मां कभी रिटायर नही होती है। – दीपा माथुर

हवाएं चल रही थीं,पर बारिश थम चुकी थी।

उमेश बाबू जो 61वर्ष के हो गए थे।

गार्डन में घूमने के लिए तैयार होते हुए बोले “अरे सुनती हो आज मौसम बहुत सुहावना हो रहा हे चलो थोड़ी देर गार्डन में घूम आते हैं।”

उनकी पत्नी नंदनी उनके लिए चाय का कप हाथ में लेकर कहती है “आप पहले चाय पियो “

फिर जाना।”

क्यों तुम नहीं चलोंगी? अपनी प्रश्नवाचक आखों से अपनी पत्नी नंदनी का चेहरा देखने लगे।”

नंदनी मुस्कुराई।

रिटायरमेंट आपका हुआ हे मेरा नहीं।

हम महिलाएं तो मरने के बाद ही रिटायर होती हैं।

उमेश जी बोले ” अरे भई ऐसी बाते मुंह से मत निकाला करो अब अच्छी नहीं लगती बल्कि सोचने मात्र से शरीर में  कंपकपी सी छूट जाती है।”

हमारे सिर पर ताज तो नौकरी करते हैं तब तक ही रहता है मगर तुम्हारे सिर पर महारानी जयवंता बाई सा ताज ता उम्र रहता है।”

 

देखो घर में पोते पोती भी दादी दादी कहते नही थकते।

नंदनी जी चेहरे पर थोड़े इतराई के से भाव लाकर बोलीं

” हां तो सारे दिन सबकी कही कही गानी पड़ती है”

जिस दिन हाथ पैर चलना बंद हो जायेंगे उस दिन फ्यूज ट्यूबलाइट बन जाऊंगी।

कम से कम आपका साथ है तब तक इस चेहरे पर रौनक है।”

खैर वो तो हे ही ठंडी श्वास लेते हुए उमेश बाबू ने जवाब दिया।

फिर अचानक ही बोले ” वो कल वेदांता (बहु) पवित्र ( पोता) के लिए ट्यूशन की बात कर रही थी।”

नंदनी हंसी ” ये आजकल के बच्चों की पढ़ाई आपके और हमारे बस की नहीं है।”

सोच रहे हो ना जैसे विशाल ( बेटे ) को पढ़ा देता था वैसे पवित्र को भी मैं ही पढ़ा लूं।




उमेश बाबू ने बातों के तीर में ही कहा ” एक जमाना था जब मैं तुम्हारी इन्हीं बातों से परेशान रहता था कि तुम मेरी बात पर ध्यान नहीं देती और अब बिन कहे समझ लेती हो?”

नंदनी ने उमेश बाबू को कमरे से बाहर धकेलते हुए बोला

” घूमने जाना है कि रात यहीं कर देनी है “

उमेश बाबू अकेले ही गार्डन में निकल पड़ते हैं।

वहा दो चार चक्कर भी नही लगे होंगे कि किसी ने आवाज लगाई “उमेश साहब “

उमेश बाबू ने पीछे देखा ” अरे वागेश साहब आप यहाँ “

हां,भाई तुम्ही घूम सकते हो क्या यहां पर कुछ हक तो मुझे भी दो यार “

और दोनों मित्र गले लग जाते हैं।

 

तभी वागेश साहब का पोता जो मात्र छः साल का था वहा आया और अपने दादा साहब को नीचे झुकने को कहा ” दादा साहब ,दादा साहब एक बात बताऊं किसी को बताना मत “

वागेश साहब ने कहा ” सवाल ही नहीं उठता “

अपने गार्डन में एक चिड़िया के दो अंडे रखे हैं उनको फोड़ कर बच्चे निकाल लूं क्या?”

आप ही तो कहते हैं कि मुर्गी के पेट से अंडे निकलते हैं और फिर उसमे से उनके बच्चे निकलते हैं।

तो चिड़िया के अंडे से भी बच्चे ही तो निकलेंगे।?

है ना?दादा साहब ने उसे अपनी गोद में बैठा लिया और बोले ” आपके प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे पहले आप इन दादा को तो धोक लगाओ।”

बच्चे ने बहुत ही सहजता से उमेश बाबू के धोक लगा दी।

दादा साहब बोले ” ये मेरे मित्र हैं जो भाई से भी बढ़कर हैं”

उमेश साहब ने उसके गोल गोल फूले हुए गालों को प्यार से सहला कर पूछा ” आपका शुभ नाम क्या है ?

