मां की पाती (भाग 2)- डॉ.पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

रीति इसका गुस्सा भी उन पर निकालती थी। जब रीति मां बनने वाली थी और अपने प्रसव के लिए मायके आई हुई थी। तब भी मां का उसके बेटी होने के बाद का जो चालीस दिन का समय होता है उसके खान पान के लिए वो चाची और बुआ से पूछ रही थी। यहां तक की उसके लिए जो सौंठ के लड्डू बनने थे उसमें पड़ने वाली हर सामग्री भी उन्होंने बुआ से पूछी थी।

और तो और बच्चे के लिए किस तरह के कपड़े ठीक रहेंगे ये भी दूसरों से पूछा था। तब ये सब देखकर रीति ने गुस्से में बोल भी दिया था कि ये सब करके आप पूरी दुनिया को क्या साबित करना चाहती हो कि आप अनोखी मां हो जो अपनी बेटी की ऐसे समय में देखभाल कर रही है। आपका भी तो जापा हुआ होगा फिर इतनी अनुभवहीनता क्यों दिखा रही हो? ये सब पढ़कर रीति को अपना मां के साथ रूखा व्यवहार और अपनी हर बात की चिढ़ सब उन पर निकालना याद आने लगा। हालांकि मां ने हमेशा अपनी पूरी ममता रीति पर लुटाई थी।

फिर रीति आगे पढ़ने लगी जहां मां ने लिखा कि तुम अपनी जगह गलत नहीं थी पर इन सब बातों के पीछे जो राज़ छुपा है उसको जानने का तुम्हें पूरा हक है। राज़ शब्द पढ़ते ही रीति के मन में खलबली मच गई। मां ने आगे लिखा था कि आज मैं तुमसे अपने जीवन की हर एक बात साझा करना चाहती हूं क्योंकि बेटी मां की परछाई होती है। रीति को ऐसा लग रहा था कि मां उसके सामने बैठकर ये सब बता रही है क्योंकि मां ने जिस भावना और एहसास के साथ एक-एक बात लिखी थी वो उसके प्रति उनकी ममता को पूरी तरह उजागर कर रही थी।

मां ने डायरी में बताया कि इस घर के देहरी और रीति से उनका पहला परिचय आज से अठाईस साल पहले हुआ था जब वो शादी करके इस घर में आई थी ये पंक्ति पढ़ते ही रीति को लगा कि उसके पैर के नीचे से ज़मीन खिसक गई क्योंकि उसकी उम्र अब तीस की होने जा रही थी। उससे अठाईस साल पहले होने का मतलब था कि वो उसकी असली मां नहीं थी।

अब वो आगे पढ़ती गई जहां मां ने बताया था कि जब पापा के साथ उनकी शादी हुई तब वो केवल अठारह वर्ष की थी। बचपन से अनाथ वो मामा-मामी की छत्रछाया में पली थी। किसी तरह बारहवीं कक्षा तक ही पढ़ पाई थी कि मामी को किसी ने पापा के विषय में बताया और कहा कि घर परिवार बहुत समृद्ध है बस लड़के की पहली पत्नी बच्ची के जन्म के कुछ समय बाद ही चल बसी थी।

अब बच्ची के पालन पोषण के लिए उनको एक सीधी और सुशील लड़की बहू के रूप में चाहिए जो उसको पूरा प्यार दे सके। मामा-मामी ने भी ये सोचकर कि बिन मां की बच्ची है वैसे भी ऐसा वर तो वो खुद से भी नहीं जुटा पाएंगे उनके रिश्ते के लिए हां कर दी। इस तरह वो शादी के पहले दिन से ही पत्नि,मां और बहू बन गई।

पहले दिन से ही नन्हीं रीति उनके दिल में एक जगह बना गई। वो खुद भी बिन मां की बच्ची थी पर रीति के ऊपर वो अपनी पूरी ममता उड़ेलना चाहती थी। पापा और घर के अन्य सदस्य बुआ,दादी कोई भी उनसे ठीक से बात नहीं करता था क्योंकि सबकी नजरों में उनके मायके और ससुराल के रहन सहन में बहुत अंतर था।

जब रीति का स्कूल में एडमिशन करवाना था तब भी पापा अकेले गए थे क्योंकि परिवार में मां को अनपढ़ की श्रेणी में गिना जाता था। इस तरह रीति से संबंधित कोई भी निर्णय लेने का मां को हक नहीं था। वो दुनिया की नजरों में उसकी मां के रूप में आई थी पर उनको एक आया से ऊपर नहीं समझा जाता था।

