“माँ की करधनी” – विजय कुमारी मौर्य”विजय”

रामखिलावन का बड़ा सुन्दर परिवार था। कई सालों बाद माँ फूलमती  की मिन्नतों से…. एक बेटा जन्मा था। रामखिलावन की माँ  उसकी रात-दिन सेवा करती बस दूध पिलाने के लिए ही बहू जानकी  की गोद में देती थी….. पोते के सवा महीने का होने पर उसका नामकरण और गाँव में दावत रखी उस दिन फूलमती ने अपने छोटे से बाक्स में से चांदी की करधनी निकाली और मोना को देते हुए कहा, ….ले बहू इसे पहन ले ये मेरी सास ने रामखिलावन तेरे पति, के जन्म पर दी थी…। ये तीन पीढ़ी से एक दूसरे के पास चली आ रही है।

तीन साल बाद रामखिलावन के घर बेटी का जन्म हुआ…उसके करीब एक साल बाद फूलमती परलोक सिधार गयी। माँ की पेंशन से घर का खर्च चल रहा था…. थोड़ी बहुत खेती थी,वह माँ के क्रिया कर्म और रीति-रिवाजों में बिक गयी। रामखिलावन कुछ साल से…. एक ठेकेदार के यहाँ ठेले पर ईंटा ढोने का काम करने लगा था। वह चाहता था दोनों बच्चे पढ़ जायें मगर बेटा तीरथ सिर्फ कक्षा आठ तक ही पढ़ पाया मगर बेटी जानकी हर कक्षा में प्रथम आ रही थी।…. उसे आगे पढ़ाने के लिए रामखिलावन कुछ भी करने को तैयार था।

रामखिलावन की पत्नी जानकी किसी तरह काट पीट घर का खर्च चला रही थी। उसने अपनी बेटी मोना को बता दिया था कि ये करधनी तेरे हाथ पीले करते समय तुझे दे दूंँगी। एक दिन ठेकेदार का आदमी बुलाने आया कि आज बिल्डिंग की छत ढाली जायेगी सबको दूनी मजदूरी मिलेगी….।  एक दिन की बात थी रामखिलावन अपने बेटे तीरथ को भी लेता गया। बांस की सीढ़ी से ऊपर सामान पहुंचाना था….।  ऊपर से उतरते समय बांस का एक डंडा सड़ा होने की वजह से टूट गया, पिता के पैर रखते ही बेटे ने भी पैर रख दिया…. था, दो मंजिल से ईंटों पर आकर गिरने से बेटा तुरन्त मर गया जबकि रामखिलावन का एक हाथ एक पैर टूट गया। मोना और जानकी का रो रोकर बुरा हाल था।

कुछ महीने बाद रामखिलावन के पैर में जहर फैल गया जिससे वो पैर काटना पड़ा…। बुखार आने से दूसरे पैर में फालिज मार गयी, घर में लाचार पड़ा रामखिलावन पत्नी से मरने की भीख मांग रहा था। जानकी जब भी ठेकेदार के घर कुछ पैसे मांगने जाती तो वह थोड़े बहुत देकर नाराज होते हुए कहता मेरा घर क्या खैरातियों के लिए खुला है…..। जाकर तुम कमाती क्यों नहीं ? जानकी को लगता अभी धरती फट जाय और वह उसमें समा जाय।



बाजार से कुछ सामान लेकर लौटी जानकी ने ताख में रखी दवाई उठाकर रामखिलावन को खिलाना चाहा तो उसकी ऊंगली में कुछ काट लिया…. अभी वह कुछ समझ पाती कि बेहोश होकर गिर पड़ी और मुंह से झाग निकलने लगा। बेटी मोना चिल्लाकर ओझा के पास भागी, रामखिलावन घिसटता चारपाई से उतरा और तसले में पानी भरकर जानकी  का सिर उसमें डाल दिया…. उसे समझते देर न लगी कि किसी जहरीले सांप ने डस लिया है। मोना जब झाड़ने वाले को लेकर लौटी तब तक जानकी के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।

आज मोना  का हाईस्कूल का रिजल्ट आया है और वह गाँव से थोड़ी दूर चौराहे पर गयी है पेपर देखने। अभी वह सड़क पार करने ही वाली थी कि…हाथ में पेपर और मिठाई का डिब्बा पकड़ाते हुए एक नौजवान ने कहा, मैं ठेकेदार भुवनेश का बेटा माधव हूँ, मैं अपने पिता के अपराधों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ। मुझे पता है तुम फस्ट  डिवीजन आयी हो.. …मैं भी बी.एस.सी सेकेंड ईयर में हूँ। यदि तुम चाहोगी तो मैं तुम्हारी पढ़ाई में आगे भी मदद कर सकता हूँऔर भविष्य में यदि तुम मुझे अपनाना चाहो तो मैं तुम्हारा इन्तजार भी कर सकता हूँ….इतना कहते हुए माधव ने हाथ जोड़ लिए।

मोना ने अपना चेहरा ऊपर उठाया, निगाहों से निगाहें टकराईं बोली माधव जी, यदि आप सचमुच हमारी मदद करना चाहते हैं तो अभी मेरे साथ मेरे घर चलिए। मेरे बाबा अब एक, दो दिन के ही मेहमान हैं थोड़ी खुशी उनकी झोली में डाल दीजिए। असहाय रामखिलावन के हाथ पर मोना  ने माँ की करधनी (कमरपेटी) रखकर कहा, बाबा! ये ठेकेदार भुवनेश के बेटे माधव हैं, इनका कहना है मैं अपने पिता के अपराधों का प्रायश्चित करके आपसे आपकी बेटी का हाथ मांगने आया हूँ। बाबा, हम दोनों को आशीर्वाद दीजिए उज्जवल भविष्य बनाने का….एक रसगुल्ला उनके मुंह में डालते हुए माधव बोला,बाबा हमने आपकी बेटी स्वीकार की, रामखिलावन ये खुशी बर्दाश्त न कर सका और दोनों के चरणों पर गिर पड़ा।

    मौलिक एवं स्वरचित 

              कवयित्री – विजय कुमारी मौर्य”विजय”लखनऊ

 

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