आभा प्रकाश राव के सामने उनके ऑफिस में बैठी हुई थी । प्रकाश कह रहे थे आभा जी आपका बेटा हर महीने पच्चीस हज़ार रुपए भेजता है ताकि आश्रम के सबसे अच्छे कमरे में आप आराम से रह सके ।
देखिए प्रकाश जी मैं संयुक्त परिवार में पली बड़ी हूँ और शादी भी संयुक्त परिवार में ही हुआ है । समय बीतते देर नहीं लगती है आज सब अपनी अपनी गृहस्थी सँभालते हुए अलग हो गए हैं ।
मैं भी पति की मृत्यु के बाद बेटे के साथ रहने के लिए उसके घर आ गई थी और वहाँ से यहाँ पहुँच गई हूँ ।
इस तरह अलग बंद कमरे में रहने से मेरा दम घुटता है । यहाँ सब मिलकर एक जगह नहीं रह सकते हैं क्या?
प्रकाश जी ने कहा कि जी आभा जी एक जगह है जहाँ सब लोग मिलकर रहते हैं परंतु ये वे लोग हैं जिनका ख़्याल रखने वाला कोई नहीं होता है जो पैसे नहीं भर सकते हैं । उनके लिए हम बिना पैसे लिए एक हॉल एलॉट कर देते हैं वे सब वहीं रहते हैं ।
आप वहाँ नहीं रह सकेंगी । आपका बेटा आपको कितना प्यार करता है इसीलिए इस आश्रम के सबसे अच्छे रूम को आपके लिए उसने चुना है। (आभा के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान आती है ।)
वहाँ पर जो लोग काम करते हैं वे छोटे मोटे काम करके मदद कर देते हैं ।
आभा ने कहा प्रकाश जी मैं उन्हीं लोगों के बीच रहना पसंद करूँगी । यह एसी , टीवी, इंटरनेट यह सब मुझे रास नहीं आते हैं ।
आभा जी वरुण जी ने अगर फोन करके पूछा तो मैं क्या जवाब दूँगा ।
आप उससे कुछ मत बताइए यह हम दोनों के बीच ही रहने दें । वह जो पैसा भेजता है उन्हें बैंक में डाल दीजिए कहते हुए वह ऑफिस से बाहर आ गई ।
आभा का सारा सामान हॉल में पहुँचा दिया गया । उन सब के साथ रहते हुए उनके दुखड़े सुनती थी ।
आभा हर जगह कुछ ना कुछ काम करते हुए दिखती थी रसोई में खाना भी बनाती थी लोगों को उनके द्वारा बनाए हुए व्यंजन बहुत पसंद आते थे ।
उन्हें थोड़ा सा भी समय मिलता था तो वे बगीचे में बैठकर पौधों से बातें करती थी ।
वरुण शुरू में हर हफ़्ते फोन करता था फिर धीरे-धीरे महीने पंद्रह दिन में करने लगा था परंतु सिर्फ़ पूछने के लिए कैसी हैं पैसे चाहिए क्या?
विनीता बेटी है वह भी जबकि समय मिले तब बात करती है । अभी तो दो साल होने को है ना बेटी ने और ना बेटे ने खबर ली है।
वहाँ दूसरों के दुख दर्द को सुनकर आभा को लगता था कि मैं बहुत खुशनसीब हूँ । उसे वह दिन याद आया जब पति की मृत्यु के बाद बेटा उसे प्यार से अपने घर ले आया था । उसके पास बैठ कर उसका हाल-चाल पूछा करता था । बेटी विनीता उस दिन आई थी यह बताने के लिए कि उसके पति को ऑफिस की तरफ़ से अमेरिका भेजा जा रहा है तो वह इस महीने के अंत तक चली जाएगी इसलिए सबसे मिलने आई है।
आभा को बुरा लगा था कि वह इतनी दूर चली जा रही है।
विनीता को एयरपोर्ट पर छोड़कर आने के बाद से बहू मेघा के दिमाग़ में कुछ चल रहा था ।
वह बार बार पति से कहने लगी कि हम भी अमेरिका चले जाएँगे । तुम वहाँ से एम एस करके आए हो और परिवार कहते हुए यहीं रुक गए हो । तुम्हारी बहन देखो कैसे उड़ गई है हम भी चलते हैं ।
वरुण उसे समझा रहा था कि मेरे पापा नहीं हैं और बहन भी अमेरिका चली गई है। अब तू ख़ुद सोच माँ को किसके सहारे छोड़ दूँ बता ।
मेघा ने कहा कि वरुण सब अपने बारे में सोच रहे हैं थोड़ा सा स्वार्थी हमें भी बनना है । हमें हमारे बच्चों का भविष्य सुधरना है । मैं नहीं जानती तुम क्या करने वाले हो परंतु मुझे तो अमेरिका जाना ही है।
उनकी इन बातों को आभा ने सुन लिया वह सोचने लगी थी कि ना जाने कैसा ज़माना आ गया है । हम भी अपने ज़माने में स्वार्थी हो जाते थे तो बच्चों के लिए इतना कर पाते थे क्या?
