मां बिना मायका 

मानवी एक ऐसी लड़की है जिसकी मां नहीं है. जब वह एक साल की थी तभी एक गंभीर बीमारी के कारण उसके मां की मौत हो जाती है. उसके पिता ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया. मानवी के पिता ने अपनी बेटी को संस्कार देने की तो बहुत कोशिश की लेकिन अभी भी बहुत कमियां रह गई थी. आखिर एक अकेला बाप कितना ही कर लेता. लेकिन उस बात को वह नजर अंदाज भी नहीं कर पाते थे. क्यों की मानवी बिना कुछ सोचे समझे किसी को भी कुछ भी बोल देती थी. लेकिन अब मानवी की शादी की उम्र हो गई थी. इसलिए हर पिता की तरह उसके पिता भी उसकी शादी करवाना चाहते थे.  एक दिन उनके पारिवारिक पंडित जी को मानवी की फोटो दिखाते हुए कहते है,

“यह मेरी बेटी है इसके लिए कोई योग्य लड़का हो तो बताना… बेटी हर काम में कुशल और गुणी है!”

“जी भारत जी हम गुड़िया के लिए लड़का तो देख ही रहे thez पर क्या है ना की आपकी बेटी बिना मां के पली-बढ़ी है, तो जब भी मैं कोई लड़के वालों को यह बात बताता हूं तो वह शादी करने से मना कर देते है. आप ही बताओ मैं कहां से गुड़िया के लिए योग्य वर ढूंढ कर लाऊं!”

“पर पंडित जी क्या बिन मां की लड़कियों की शादी नहीं होती है क्या… आप एक बार कोशिश तो कीजिए कोई ना कोई लड़का हो तो मेरी बेटी की जिंदगी सुधर जायेगी. अब मैं भी कितने दिन रहूंगा अपनी बेटी के साथ.!”

“जी बात तो आपकी सही है, भारत जी ठीक है मैं एक-दो दिन में आपको कॉल करके बताता हूं. फिर कुछ ही दिन बाद पंडित जी का फोन आता है और शारदा नाम की औरत अपने बेटे आयुष के साथ मानवी देखने आती है.

“बहन जी यह मेरी बेटी मानवी है, इसको मां तो बचपन में ही इसे छोड़कर चल पड़ी, और इसकी परवरिश में तो मैने कोई कमी नहीं छोड़ी. बेटी को घर का सारा काम आता है! अब आप ही देख लोजिए अगर आपको मानवी बेटी पसंद है तो…”

“भाई साहब हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मानवी बिना मां की बेटी है, हमे तो आपकी बेटी पसंद है आप अपनी और अपनी बेटी की मर्जी हमें बता दीजिए…”

आयुष को तो मानवी तभी पसंद आ गई थी जब उसे पहली बार देखा था. और भारत जी को भी बेटा तभी पसंद आ गया था जब उन्होंने उसकी फोटो देखी थी. अब शादी की तारीख निकलवाई और एकलौती बेटी मानवी की कुछ ही दिनों में शादी हो जाती है. विदाई के समय शारदा कहती है,

“बस अब आप अपनी बेटी की चिंता छोड़ दीजिए, आपकी बेटी अब हमारी बेटी हुई…”



शारदा अपनी बहू का बहुत ख्याल रखती है. और आयुष भी मानवी से बहुत प्यार करता है. लेकिन मानवी अपने ससुराल में किसी से भी ढंग से बात नहीं करती है. 

एक दिन शारदा ने अपनी बहू से कहा, 

“अरे बेटी तुम कुछ खाती क्यों नही हो… देखो कितनी दुबली पतली हो गई हो!” 

“अच्छा मुझे नही खाना माजी आप कुछ अच्छा बनाती ही नही है हर दिन बस रोटी सब्जी और दाल चावल खा खा कर मैं तो पक गई हूं… मुझे नही खाना!”

“ठीक है बेटी गुस्सा मत हो मैं तेरे लिए कुछ अच्छा सा बना दूंगी तू बस अपना और आयुष का ध्यान रख…” 

“नहीं रहने रिजियेज मैं खुद ही बना लूंगी…”

फिर मानवी वहां से चुप चाप चली गई. और शारदा इतनी अच्छी थी की उसे पता था की मायके में बहु की मां नही थी इस लिए वह बात का बुरा भी नहीं मानती और हर वो कोशिश करती जिस से मानवी को मायके की याद ना आए.. लेकिन मानवी फिर दूसरे दिन जब शारदा उसको सास पनीर की सब्जी, पुलाव, पूरियां जैसे अच्छे अच्छे व्यंजन बनाती है तो मानवी वहां आ जाती है, और अपनी सास से पूछने लगी,

“क्या बना रही हो खाने में?”

