“माँ” –  ऋतु अग्रवाल

   वो तड़पती ही रह जाती थी जब कोई अक्सर उसे बाँझ कह देता।शादी के आठ वर्षों बाद भी वो नि:संतान थी। दो-तीन सालों तक तो ध्यान नहीं दिया। पर फिर मन अकुलाने लगा उन नन्हें हाथों की छुअन के लिए जो सहला देते उसके अंतर्मन को।

तरस जाते कान उन मीठी किलकारियों के लिए जो मधुर घंटी सी उसके अशांत मन को शांत कर देती।

   फिर कुछ अपनी चाह और कुछ परिवार वालों का दबाव उसे डाक्टरों के चक्कर कटवाने लगे। एक के बाद एक न जाने कितने ही डाक्टरों के पास गई वो पर सभी ने हाथ खड़े कर दिए। जन्मजात खामियों के चलते वो गर्भ धारण न कर सकती थी।

    सरोगेसी के लिए मन न माना। बच्चा गोद लिए जाने के विचार को ससुराल वालों ने सिरे से खारिज कर दिया।पति को स्नेह था उससे सो वो तो कुछ न कहते थे पर ससुराल वाले,रिश्तेदार, पड़ोसी कभी भी उसका दिल दुखा दिया करते।पर पति का स्नेह और माता-पिता का हौंसला उसे टूटने से बचाये रखता।


    अपने आप को घर बाहर के कामों में व्यस्त रखती।कभी दिल में हूक उठती भी तो गुसलखाने में जाकर रो लेती पर किसी के सामने कमज़ोर न पड़ती। यूँ ही दिन कटते जा रहे थे।

    “अरी, ओ राधा! यहाँ तो आ। ये तेरी बेटी है।” घर के बगीचे में पाँच-छह साल की साँवली सी बच्ची को मिट्टी में खेलते देखकर वो ऊँची आवाज़ में बोली।

    “जी,दीदी!ये मेरी चौथे नंबर की बिटिया है।”

राधा ने डरते डरते कहा।

   “चौथे नंबर की…..?””कितने बच्चे हैं तेरे?”

    ” जी, पाँच” “तीन लड़कियाँ और दो लड़के।”

   “इसे स्कूल नहीं भेजती।”

   “ना, दीदी।इतना हमारा हिसाब नहीं।बस दोनों लड़के ही स्कूल जाते हैं। बड़ी लड़की घर का कामकाज देख लेती है और ये दोनों छुटकी वाली घर पर ही रहती हैं।”

   वो अचंभित सी सोचती रह गई। फिर न जाने क्या सोचकर उसने उस छोटी लड़की के हाथ-मुँह साफ कर दिए, बाल सँवार दिए और आँखों में काजल लगा दिया।बच्ची निखर सी गई। अब वो रोज उस बच्ची को घर बुलाने लगी। कभी कोई फ्राक ले आती कभी रंग बिरंगी चिमटियाँ।

   “राधा, इसका दाखिला स्कूल में करा दे।इसकी पढ़ाई का खर्च मैं उठाऊँगी।”

   राधा घबरा गई “क्या,दीदी?आप हमारी बिटिया को गोद लेना चाहती हो।इसके बापू न मानेंगे।”


  “नहीं,तू गलत समझ रही है।मैं इसे गोद नहीं ले रही।ये तेरी ही बिटिया रहेगी।बस मेरे संरक्षण में बड़ी होगी।मैं भला तुझसे तेरी बेटी को अलग कर सकती हूँ? बच्चा न होने का दर्द मुझसे बेहतर कौन जान सकता है?”

   “दीदी,आप का दिल बहुत बड़ा है,अभी तक तो यशोदा माई के बारे में सुना ही था।आज देख भी लिया”राधा ने हाथ जोड़ लिए।

   उसके पति दूर खड़े उसके मातृत्व को नमन कर रहे थे।

    ऋतु अग्रवाल

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