मां की पाती (भाग 1)- डॉ.पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  रीति के पास पापा का फोन आया कि मां तीन दिन से हॉस्पिटल में भर्ती है और उनकी हालत ठीक नहीं है। रीति की पांच दिन से मां से कोई बात भी नहीं हुई थी। उनकी गंभीर हालत का सुनकर वो अपनी दो साल की बेटी को सास के पास छोड़कर और अपने पति को सूचित करके तुरंत मायके के लिए चल दी। पति भी काम से बाहर गए हुए थे। पापा के बताए हुए हॉस्पिटल में पहुंचकर उसने देखा कि मां कितनी कमज़ोर हो गई हैं। बीमारी की वजह से वो बहुत ही थकी हुई लग रही थी। वो बोलने में भी असमर्थ थी

पर रीति को देखकर वो ऐसी हालत में भी उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई थी। रीति को देखने से मिले सुकून और नींद की दवाइयों की अधिक मात्रा से दर्द से बेहाल मां को आराम मिला था और वो नींद के आगोश में चली गई थी। मां के सोने के बाद पिताजी ने बताया कि पिछले एक महीने से मां को बुखार और खांसी की शिकायत थी।

अपनी बीमारी को जितना हो सका उन्होंने घर में सबसे छिपाने की कोशिश की पर तीन दिन पहले वो बहुत तेज़ बुखार से तप रही थी और हल्की बेहोशी में थी तब उनको हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। यहां आकर उनके सारे टेस्ट हुए तो उन्हें आखिरी अवस्था का फेफड़ों का कैंसर आया। रीति ने अनुभव किया कि मां का वजन भी पहले से आधा रह गया था। 

असल में रीति की पांच दिन पहले ही मां से बात हुई थी तब रीति से बात करते हुए मां हांफने लगी थी और पूछने पर कहने लगी थी कि वो पड़ोस वाली आंटी के साथ छत पर बातें कर रही थी पर उनका फोन चार्जिंग पर लगा था। जिसकी आवाज़ सुनकर उन्हें तुरंत नीचे आना पड़ा इसलिए सांस फूल रही है। वैसे भी मां फोन रखने की इतनी जल्दी दिखा रही थी कि रीति को लगा मां तो अपनी ही दुनिया में व्यस्त हैं वो बेकार ही उन्हें समय निकालकर फोन करती है। बस उस दिन के बाद से ना तो रीति ने गुस्से में आकर ना तो मायके फोन किया और न ही मां का फोन आया।

अभी रीति ये सोच ही रही थी कि पापा ने उसको एक सुंदर सी पोटली देते हुए कहा कि ये मां ने चार-पांच दिन पहले उसको देने के लिए कहा था। रीति ने पोटली लेकर अपने पास रख ली। आज रात को रीति ही मां के पास रुकने वाली थी क्योंकि पिछले दो-तीन दिन से पापा ही हॉस्पिटल में थे।

उनकी तबीयत को देखते हुए रीति ने अपने पापा को भी घर भेज दिया और मां के पास खुद रुक गई।  मां तो नींद की दवाइयों के इंजेक्शन और उनकी भारी मात्रा की वजह से अभी भी गफलत में थी। उधर रीति की आंखों से नींद बिल्कुल गायब थी। तब उसने सोचा क्यों ना मां की दी हुई पोटली ही देख ले।

पोटली खोलने पर उसमें एक सुंदर सी डायरी थी जिस पर पाती मेरी लाड़ो के नाम लिखा था। रीति ने डायरी को खोला तो उसके पहले ही पन्ने पर लिखा था कि मेरी लाडो मैं जानती हूं कि अब मेरे पास बहुत ज्यादा समय नहीं बचा है। बहुत कुछ ऐसा है जिससे जानना तुम्हारे लिए बहुत जरुरी है। पता नहीं ये बातें तुम्हें कहने का मुझे समय मिलेगा या नहीं इसलिए मैं सब कुछ इस डायरी में लिख रही हूं। 

फिर उसमें एक लाइन थी जिसमें मां ने लिखा था कि वो जानती हैं कि रीति को लगता है कि वो उसके दोस्तों की मां से अलग हैं क्योंकि उसके दोस्तों की मां उनकी हर परिचर्चा का हिस्सा होती हैं और वहीं उसकी मां अपनेआप में ही सिमटी रहती हैं। यहां तक की बचपन में जहां सबकी मां पीटीएम में आती थी वहां रीति की बुआ या पापा ही आते थे।

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मां की पाती (भाग 2)- डॉ.पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

डॉ.पारुल अग्रवाल,

नोएडा

 

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