” माँ ने जब बेटे के दर्द एवं दुःख को उसका हौसला बना दिया !” – ज्योति आहूजा 

गर्वित स्कूल से घर वापस आते ही बहुत उदास होता है। उसे उदास देखकर घर के सभी लोग उसे पूछने लगते हैं “क्या हुआ बेटा? बताओ तो सही। बहुत उदास नजर आ रहे हो।”

तभी गर्वित कहता है आप सबको पता है! थोड़े दिनों के बाद हमारे स्कूल में स्पोर्ट्स कंपटीशन (खेल प्रतियोगिता) रखा गया है। आपको तो पता ही है मुझे स्पोर्ट देखने और खेलने का कितना शौक है। परंतु! ऐसा कहकर उदास मन से अपने पैरों की तरफ देखने लगता है!

उदास होता भी क्यों ना। सीधा नहीं चल पाता था दौड़ना तो बहुत दूर की बात थी। टेढ़ा और धीरे चलने वाला बच्चा कहां स्पोर्ट्स कंपटीशन में भाग लेने का सोच सकता था। 

दरअसल  गर्वित को एक समस्या थी। उसके पैर सामान्य पैर नहीं पूर्णतया अंदर की तरफ मुड़े हुए थे जिसे क्लब फुट कहते हैं। इसमें जन्म से ही बच्चे के पैर (कंजाइटल क्लब फुट) काफी मुड़े हुए होते हैं जिससे वह अपना संतुलन ठीक से नहीं बना पाता। ऐसे बच्चों को जूते पहनने के बाद भी संतुलन बनाने में काफी दिक्कत होती है।

हालांकि बहुत मामलों में यदि क्लब फुट होता है तो बच्चे के पैदा होते ही आजकल डॉक्टर द्वारा इलाज शुरू कर उसे ठीक करने की कोशिश की जाती है परंतु इसके भी कई प्रकार होते हैं एवं गर्वित की स्थिति सामान्य से थोड़ा ऊपर ही  थी, जानकारी का भी थोड़ा अभाव था तो उसका इलाज समय से नहीं हो पाया!और समय निकलता गया!

स्कूल में स्पोर्ट्स कंपटीशन का सुनकर गर्वित को खुशी की बजाए दुख का अनुभव हुआ। अन्य बच्चों की भांति वह स्पोर्ट्स कंपटीशन( रेस)में हमेशा की तरह इस बार भी भाग नहीं ले पाएगा।ऐसा सोच के वह बहुत ही उदास हो गया था।

किसी से बिना बात किए हुए अपने कमरे में उदास मन से चला गया। तभी उसकी मां अनुराधा कमरे में आती है। और उसे कहती है। क्या हुआ मेरे प्यारे बेटे को। उदास है। इस बार भी स्पोर्ट्स कंपटीशन में मेरा बेटा भाग नहीं ले पा रहा है इसलिए उदास है।

उदास नहीं होते मेरे बच्चे। हिम्मत नहीं हारना। इस बार तुम भाग लोगे। जरूर लोगे। अनुराधा ने बेटे  को कहा!




चल फटाफट से कपड़े बदल और मेरे साथ बाहर मैदान में चल तुझे कुछ दिखाना है! अनुराधा ने बेटे गर्वित से कहा!

 

नहीं मम्मी मेरा मन नहीं है उदास हुए बेटे ने मां से कहा! चल तो सही बच्चे! मां बेटे से कहती है और उसे अपने घर के पास वाले मैदान में ले आती है!

वहां पर पक्षियों का एक झुंड आसमान में विचरण कर रहा था! कुछ नन्हे पक्षी पेड़ों पर बैठे थे और कुछ पक्षी उड़ान भर रहे थे!

 

बेटा तू इन पक्षियों को देख रहा है! अनुराधा ने बेटे गर्वित से कहा!

हाँ माँ! पर बताओ तो सही ! आप क्यूँ मुझे  इन्हें दिखा रहे  हो!दस वर्षीय गर्वित ने बहुत मासूमियत से मां से कहा!

