मैं अछूत नहीं हूँ… – संगीता त्रिपाठी

“क्या बात है रोहन…काव्या अभी तक उठी नहीं “वन्दना जी ने बेटे रोहन से पूछा।  

“माँ उठ तो गई है पर उसकी तबियत ठीक नहीं है,”रोहन बोला

“अरे क्या हो गया हमारी बहू रानी को.. देखूं जरा “कहते हुये वन्दना जी रोहन के बैडरूम में चली गई। काव्या के सर पर हाथ फेरते बोली “काव्या बेटा क्या हुआ “।

“घबराने की बात नहीं है मम्मी जी, वही पीरियडस् की मुश्किलें “काव्या ने कराहते हुये कहा।

अब तक प्यार से सर पर हाथ फेरते वन्दना जी दूर हट गईं, गुस्से से बोलीं “तुमने पहले क्यों नहीं बताया तुम्हारे पीरियडस् शुरु हो गया, अब मुझे फिर से नहाना पड़ेगा, तुमको छू लिया…, ओर हाँ काव्या तुम बेड पर नहीं उधर कारपेट पर सोना पांच दिन, ओर हाँ ना किसी को छूना ना रसोई में आना, कमरे से बाहर मत निकलना…”।

काव्या हैरान थी कहाँ तो मम्मी जी इतना लाड़ -प्यार जता रही थीं और पीरियड्स की बात सुनते ही गुस्सा हो गईं, आखिर वो भी तो एक औरत हैं ओर अच्छे से जानती हैं ये एक नैसर्गिक प्रक्रिया है, फिर औरत हो कर वो मेरा कष्ट ओर तकलीफ समझने के बजाय ढेरों नसीहत दे डाली। सिर्फ पीरियड्स की वजह से कोई अछूत कैसे हो जायेगा।

काव्या की आँखों में आँसू आ गये समझ गई सासु माँ दिखावे के लिये आधुनिक हैं बाकी सोच वही पुरानी है।फिर भी हिम्मत कर बोली “मम्मीजी मैं अछूत नहीं हूँ जो कारपेट पर सोऊँ, या अलग -थलग रहूँ “। सुनते ही वन्दना जी गुस्से से कमरे से बाहर चली गईं।

 

 

दर्द ज्यादा बढ़ गया तो काव्या रसोई में चली गई गर्म पानी लेने, सासु माँ ने उसे रसोई में देख हंगामा मचा दिया “अभी तो समझा कर आई थी कमरे के बाहर मत आना पर ये आजकल की लड़कियाँ कुछ माने तब ना,”काव्या शर्म से सर झुका कमरे में लौट आई, सासु माँ के हंगामे से सारा परिवार रसोई में आ गया और सबको काव्या की परेशानी का कारण पता चल गया।



काव्या की तकलीफ देख रोहन उसके पास गया, उसका हाथ अपने हाथों में ले कर बोला “काव्या मम्मी की बातों का बुरा मत मानना, वे पुराने ख़्यालात की है, उन्होंने जैसा देखा वही कर रही, मुझे बताओ तुम्हें क्या चाहिये जिससे तुम्हे दर्द से निजात मिले “

रोहन की बात सुन काव्या भावुक हो गई, जब जीवन -साथी समझदार हो तो फिर क्या डरना, उसने रोहन से गर्म पानी की बोतल सिंकाई के लिये मांगी। रोहन बाहर चला गया थोड़ी देर बाद इलेक्ट्रिक सिकाई पैड ओर चाय का कप लेकर हाजिर हो गया “काव्य चाय पीओ और बताओ कैसी बनी, हाँ ये पानी गर्म करके बोतल में भर कर सिकाई से अच्छा मै इलेक्ट्रिक पैड लाया हूँ तुम आराम से कमरे में इसे गर्म करके जब दर्द हो सिकाई कर सकती हो, इसके लिये रसोई में जाने की जरूरत नहीं है।”

पति के प्यार और परवाह से काव्या नतमस्तक हो चुकी थी, समझ गई जीवनसाथी सही मिला है जो उसकी तकलीफ को समझ रहा है।दूसरे दिन काव्या को सुबह -सुबह  कुछ  आवाज सुनाई दी, लगता है रंजना मौसी आई हैं।

