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माँ जैसी – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा 

जब से छोटी बहू को काल ने असमय दुनियां छोड़ने पर मजबूर किया था, तब से माँ जी को जैसे आघात सा लग गया था। हमेशा यही कहकर रोती रहती ,कि पहले भगवान ने मुझे क्यों नहीं उठाया। बहू दो नन्हे-नन्हे बच्चों को छोड़ गई थी। बच्चों पर नजर पड़ते ही उनके दिल में हूक सी उठती थी, जो उनके बिमार शरीर के लिये और खतरनाक थी । अस्वस्थ रहते हुए भी वह हरदम उन मासूमो को निहारती रहती । आज बच्चों के मोह में वह अपने कमरे से बाहर निकल आई थीं। सामने डाइनिंग टेबल पर

दोनो बच्चे चुपचाप नास्ता कर रहे थे। उन्होनें पूछा-“बेटा क्या है नास्ते में?”

रोटी-सब्जी है दादी।

वे मन ही मन सोचने लगी कि जो बच्चे रोटी देख नाक-भौ सिकोरते थे वे कैसे बिना कुछ बोले चुपचाप खा रहे हैं।उनकी आखें भर आईं। खुद को समान्य करते हुए पूछा -“तुम्हारे दोनो भैया-दीदी कहाँ गये ? उन दोनों को नास्ता नहीं करना है क्या?”

“दादी वे लोग बड़ी माँ के कमरे में ही नास्ता कर रहे हैं।” बच्चों ने भोलेपन से जवाब दिया।



“क्यूँ? सब साथ में नास्ता करते थे अब क्या हुआ?”

बड़ी बहू कमरे से निकलकर बोली-“अरे माँ जी छोड़िये न, क्या हुआ खाने से मतलब है…कहीं कोई खा लेगा..क्या फर्क पड़ता है”! मैनें मना किया था पर जिद करने लगे कि मेरे पास ही खायेंगे।

“इन्हें भी साथ में खिला देती”। एक तो भगवान ने इनसे इनकी माँ को छीनकर इनके साथ ना इन्साफी की! कम से कम इन बच्चों का साथ मत छीनो इनसे !”

“माँ जी, आप ऐसे क्यो बोल रही हैं।मैं भी इनकी माँ ही हूँ चाहे बड़ी माँ ही सही!”

“अच्छा छोड़ो! मैनें तो बस इतना ही कहा है कि जैसे पहले सब साथ में ही खाया करते थे वैसे ही अभी भी खायें और क्या!”

पाँच साल के पोते ने मुँह में रोटी का टुकड़ा रखते हुए बोल उठा – “दादी मम्मी वाला आलू का पराठा कब बनेगा? मैं रोज-रोज रोटी नहीं खाऊँगा, मुझे सब्जी भी पसंद नहीं है।”

सुनकर माँ जी के कलेजे में कचोट सी उठी। अब उस मासूम को क्या बताती कि पसंद-नापसंद की परवाह करने वाली पर काल को भी दया नहीं आई।

बेचारी खुद से तो बना नहीं सकती। बीमारी से लाचार थी, पर उन्होनें दिलासा देते हुए कहा-“मेरा राजा बेटा कल पक्का बनेगा ठीक है न।”

दोनो बच्चे खुश हो गये।

“ठीक है दादी उसमें थोड़ा मक्खन भी लगा देना! मम्मी लगाकर देती थी।”



*सुबह जल्दी उठकर वे धीरे-धीरे बड़ी बहू के कमरे की तरफ आ रही थी,कि सामने बड़ी पोती दिख गई। उन्होनें कहा-“सुनो बेटा आज माँ को बोलना कि तुम सब बच्चों के लिए आलू का पराठा बना देगी नास्ते में”!

“क्या दादी आप भी ! आलू पराठा !

“दो दिन से तो माँ आलू पराठा ही बना रही है!”

स्वरचित तथा मौलिक

डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर,बिहार

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