लायक बेटा – रुचिका खत्री

“कविता बेटा आज मानव ने ऑफिस से छुट्टी ले ली है ना……..आनंदी जीजी आने वाली हैं………कहीं भूल तो नहीं गया….?” कविता को जल्दी जल्दी नाश्ता बनाते हुए देखकर मैंने कहा।

“हां मम्मी छुट्टी तो ले ली है लेकिन कुछ अर्जेंट काम आ गया है इसीलिए 2 घंटे के लिए ऑफिस जाना पड़ेगा लेकिन आप चिंता मत कीजिए समय पर आ जाएंगे और आते हुए स्टेशन से बुआ जी को भी ले आएंगे।” उपमा बनाते हुए कविता ने जवाब दिया।

“चलो फिर ठीक है और हां बेटा देख उनका स्वभाव थोड़ा अलग ही है बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देती है। हो सकता है कि वह तुझे भी कुछ बोल दें या कुछ ऐसा जो शायद तूने कभी सोचा ना हो या फिर कुछ ऐसी बात जो तुझे बुरी लग जाए या मेरे बारे में कुछ उल्टा सीधा।  कहने का मतलब यह है कि उनसे थोड़ा संभल कर रहना। देख बेटा तू जानती है मैंने मानव को जन्म नहीं दिया है लेकिन मानव को दूध पिलाया है पाल पोस कर बड़ा किया है दुनिया चाहे कुछ भी कहे लेकिन वह मेरा बेटा है और तू मेरी बहू……..

“मम्मी…. मम्मी…..एक मिनट मानव मुझे बता चुके हैं कि आनंदी बुआ का स्वभाव कैसा है और रही बात यह कि आप ने मानव को जन्म नहीं दिया है तो ये शायद मानव की और मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी बदकिस्मती है कि मानव ने आप की कोख से जन्म नहीं लिया है।  क्योंकि अगर मानव की असली मां भी होती ना तो भी शायद वह मानव को इतना प्यार नहीं दे पाती जितना आपने दिया है। शायद वह मुझे इतना मान नहीं दे पाती जितना आपने दिया है। लोग तो बहू को बहू नहीं मानते आपने तो मुझे अपनी बेटी मान लिया है इसीलिए आप ये बात भूल जाइए की आपने मानव को जन्म नहीं दिया है मानव आपका बेटा है और हमेशा रहेगा और यह बात यहीं पर खत्म हुई। और रही बात बुआ जी की तो आने दीजिए उनको भी अगर किसी ने मेरी मम्मीजी को कुछ कहा ना तो देख लीजिएगा अच्छा नहीं होगा।”  अपनी और मेरी भीगी हुई आंखों के कोर पोंछते हुए कविता ने कहा।




दोपहर में लगभग 1:00 बजे जीजी आ गई हाथ मुंह धो कर उन्होंने हम सबके साथ खाना खाया।  कुछ औपचारिक बातचीत हुई और सब अपने अपने कमरे में आराम करने चले गए क्योंकि शाम को जीजी की डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट थी। और मानव को उन्हें हॉस्पिटल लेकर जाना था। कविता भी अपने सारे काम निपटा कर आराम करने चली गई। शाम को जीजी तैयार हो गई और मानव उन्हें लेकर डॉक्टर के पास चला गया। कुछ टेस्ट करवाएं दवाइयां दिलवाई और आगे के इलाज के बारे में सारी जानकारी भी ले ली। सब कुछ अच्छे तरीके से हो रहा था। रात को सब थक चुके थे इसीलिए मैंने कविता से जल्दी बिस्तर लगाने को कहा ताकि सभी आराम कर सके लेकिन थकावट के बावजूद जीजी को नींद नहीं आ रही थी इसलिए वह मेरे पास आ गई।

“संगीता भाभी……शायद मैं इस लायक तो नहीं हूं लेकिन फिर भी मुझे माफ करोगी…..?” अचानक मेरे कमरे में आकर आनंदी जीजी कब मेरे सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गई मुझे तो पता ही नहीं चला। लेकिन जब उन्होंने ये शब्द कहे तो मैं हिल सी गई और पलंग से उठ खड़ी हुई।

“माफी…… लेकिन किसलिए जीजी…..?” उनके हाथों को अपने हाथों में लेकर मैंने कहा।

“भाभी तुम सब जानती हो लेकिन शायद भूल चुकी हो और मैं भी भूल ही चुकी थी। लेकिन आज तुम्हारे लायक बेटे और अपने तीन नालायक बेटों की बराबरी करके देखी ना तो समझ में आ गया और सब कुछ याद भी आ गया।  कि खून चाहे अपना हो या किसी और का अगर बच्चों में संस्कार नहीं डालेंगे तो वह नालायक ही बनेंगे लेकिन भाभी तुमने मानव को जो संस्कार दिए हैं ना वह झलक रहे हैं। तुम्हारी परवरिश तुम्हारे संस्कार तुम्हारी ममता बस इसी वजह से मानव इतना अच्छा इंसान बना है।”




