क्यो कुछ बच्चो के पास अपने जन्मदाताओं के लिए इज़्ज़त की दो रोटी नही होती? – संगीता अग्रवाल

अपने कमरे मे गुमसुम बैठे अस्सी वर्षीय रामलाल जी बहुत कुछ सोच रहे थे। पास लेटी जीवनसंगिनी सुलोचना जो उनके सुख दुख की साथी रही थी आज लकवे के कारण बेबस पड़ी थी ।बेबस तो खुद रामलाल जी भी थे किसी बीमारी से ज्यादा अपनों से सताये हुए जो थे। अस्सी की उम्र देखभाल चाहती है यहां उन्हे अपनी बीमार पत्नी की देखभाल भी खुद करनी पड़ रही थी। 

ऐसा नही की जीवन की संध्या बेला मे रामलाल जी अकेले थे भरा पूरा परिवार है उनका दो उच्च पद पर आसीन बेटे जिसमे से एक का देहांत कुछ महीने पहले हुआ है , बहुए है। पोते पोती है  अभी अभी एक पोते का आइआईटी से इंजीनियर बन चालिस लाख का पैकेज लगा था। कुल मिलाकर उनके बेटे – पोते करोड़ो के मालिक थे। लेकिन उनके पास माँ बाप के लिए समय तो छोड़ो दो वक़्त की रोटी तक नही थी । 

पत्नी को निहारते निहारते रामलाल जी अतीत मे पहुँच गये जब उनका बड़ा बेटा जीवन कितनी मन्नतो के बाद पैदा हुआ था । एक मामूली कम्पनी मे क्लर्क रामलाल जी ने उसके जन्म की खुशी मे अच्छी खासी दावत दी थी । जीवन के होने के तीन साल बाद प्रकाश पैदा हुआ उनका घर मानो खुशियों से भर गया। उनकी पत्नी सुलोचना कम पैसो मे भी बच्चो को बेहतर परवरिश दे रही थी।

रामलाल जी ने बच्चो के बड़े होने पर उनकी शिक्षा मे कोई कसर नही छोड़ी उनकी उच्च शिक्षा के लिए अपनी गाव की जमीन यहाँ तक की अपना मकान तक बेच दिया और किराये के घर मे आ गये । कुल मिला कर बच्चो की परवरिश करने मे उन्होंने अपना सब कुछ गंवा दिया।

” रामलाल कुछ अपने लिए भी बचा कर रखता सब लुटा रहा है तू बुढ़ापे मे क्या रहेगा तेरे पास ” अक्सर उनके दोस्त बोलते।

” अरे मेरी असली पूंजी मेरे दोनो बच्चे है मेरे कंधे है ये जो कभी मुझे झुकने नही देंगे !” रामलाल जी गर्व से कहते । 




बच्चे बड़े हुए ऊँचे ओहदे पर पहुँच गये अपना परिवार भी बसा लिया अपनी नौकरी के चलते रामलाल जी अपने किसी बेटे के पास नही रह सकते थे इसलिए दोनो पति पत्नी इस आशा के साथ जी रहे थे की रिटायर होते ही अपने बेटों के पास रह पोते पोती को खिलाते हुए अपनी संध्या बेला काटेंगे। 

” सुनो बेटा जीवन मैं कल रिटायर हो रहा हूँ तुम ओर प्रकाश आ जाना !” कुछ समय बाद रामलाल जी ने फोन किया।

” पापा हम आकर क्या करेंगे भला !” जीवन बोला।

” बेटा तुम्हे तो पता है हमारे पास अपने रहने का कोई ठिकाना नही तो अब तुम हमें अपने साथ ले जाना !” रामलाल जी बोले।

” पापा अभी तो आना मुश्किल है वो क्या है ना आपके पोते  चिराग का आइआईटी मे नाम आया है तो उसके बंगलौर जाने की व्यवस्था मे लगा हुआ हूँ आप अभी वही रहिये या प्रकाश से कहिये मुझे जैसे ही समय मिलेगा मैं आता हूँ!” ये बोल जीवन ने फोन काट दिया । पुत्र मोह मे रामलाल जी जान ही नही पाए कि बेटा बहाना बना रहा है । खैर उन्होंने प्रकाश को फोन करके वही बात कही।