“वन्दना… तुम चाय क्यों बना रही हो, आज हमारी काव्या रानी कहाँ है, हमें तो उसके हाथ की चाय पसंद आती है, और ये तुम्हारे चेहरे पर बारह क्यों बज रहा “रंजना बोली

“क्या बताऊं दीदी, काव्या के पीरियड्स शुरु हो गये तो सारे काम मुझे ही करना पड़ रहा, ये आजकल की पढ़ी -लिखी लड़कियाँ तो छुआ -छूत तो मानती नहीं, सुबह बहुत समझाना पड़ा, लगता है उसके मायके में छुआ -छूत मानते नहीं है तभी उसे कुछ पता नहीं, सुबह रसोई में आ गई थी “। वन्दना जी ने थके स्वर में बहन को बताया।

“अरे तो क्या हुआ, पीरियड्स ही आया है कोई छूत की बीमारी थोड़ी ना, जो रसोई में नहीं आ सकती, कमरे से बाहर नहीं आ सकती, तुम भूल रही हो जब तुम्हारी सास ये सब रोक -टोक करती थीं तो तुम्हे कितना बुरा लगता था, तब तुम कहती थी मैं अपनी बहू के ये मुश्किल दिन प्यार और समझदारी से आसान बना दूंगी, तुम सब भूल गई क्या, जो आज बहू की मुश्किल को और मुश्किल बना रही हो “रंजना जी ने बहन को डांटते हुये कहा।



“सही याद दिलाया दीदी, वही सुबह उसे डांटा तो था पर मन कचोट रहा था, पर वर्षों के नियम -क़ानून तोड़ भी नहीं पर रही हूँ “वंदना जी ने कहा

“नियम -क़ानून बच्चों की खुशी से बढ़कर है क्या “रंजना जी बोलीं।

“चलो दीदी काव्या के कमरे में ही चलते हैं उसको दर्द हो रहा तो वहीं बैठ कर गप्पें मारते हैं, मैं चाय बना कर लाती हूँ “वन्दना चाय बनाने चली गई, पानी गर्म करके बोतल में भरी और काव्या के कमरे में आ बोली “लो काव्या सिंकाई कर  लो और अदरक की चाय पियो तुम्हे आराम मिलेगा “

 “आपको कैसे पता मम्मी जी की मुझे ऐसे टाइम में अदरक की चाय से आराम मिलता है”, काव्या हैरान हो कर बोली।

“अब मैं तेरी माँ बन रही हूँ तो तेरी पसंद -नापसंद तो पता रखना होगा, कल समधन जी से बात हो रही थी तो वही बता रही थीं, मुझे माफ कर दे बेटा, मैं पुरानी वर्जना को तोड़ नहीं पर रही थी, पर कभी ना कभी तो किसी ना किसी को पहल करनी पड़ती तो मैने सोचा, मैं ही आज से तोड़ देती हूँ उन रूढ़ियों को जो बच्चों की खुशियों में ग्रहण लगाते हैं “वंदना ने उसके सर पर हाथ फेरते कहा।

“क्या माँ, बेटी भी बोलती है और माफ़ी भी मांगती है “काव्या ने वंदना के गले लगते हुये कहा।वंदना जी की ऑंखें भर आई, सच उन्होंने तो बहुत कष्ट सहा था फिर क्यों वही सब इस बच्ची को सहने को मजबूर कर रही थी। भला हो रंजना दी की जो सही समय पर उनकी गलती को सुधार दी।

दोस्तों, निसंदेह वो पांच दिन मुश्किल भरे होते हैं, शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से भी एक औरत कमजोर हो जाती है उसे अपनों का प्यार और परवाह चाहिये ना कि छुआ -छूत और रूढ़ियों की बेड़ियाँ… जो एक औरत को सामान्य होने नहीं देना चाहती और शर्मिंदगी का कारण बनती है। आप क्या कहती हो, वन्दना जी ने ये बेड़ियाँ तोड़ कर ठीक किया या नहीं…।

 —संगीता त्रिपाठी

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