परेश और माधवी दोनों एक ही दफ्तर में काम करते थे। परेश माधवी से सीनियर था।
उन दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगी थी और ये नजदीकियां अब प्यार में कब बदल चुकी थी, इसका उनको पता ही नहीं चल पाया। दोनों के परिवारों की सहमति से उन्हें विवाह के पवित्र बंधन में बांध दिया गया।
दोनों का वैवाहिक जीवन बड़ा ही सुखद बीत रहा था कि अचानक न जाने किस बात को लेकर आपस में कहा सुनी हो गई थी कि अब वे एक-दूसरे को देखना पसंद नहीं करते थे। उनके बीच मतभेद बढ़ता ही गया। अब बात तलाक़ तक पहुंच गई थी।
दोनों एक छत के नीचे रहते हुए भी अलग अलग रहने लगे थे। उन दोनों को उनके मित्रों और सहयोगियों ने आपस में मिल बैठकर हल निकालने की सलाह दी परंतु माधवी केवल तलाक़ लेने के पक्ष में थी।
एक दिन परेश को माधवी की ओर से तलाक़ पत्र मिला जो उसने अपने अभिभाषक द्वारा भिजवाया था। अब तो परेश की रही सही उम्मीद भी जाती रही। उसने बेमन से उस तलाक़ नामे पर हस्ताक्षर कर दिए।
आज उनके तलाक़ के मुकदमे का फैसला निचली अदालत द्वारा सुनाया जाना था। दोनों ही अपने अपने अभिभाषक के साथ अदालत पहुंच गए थे। माधवी की दृष्टि अचानक परेश के चेहरे पर पड़ी तो उसने देखा कि परेश की कातर दृष्टि मानों माधवी से कह रही हो ” माधवी वापस लौट आओ ” माधवी ने अपनी दृष्टि फेर ली थी।
न्यायाधीश अपना आसन ग्रहण कर चुके थे। उनके सामने मुकदमे की पत्रावली रखी जा चुकी थी। परेश की दृष्टि न्यायाधीश पर पड़ी तो वह चौंक पड़ा था। यह तो उसके बालपन का मित्र निशांत मिश्र था । जिसने कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद ला कालेज में प्रवेश ले लिया था।
परेश ने अपना ध्यान उस ओर से हटा लिया।
न्यायाधीश की दृष्टि जब पत्रावली पर पड़ी तो परेश के नाम को देखकर चौंक गए। वह सोच में पड़ गए थे कि परेश जैसा सीधे स्वभाव वाला शख्स अपनी पत्नी से ऐसा कुछ कह सकता है कि बात तलाक़ तक पहुंच जाए। फिर उन्होंने अपने फैसले में कहा कि तलाक़ हमारे समाज के लिए कोढ़ बन चुका है।
इसने विवाह के पवित्र बंधन को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया है। आज पति पत्नी जरा सी बात पर ही तलाक़ लेने की बात करने लगते हैं। वे तलाक़ के दुष्परिणाम नहीं जानते। यदि प्रत्येक परिवार के सदस्य यह शपथ लें कि वे उनके पुत्र और पुत्रवधू के मध्य गलत फहमी से उपजे मतभेदों को सुलझाने में सेतु का कार्य करेंगे तो परिवार टूटने से बचेंगे। इससे समाज में एक अच्छा संदेश जाएगा। इतना कहकर उन्होंने मुकदमा खारिज कर दिया।
अब माधवी की आंखें खुल गईं थीं और उसके कदम अपने पति परेश की ओर बढ़ गए।
दोनों खुशी खुशी अपने घर की ओर लौट चले।
विनय मोहन शर्मा
अलवर, राजस्थान