” पापा आप तो जानते हो मैं फ्लैट मे रहता हूँ इसमे इतनी जगह कहाँ कि आप आराम से रह सको मैं जल्द ही नया घर देख रहा हूँ जैसे ही मिलता है आपको ले जाऊंगा तब तक घर का किराया मैं भेज दिया करूंगा !” प्रकाश का जवाब था। 

” सुनो जी कही हमारे बच्चे हमें टाल तो नही रहे कही ऐसा तो नही वो हमें रखना ही ना चाहते हो अपने साथ !” सुलोचना जी ने उदास हो कहा।

” ना ना तू गलत सोच रही है हमारे बेटे लाखो मे एक है इनकी मजबूरी है वर्ना दोनो दौड़े चले आते हमें लेने के लिए !” रामलाल जी ने पत्नी को तसल्ली दी। 

वक़्त गुजरता गया दोनो बेटों मे से कोई उन्हे लेने नही आया हां मिलने दो तीन बार जरूर आये कुछ पैसे दे अपनी कोई ना कोई मजबूरी बता वो लौट जाते । अब तो रामलाल जी को भी लगने लगा शायद अफसर बेटों के लिए कलर्क पिता और अनपढ़ माँ बोझ बन रही है। इसलिए उन्होंने कुछ कहना ही छोड़ दिया उनसे और अपने ऑफिस मे ही चपरासी की नौकरी पकड़ ली जिससे पाई पाई के लिए बेटों का मोहताज ना होना पड़े। 




इधर सुलोचना जी बच्चो को याद कर करके रोती रहती और जल्द ही उन्होंने चारपाई पकड़ ली उनके शरीर् का एक हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। अब रामलाल जी पूरी तरह टूट से गये और मजबूरी मे दोनो बेटों को फोन किया। 

और आनन फानन मे बेटे आये और शहर के अस्पताल मे माँ को भरती करा दिया। जब तक सुलोचना जी अस्पताल मे रही उनकी देखभाल नर्सो के द्वारा हो जाती थी। उसके बाद उनका बड़ा बेटा जीवन मजबूरी मे अपने घर ले आया।

” पिताजी नीता ( जीवन की पत्नी ) को अपनी सोशल सर्विस से बहुत कम समय मिलता है इसलिए उससे सेवा की उम्मीद मत कीजियेगा । आप लोग यहां आराम से रहो कामवाली आपको खाना दे देगी आपको कोई परेशानी नही होगी !” ये बोल जीवन फोन पर बात करता निकल गया । रामलाल जी के ये शब्द की बेटा तेरी माँ को रोटी से ज्यादा अपनों के साथ की भूख है वो मुंह मे ही रह गये।

 दिन बीतते गये कामवाली सफाई कर जाती खाना दे जाती पानी रख जाती बाकी कोई कमरे मे झाँकता भी नही जीवन रात को दरवाजे से हाल पूछ चलता बनता। रामलाल जी का कितना मन करता बेटा पास मे बैठे दो बात करे मन तो सुलोचना जी का भी बहुत करता क्योकि बुढ़ापे मे इंसान को बच्चों के साथ की बहुत आवश्यकता होती है। अब तो उनका पोता चिराग भी दूसरे शहर मे नौकरी पर लग गया था। जीवन और उनकी पत्नी नीता अक्सर बेटे से मिलने जाते रहते। एक दिन ऐसे ही दोनो गये थे कि रास्ते मे उनकी गाडी का एक्सीडेंट हो गया झटके से दरवाजा खुलने से नीता तो बाहर गिर गई उसे मामूली चोट ही आई पर गाडी मे आग लगने के कारण जीवन की मृत्यु हो गई। बेटे की मृत्यु ने तो रामलाल जी और सुलोचना जी को बिल्कुल तोड़ दिया। दोनो दिन रात ईश्वर से शिकायत करते कि हमारे बेटे की जगह हमें उठा लेता हम तो वैसे भी बोझ है। 