आभा ने निश्चय कर लिया था कि उसे अलग रहना ही पड़ेगा क्योंकि उसे पता है कि मेघा की जिद ही जीतेगी ।
आभा ने जैसा सोचा वैसे ही हुआ एक दिन वरुण ने बताया था कि उसके ऑफिस से उसे प्रॉजेक्ट के सिलसिले में अमेरिका भेज रहे हैं । उसने यह भी कहा कि माँ आप चिंता मत कीजिए मैंने एक बहुत ही सुंदर हाय फाय वृद्धाश्रम देखा है जिसमें सारी सुख सुविधाएँ हैं । वहाँ इंटरनेट है टी वी है ए सी है और बहुत बड़ा सा कमरा है जो चाहे वह तुम्हें मिल जाएगा।
आभा निशब्द हो गई थी । उन्हें उसी हफ़्ते जाना था इसलिए उन्होंने आभा का सामान पैक करके उन्हें वृद्धाश्रम में भर्ती कराने के लिए निकले । रास्ते भर वरुण के दोनों बेटे कहते रहे कि दादी आप हमारे साथ अमेरिका चलिए ना हम सब साथ रहेंगे ।
मेघा ने उन्हें समझाया कि दादी बाद में आ जाएगी ।
वरुण ने मैनेजर से बात की और माँ को वहाँ छोड़कर चला गया । अब दो साल हो गए हैं उसने उनकी ख़बर लेनी बंद कर दिया था हाँ पैसे जरूर भेज दिया करता था ।
उसी समय बाहर से किसी ने आवाज़ दी आभा जी !! उस आवाज़ को सुन आभा अपने विचारों को पीछे छोड़ कर बाहर आई तो देखा कल ही एक महिला यहाँ आई थी जो इतना रो रही थी कि किसी की बात नहीं सुन रही थी । सबको लगता है कि आभा ही उसे चुप करा सकती है । इसलिए आभा को बुलाया था।
आभा उस महिला के पास बैठ गई और उसे अपने तरीक़े से समझाने लगी थोड़ी देर के बाद उसने अपना रोना बंद किया और सबके साथ मिलकर खाना खाने के लिए तैयार हो गई ।
आभा ने महसूस किया है कि इन दिनों उसकी तबियत ख़राब हो रही है । थोड़ी सा काम करने या चलने से साँस फूलने लगा था । प्रकाश जी ने एक बार उन्हें इस हालत में देखा और डॉक्टर को बुलाया लेकिन आभा ने दवाई लेने से मना कर दिया था । उसने प्रकाश जी के हाथों में दो कवर दिया एक वरुण के लिए और दूसरी आश्रम के ट्रस्टी के लिए ।
प्रकाश जी ने कहा कि आपके बेटे को फोन कर देता हूँ । आभा ने मना नहीं किया । पूरे आश्रम में यह बात फैल गई थी कि आभा जी की तबियत ख़राब हो गई है ।
सब लोग दुखी थे क्योंकि आभा से हर किसी ने मदद पाई है ।
वरुण मेघा के साथ सुबह की फ़्लाइट लेकर आया । उसके आने के बाद ही विनीता भी आ गई । दोनों मैनेजर के कमरे में बैठे हुए थे । प्रकाश जी ने चपरासी को भेजा था कि आभा को बुलाकर लाएँ ।
इन लोगों की बात हो रही थी कि चपरासी आकर कहने लगा कि आभा जी तो अभी तक सो रहीं हैं ।
प्रकाश जी वरुण विनीता तीनों हड़बड़ा कर उठे कि यह क्या है अभी तक आभा सो रही है । जल्दी से उनके कमरे में पहुँचे विनीता भागकर माँ के पास पहुँची ।
माँ को छूकर उसे लगा कि कुछ हो गया है उसने भाई की तरफ़ देखा । प्रकाश जी कुछ कहते उसके पहले ही किसी ने डॉक्टर को ख़बर कर दी थी । डॉक्टर ने उन्हें देखते ही कहा कि आभा जी गहरी नींद में सो गई हैं।
