लेखनी की कहानी उसी की जुबानी – सुषमा सागर मिश्रा

   सेवानिवृत्ति के बाद समय के बंधन से तो सरला मुक्त हो चुकी थी मगर अब समस्या यह थी कि वह  अपने खाली समय का सदुपयोग कैसे करे ,जीवन भर ईमानदारी और परिश्रम से अनुशासित जीवन जीने वाले सरला को अब खाली बैठना बोझिल  लगने लगा था वह जब भी वह खाली बैठी तो वह अपने पुराने दिनों को याद करती जो उसकी आंखो के सामने वे सभी एक चलचित्र की भांति आते जाते रहते। ऐसे ही एक शाम को सरला पुरानी यादों में इतना खो गई कि अनजाने में ही आंखों में अश्रु कण आ गये। जिन्हें पोंछने के लिए  उन्होनें अपना  पर्स खोलकर  रुमाल निकाला  मगर साथ ही  पर्स से उनकी अपनी मनपसंद  कलम भी गिर गई, जिसे उन्होने तुरंत ही उठा लिया ।

कलम के हाथ में आते ही उन्हें ऐसा लगा जैसे कि वह कुछ बोलना चाह रही हो, किसी ने सच ही कहा है कि हर वस्तु कुछ बोलती है बस आपमें समझने की क्षमता होनी चाहिए । सरला ने रूमाल से आंखो की नमी को पोछा और कलम की ओर देखा तो उन्हें महसूस हुआ जैसे कलम कह रही हो कि  क्यों दुखी होती हो मैं तो सदैव आप के साथ ही हूं आप मुझे अपनी सहेली मान सकती हैं, बात सरला को जम गई और बैठ गई कलम और कागज ले कर कुछ लिखने के लिए और यह क्या? 

अंतर्मन में भरे विचार,उद्गार शब्दों में ढलकर कागज पर बिखरने लगे। सरला का मन खुशी से भर गया उन्हें ऐसा लग रहा था कि लेखनी के रूप एक सच्ची सहेली मिल गई हो जो उनके मनोभावो को शब्दों के रूप में ढाल कर उनके मन को हल्का कर रही है। अब तो लेखन कार्य सरला का शौक बन गया था, उनके लिखे लेख तमाम पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे जिससे उन्हें बहुत ही आत्मसंतुष्टि मिलती थी। उनके जीवन में जो खालीपन आ गया था वह धीरे धीरे भरने लगा। ऐसी ही एक रात सरला कुछ लिख रही थी और उनकी लेखनी तीव्र गति से कागज पर दौड़ रही थी,

 अचानक उन्हें लगा कि कलम लगातार टेढ़ी हुई जा रही थी , बहुत संभालने के बाद भी सुचारु रूप से नहीं चल पा रही थी तभी सन्नाटे में मीठी सी आवाज सुनाई पड़ी कि सहेली, आप सब की कहानी लिखती हो कभी मेरे बारे मे भी लिखो, सरला ने इधर उधर देखा मगर उनकी समझ में नहीं आया कि आवाज कहाँ से आ रही थी, चारो ओर सन्नाटा पसरा हुआ था केवल झींगुर की झनझनाहट सुनाई पड़ रही थी ।



 सरला ने पुनः लिखने की कोशिश की मगर पुनः वही आवाज सुनाई पड़ी तब सरला ने ध्यान दिया कि आवाज तो कलम से आ रही थी वह कुछ कहने को मचल रही थी। सरला आश्चर्य चकित रह गयी, लेखनी ने पुनः मचलते हुए कहा कि आप मुझसे इतना लिखवाती हो क्या आप मेरी कहानी नहीं लिखेगीं? सरला ने आश्चर्य से पूछा “क्या तुम्हारी भी कुछ कहानी है, तुम तो धातु की बनी हुई निर्जीव वस्तु हो तुम्हारी क्या कहानी हो सकती है? कलम ने तपाक से उत्तर दिया कि जब सब की कहानी हो सकती है तो मेरी क्यों नहीं हो सकती है ,

यदि आप लिखने को तैयार हो तो मैं अपनी कहानी स्वयं लिखना चाह रही हूं ,सरला ने अपनी अभिरुचि दर्शाते हुए कहा कि “अच्छा तुम बताओ मैं लिखूंगी तुम्हारी कहानी”।तो सरला की लेखनी ने लिखना शुरू किया “लेखनी की की कहानी उसी की जुबानी”।