“जीजी जो हो गया सो हो गया मैं तो कब की भूल भी चुकी थी आपकी उन शब्दों को। और रही बात परवरिश की तो 12 साल बांझ होने का दर्द सहा है मैंने इसीलिए जब मानव के रूप में मुझे संतान मिली तो अपनी तरफ से मैंने पूरी कोशिश की कि उसे बहुत सारा प्यार दे सकूं ममता लूटा सकूं। लेकिन साथ ही में यह कभी नहीं भूली की जितना जरूरी उस बच्चे के लिए प्यार है उतना ही जरूरी संस्कार भी है। जानती है जब मानव कोई गलती करता था ना तो मैं उसे जी भर कर डांटती थी लेकिन जब वह रोता था ना तो उसे गले लगाती थी चुप कराती थी और साथ ही साथ उसे समझाती भी थी कि उसने कहां पर और क्या गलती की है और इसका परिणाम क्या हो सकता है जिसके चलते उसे सही और गलत के बीच का फर्क समझ में आने लगा।”

“सही कहती हो संगीता भाभी बच्चों को सही और गलत क्या फर्क जानना बहुत जरूरी है तभी उनमें सही संस्कार आएंगे और समझ आ आएगी। लेकिन मैं तो इस गुरुर में ही रह गई कि मेरे तीन बेटे हैं नहीं जानती थी कि तीनों में से किसी एक को भी मैं सही संस्कार और सही परवरिश नहीं दे पाऊंगी। और आज तीनों ही बेटे इतने बड़े हो गए हैं कि उन्हें अपनी इस माह की भी जरूरत नहीं है जानती हो जब डॉक्टर ने मुझे इलाज के लिए कहा ना तो तीनों ने ही मेरा इलाज करवाने से मना कर दिया लेकिन जब यह बात मानव को पता चली तो उसने खुद आगे होकर मुझसे कहा कि बुआ आप यहां आ जाओ मेरी बहुत जान पहचान है मैं आपका इलाज करवा दूंगा। और एक मैं थी जो सोने सिक्के को गंदा खून कह रही थी। भाभी मुझे माफ कर दो जब आप ने मानव को गोद लिया था ना तब आप के खिलाफ सबसे पहले मैं ही खड़ी हुई थी और जाने अनजाने आपको बहुत दुख पहुंचाया था।”




“जीजी सच कहूं तो आपके कहे हुए शब्द मैं कभी नहीं भूल सकती जब मानव को गोद में उठाकर आपने कहा था कि “गोद ही लेना था तो अपने ही परिवार के बच्चे को लेती लेकिन ये तो न जाने किसका गंदा खून होगा और कौन सा सुख देगा तुझे….. खैर कम से कम बांझ होने का धब्बा हट जाएगा।” जवाब तो मैं उसी दिन देना चाहती थी लेकिन मेरे संस्कारों ने मुझे रोक लिया था और उसी पल मैंने खुद से यह वादा कर लिया था कि “खून चाहे किसी का भी हो लेकिन अब यह मेरा बेटा है और इसे मैं अच्छी परवरिश अच्छे संस्कार दूंगी शिक्षा दूंगी एक अच्छा इंसान बनाऊंगी ताकि मैं शान से कह सकूं कि यह मेरा बेटा है।” सच कहूं तो वाकई में मैंने वह सब कुछ किया भी लेकिन मेरा साथ मेरे इसी लायक बेटे ने दिया भी……मैंने इसे जो परवरिश दी जो संस्कार दिए….. उसने उसे अपनाया भी है और सार्थक भी बनाया है।”

“बिल्कुल सही कहा भाभी……… उसने सार्थक बनाया है तभी तो आज मुझ जैसी बेअकल को यह समझ में आया है कि खून चाहे किसी का भी हो एक बच्चा कोरी मिट्टी होता है जिसे संस्कार परवरिश और शिक्षा देकर सही आकार दिया जाता है एक अच्छा इंसान बनाया जाता है। मेरे तीनों बेटे तो मैंने अपने है ना मेरा ही खून है लेकिन फिर भी मैं उन्हें लायक नहीं बना पाई लेकिन तुम्हारा यह बेटा लायक बन गया भाभी तुम्हारे संस्कार तुम्हारी परवरिश जीत गई और मेरी झोली में आए तीन नालायक बेटे जिनको अपनी ही मां की कोई परवाह नहीं।”

“जीजी जो हो गया सो हो गया उसे हम बदल नहीं सकते लेकिन हां इतना जरूर कहूंगी की मानव ने खुद आपको आगे होकर यह कहा है कि वह आपकी सारी जांच भी करवाएगा और इलाज भी करवाएगा तो फिर आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए अगर उसने कोई जिम्मेदारी अपने सर पर ली है तो वह पूरी कर लेगा आखिर वह हमारे लायक बेटा जो है।”




“हां वह तो है लेकिन भाभी तुम भी मुझे माफ कर दो कभी-कभी हम ऐसे शब्दों का प्रयोग कर देते हैं जो किसी और के दिल को छलनी कर सकते हैं लेकिन उस समय हम यह भूल जाते हैं की समय बहुत बलवान है और वह लौटकर हमारे पास जरूर आता है जिस बच्चे को मैंने गंदा खून कहा था ना आज वही मेरा इलाज करवा रहा है मुझे इतना सम्मान दे रहा है मुझ जैसी औरत के मुंह पर यही सबसे बड़ा तमाचा है। मुझे माफ कर दो भाभी….. मुझे माफ कर दो।”  इतना कहते-कहते आनंदी जीजी ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और फूट-फूट कर रोने लगे तब मैंने भी आगे होकर उन्हें अपने गले से लगा लिया और इतना ही कह पाई कि “आपको अपनी गलती का एहसास हो गया यही काफी है। छोटी हूं मैं आपसे……इसीलिए बार-बार माफी मांग कर शर्मिंदा ना करें।”

धन्यवाद

#औलाद 

रुचिका खत्री

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