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मांग में सिंदूर क्या भर दिया मेरा स्वाभिमान खरीद लिया.!-निधि शर्मा 

“तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है तुम ये मत भूलो कि अब तुम मेरी पत्नी हो। एक लड़की की शादी के बाद जब उसकी सारी जिम्मेदारी उसके पति और ससुराल वालों की होती है तो लड़की पर पहला अधिकार भी सबसे पहले उसके पति का होता है। शादी के पहले तुम्हारी इच्छाएं तुम्हारे घर वाले पूरा करते थे अब मैं करता हूं, क्या मैंने कभी कोई कमी रखी तो हुआ न तुम पर मेरा पहला अधिकार.?” शिवांश अपनी पत्नी नेहा से कहता है। नेहा बोली “अच्छा मैं कोई सामान हूं जो आप मुझ पर अपना अधिकार जमा रहे हो…!! जो भी बातें आपने अभी-अभी कहीं वो किस वेद पुराण में लिखी हैं, क्या आपने इन सभी चीजों के लिए कोर्ट से या मुझसे सहमति ली थी..??

मांग में सिंदूर क्या भर दिया आपने मेरा स्वाभिमान खरीद लिया…! आप ये भूल गए आपने अगर मेरी जरूरतों को पूरा किया है तो मैंने भी अपने जीवन के 15 वर्ष आपके और आपके परिवार के नाम किया तो ज्यादा किसने किया इसका हिसाब लगाइए।” नेहा की सास विमला जी वहीं बैठी थीं वो बोलीं “हाय हाय बहू ये कैसी बातें कर रही हो कभी औरत भी अपने किए का हिसाब किताब लगाती है! ये तो तुम्हारा फर्ज था और शादी के बाद हर औरत पर उसके पति का अधिकार होता है, तुमने कुछ अनोखा नहीं किया जो तुम ऐसी बातें कैसे कर सकती हो..!” नेहा बोली “कम से कम गलत बात में अपने बेटे का पक्ष मत लीजिए मैं कोई सामान नहीं जो आपका बेटा मुझ पर अधिकार जमाए ! हिसाब से तो मेरे मां-बाप से जो दहेज दिया उस हिसाब से आपका बेटा मेरा गुलाम हुआ पर मैंने तो आज तक कुछ नहीं कहा?

गलती मेरी है अगर उस वक्त मैंने आवाज उठाई होती तो आज मेरी स्वाभिमान को यूं रौंदा न जाता।” विमला जी बोलीं “ये कैसी बात कर रही हो चार किताबें क्या पढ़ लीं और नौकरी क्या कर गई तुम्हारे जो पांव जमीन पर टिक नहीं रहे! सुन रहे हो शिवांश तुम्हारी बीवी क्या कह रही है, इसलिए मैं कहती थी गांव की लड़की से ही शादी कर लो। इसके तो सपने ही इतने बड़े हैं कि कहां से इससे समझौता होगा।” नेहा बोली “भूल जाइए आजकल गांव की लड़कियां कोई गंवार नहीं बल्कि शिक्षित हो चुकी हैं अपना अच्छा बुरा सब समझती हैं। मैंने ऐसा क्या कर दिया जो आप सब मुझ पर राशन पानी लेकर चढ़ गए.. ? मैं तो बस इतना ही बोल रही हूं कि मेरे माता-पिता को भी मेरी जरूरत है, मुझ पर उनका हक पहले है क्योंकि इस दुनिया में मुझे वो लेकर आए हैं। अगर आपको मुझ पर हक जमाना है तो भगवान से प्रार्थना कीजिए कि अगले जन्म मुझे इस बहू को बेटी बनाकर देना।” विमला जी बोलीं “बहू तुम्हें नहीं लगता तुम ज्यादा बोल रही हो! तुम्हारे माता-पिता की तुम अकेली संतान हो तो इसमें हमारा क्या दोष? एक तो बिना बताए तुम अपनी तनख्वाह आए दिन अपने माता-पिता को भेज देती हो, अब तुम अपने माता पिता को इस शहर में रखना चाहती हो! ये तो नहीं हो पाएगा बहू तुमने तो कुछ ज्यादा ही मांग लिया।”