          लेखनी बोली “मेरी कहानी मानव सभ्यता के साथ ही प्रारम्भ हो गई थी, जैसे जैसे मानव ज्ञान में वृद्धि और विकास होता गया वैसे वैसे मेरा भी रूपान्तरण होता गया। पाषाण काल में मनुष्य ने  अपनी भावनाओं को अंकित करने के लिए पत्थरों पर लिखना शुरू किया जिसके लिए मैने नुकीले पत्थर का रूप धारण कर आघातो को सह कर बड़े बड़े पत्थरों पर अंकन प्रारम्भ कर दिया, यद्यपि इसके लिए मुझे अथाह पीड़ा को सहना पड़ता था। इसके बाद मैने पंक्षी के पंखो का रूप लेकर अपने नाम को सार्थक करने में जुट गई। ताम्रपत्र एवं भोजपत्रो पर मैने अनेको काव्य एवं ग्रन्थों की रचना की  यद्यपि मैं अधिक समय तक अपनी सेवाएं नहीं दे पाती थी कठोर आधार  पर सरकते सरकते मेरे होंठ सूख जाते थे फिर भी मैं स्वयं को भाग्यशाली मानती हूं कि मुझे ऋषि मुनियों ने सादर अपनाया और मैं एक पवित्र ऋषिकन्या की भांति सम्मानीय बनी हुई थी, वेद, पुराण आदि को मेरे द्वारा ही लिखे गये जो कि आज तक पूज्य प्रतिष्ठित है। 



           सभ्यता के विकास के साथ साथ मेरा विकास शुरू हुआ मैं पूर्व की अपेक्षा और सुदृढ़ एवं  सुव्यवस्थित होती गई। अपने पंख का रूप बदलकर मैं बांस और सरकंडी के रूप में ढल गई , मैंने अपनी इसी इन्हीं रूपों द्वारा अनेक ग्रन्थों  और महाग्रन्थों सहित काव्य एवं महाकाव्य को रच डाला। आधुनिक काल के इस चरमकाल में मेरा भी चरम विकास हुआ प्रसिद्ध वैज्ञानिक वाटर मैन की कल्पना ने  मुझे उसने एक रबर की ट्यूब को निब के साथ जोड़कर मुझे नवीनता प्रदान किया अतः अब मैं सबके हाथों में  अपने नये बदलाव के साथ एवं नयी जिम्मेदारी के साथ थी।

 कुछ समय पश्चात ट्यूब के स्थान पर रिफिल का प्रयोग शुरू हो गया जिसे बार बार बदला जा सकता था। इसी के साथ मेरे सौन्दर्य में चार चांद लगाने के लिए विभिन्न रंगों की स्याही का प्रयोग प्रारम्भ हो गया फलतः मैं पूर्व की अपेक्षा अधिक तेजी से पन्नों पर सरकने लगी। और सबका मन मोहने लगी ।वर्तमान में  मैं विभिन्न धातुओं से निर्मित होकर और भी रुपवती और आकर्षक लगने लगी हूं ।संपन्न लोग मुझे कीमती धातुओं से सजा कर बहुमूल्य बनाने लगे साथ ही मुझे सजा कर रखने में अपना गौरव का अनुभव करने लगे थे मगर मेरे जीवन का उद्देश्य लिखना और आगे बढ़ना है क्योंकि मैं जानती थी यदि मैं रूक गई तो समय रुक जायगा।”

             अचानक आवाज आना बन्द हो गई ,सरला चकित होकर इधर उधर देखने लगी तो उन्होने देखा कि उसकी लेखनी उसके हाथों से छूट कर मेज पर पड़ी है उन्होने महसूस किया कि कुछ समय के लिए निद्रा देवी के आगोश में चली गई थी और लेखनी ने इस बीच अपनी कहानी सुना कर पुनः ऊर्जित कर दिया ।सरला को लगा कि उनकी लेख नी मंद मंद मुस्कान के साथ  कह रही थी अब लिखो मेरी कहानी अपनी लेखनी से।

लेखिका 

श्रीमती सुषमा सागर मिश्रा 

से  नि प्रधानाचार्या

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