“आज तो बेटी मैने बहुत अच्छी-अच्छी चीजें बना रही हूं… पुलाव, पूरियां, पनीर की सब्जी…”

“क्यों की मेहमान आने वाला है क्या…?”

“अरे नही बहु कोई मेहमान आएगा तभी घर में अच्छा खाना बनेगा क्या! यह सब तो मैं तुम्हारे लिए बना रही हूं…”

“मेरे लिए! क्यो अच्छी बन ने का नाटक करती है आप?”

“लेकिन बहु तूने ही तो कहा था, की रोज दाल चावल नहीं खा सकती इसलिए मैंने यह सब बना लिया…”

“अच्छा आज ऐसा बनाया लेकिन कल से तो वही बोरिंग खाना ही खाना पड़ेगा ना! इसलिए अच्छी सास बनने का दिखावा बंद ही कीजिए…”

शारदा मानवी बहु के लिए कुछ भी अच्छा करती तो भी उसकी बहू उसे उल्टा ही जवाब देती. लेकिन शारदा भी अपनी बहू की किसी भी बात का बुरा नहीं मानती है. अगले दिन शाम को जब मानवी पति आयुष के कपड़ों पर प्रेस कर रही थी तभी उसकी सास वहां आती है,

“बहू कैसे प्रेस कर रही है… सिलवट तो निकल ही नहीं रही तो!” 

“अच्छा आप ही बता दो कैसे करूं!  हर बात पर तो आप मेरे सर पर खड़ी रहती हो हर काम में रोका टोकी करती हो… मेरे पापा ने कभी ऐसा नहीं किया मेरे साथ…”



ऐसे में आयुष कमरे के बाहर से मानवी को अपनी मां से ऐसे बात करते हुए देख लेता है, और उसे बहुत गुस्सा आता है. वह गुस्से से अपनी पत्नी मानवी से कहता है,

“तुम मां से ऐसे बात कैसे कर सकती हो मानवी! वो तुम्हारे लिए इतना कुछ करती है फिर तुम उनसे अगर तमीज से बात भी कही कर सकती तो दूर ही रहे…”

” अच्छा आज अपनी मां के वकील बनकर आए है, सुनिए जी मैं तो तमीज से बात कर लेती लेकिन आपकी मां ही ऐसे कामों में रोक टोक करती रही तो मैं क्या करू…”

“बस मानवी अपने जबान पर लगाम लगाओ, तुम अब हद से ज्यादा बोल रही हो…”

“जाने दीजिए आपको क्या कहना जैसी मां वैसा बेटा….”

फिर आयुष अपनी मां से कहता है,

“मां आपसे मानवी ऐसे बात करती है हर बार और आप सुनती रहती है… बोलती क्यों नहीं हो?”

 “क्या बोली बेटा अब इस बेचारी पर बचपन से ही मां का साया नहीं रहा है… बस पिता अकेले ने इसकी परवरिश की है इसलिए मां क्या होती है इसे पता ही नहीं है…”

“पर मां इसका मतलब यह तो नहीं ना कि मानवी आप से बदतमीजी करें, इसकी मां नहीं है तो इसको तो ज्यादा पता होना चाहिए कि मां क्या होती है…”

“नहीं बेटा वो इस घर में नई आई है थोड़े दिन बाद खुद ही समझ जाएगी…”

अपनी मां की यह बात सुन आयुष कुछ समझ नहीं पाया और कुछ देर तक गुस्से में वही खड़ा रहता है. और फिर अपने कमरे में चला जाता है. रात को राहुल श्रद्धा से कहता है,

“तुम हमेशा ही मां से ऐसे बात करती हो, तुम भी समझने को कोशिश क्यों नही करती की वो तुम्हारे लिए कितना करती है…”

“अरे तुम अपने मां के प्यार में अंधे हो गए हो कि तुम्हें कुछ दिखाई भी नहीं देता, मैं तो माजी से तमीज से ही बात कर रही हूं लेकिन वही पता नहीं क्यों मेरे पीछे पड़ी रहती है…”

“जो भी हो आज के बाद तुम मां से तुमने ऊंची आवाज में बात की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा…”

लेकिन उसके ऊपर इस बात का कोई असर नहीं हुआ. शारदा ने जब दूसरे दिन अपनी बहू से कहा, 

“बेटी मैं खाना बना लेती हूं तू कपड़े धोने चली जा…”

“अरे नहीं मां मैं कपड़े नहीं धोने वाली… मुझे अपनी सहेलियों के साथ घूमने जाना है, और रात को ही लौटूंगी.