देख इन नन्हे पक्षियों को! इनमें से कुछ ऐसे हैं जो अभी उड़ना भी नहीं सीखें फिर भी पल पल कोशिश करते हैं कि हम आसमान की सैर करें! इनमें से कुछ ऐसे भी होंगे जो घायल है, फिर भी हिम्मत नहीं हारते !निरंतर विचरण करते हैं स्वच्छंद आसमान में उस नन्ही चिड़िया को देखो हौसले की उड़ान भरना सिखाती है यह, नन्ही चोंच में  चुग दाना,मीलों सफर तय कर, अपने नन्हें की भूख मिटाती है यह!!”

मेरी बात का मतलब समझ में आया तुझे अनुराधा ने बेटे से कहा!

मां की कुछ बातें गर्वित को समझ में आ रही थी और कुछ नहीं!

तभी माँ ने  बेटे को समझाते हुए  कहा”मैं तेरे साथ हूं मेरे बच्चे। तू कोशिश कर। क्या हुआ अगर तेरे पैरों में दिक्कत है। तू फिर भी कोशिश कर बेटा। मैं कल  से ही तेरे साथ प्रैक्टिस के लिए चलती हूं।

तू एक बार गिरेगा। दो बार गिरेगा। बार-बार गिरेगा।  फिर एक पल ऐसा आएगा जब तू अपना संतुलन सही से बना कर चलेगा, थोड़ा भागेगा और  लोगों के लिए एक मिसाल कायम करेगा। हौसले बुलंद रख बेटा। तेरे हौसले ही तुझे अपनी मंजिल तक पहुंचाएंगे। हौंसले को उड़ान दे बेटा। हम कई दिन लगातार प्रैक्टिस करेंगे!

मां की ऐसी उत्साहवर्धक बातों को सुनकर बेटे के उदास मन में आशा की एक किरण जाग उठती है। उसके मायूस चेहरे पर कलियों जैसी मुस्कान आते देख मां के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।




बच्चे की कोमल मुस्कान को देख मां के मुख से निकले सुनहरे शब्द उसके अपने बच्चे के प्रति असीम प्रेम को दर्शा रहे थे वे शब्द थे” तेरी इक मुस्कान की खातिर मैं कुछ भी कर जाऊँगी,

मैं माँ हूँ, तेरी जीवन नैया को मैं अवश्य पार लगाऊंगी!!!

मां ने फैसला कर लिया था कि इस बार वह हार नहीं मानेगी ना ही अपने बेटे को हार मानने देगी। जिंदगी हर घड़ी एक नई जंग है! परंतु असली बाजीगर वही है जो घबराता नहीं है कोशिश करता रहता है!

अगले दिन स्कूल से घर वापस आने के बाद जैसे ही गर्वित अपने कमरे में आता है। उसे एक नए प्रकार के जूते देखने को मिलते हैं। वे जूते उसकी मां ने खास उसके पैरों के हिसाब से बनवाए थे। हालांकि मां जानती थी कि यह जूते बेटे को हौसला देने के हिसाब से ही उसने खरीदे या बनवाए हैं परंतु वह किसी भी हालत में इस बार अपने बेटे को उदास होते हुए नहीं देख सकती थी! मां जो ठहरी!

जूते देखकर गर्वित की आंखों में चमक आ जाती है और अब उसे स्पोर्ट्स कंपटीशन में भाग लेने का सपना साकार होता नजर आता है।

उसी शाम को सभी को चाय देने के बाद अनुराधा गर्वित को कहती है। “हां !तो मेरा सिपाही तैयार।

इतने में गर्वित कहता है। बिल्कुल तैयार।

और दोनों मां बेटा पास के एक मैदान में अभ्यास के लिए चल पड़ते हैं।

अभ्यास के दौरान गर्वित को बहुत तकलीफ होती है। पहला दिन तो मानो रेस में भाग लेना असंभव सा प्रतीत हो रहा था। पर मां के विश्वास को देखते हुए गर्वित ने अपना विश्वास नहीं खोया।और गर्वित के विश्वास को देखते हुए मां का विश्वास अटल होता गया।

अगले ही दिन स्कूल में गर्वित ने स्पोर्ट्स कंपटीशन में अपना नाम दर्ज करा दिया। पहले तो स्कूल में उसके भाग लेने पर बिल्कुल मनाई कर दी गई। परंतु उसके अटल विश्वास के कारण स्कूल की प्रधानाचार्य ने आखिरकार हां कर ही दी!

