े,एक दम से रवि पर काफ़ी बोझ पड़ गया था अपने भाई की हालत देख आज अमित को एहसास हुआ कि उसने ससुराल वालों से मदद ना लेकर बहुत अच्छा किया,इंसान जो अपने दम पर करता हैं वही सबसे अच्छा हैं वैसे भी जिंदगी अपने दम पर ही जी जाती हैं वरना दूसरों से एहसान लेकर इंसान हमेशा के लिए कर्जदार हो जाता हैं। दोस्तों जब भी एक लड़की को शादी के बाद किसी भी प्रकार की सहायता की जरूरत होती हैं तो सबसे पहले वो मायके की तरफ़ ही देखती हैं, हमें समझना होगा कि मायके वाले भी एक सीमा तक ही मदद कर सकते हैं, हर बार उन पर अपनी उम्मीदों का बोझ लाद देने से रिश्तों में एक दिन दूरियां आ जाती हैं आपको क्या लगता हैं लड़कीवालों पर हर बार रिश्तों के नाम अतिरिक्त जिम्मेदारियां लाद देना सही हैं?? क्या अपने स्वाभिमान को एक तरफ रखकर हाथ फैलाना सही हैं???

अपनी रॉय कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं 

शीनम सिंह

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