शिवांश बोला “अरे नहीं मां ये तो चाहती थीं कि वो हमारे साथ रहें! जब मैंने कहा ये संभव नहीं होगा तो इसने उन्हें इस शहर में लाने की बात की बताओ क्या मैं घर जमाई बनूंगा। अगर वो इस शहर में रहेंगे और हमारे संबंधियों को पता चलेगा तो हमारी क्या इज्जत रह जाएगी? इसका पूरा ध्यान उन्हीं लोगों पर रहेगा तभी तो कह रहा हूं कि इस पर पहला हक मेरा है न कि इसके मायके वालों का।” उस दिन तो बात जैसे तैसे खत्म हुई कुछ महीने बाद फिर से नेहा के पिता को कीमोथेरेपी के लिए मुंबई जाना था। नेहा की मां सुनीला जी बेटी से बोलीं “बेटा अगर तुम्हारी जान पहचान का कोई है तो उससे बोलकर टिकट करवा दो मैं इन्हें अकेले छोड़कर कैसे जाऊं। तुम भी बार-बार परिवार को छोड़कर हमारे लिए परेशानी मत उठाओ मैं वहां सब कर लूंगी।” नेहा बोली “नहीं मां कोई परेशानी नहीं होगी।

मां बाप बच्चों के लिए इतनी परेशानी उठाते हैं तो क्या एक बेटी बाप के लिए इतना नहीं कर सकतीं। जहां तक मेरे परिवार की बात है परिवार की पूरी जिम्मेदारी क्या एक औरत पर होती है? पति पत्नी दोनों पर होती है क्या होगा अगर कुछ रोज के लिए ये बच्चों को संभाल लेंगे, आप चिंता मत कीजिए मैं टिकट करवा कर और छुट्टी लेकर आती हूं।” नेहा और उसकी मां की बात विमला जी ने सुनी उनसे जरा भी सब्र ना हुआ और उन्होंने दफ्तर फोन करके शिवांश को सारी बात बताई। जब शिवांश घर आया नेहा रोज की तरह उसकी पसंद का खाना बनाई थी, वो बोला “क्या बात है आज फिर कोई बात मनवाने के चक्कर में हो! अब ये मत कहना कि मायके जाना है या उन्हें यहां लाना है क्योंकि मैं तैयार नहीं हूं।” विमला जी मुस्कुरा रही थीं नेहा समझ गई वो बोली “आज्ञा की जरूरत छोटों को पड़ती है पति-पत्नी का रिश्ता तो बराबरी का होता है। जैसे आप को खाना खिलाकर मैं अपना पत्नी धर्म निभा रही हूं और आपको ये बताकर कि मैं एक हफ्ते की छुट्टी लेकर अपने पिता को मुंबई इलाज के लिए ले जा रही हूं वो एक पुत्री धर्म निभाऊंगी।” जैसे ही शिवांश तेज आवाज में बोलना चाहे वो धीरे से बोली “ध्यान रखिएगा मैं भी अपने स्वाभिमान के लिए आवाज ऊंची कर सकती हूं।

बच्चे घर पर हैं इसलिए चुप हूं वरना आज जो आप करेंगे कल वही इनसे पाएंगे।” उसने प्यार से बच्चों को खाना खिलाया और उन्हें कमरे में भेज दिया। अगले दिन विमला जी ने नेहा को बिना बोले सुनीला जी को फोन किया और बहुत कुछ बोली। सुनीला जी बेचारी कहतीं भी तो क्या कहतीं उन्होंने बेटी को आने से जब मना किया तो नेहा समझ गई पर उसने किसी की एक नहीं सुनी। जब पति ने कहा कि “अगर तुम वहां गई तो मैं तुम्हें कभी लेने नहीं आऊंगा!” नेहा मुस्कुराते हुए बोली “मर्दों का ये आखरी हथियार होता है जिसे वे आखिरी वक्त पर अपनी पत्नी के स्वाभिमान को ठेस पहुंचा पहुंचाकर फिर इसका इस्तेमाल करते हैं।” शिवांश बोला “मैं मजाक नहीं कर रहा।” नेहा बोली “मैं भी मजाक नहीं कर रही हूं। शादी को 15 साल हो गए मैंने आपको पत्नी का सुख दिया, पिता बनने का सुख दिया, आपके घर परिवार को संभाला और नौकरी करके आपना सहयोग दी। मुझे लगता है इतनी जिम्मेदारी और इतना समय एक औरत के लिए बहुत होता है, आप भूल रहे हैं मैं मां, पत्नी होने से पहले एक बेटी हूं। आप अपने बच्चों को संभालिए मैं अपने पिता को संभालने जा रही हूं,बस जब बच्चे आपसे सवाल करें तो उन्हें सच्चाई बताइएगा आपको आपका जवाब मिल जाएगा।”




