माँ का मान – वीणा

बेटे बहु की शादी की दूसरी सालगिरह थी ,बड़े इसरार से उन्होंने मनोहर और सावित्री जी को दिल्ली आने को कहा था..कहा क्या , राजधानी एक्सप्रेस के दूसरे दरजे की टिकट करवा उनके मोबाईल पर भेज दिया था ताकि आने में वे आनाकानी न कर सकें । मनोहर जी तो सरकारी सेवा से रिटायर हो चुके थे पर सावित्री जी अशिक्षित पर कुशल गृहिणी थी । डर रही थी पता नहीं बहू का व्यवहार कैसा हो.. पी जी आई , लखनऊ में दोनों डॉक्टर होने के कारण शादी के बाद ज्यादा  दिनों तक रह न सकी उनके साथ..

अब उन्होंने दिल्ली एम्स में ज्वाईन किया था.. मनोहर जी का बेटा नवीन यूरोलॉजी डिपार्टमेंट का जाना माना नाम था..

शादी के सालगिरह का इंतज़ाम हयात् रीजेंसी में रखा गया था , सारे डॉक्टर और जाने माने लोग वहाँ आमंत्रित थे..सावित्री जी सीधे पल्लू की साड़ी पहने कोने में खड़ी थी.. मन में घबराहट थी उनके..पता नहीं कोई कुछ कह न दे..हिन्दी भी तो शुद्ध शुद्ध नहीं बोल पाती मैं..मन ही मन वह सोच भी रही थी.. केक काटने का समय हुआ..तभी बहू प्रीति ने ऐलान किया मैं अभी आपको ऐसे शख्स से मिलवाती हूँ..जिनकी वजह से हम आज यहाँ हैं..और उसकी नजरें सावित्री जी को ढूँढते हुए उनके पास ठहर गयी..वह उनका हाथ पकड़ सबके बीच ले आई और बोली यही हैं वह शख्स..बहुत ही कम पढ़ी लिखी हैं ये..पर शिक्षा के महत्व को इन्होंने बखूबी समझा..आज मुझे गर्व है कि ये नवीन की माँ हैं जो पढ़ी लिखी न होते हुए भी जब जब जरूरत पड़ी तब तब नवीन का मार्गदर्शन किया जिसकी वजह से आज यह इस मुकाम पर है.. मुझे गर्व है इस परिवार का हिस्सा बनकर..लव यू माँ और पापा..

प्रीति की बातें सुन सावित्री जी की आँखें छलछला आई..आज उन्हें अपने पढ़े लिखे न होने का कोई अफसोस नहीं था..बहू प्रीति ने सबके बीच उनका मान और उनका आत्मविश्वास दोनों जो बढ़ा दिया था..

वीणा..

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!