” पिताजी अब आप प्रकाश भैया के पास चले जाइये क्योकि मैं सब कुछ बेचकर चिराग के पास जा रही हूँ !” कुछ दिनों बाद नीता ने बेरुखी से कहा। क्या कहते रामलाल जी जब बेटा ही नही तो बहू पर जोर तो नही दे सकते थे ना साथ ले चलने को। प्रकाश आया और बेमन से उन्हे ले गया। 




प्रकाश ने अच्छी खासी कोठी बना ली थी पर उस कोठी मे कुत्ते के लिए कमरा था माँ बाप के लिए नही उन्हे पीछे का एक कमरा दे दिया गया जो शायद घर का पुराना सामान रखने को बनाया होगा। पुराना सामान …हाँ माँ बाप भी तो बुढ़ापे मे पुराना सामान ही हो जाते है। 

” बहू अपनी सास के लिए पतली खिचड़ी बना देना जरा !” प्रकाश के घर आने के अगले दिन उन्होंने अपनी छोटी बहू मीनाक्षी से कहा।

” पापा जी अब तो खाना बन गया अब दुबारा बनाना मेरे बसका नही आप यही खिला दीजिये माजी को भी !” मीनाक्षी ने कहा थोड़ी देर बाद कामवाली आकर सूखी सब्जी ओर रोटी रख गई। लकवे से ग्रस्त सुलोचना वो भला कैसे खाती । रामलाल जी की आँखों मे आंसू आ गये कहाँ सुलोचना अपने बच्चो के लिए कम पैसो मे भी पकवानो के ढेर लगा देती थी कहाँ अब उसके बच्चो के पास पैसा तो बहुत है पर माँ बाप के लिए कुछ करना नही चाहते। उन्होंने अपने बैग से बिस्कुट का पैकेट निकाला जो वो अक्सर रखते थे कभी भूख लगे तो खाने को। कटोरी मे पानी किया और उसमे बिस्किट्स भिगो कर सुलोचना जी को खिलाने लगा। सुलोचना जी के गालो पर आँसुओ की लकीर बन गई ये लकीर अपनी बेबसी की थी या औलाद की बेरुखी की ये तो वही जानती थी। 

यहाँ आकर रोज ही रामलाल जी का अपमान होने लगा। सुलोचना को भी कभी खाना मिलता कभी नही जो खाना मिलता भी वो सुलोचना तो क्या रामलसल जी के लिए भी खाना मुश्किल हो जाता। कितनी बार वो पानी मे भिगो कर रोटी खाते और पत्नी को भी खिलाते। सुलोचना जी बिस्तर पर पड़ी सब देखती सुनती पर बोल नही पाती रामलाल जी पत्नी के सामने बहुत कोशिश करते मुस्कुराने की पर आँखे चुगली कर ही देती। एक दिन प्रकाश से उन्होंने इसका जिक्र भी किया पर वो अपने पिता पर ही भड़क गया।

“अब पापा जितना उससे बनता है करती ही है ना आज़ाद रहने वाली मीनाक्षी बेचारी आप लोगो के कारण बंध सी गई है तब भी आप उसकी शिकायत कर रहे है ।” 

सन्न रह गये रामलाल जी बेटे की मुंह से ऐसी बाते सुन । वो आंसुओ को पीते अपने कमरे की तरफ बढ़ चले । अंदर आकर देखा तो पत्नी भी रो रही थी। उन्होंने पत्नी के आंसू पोंछे और मुस्कुरा दिये।  कैसी बेबसी है ये जिस औलाद के लिए सब कुछ न्योछावर किया है उसके पास ही इतना वक्त नही कि देख सके की उनके जन्मदाताओं को दो वक़्त की रोटी भी मिल रही है या नही। 




रामलाल जी उदास बैठे रहे सुलोचना जी थोड़ी देर बाद सो गई पर रामलाल जी आँखों मे नींद कहा। क्या माँ बाप औलाद इसलिए पैदा करते है कि बुढ़ापे मे उनकी औलाद उन्हे दो वक़्त की रोटी तक को तरसाए। माँ बाप खुद भूखे रह औलाद के उज्ज्वल भविष्य के लिए निरंतर मेहनत करते है पर औलाद बड़े हो उन्हे सिर्फ तिरस्कार देती है।

