मां की सारी जिम्मेदारी सिर्फ मेरी क्यों?? –  सविता गोयल

” बहन  ….. बहुत दिन हो गए माँ को मेरे पास रहते हुए । तूं भी तो उनकी बेटी है फिर सारी जिम्मेदारी सिर्फ मेरे सर पर क्यों ?? उनके चलते हर दिन मेरे घर में क्लेश रहने लगा है  …. अब कुछ दिनों के लिए माँ को तूं अपने घर ले जा । ,, आज सुधा ने कड़क लहजे में अपनी छोटी बहन मधु से कहा तो मधु गुस्से से भर गई ।

” दीदी…. साफ- साफ क्यों नहीं कहतीं कि माँ अब आपपर बोझ बन गई है । आपको तो पता है मैं नौकरी करती हूँ  , ऐसे में माँ का ख्याल कैसे रखूंगी  ????  हां…आपको अगर पैसे चाहिए तो बोल दीजिये  …… । ,,  मधु ने व्यंगात्मक लहजे में कहा।

” चुप कर मधु….. , बात सिर्फ पैसों की नहीं है । माँ का खर्चा तो मैं भी उठा सकती हूँ  । बस  मैं नहीं चाहती कि माँ के यहाँ रहने से मेरी गृहस्थी बिखर जाए  । ,,

सुधा की बातों में अब दर्द उतर आया था  ।

मधु आगे कुछ बोल नहीं पाई और कह दिया ” ठीक है मैं रविवार को आ रही हूँ  ।,,

रविवार को मधु ने अपने पति रजत से कहा, ” मैं कुछ दिनों के लिए माँ को यहाँ ला रही हूँ  । ,,

रजत ने तीखी निगाहों से देखते हुए कहा, ” क्या… तुम्हारी माँ यहाँ रहेंगी !!तुमने तो मुझसे पूछा भी नहीं और खुद ही फैसला कर लिया  ? ,,

” रजत…. , दीदी पिछले दो साल से माँ को रख रही हैं  ….. अब मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है  ।,,




” अब तुमने फैसला कर ही लिया है तो मैं क्या कहूँ… !!,, कहकर रजत बुरा सा मुंह बनाकर आफिस के लिए निकल गया ।

मधु सोच रही थी कि रजत उसके साथ माँ को लेने चलेगा लेकिन उसे उम्मीद नहीं थी कि रजत इस तरह रिएक्ट करेगा।

वो अकेले ही माँ को लेने चली गई  । माँ की हालत देखकर उसे बहुत दुख हो रहा था।   माँ बहुत कमजोर लग रही थी।   उन्हें खुद की सुध भी नहीं थी  साड़ी भी बस ऐसे ही लपेट रखी थी और बाल भी बिखरे बिखरे थे । शायद कई दिनों से कंघी भी नहीं की थी । मधु ने प्रश्नवाचक दृष्टि से सुधा की ओर देखा।

सुधा बोली, ” माँ की मानसिक हालत धीरे धीरे और बिगड़ गई है । तेरे जीजा जी और बच्चे अब माँ से बात भी नहीं करना चाहते… इन्होंने ने तो कह भी दिया इस घर में या तो तुम्हारी माँ रहेगी या फिर हम ।  ,,

आज मधु को सुधा की मजबूरी समझ आ रही थी । उसने बस माँ का थोड़ा बहुत सामान बांधा और माँ को लेकर अपने घर आ गई ।

  माँ बस आकर एक तरफ बैठ गई  । मधु के बच्चे जब स्कूल से आए तो नानी को इस तरह देख कर सहम गए ।

मधु बोली, ” बेटा नानी के पैर छुओ ।,,

लेकिन बच्चे दूर भाग गए  ,  रजत भी बस दूर से ही कभी कभी बात कर लेता था । मधु का अधिकतर वक्त अब माँ की देखभाल में निकलने लगा।   उन्हें अपने हाथों से खाना खिलाना पड़ता था ।




  माँ कभी कभी अपने आपे से बाहर होकर चीजों को इधर उधर फेंक देती थी तो कभी रात को चिल्लाने लग जाती थी ।  ये सब अब मधु के परिवार को बर्दाश्त से बाहर हो रहा था।   रजत भी चिड़चिड़ा रहने लगा था ।  मधु खुद भी काफी परेशान थी ।

रजत ने एक दिन गुस्से में कह दिया, ”  तुम अपनी माँ को मेंटल हास्पिटल में डाल दो इनके कारण हमारा जीना हराम हो गया है ।  ,,

मधु बोली ” रजत  , जब आपकी माँ की  तीन साल तक बीमार थीं तब तो आपने कभी नहीं कहा कि मैं परेशान हो गया। या फिर कभी आपको ये लगा कि मैं भी परेशान हो सकती हूं …  ।,,

“मधु तुम बात कहां से कहां ले जा रही हो ।,,

” नहीं रजत, मैं बात बस आपकी मां से मेरी मां तक ले जा रही हूं … । ,,

मधु बहस जारी रखना चाहती थी लेकिन रजत को शायद उसकी दलील से कोई मतलब ही नहीं था। मधु समझ गई थी कि यदि मां की जिम्मेदारी उठानी है तो सिर्फ उसे ही उठानी है रजत उसका साथ नहीं देने वाला। लेकिन एक पत्नी और मां बनने के बाद स्त्री को अपने रिश्तों के बीच जब चुनाव की स्थिति आती है तो तन से वो अपने परिवार को हीं चुनती है। चाहे मन कहीं और अटका हो ।

मधु कई बार माँ को लेकर डाक्टर के पास भी गई लेकर उनकी हालत में कोई सुधार नहीं आ रहा था। उनकी हालत देखते हुए डाक्टर ने सलाह दी कि उन्हें अपनों के प्यार और साथ की जरूरत है जो शायद इस घर में उन्हें नहीं मिल सकता ।




मधू को ना चाहते हुए भी मां को मैंटल हास्पिटल में डालना पड़ा । कभी – कभी बीच में मिल आती थी लेकिन माँ बिलकुल भाव विहीन सी बस बैठी रहती ।

एक दिन हास्पिटल से फोन आया कि उसकी माँ की तबियत ठीक नहीं है ।  लेकिन उस दिन मधु के ससुराल में एक बड़ा आयोजन था जिस कारण वो उस दिन जा नहीं पाई ।अगले दिन जब वो काम निपटाकर अस्पताल पहूंची तो पता चला माँ को अंतिम क्रियाकर्म के लिए ले जा चुके हैं  .. वो भागी भागी पहूंची भी लेकिन माँ की चिता को अग्नि दी जा चुकी थी…। मधु बस सुन्न हो कर एक कोने में बैठ गई।  मन कर रहा था चिल्ला चिल्लाकर सबसे सवाल करे कि बिना उससे पूछे ये सब कैसे कर दिया ।  लेकिन मन में अंदर बहुत कुछ टूट गया था । आखिर लड़े तो किससे और किसके लिए?? जब माँ दुनिया में थी तब भी तो उसके लिए लड़ नहीं पाई थी… ।

मन ही मन बस ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि माँ दूसरी दुनिया में तो सुकून से रहे । एक मां अपनी सभी औलादों को पाल लेती है लेकिन उसी औलाद के लिए मिलकर भी मां बाप को पालना मुश्किल हो जाता है। भरे मन से वो दुआ कर रही थी कि यदि ईश्वर उसे दुनिया में दूसरा जन्म दे तो कम से कम एक बेटी के रूप में ना दे…. ।

#औलाद 

 सविता गोयल

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