अभी दो साल बीते थे कि वो गर्भवती हुई अभी थोड़ा सा समय ही निकला था कि एक दिन रीति पता नहीं कैसे खेलते खेलते सीढ़ियों के पास पहुंच गई थी। मां ने देखा तो वो उसको बचाने वहां दौड़ी दौड़ी आई। उन्होंने रीति को तो खींचकर पीछे कर दिया पर वो पेट के बल नीचे आकर गिरी थी।

उनकी जान तो बच गई थी पर उनका अजन्मा बच्चा और भविष्य में दूसरा बच्चा होने के सारे अवसर खत्म हो गए थे। उनके गर्भाशय को क्षतिग्रस्त होने की वजह से निकालना पड़ा था। ये सब होने के बाद मां ने पूरा ध्यान रीति के पालन-पोषण पर ही लगा दिया था। उनके लिए अब वो ही उनकी ममता का अकेला सहारा थी।

मां बिना कुछ कहे अपने कर्तव्य निभाने में लगी रहती पर रीति को अगर हल्का सा सर्दी जुखाम भी हो जाता तो दादी उन्हें ही इन सबके लिए ज़िम्मेदार ठहराती। इधर पापा भी अभी तक उनसे खिंचे-खिंचे रहते थे।बच्चे के खोने का ज़िम्मेदार भी उन्हें ही माना गया था। बात-बात पर उनको बोला जाता था कि अपना बच्चा तो बचा नहीं पाई पर रीति के साथ कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए। 

ये सब पढ़ते-पढ़ते रीति की आंखों में आंसू आ गए। अब उसे समझ आया क्यों मां उसकी पीटीएम में नहीं जाती थी,क्यों उसके दोस्तों की मां की तरह उसके साथ खुलकर हंस पाती थी। आज उसे ये भी लगा कि क्यों मां उसके चालीस दिन के जापे में सबसे एक-एक बात पूछकर ही उसका ख्याल रख रही थी। आज उसे अपने किए पर बहुत पछतावा था। उसने हमेशा एक ऐसी मां की ममता पर शक किया था जिसने उसकी जान बचाने के लिए खुद की कोख से जन्म लेने बच्चे को भी बलिदान कर दिया था।

इसके आगे शायद अस्वस्थ होने की वजह से मां नहीं लिख पाई थी पर उन्होंने रीति के मन में घिरे संशय के सभी बादलों को दूर कर दिया था। वो अभी ये सोच ही रही थी कि डॉक्टर रात के चेकअप ले लिए आ गए थे हालांकि मां अभी भी दवाइयों के प्रभाव में थी। डॉक्टर चूंकि रीति को और उसके परिवार को जानने वाले थे इसलिए उन्होंने ये स्पष्ट कर दिया था कि मां अब ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते की मेहमान हैं।

उनकी ये बात सुनकर रीति ने पूछा क्या ऐसी हालत में उनको वो घर ले जा सकती हैं क्योंकि वो चाहती है कि मां बिना मशीनों के दर्द के अपनी इच्छानुसार खाते-पीते अंतिम सांस लें। रीति की बात सुनकर डॉक्टर ने भी अपनी सहमति जताते हुए कहा कि हालांकि वो बहुत कमज़ोर हैं और दर्द से जूझ रही हैं पर कल दोपहर में वो उनको घर ले जा सकती है। 

अब रीति ने इन आखिरी सात दिन में मां को वो हर खुशी देने की सोची जिससे वो वंचित रही थी। रीति ने सोचा कि मां की ममता का मोल तो वो नहीं चुका सकती पर उनके आखिरी पलों को यादगार बनाकर शायद एक बेटी का कुछ फर्ज़  उनके प्रति निभा सके। अगले दिन मां जब थोड़ा होश में आई और रीति को अपने आस-पास देखा तो एक सुकून भरी मुस्कान उनके चेहरे पर खिल गई। रीति उनके गले लग गई,उसके सारे गिले-शिकवे बर्फ की तरह पिघल गए थे।मां की पाती ने जाते-जाते भी एक बेटी को मां की ममता से सराबोर कर दिया था।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी?एक मां आखिर मां होती है,उसकी ममता को नापने का ना कोई पैमाना होता है ना कोई तराजू।

डॉ.पारुल अग्रवाल,

नोएडा

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!