माफी (कहानी) – डाॅ संजु झा

अनिता मूँदीं आँखों से अस्पताल के बिस्तर पर लेटी-लेटी अपनी जिन्दगी का लेखा-जोखा लगा रही थी।उसकी आँखों के कोर से आँसू बह रहे थे।उसी समय हरी मखमली घास -सी  डाॅक्टर  बेटी नीरा की शीतल छुअन उसके तन-मन को शीतल कर गई। पश्चाताप उसकी आँखों से आँसू बनकर बह रहा था।उन आँसुओं ने उसे बेटी नीरा से माफी माँगने पर मजबूर कर दिया।अनिता भावुक होकर नीरा का हाथ पकड़कर कहती है-“बेटी!मुझे माफी दे दो।मैं तो बेटे की चाहत में तुझे दुनियाँ में लाना ही नहीं चाहती थी और तुमने आज साबित कर दिया कि बेटियाँ बेटों से किसी स्तर पर कम नहीं हैं!”

नीरा माँ के आँसुओं को पोंछते हुए कहती है-“माँ!आप तो बहुत बहादुर  हो।आप तो कहती थीं कि आपका दिल बहुत कमजोर है,परन्तु आपके दिल का अच्छी तरह ऑपरेशन हो गया और आप खतरे से बाहर हैं।”

अनिता -“बेटी!मेरा दिल तुम चारों बहनों के कारण मजबूत हो गया है।मेरे गुनाहों की  एक बार माफी दे दो।”

नीरा माँ के सिर  को सहलाते हुए कहती है -“माँ!जो गुजर गया वो अतीत  था।आप दोनों के प्यार की बदौलत  ही आज हम चारों बहनें काबिल  बन पाईं।माता-पिता माफी माँगते हुए अच्छे नहीं लगते हैं।आप आराम  करो।मैं राउंड पर जाती हूँ।आप ज्यादा मत सोचना।”

अनिता गर्वभरी नजरों से डाॅक्टर  बेटी को जाते हुए  देखती है।एक बार फिर  से अतीत  उसके मन के दरवाजे से झाँकना शुरु कर देता है।जीवन का सफर भी कितना अजीब  है?जीवन  में कितना कुछ घटित  हो जाता है!अचानक कभी खुशी कभी गम में बदल जाती है,तो कभी गम के बीच  खुशियों का सोता फूट पड़ता है।अनिता शादी के तीन साल बाद माँ बननेवाली थी।प्रत्येक औरत की भाँति उसका चेहरा भी माँ बनने की खुशी से दमक रहा था,परन्तु होनी को कुछ और ही मंजूर था।सबकुछ नार्मल होते हुए  भी प्रसव के समय भारी गड़बड़ी हो गई,जिसके कारण उसकी पहली संतान बेटी की जान चली गई। डाॅक्टरनी ने माफी माँगते हुए कहा था -“देखो! अनिता, मुझे समझ में आ गया कि तुम्हें कभी भी नार्मल बच्चा नहीं हो सकता है।मुझे भी नार्मल की राह न देखकर ऑपरेशन  ही करना चाहिए था।अब मैं तुम्हें लिखकर यह कागज देती हूँ ,जहाँ कहीं भी तुम्हारा प्रसव होगा,ये कागज तुम डाॅक्टर को दिखा देना। ऑपरेशन के द्वारा तुम्हें सही-सलामत बच्चे होंगे।”




एक साल तक अनिता संतान  वियोग की दुःसह पीड़ा भोगती रही,परन्तु ईश्वर की कृपा से अगले साल उसने ऑपरेशन द्वारा स्वस्थ और प्यारी-सी बच्ची को जन्म दिया।बच्ची के आगमन से उसके शाँत घरौंदे में जैसे बहार आ गई। उसका बुझा हुआ चेहरा मातृत्त्व की चमक से दमक उठा।दो-दो साल के अन्तराल पर ऑपरेशन  द्वारा ही उसने और दो बेटियों को जन्म दिया।तीन बेटियों के आगमन से उसका घर रूपी गुलशन गुलजार हो उठा।उसके जीवन की बगिया सुवासित  हो उठी।उसके पति भी बेटियों से काफी प्यार  करते थे।उन्होंने बेटियों के कारण कभी अनिता से कोई  शिकायत  नहीं की।ससुराल में सास नहीं थी। जेठ-देवर सभी पढ़े-लिखे थे,इस कारण किसी ने बेटियों के कारण अनिता को ताना नहीं मारा।

अनिता अपने जेठ और देवर के बेटे को देखकर खुद को कोसते हुए  पति से कहती -” सुनो जी!मैंने एक भी बेटे को जन्म  नहीं दिया।हमारी मुक्ति कैसे होगी?”

