मां का दर्द मां बनके ही समझ आता है।- अर्चना खंडेलवाल 

मां यह क्या इतना सारा आटा सेंक रही हो!!मैं इतने सारे लड्डू नहीं ले जाऊंगी, खाऊंगी तो मोटी हो जाऊंगी, आप कुछ कम कर लो, बहुत समय भी लग जायेगा और हमें बहुत सारे काम भी निपटाने है, मार्केट भी जाना है और शॉपिंग भी तो करनी है, सपना ने रसोई में मां सुजाता को कहा। हां, बस थोड़ा सा समय लगेगा, मैं घी में आटे को सेंक लेती हूं, लड्डू रात को बांध लूंगी, सुजाता जी ने कलछी चलाते हुए कहा।

पर मां इतने सारे लड्डू बनाओगी!! आपकी तो एक ही बेटी है और किसको बांधने हैं, सपना ने फिर कहा। तू भूल रही है सपना तेरे एक भाई भी है, मेरे लिए तो बेटा बेटी दोनों बराबर हैं, घर में कोई भी चीज बनेगी तो दोनों के यहां जायेगी। मां, आप भी कमाल करती हो, भला बेटे के यहां लड्डू कौन भेजता है?? वो भी उसकी शादी के बाद, भाभी को देखा है, सिर्फ अपना ही सोचती है, भैया को भी यहां आने नहीं देती, फिर भी आप वैभव भैया की इतनी फ्रिक करती हो!! मां हूं ना!! अपनी ममता को भूल नहीं सकती, नहीं भूल सकती कि जब तुम दोनों मेरे पास थे तो मैं हर चीज के दो हिस्से करती थी, ये भी नहीं भूल सकती कि मैंने तो तुम दोनों पर बराबर का प्यार लुटाया है,

तुम दोनों की हर ख्वाहिश पूरी की है, तुम दोनों में कभी भेदभाव नहीं किया, बच्चे खा लेते हैं तो मां का भी पेट भर जाता है, वैभव की जरूर कोई मजबूरी होगी। मैं अपने बच्चे को उसकी छोटी-छोटी गलतियों के लिए भुला नहीं सकती हूं, जब तक वो नहीं खायेगा, मेरे भी गले से नहीं उतरेगा, सुजाता जी भावुक हो गईं और उनकी आंखें बहने लगीं।

मां, भैया और भाभी ने आपके साथ इतना बुरा किया, जब पापा का एक्सीडेंट हुआ था, तब भी भैया मेहमानों की तरह आकर बस तबीयत पूछकर चले गए, एक रात भी अस्तपताल में नहीं रूके, भाभी तो तबीयत पूछने आई भी नहीं, आज भी उन दोनों को आपसे कोई मतलब नहीं है, पापा के रिटायरमेंट के फंक्शन पर भी भैया नहीं आये, कह रहे थे ऑफिस से छुट्टी नहीं मिली, फिर भी आप उनके लिए इतना सोचती हो, आज मेरी शादी को दो साल हो गए मुझे एक दिन भी घर रहने को नहीं बुलाया, मेरे ससुर जी के उठावणे में भी बैठने नहीं आयें, कोई रिशते-नाते से उन्हें मतलब नहीं है, फिर भी आप उनकी इतनी चिंता करती हो, सपना कहे जा रही थी।



सपना तू कितनी ही बातें याद दिला दे, पर आखिर वो है तो मेरा खून ही, अपनी कोख में रखा है, जन्म दिया है, अपने खून से सींचा है, जिस बेटे के लिए इतनी मन्नत मांगी थी, जिसे इतने लाड़ से पाला है उसके लिए ममता कम नहीं होती है, तू भी मुझे प्यारी है। मेरे लिए बेटा बेटी दोनों बराबर है, हमारा जो भी है, तुम दोनों का ही तो है, मैं तेरे लिए जितना करूंगी उतना ही बेटे के लिए भी करूंगी।

आज नहीं तो कल तो उसको समझ में आयेगा, उसे एक दिन तो महसूस होगा कि वो मुझे छोड़कर चला गया पर मैंने उसकी फ्रिक और परवाह कभी भी नहीं छोड़ी है। मां का दर्द मां बनकर ही समझ आता है, एक दिन तू भी समझ जायेंगी। सुजाता सपना के साथ मार्केट भी गई और अपनी बहू के लिए भी उपहार खरीद लिया, लड्डू और मठरी के डिब्बे भी भर लिये। सपना और वैभव एक ही शहर में रहते थे।

जब सपना को विदा किया तो बोली , देख ये दोनों डिब्बे तू उसका ड्राइवर आयेगा तो उसके साथ भिजवा देना और कहना मां ने उसे बहुत सा प्यार भेजा है। सपना को बहुत अजीब लग रहा था कि जब भैया का व्यवहार ठीक नहीं है तो ये सब करने की क्या जरूरत है। सपना ने डिब्बे भिजवा दिये, कुछ समय बाद उसके जुड़वां बच्चे हुए, सपना एक बेटे और एक बेटी की मां बन गई।

समय पंख लगाकर उड़ गया। दोनों बेटा और बेटी बाहर पढ़ाई करने चले गए। अपने पैरों पर खड़े होने के बाद दोनों बच्चों की शादी भी कर दी। सपना की बेटी भी मायके आई हुई थी, उसे विदा करना था, जब वो जाने लगी तो सपना ने दो डिब्बे और थमा दिएं। मां, ये किसके लिए है??? तेरे भाई के परिवार के लिए, उसके घर भिजवा देना और कहना मैंने याद किया है, सपना की आंखें गीली हो गईं, सपना के पति की मृत्यु हो गई थी, पेंशन से घर चल रहा था। बेटा फोन पर तो समाचार पूछता था पर कभी साथ रहने को नहीं कहता था।

मां, भैया को ये सब भिजवाने की क्या जरूरत है??? मां हूं ना, मां की ममता, मां का दर्द मां बनकर ही समझ में आता है,जब तेरी नानी ये सब कहती थीं तो मुझे समझ नहीं आता था, मैं तेरी ही तरह गुस्सा करती थी। सपना की बेटी कुछ समझ नहीं पाई और विदा ले ली। आज सपना ने मां की तस्वीर के आगे हाथ जोड़कर क्षमा मांगी।

मां, मैंने तुम्हें हमेशा भैया के लिए कुछ करने से रोका, उस समय मैं नादान थी, आपकी ममता को पहचानी नहीं, अब खुद मां हूं मेरे लिए भी बेटा बेटी बराबर ही है। दोनों के लिए एक जैसा ही करने का मन करता है। पाठकों, एक मां के लिए सभी बच्चे बराबर होते हैं, बेटा हो या बेटी वो दोनों को समान रूप से प्यार करती है। बच्चे चाहें कितनी भी गलतियां कर लें, मां के ममता के सागर में वो गलतियां जाकर खो जाती है, मां तो जन्म से लेकर उसके बड़े होने तक अपने बच्चे की फ्रिक और परवाह ही करती है। मां अपने बच्चे की खुशी के लिए हर दर्द सह लेती है।

धन्यवाद लेखिका

अर्चना खंडेलवाल ✍️

#दर्द

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