इतना कहकर वो चली गई। नेहा ढाई घंटे में अपने माता-पिता के पास पहुंची और उसी रात की फ्लाइट से पिता को मुंबई ल गई उन्हें किमो दिलवाया और दो रोज बाद वापस मायके लौट आई। मां बोली “अब तुम अपने ससुराल वापस जाओ तुम्हारे बिना वहां बच्चों को परेशानी होगी।” नेहा बोली “बच्चों की जिम्मेदारी क्या बस एक औरत की होती है, क्या औरत पर बस उसके पति का अधिकार होता है पत्नी का कोई स्वाभिमान नहीं होता? एक औरत का भी तो अपने मन पर और खुद पर अधिकार होता है। कुछ वक्त उन्हें मेरे बिना ही संभालने दीजिए कुछ मर्दों को हर चीज आसानी से मिल जाती है जिसके कारण वो औरतों की कद्र करना भूल जाते हैं।”

दो-तीन दिन में ही शिवांश और विमला जी की हालत खराब हो गई बच्चों के सवालों का जवाब वो दे नहीं पा रहे थे। नेहा की बेटी प्रिया (12) उसने अपनी मां को फोन किया और सारी बात बताई नेहा ने उसे समझाया प्रिया उस दिन तो शांत हो गई। अगले दिन वो अपने छोटे भाई का काम कर रही थी तो शिवांश बोले “मेरी बेटी तो बड़ी हो गई अपने भाई का भी ध्यान रखती है।” प्रिया बोली “मैं इसका ध्यान रखती हूं पर इस पर कभी अपना अधिकार नहीं दिखाऊंगी।” विमला जी बोलीं “देख रहे हो ये सब जरूर इसकी मां ने इसे सिखाया होगा।” शिवांश बोला “नहीं मां कोई भी मां अपने बच्चों को गलत बात नहीं सिखाती। हो न हो हम जो कर रहे हैं उसीका ये असर है, बच्चे कहते नहीं पर देखकर वो सब समझते हैं।




मेरी ही गलती है जो बात में इतनी रोज से समझ रहा था मेरी बेटी कि कुछ बातों ने मुझे समझा दिया। आप सोचिए कल को अगर नेहा के पिता की जगह मैं रहा तो मुझे कैसा लगेगा।” शिवांश ने अपने एक दोस्त को उसी शहर में सास ससुर के लिए घर ढूंढने को कहा और शाम में नेहा को फोन करके बोला “मैं नाराज क्या हुआ तुम तो मुझे भूल गई। 15 साल का साथ क्या इतना कमजोर होता है कि साथी अगर भटक जाए तो क्या अगला उसे भूल जाता है।” नेहा बोली “मैंने तो खुद पर और अपनी हर खुशी पर आपको पूरा अधिकार दीया पर आपने खुशी और अधिकार चुना और जिम्मेदारी और मेरे स्वाभिमान को भूल गए…!

आज जरूर बच्चों ने आपसे कुछ ऐसा कहा होगा जिसके कारण आपको एहसास जागा। काश कि आप मेरी जगह रह कर देखते तब आपको परिस्थिति समझ में आती।” शिवांश को अपनी गलती का एहसास हो चुका था विमला जी को थोड़ा वक्त लगा आखिरकार उन्हें मानना ही पड़ा। शिवांश बड़े आदर के साथ नेहा को वापस लेकर आया और कुछ महीनों बाद उसके साथ जाकर एक घर उसके मां-बाप के लिए लिया और वक्त रहते उन्हें शिफ्ट किया ताकि नेहा परिवार और माता-पिता दोनों को संभाल सके। दोस्तों ऐसा क्यों होता है कि एक लड़की के विवाह के बाद उसके पति या ससुराल वाले उसे अपनी जायदाद समझने लगते हैं..! मांग में सिंदूर भर देने से क्या पति पत्नी के स्वाभिमान को खरीद लेता है, क्या उसकी पत्नी का उसके माता पिता के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं होती..? आपको ये कहानी कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें। कहानी को मनोरंजन एवं सीख समझ कर पढ़ें कृपया अन्यथा न लें बहुत-बहुत आभार

#स्वाभिमान 

निधि शर्मा 

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