” नही अब ओर अपमान नही सहूंगा कल को अगर मेरी आँखे बंद हो गई तो सुलोचना क्या करेगी ? मर भी जाएगी तो बच्चो को देखने की फुर्सत नही होगी !” ये बोल रामलाल जी उठे और अपना सामान खखोलने लगे उनके हाथ एक बक्सा लगा उसमे से कुछ निकाल उन्होंने जेब मे रखा और बाहर चले गये। 

लौट कर आये तो उनके हाथ मे दो कुल्हड़ थे जिसमे उनकी पत्नी का पसंदीदा कुल्हड़ वाला दूध था। शादी के तुरंत बाद जब वो लोग घूमने जाते थे तब सुलोचना जी इसे देख बच्चो सी मचल जाती थी। फिर बच्चे हो गये तो आभावो के कारण कभी पिला ही नही पाए वो पत्नी को दूध।

” सुलु ( प्यार से रामलाल पत्नी को यही बोलते थे) देख क्या लाया मै !” रामलाल जी पत्नी को उठाते हुए बोले।

कुल्हड़ का दूध देख सुलोचना जी की आँखों मे चमक आ गई वैसे ही चमक जो शादी के बाद आती थी।

उन्होंने पहले पत्नी को सहारा दे दूध पिलाया और फिर खुद पीकर सो गये । सुबह कामवाली आवाज़ पर आवाज़ देती रही वो नही उठे तो प्रकाश और मीनाक्षी को बुलाकर लाई।

” लो जी रात को बूढ़े बुढ़िया ऐश करते है !” कुल्हड़ देख मीनाक्षी बोली।

प्रकाश के बहुत हिलाने पर भी वो नही उठे तभी प्रकाश ने चादर हटाई तो देखा दोनो के मुंह से झाग निकल रहे है । अब मीनाक्षी और प्रकाश घबरा गये। उन्होंने अपने डॉक्टर को फोन किया उसने आकर चैक किया तो पता लगा दोनो ने कुछ जहरीला पदार्थ खा अपनी जीवनलीला खत्म कर ली। पुलिस को डॉक्टर ने ही खबर की पुलिस आई और छानबीन की तो चूहें मारने की दवाई का पैक और एक कागज मिला जिसपर लिखा था।

” हे ईश्वर तू किसी माँ बाप को औलाद का मोहताज मत बना जिसे ऊँगली पकड़ चलना सिखाया होता है उससे तिरस्कार बर्दाश्त नही होता !” 

पुलिस दोनो के शरीर पोस्टमार्टम को ले गई। रिपोर्ट के अनुसार दोनो ने दूध मे जहर मिलाकर पिया था। जो दूध कभी सुलोचना जी की जान हुआ करता था रामलाल जी ने उसे ही अपनी और पत्नी की जान लेने का जरिया चुना।

दोस्तों ये भले एक काल्पनिक कहानी है पर बहुत से घरो की सच्चाई भी है । मैं जानती हूँ यहां कुछ पाठक मुझपर ऊँगली भी उठाएंगे की बच्चे ऐसे नही होते । उनसे मेरा कहना है भले ही सब बच्चे ऐसे नही होते पर कुछ होते है । आप पिछले कुछ दिनों की ही खबरें टटोलिये आपको ऐसी कितनी खबरें मिल जाएंगी जिसमे माँ बाप बच्चो के सताये होते है। बच्चो के पास करोड़ो की संपत्ति होती है पर अपने जन्मदाताओं के लिए इज़्ज़त की दो रोटी नही होती।

 

आपकी दोस्त

संगीता

3 thoughts on “क्यो कुछ बच्चो के पास अपने जन्मदाताओं के लिए इज़्ज़त की दो रोटी नही होती? – संगीता अग्रवाल”

  1. आज का सच तो ये ही भले ही लोग इस सच से मुंह मोड़ ले
    मां बाप है तो दुनिया है नही तो वीरान है कंगाल है आप

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