विनीता और वरुण खूब रोने लगे । आश्रम के लोगों ने आभा को खोया था । वरुण को गिल्टी फ़ील हो रहा था कि उसने माँ को अकेले ही छोड़ दिया है । उसने सारे कार्य क्रम रीति रिवाजों के अनुसार ही किया । जब वे जाने लगे तो प्रकाश जी ने वरुण के हाथ में दो सील्ड कवर रख दिया ।
वरुण वहीं बैठ कर विनीता मेघा और प्रकाश जी के सामने उसे खोलने लगा । पहले कवर में उसने अपने पति की पेंशन के पैसे और फिक्स्ड डिपाजिट आश्रम की ट्रस्टी के नाम कर दिया है ।
दूसरे कवर में उसने वरुण के नाम पत्र लिखकर रखा था साथ ही कुछ कागज भी थे।
मेरा प्रिय कान्हा
ढेर सारा प्यार
तुम्हें याद है इस नाम से मैं तुम्हें प्यार से पुकारती थी पर तू मुझसे लड़ता था कि मुझे वरुण पुकारो दोस्त मेरी हँसी उड़ाएँगे ।
वरुण तुमने जो कुछ भी किया है उस पर मुझे कोई गम नहीं है ।लेकिन मुझे दुख इस बात का है कि मेघा ने और तुमने जो कुछ भी किया वह अपने बच्चों के सामने किया है । एक बार भी तुम लोगों ने नहीं सोचा था कि उन बच्चों के मन पर क्या असर पड़ा होगा । तुम में तो मेरे बताए हुए थोड़े से संस्कार अभी बचे हुए हैं जिसके चलते तुम मेरे लिए पैसे तो भेज देते थे पर तुम लोगों के बच्चे तो वहाँ पल रहे हैं तो शायद वे इतना भी नहीं करेंगे । तुम लोगों ने मेरे लिए जो किया है शायद वे वह भी नहीं करेंगे इसलिए मैंने तुम लोगों के लिए एक फ़ैसला किया है वह यह कि तुम जो पच्चीस हज़ार रुपये हर महीने मेरे लिए भेजते थे उन रुपयों से मैंने तुम लोगों के लिए यहाँ बनने वाली नई बिल्डिंग में एक कमरा बुक करवाया है । जिससे बाद में तुम लोगों को परेशानी ना हो । तुम सब खुश रहो यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना है ।
तुम्हारी माँ
पत्र पढ़कर वरुण ख़ामोश हो गया उसे इस तरह देख विनीता ने पूछा क्या बात है भाई आपको क्या हो गया है । उसने पत्र विनीता को पकड़ाया विनीता ने उसे पढ़कर मेघा को दिया । उसी समय प्रकाश जी अपने हाथों में कुछ काग़ज़ात लेकर आए और कहा वरुण आपके लिए हमने पहली मंज़िल पर कमरा एलॉट किया है आप इन काग़ज़ों पर हस्ताक्षर कर दीजिए । आपके आते तक इस कमरे को किराए पर दे दिया जाएगा ।
कार में रास्ते भर मेघा कहती जा रही थी कि वरुण हमने इतने बड़े बच्चों के सामने माँ को वृद्धाश्रम भेजकर गलत किया है । मुझे डर लग रहा है कि हमारे बच्चे हमारे साथ कैसा व्यवहार करेंगे ।
विनीता पीछे की सीट पर बैठे हुए सोच रही थी कि “ना जाने कैसा ज़माना आ गया है “ अभी भी मेघा के मन में माँ के गुजरने का दुख नहीं है अभी भी उसे अपने भविष्य की चिंता सताए जा रही है ।
के कामेश्वरी
के कामेश्वरी