लिफाफे वाली राखी – संजय मृदुल

सोहम हाथों में राखी लिए सोच रहा कि ज़रा सी बहस क्या हुई, तनातनी क्या हुई, बातचीत बंद कर दी अनु ने।

सोहम को बचपन याद आ गया, जब छोटी छोटी बात पर दोनों झगड़ पड़ते थे। कई कई दिन बात न करते, तब अम्मा पुल का काम करती दोनों के बीच। अक्सर होता ये की सोहम ही मनाता अनु को। कभी चॉकलेट से कभी उसकी पसन्द की आलू टिकिया से। अनु भी जानबूझकर नाराजगी बनाये रखती की इसी बहाने उसे ये सब मिल जाता।

भाई बहन के बीच अगर मान मनौवल ना हो, सच्चे-झूठे झगड़े, रूठना- मनाना ना हो तो प्यार भी नहीं बढ़ता।

अनु और सोहम बड़े होते गए तो लड़ाइयाँ कम होती गयी और एक दूसरे के लिए स्नेह बढ़ता गया। छोटी-छोटी बातों की फिक्र एक दूसरे के लिए, साथ घूमना फिरना। जैसे भाई बहन कम दोस्त ज्यादा हों।

अनु की शादी हो गयी, दूरियां बढ़ी तो प्यार भी बढ़ गया। सोहम रोज जब तक एक बार बात न कर लेता उससे तो चैन न पड़ता। हर त्योहार पर ढेरों उपहार लेकर जाना। अपनी शादी के बाद भी सोहम ने ये सब बनाये रखा।

अब इतने सालों के बाद जब अम्मा और पापा नहीं है सोहम ने हमेशा प्रयास किया कि अनु को मायके में कोई कमी न हो। अम्मा पापा के जाने के बाद उसे ये ना लगे कि अब मायका नहीं रह गया।

पापा की तिथि में जब अनु आई तो किसी बात पर दोनों उलझ गए। बात क्या थी उससे ज्यादा महत्वपूर्ण ये था कि ऐसे लड़ते पहले किसी ने उन्हें देखा नहीं था। सब सकते में थे। बहस के बाद अनु ने सामान उठाया और चली गयी। पायल सोहम को कहती रही रोक लो दीदी को, बच्चे बुआ मत जाओ की रट लगाए रहे पर वो चली गयी। सोहम ने न रोकने की कोशिश की न अनु ने रुकने की।

महीनों बीत गए दोनों की बातचीत बंद थी। अब वो बच्चे न थे कि एक चॉकलेट या किसी और चीज से झगड़ा सुलझ जाए। अब रिश्ते से ज्यादा अहम मजबूत हो गया है, बड़े होने का अहसास आ गया है। उम्र के साथ परिपक्व तो हुए पर रिश्तों की डोर कमजोर हो गयी।

हथेली पर जाने कब एक आंसू की बूंद गिरी। सोहम वर्तमान में लौट आया। राखी के लिफाफे में कोई खत नहीं था, पर उसे लगा जाने कितना कुछ लिखा हुआ आया है राखी के साथ, कितनी शिकायतें, कितने उलाहने, कितना सारा स्नेह।

अभी दो दिन है राखी में, कल सुबह निकलें तो शाम तक पहुंच जाएंगे अनु के घर, सोहम ने सोचा।

एक जन्म के रिश्ते को यूँ लिफाफों का मोहताज़ नहीं होने देना है राखी कलाई में बंधे तभी तो अर्थ है उसका।

©संजय मृदुल

रायपुर

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