बच्चा बोला ” आपको तो पता ही है “

उमेश बाबू बोले ” मुझे कैसे पता होंगा मैं तो आप से आज मिला हूं”

बच्चा खिलखिलाकर हंसने लगा।

एक बाल खिलखिलाहट पूरी दुनिया के तनाव को मुक्त करने वाली होती है।

अरे दादा साहब अभी तो आपने बोले ” आपका शुभ नाम बताओ “

उमेश साहब के चेहरे पर मुस्कान आ गई ।

बोले ” अच्छा तो बेटे जी का नाम ही शुभ है।




जी हां दादा साहब कहते हुए उसने उमेश साहब का हाथ पकड़ लिया ।

 

एक नन्हा सा स्पर्श उमेश साहब को बैचेन कर गया । पर बोले कुछ नहीं।

चलो बेटा कल मिलते हैं पर हां आप अपने घर में पेड़ के कोटर में हाथ मत लगाना।

वर्ना अंडे में से बच्चे बाहर नहीं आएंगे।

शुभ बोला ” क्यों दादा साहब “

उमेश बाबू बोले ” जमाना है,किसी पर विश्वास नहीं होता।”

वागेश साहब ने उमेश बाबू के कंधे पर हाथ रखा और बोले क्यों भाई इतनी निराशा पूर्ण बातें क्यों?

उमेश बाबू ने मुस्कुराते हुए कहा ” अरे नहीं आपको तो पता ही है ना चिड़िया के अंडों पर मानव का हाथ लग जाने पर वो उसे अपनाती नही है ।

फिर परिंदों की जिंदगी से खिलवाड़ क्यों जैसी उनकी परंपरा है उन्हें निभाने दो।

वागेश साहब ने कहा ,उमेश बाबू आज तो बच्चों को लेकर होटल में जायेंगे इसीलिए आपसे विदा चाहते हैं।

पर कल यहीं आज के समय ही आना मत भूलना।

और हां,अपने पोते को भी ले आना शुभ के साथ दोस्ती हो जाएंगी।

आज उमेश बाबू में जैसे नई एनर्जी आ गई थी।

घर पहुंचते ही नंदनी से बोले ” खाना बना लिया क्या?”

नंदनी बोली ” क्यों तबीयत तो ठीक हे इतनी जल्दी खाना?”

उमेश बाबू बोले ” मैं तो यही पूछ रहा हूं खाने की तैयारी कर ली क्या?

नंदनी बोली ” नहीं अभी बहु पवित्र को पढ़ा रही है”

मैं पूजा पाठ कर के उठी हूं । अब करेंगे।”

उमेश बाबू बोले ” आज मुझे मेरी गलती का एहसास हुआ हे।

तुम सही कहती थी बच्चों को प्यार चाहिए और मैं सोचता था ज्यादा सिर चढ़ जायेंगे तो सम्मान नहीं करेंगे।

 

पर आज लगा नहीं तुम ही सही हो।

वाह गार्डन में कौनसे पेड़ के नीचे बैठ कर आए हो जो

आपको इतना ज्ञान और अक्ल आ गई।

नंदनी ने छेड़ते हुए कहा।

उमेश बाबू मुस्कुराए और पूछने लगे।

विशाल ऑफिस से आ गया?




नंदनी बोली ” आपके जाते ही आ गया था पर आजकल

बच्चों के पास समय ही नहीं है दिनभर ऑफिस में माथा

खपाओ और घर आते ही लैपटॉप में।

पहले अच्छा था ऑफिस का काम ऑफिस में।

अब जब से ऑफिस लैपटॉप में समा गया पीछे पीछे

घर तक चला आता है।

हम बच्चों को दोष तो देते हैं पर ये लोग भी क्या करें?

और आपके तो ऊसूल ही अलग हैं।

खैर चलो देर आई दुरुस्त आई पर अक्ल तो आई।”

उमेश बाबू बोले ” तुम भी ताने मारने में कोई कसर नहीं छोड़ती हो “।

आज हम खाना खाने होटल में चलेंगे।

नंदनी चौकी” क्या”?

आपकी तबियत तो ठीक है ना।

उमेश बाबू बोले ” तबियत तो अब ही ठीक हुई है।”

बच्चे मेरा कितना सम्मान करते हैं।

मुख से उफ तक नहीं करते।

और मैं पुराने जमाने को संस्कार मान बैठा।

चलो सबको तैयार होने को कह दो।

और हां आज से पवित्र मेरे पास ही सोएंगा।”

और कल से मेरे साथ घूमने भी जायेगा।

नंदनी खुश होती हुई सबको बुलाने चली गई।

वो भी चाहती थी की उमेशबाबू  जमाने के हिसाब से बदल जाएं तो ठीक वरना मेरे बाद जमाना इन्हें बदल देगा जो इन्हें सहन नहीं होंगा।

पर आज उन्हें समझ आ गई थी बच्चों के साथ बात करने से सम्मान कम नहीं होता बल्कि प्यार और सम्मान दोनों बढ़ते हैं।

 

उमेश बाबू नंदनी को वेदांता के कमरे में जाते हुए देखते हुए सोचने लगे

” इसीलिए मां रिटायर नहीं होती घर

की धुरी होती है चलती रहती है अपने कर्मों से सबको

संतुष्ट करती है।

पर अब मैं भी अपना झूठा अहम छोड़कर पवित्र के साथ खेलूंगा उसके साथ समय बिताऊंगा”

मन मानो पानी में हिलोरे खाता हुआ एकदम

सकारात्मक हो गया।

और जैसे ही पवित्र ने होटल का नाम सुना आकर दादा साहब के चिपक गया।

दादा साहब को ऐसी आत्म संतुष्टि कभी नही मिली थी।

दीपा माथुर।

 

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