उसके पति उसे समझाते हुए  कहते-“अनिता ये सब पुरानी बातें हैं।हम अपनी बेटियों को ही पढ़ा-लिखाकर काबिल  बनाऐंगे।”

अनिता के खुद के मन में एक बेटे की प्रबल आकांक्षा थी।यहाँ तो सास-ननद का ताना भी उसके लिए  बहाना  नहीं था।सास-ननदें तो कभी-कभी यूँ ही बदनाम हो जाती हैं।उसने एक बेटे की चाह में उपवन जैसे जीवन  को काँटों की सेज बना दिया।हमेशा जिन्दगी से निराश  रहने लगी।आखिर  चौथी बार रिस्क लेते हुए उसने एक और बच्चे को जन्म देने का मन बनाया।गर्भवती होने पर उसने चोरी-छिपे भ्रूण का लिंग-परीक्षण करवाया।उस परीक्षण  में भी अगली संतान बेटी ही थी।उसने डाॅक्टर से अनुनय करते हुए कहा -” मैडम!मुझे और बेटी नहीं चाहिए। इसे नष्ट कर दीजिए। “

डाॅक्टर ने  उसे समझाते हुए कहा-“देखो अनिता!भ्रूण चार महीने का हो चुका है।इसे ऑपरेशन द्वारा ही नष्ट किया जा सकता है।वैसे भी तुम्हारे लिए  चौथी बार  पेट खोलना खतरे से खाली नहीं है।” 

परन्तु अपनी जिद्द पर अड़ी अनिता ने  डाॅक्टर  से कहा -“मैडम!कुछ भी हो जाएँ,परन्तु मुझे और बेटी नहीं चाहिए।”

उसकी जिद्द को देखते हुए  डाॅक्टर ने  नर्स के साथ मिलकर  ऑपरेशन की तैयारी शुरु कर दी।ऑपरेशन टेबल पर लेटे-लेटे अनिता नर्स और डाॅक्टर की बातें सुनने लगी।

डाॅक्टर  -” सिस्टर!भ्रूण काफी बड़ा हो गया है।इस कारण काफी सावधानी रखनी होगी।हो सकता है कि भ्रुण को टुकड़ों में काटकर निकालना पड़े।”

उनका वार्तालाप सुनकर अनिता का अन्तर्मन दहल उठा।वह  स्वंय को अपनी बच्ची का कातिल समझने लगी।एक ही झटके में ऑपरेशन टेबल से उतरकर उसने डाॅक्टर से कहा -” मैडम!मैं अपनी संतान की कातिल नहीं बनूँगी।अपनी जान की चौथी बार  रिस्क लेकर ऑपरेशन द्वारा मैं इस बच्ची को जन्म दूँगी।”




डाॅक्टर ने उसकी सराहना करते हुए  उसे घर जाने की अनुमति दे दी।समय  पूरा होने पर उसने ऑपरेशन द्वारा चौथी बेटी नीरा को जन्म दिया।जीवनसाथी और बेटियों के साथ उसके जीवन में सुख की बरसात  हो रही थी और देखते-देखते समय पंख लगाकर उड़ चला।

उसी समय मरीज से छुट्टी पाकर नीरा माँ के पास आकर बैठती है।बेटी की खुशबू पाकर अनिता आँखें खोलकर एकटक उसे देखने लगती है।मन-ही-मन एक बार  भगवान से माफी माँगते हुए कहती है-” हे ईश्वर!मुझे माफ कर देना।आपके द्वारा दी हुई  इतनी खुबसूरत नेमत को मैं दुनियाँ में आने से रोक रही थी!”

बेटी को सामने पाकर  आँसुओं का सैलाब  रोकना उसके लिए मुमकिन नहीं था।वह कसकर बेटी के दोनों हाथ पकड़ लेती है।नीरा भी माँ के गले लग जाती है।दोनों का मन हल्का हो चुका था।उनके हृदय में उमंगों की बौछारें हो रहीं थीं।

समाप्त। 

लेखिका -डाॅ संजु झा(स्वरचित)

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