” देखिये सर मुझे आज के आज अपना अकाउंट मर्ज करवाना है इतने दिन हो गये चक्कर काटते हुए !” वसुधाजी बैंक कर्मी से बोली।
” मैडम आपको कहा ना सोमवार को आना !” बैंक कर्मी ने लापरवाही से कहा । इससे पहले की वसुधा जी कुछ बोलती अचानक एक लड़की ने आकर उनके पैरो को छुआ वसुधा जी के हाथ स्वतः ही आशीर्वाद देने को उठ गये। सारा स्टॉफ यहाँ तक कि बैंक मे आये लोग भी हैरानी से सब देख रहे थे।
” बेटा तुम कौन ?” उन्होंने उस लड़की से पूछा।
” मेम पहले आप अंदर आइये फिर बताती हूँ मैं !” वो लड़की वसुधा जी का हाथ पकड़ मैनेजर के कमरे की तरफ बढ़ गई और उन्हे आदर सहित कुर्सी पर बैठाया और स्टॉफ को बुला उनका काम करने को कहा।
“पर बेटा तुम हो कौन और मेरी मदद क्यो कर रही हो ?” वसुधा जी अभी भी हैरान थी।
” मेम आपने मुझे नही पहचाना मैं शालू हूँ याद है जब मैं आठवीं क्लास मे थी गणित मे कितनी कमजोर थी मेरी माँ घरो मे काम कर किसी तरह हमारा खर्च उठा रही थी आपने मुझे मात्र पचास रुपए मे ट्यूशन पढ़ाया और इतने अच्छे से पढ़ाया की गणित मेरा पसंदीदा विषय बन गया ।दो साल बाद आप तो वहाँ से चली गई पर मैने दिन रात एक किया और आज इस मुकाम पर आ गई !” वो लड़की बोली।
” अरे वाह बेटा तुम अपनी मेहनत के बलबूते यहाँ तक पहुंच गई बहुत खुशी हुई सुनकर !” वसुधा जी खुश होते हुए बोली।
“मेम ये आपकी वजह से संभव हुआ है वरना शायद मैं तो कबकी पढ़ाई छोड़ माँ की तरह घरो के काम कर रही होती !” शालू बोली।
” बेटा मैने तो बस तिनके का सहारा दिया था पहाड़ तो तुमने पार किया ना !” वसुधा जी उसे आशीष देती बोली।
” मेम वो तिनके का सहारा ही बहुत था पहाड़ पार करने को । वैसे एक बात तब समझ नही आई पर अब पूछना चाहती हूँ आप उस वक़्त हर बच्चे से 500 रुपए लेती थी तो मुझसे 50 रुपए क्यो लिए आप चाहती तो फ्री मे भी पढ़ा सकती थी क्योकि 50 रूपए का आपके लिए कोई महत्व नही था।” शालू ने पूछा।
” बेटा अगर मैं तुम्हे फ्री पढ़ाती तो तुम्हे और तुम्हारी मम्मी को शायद उसकी कीमत समझ ना आती क्योकि तुम्हारी मम्मी के लिए 50 रुपए भी मायने रखते थे इसलिए वो तुम्हे रोज मेरे पास भेजती थी और तुम भी अपनी माँ की मेहनत देख जी जान से पढ़ने लगी थी। बस इसलिए मैने तुम्हे फ्री मे नही पढ़ाया क्योकि कई बार उसका महत्व नही होता या सामने वाला शर्मिंदा भी हो सकता है इससे !” वसुधा जी ने समझाया।
” वाह मेम आज आपने एक और नई सीख दी मुझे मैं इसे भी याद रखूंगी कि किसी की मदद ऐसे करो जो ना तो मदद का महत्व कम हो ना इंसान शर्मिंदा हो !” शालू बोली। वसुधा जी का काम हो गया था तो वो शालू को घर आने का निमंत्रण दे और शालू का नंबर ले वापिस आ गई। आज उन्हे बहुत खुशी हो रही थी क्योकि उनका दिए तिनके के सहारे ने किसी की जिंदगी बना दी थी।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )
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