
लौट के आजा मेरे मीत – प्रीति सक्सेना
- Betiyan Team
- 0
- on Jul 25, 2022
एक बुजुर्ग पाठक, के अनुरोध पर कि, वो विधुर के जीवन पर, मुझसे एक कहानी, चाहते हैं, मैं प्रयास कर रहीं हूं, उम्मीद है , न्याय कर पाऊंगी।
जानती हूं, कल से मुझ ही को याद कर रहे हो, करो भी क्यों न, आज, मुझे तुमसे दूर हुए पूरा एक साल जो हो गया, आज पूजा पाठ हो रहा है घर में, ब्राम्हण भोज भी होगा, आज तो दिन भर व्यस्त रहोगे, जब फुरसत मिले तो मुझे याद करना, मैं भागी भागी, चली आऊंगी, तुम्हारे पास,साथ के लिए जीते जी तरसी हूं, तो मरने के बाद, ये मौका, कैसे छोड़ दूंगी।
ताना नहीं मार रही हूं, शिकायत कर रही हूं, जब तक साथ थी, अपनी व्यस्तता के चलते, न मुझ पर ध्यान दे पाए, न कभी मेरे मन की सुन पाए, घर के बड़े होने के कारण, सारी जिम्मेदारियां उठाने में लगे रहे, और मैं तुम्हारा, इंतजार ही करती रही।
याद आ रहा है, जब ब्याह के आई थी, छोटी उमर के थे हम, अंदर से तुम कवि हृदय, पर ऊपर से सदैव, कठोर बने रहे, अकेले में हम, जी भर के बातें करते, पर जैसे ही घर वालों के सामने आते, कभी मुझे, नजर उठा कर भी न देखते, जानती हूं, जानती हूं, बड़ों का लिहाज था। पर सच कहूं, मुझे तुम्हारा, वही रुप पसंद था जो मेरे सामने, रहता, एक पागल प्रेमी का।
बच्चों के जन्म के बाद, मैं भी तो उनकी परवरिश में उलझकर, रह सी गई थी, घर की बड़ी बहू, होने के कारण जिम्मेदारियां भी, निभानी थीं……….. बच्चे बड़े होते गए, खर्च बढ़ते गए, और तुम, हमेशा जोड़ तोड़ और गुणा भाग, में ही लगे रहे, ऑफिस की जिम्मेदारियां, कभी घर की परेशानियां, जीवन सरपट, भागा जा रहा था, और हमें भी साथ दौड़ाए जा रहा था।
बच्चे बड़े हो गए, शुक्र है, दोनों बेटे, पढ़ लिखकर लायक बन गए, अब सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी उनके लिए बहुएं, ढूंढना, पर ये सौभाग्य, बड़े पुत्र ने हमें न दिया, एक दिन अपनी सहपाठी को, हमारे समक्ष खड़ा कर दिया, मम्मी पापा, ये है आपकी होने वाली बहू, तुम, हमेशा नियमों और कायदों से चलने वाले, क्या तुम्हें, बेटे का ये रवैया, पसंद आता, क्रोध में आता हुआ देख, मैंने झट तुम्हारा हाथ उठाकर, बहू के सिर पर रख दिया, और आशीर्वाद दे दिया…….. तुम खा जाने वाली नजरों से देखते रहे मुझे, बच्चों के जाने के बाद, मैंने तुम्हें समझाने कि, कितनी कोशिश की, पर तुम कई दिनों तक नाराज़, रहे मुझसे।
जानती थी, ये नाराजगी, मुझसे नहीं, बेटे से थी, पर नए जमाने के चलन को देखते हुऐ, तमाशा करने के बजाय, उनके निर्णय को स्वीकृति देने केअलावा, मुझे कुछ सूझा नहीं।
छोटा बेटा, आपका लाड़ला रहा हमेशा, उसने तो साफ कह दिया, जहां पापा कहेंगे, मैं तो आंख मूंद के शादी कर लूंगा, उस दिन, तुम्हारे चेहरे पर, अलग सा सुकून देखा मैने…….. तुम्हें अपनी चलाने की आदत भी तो रही है न हमेशा, नाराज क्यों होते हो, मैं तो दिल्लगी कर रही थी।
खूब देख भाल के, तुम्हारे अभिन्न मित्र की ही बेटी को, छोटी बहू के रुप में पसंद किया, खूब धूमधाम से, हमने अपनी, आखिरी ज़िम्मेदारी निभा दी।
दोनों बच्चे, अपनी नौकरियों में व्यस्त हो गए, कभी कभार, हम भी उनके पास, चले जाते, पर रिटायरमेंट के बाद, तुम्हें अपना घर ही अच्छा लगता, यार दोस्त ज्यादा बनाना, पसंद था नहीं तुम्हें, अंदर ही रखते थे सारी बातें, खुश हो या दुखी, शक्ल देखकर ही अंदाजा, लगा पाती थी मैं।
आजकल थोड़ी थकावट होने लगीहै, डॉक्टर को दिखाया है पर, कमजोरी और थकान, बढ़ने लगी है, उमर बढ़ने लगी है, और तुम्हारी चिन्ता भी, तुम इतने संकोची हो कि, मेरे न रहने पर, बहुओं से, अपने मन का कुछ खाने को भी न कह पाओगे, खाने पीने के इतने शौकीन हो, कैसे अपना मन मार पाओगे…….. आजकल ज्यादा समझाइश देने लगीं हूं, और बच्चों के साथ रहने पर जोर देने लगी हूं, पर तुम टस से मस नहीं होते, ठेल ठेलकर, मुझे सुबह, घुमाने ले जाने लगे हो, खुली हवा में, पर मुझे तो तुम्हारे अकेलेपन की चिन्ता खा रही है, ज्यादा सोचती हूं न, तुमसे डांट भी तो खाती हूं।
आजकल मेरी चिन्ता, बहुत करने लगे हो, खो देने का, डर सताने लगा है न, कितनी तेज गति से दौड़ी जा रही है जिंदगी, चाहकर भी नहीं रोक पा रहे हैं हम।
पहले भी समझाती थी, आज भी कह रही हूं, बहुओं को बेटी समझना, उनसे अपने मन की बात कह देना, संकोच न करना, खाने में मनमानी न करना, दादागिरी दिखाकर, अब आंखे क्या दिखा रहे हो, अब मैं डरने वाली नहीं हूं।
हमारे साथ की, वो आखिरी रात,मैं तुमको देखकर सोई, कभी न जागने के लिए, अरे मैं तो और भी कुछ कहना चाहती थी, सुनना चाहती थी, पर ईश्वर ने मौका ही न दिया, शायद इतना ही साथ था हमारा, पर दुखी न होना, मैं तुम्हारा पीछा छोड़ने वाली नहीं, मरकर भी नहीं……..
अब मेरे जाने का वक्त हो गया, अपना ध्यान रखना, मैं यहीं हूं, हमेशा तुम्हारे पास, बिलकुल नजदीक,…………….
प्रीति सक्सेना
इन्दौर