“अच्छा हां जरूर जाओ पर कहां जाना है और कब आओगी बेटी ये तो मुझे बताती जाओ..”

“अच्छा तो अब मुझे इस घर में रहने के लिए हर काम आपसे पूछ कर करना पड़ेगा! मैंने कभी अपने पिता से कभी नहीं पूछा ना ही बताया! 

“अरे ठीक है बेटी पर अगर आयुष मुझसे पूछेगा तो मैं क्या जवाब दूंगी उससे मैं बात कर लूंगी…”

अब मानवी चली जाती है और वहां पर उसकी सभी सहेलियां अपनी अपनी सास की बुराई कर रही थी. तभी एक सहेली मानवी से कहती है, 

“हम सब अपनी सास की बुराई कर रहे है लेकिन तुमने तो अपनी सास की बारे में कुछ भी नहीं कहा…”

“अब क्या बताऊं मेरी सास तुम्हारी सास की तरह नहीं है, क्यों की ना वह मुझ पर हुकुम चलाती है और ना काम करवाती है…”

“अच्छा तो इसका मतलब तुम्हारी सास मां जैसी है…”

“क्या? सच में मां ऐसी होती ही है?”

अपनी सहेली की बात सुनकर मानवी बड़ी हैरान हो जाती है. वह इसके बारे में सोचती है. अगले दिन उनके घर में शारदा की भाभी रमा और उनका बेटा राजेश आ जाते है,

“अरे भाभी अचानक कैसे आना हुआ…”

“मैं तो यहां बेटे राजेश के लिए लड़की देखने आई थी. तो सोचा तुमसे भी मिलती चलूं…” सभी सोफे पर बैठ जाते है तभी सरिता दोबारा से कहती है,

“लड़की तो ठीक थी लेकिन बेटे राजेश को वह पसंद नहीं आई… पर यह बताओ तुम्हारी बहु कहीं दिखाई नहीं दे रही!”

फिर शारदा अपनी बहू को बुलाती है. और सास की आवास सुन मानवी नीचे आकर सोफे पर सबके साथ वहां बैठ जाती है. और उनसे बात करने लगती है. तभी शारदा अपनी बहू से कहती है,

“बेटा जरा चाय तो बना कर ले आओ…”



“क्या माजी मैं सुबह से सब कुछ कर रही हूं… आप ही बना दो ना… और हां अदरक भी डाल देना…”

शारदा खुद ही फिर चाय बनाने चली जाती है और मानवी वहां से उठ कर दूसरी और चली जाती है. अब रमा तो हैरान हो जाती है. और वह शारदा के पास किचन में जाकर उससे कहती है, 

“देखा तुम जब मानवी की शादी अपने बेटे से करवा रही थी सभी ने तुमको माना किया था पर तुमने किसी को बात नही मानी.”

“पर मैं इसे अपने घर ले आई ताकि ऐसे मैं एक मां का प्यार दे सकू मां क्या होती है इसे एहसास करवा सकू.”

“वो सब ठीक है पर यह तो तुम्हारे सर पर चढ़कर नाच रही है…” 

“नही वो तो बस नई आई है ना धीरे से समझ जायेगी… क्यों की प्यार से ही किसी को बदला जा सकता है ना भाभी!”

बाहर से मानवी अपनी सास की बात सुन लेती है और मन में सोचती है,

“माजी मुझे अपनी बेटी समझती है. लेकिन मैं ही कभी अपनी मां नहीं समझ पाई.”

और अगले दिन जब मानवी के पिता उनके घर आते है. मानवी उन्हें देखकर बहुत खुश होती है. और मानवी के पिता शारदा  से कहते है,

“जी मेरी बेटी आपको परेशान तो नहीं करती ना…”

“मानवी के पिता सब का हाल-चाल पूछते है और सास कहती है,

“अरे नहीं भाई साहब मैंने कहा था ना आपकी बेटी मेरी बेटी है मैं बिल्कुल मां की तरह ही उसका ख्याल रखती हूं!”

“हां वो तो इसके चेहरे की खुशी ही बता रही है… कि मेरी बेटी आपके घर में कितनी खुश है…”

“हां पिताजी मैं बहुत खुश हूं… मुझे लगता ही नहीं कि यह मेरी सास है मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि यह मेरी मां है!”

मानवी ने अपनी सास को अपनी मां के रूप में स्वीकार कर लिया था. और आखिर शारदा ने भी अपनी बहू का दिल जीत लिया था.

 

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