 




उसके बाद प्रतिदिन काफी दिनों तक अभ्यास जारी रहा।

आखिरकार स्पोर्ट्स डे आ ही गया।

“उस दिन पूरा परिवार गर्वित का हौसला बढ़ाने उसके साथ स्कूल आया हुआ था।

जिस जज्बे के साथ गर्वित ने स्पोर्ट्स कंपटीशन में भाग लिया। वह देखने लायक था।सब बच्चे बहुत तेज गति से भाग रहे थे। और वह उनसे काफी पीछे था। परंतु उसका उस रेस में जोश के साथ चलने के समान भागना भले ही वह बहुत धीमी गति से हो उसकी मां और उसके पिता के लिए जीत से भी बढ़कर था। वहाँ  बैठे सभी दर्शक तालियों की गूंज से उसका स्वागत कर रहे थे।

मां ने बेटे को  आकर  जोर से गले लगा लिया था। दोनों के नैनों से मोती रूपी अश्रु की धाराएं बह रही थी।

मां के हृदय से एक ही आवाज आ रही थी हार कर भी जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं और मेरा बेटा बाजीगर है!

शाबाश मेरे बेटे। तूने कर दिखाया। तू बाजीगर है बाजीगर !मां ने बेटे को शाबाशी देते हुए कहा। और उसके माथे को चूम लिया




स्टेडियम में बैठे हुए प्रत्येक व्यक्ति के लिए गर्वित ने एक मिसाल कायम की थी।

गर्वित और उसकी मां का जिंदगी जीने का सकारात्मक नजरिया सबको एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर गया।

स्कूल के प्रधानाचार्य ने गर्वित के बुलंद हौसले को देखते हुए उसे एक ट्रॉफी से भी नवाजा।

बाद में कुछ समय के बाद उसका इलाज हुआ।जिससे कुछ हद तक उस समस्या का निदान हुआ। क्योंकि तब तक परिवार को भी इस चीज की जानकारी हो गई थी कि कैसे कहां इलाज कराना है!

जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया गर्वित को आगे चलकर कदम कदम पर चुनौतियों से लड़ने की शक्ति देता गया। यही उसकी असली जीत थी!

दोस्तों इस कहानी के माध्यम से यही बताने की कोशिश की गई है कि चाहे किसी भी प्रकार की परिस्थिति क्यों ना हो हर मां अपने बच्चे की खातिर कुछ भी कर सकती है!  बच्चे के दर्द को माँ पिता के अलावा कोई नहीं समझ सकता!भगवान के बाद मां का स्थान सर्वोच्च है!

 

“कठिन संघर्ष के बाद देती है नारी, नए जीव को जीवन दान,

 

तभी तो कहलाती है” माँ “धरती पर ईश्वर का दूजा नाम!!”

 

जिस प्रकार इस कहानी की नायिका अनुराधा का सकारात्मक नजरिया उसके बच्चे गर्वित को भी सकारात्मक दिशा दिखा गया और उसके जीवन को बदलने में योगदान कर गया! योगदान कि हां मैं कोशिश कर सकता हूं, मैं काबिल हूं कि कुछ कर पाऊं! दोस्तों कई बार बच्चे चाहे बड़े हो जाएं चाहे वह छोटे हो साधारण सी छोटी-छोटी बातों पर भी यदि घबरा जाते हैं कि यह काम उन से नहीं होगा तो हर मां का अपने बच्चे से यह कहना कि तू मुश्किलों से डरना नहीं कठिनाइयों से घबराना नहीं हर बच्चे के लिए ढाल का कार्य करता है! हर माता-पिता का अपने बच्चे से यह कहना कि विश्वास है तुझ पर  कि तू कर सकता है बच्चे को एक शक्ति प्रदान कर जाता है! भले किसी भी प्रकार की स्थिति क्यों ना हो!  मां का बच्चे के प्रति  प्यार और विश्वास का मरहम ही काफी है!

 

आपको यह कहानी कैसी लगी। पढ़कर अवश्य बताइएगा।

ज्योति आहूजा 

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