क्या कहेंगे लोग – आरती झा आद्या

क्या बात है आजकल बहुत बैचेन रहते हो…पति राम के बालों को सहलाती दीया ने पूछा।

नहीं कुछ नहीं… क्यूं बालों को खराब कर रही हो…आशा के हाथ झटकता राम चाय का कप उठा घर की छत पर चला गया। 

राम की इस प्रतिक्रिया से दीया आवक सी उसे छत पर जाती देखती रह गई। इतना तो वो समझ गई कि कोई बड़ी समस्या दिल में लिए राम घूम रहा है, तभी उसने ऐसी प्रतिक्रिया दी है।

तुम जब मेरे बालों में अपने हाथ फेरती हो ना दीया तो सारी चिंता तकलीफ जाने कहां भाग जाती है। जादू है तुम्हारे हाथों में…बोलते हुए अक्सर राम दीया के हाथों को चूम लिया करता था।

जाने क्या हो गया है आजकल …खोए खोए रहते हैं। कुछ बताते भी नहीं..सोचती हुई दीया खीझ उठी।

मम्मी… दीया के दोनों बच्चे आकर उसके गले से लिपट गए।

अरे कब आए पार्क से.. दोनों को खुद में और जोर से लिपटाती दीया ने पूछा।

जब आप चुपचाप इस चाय के कप को देख रही थी… दीया की बिटिया रानू ने हँस कर कहा।

शैतान कहीं की..सब कुछ पर नजर रखती है…

हाँ मम्मी और दीदी ने कहा धीरे से चलकर मम्मी को डरा देते हैं….फिर मैने मना किया कि ये तो गलत बात होगी…है ना मम्मी… दीया के दस साल के बेटे शलभ ने अपनी शराफत दिखाते हुए कहा।

जी मेरे बच्चे बहुत समझदार हैं…चलो चलो अब कुछ खा पीकर पढ़ने बैठो… दीया कहती है।




नौ बज गए। आज बच्चों साथ बैठने भी नहीं आए… हो क्या गया है राम को..सोचती दीया छत पर गई तो राम अपने विचारों में इस कदर गुम था कि उसे दीया के आने और सामने बैठने का भी पता नहीं चला।

राम… दीया राम के हाथ पर अपनी हथेली रखती हुई कहती है तो राम चिंहुक उठता है।

क्या हो गया है राम.. कुछ तो बताओ..आज बच्चों के पास भी नहीं गए। नौ बजे तक छत पर बैठे हो। ऐसी क्या समस्या है… दीया अपनत्व से पूछती है।

क्या है यार..पीछे ही पड़ गई हो। बच्चे कहीं भागे जा रहे हैं या खाना कहीं भागा जा रहा है… जाओ तुम, आता हूं मैं…बेरुखी से जवाब देता राम कुर्सी घुमा दीया की ओर पीठ करके बैठ गया।

सॉरी दीया…आजकल दिमाग काम नहीं कर रहा है इसीलिए…नजर नीची कर डिनर करते हुए राम में कहा।

कोई बात नहीं.. दीया भी कहकर चुपचाप खाने लगी।

दीया वो फैक्ट्री का काम मंदा पड़ गया है…समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं क्या ना करूं… राम ने दीया से कहता है।

ओह सब ठीक हो जाएगा राम…तुमने पहले क्यूं नहीं बताया। मैंने शौकिया तौर पर पार्लर का कोर्स किया था, वो तो मेरे काम आ ही सकता है ना। मैं नीचे वाले कमरे में पार्लर खोल लेती हूं। तुम्हारे कर्मचारियों की पत्नी में से कोई ना कोई ये सब जानती ही होगी। उनकी सहायता ले लेंगे…उन्हें भी काम मिल जाएगा और हमें सहायक…




इसीलिए तुम्हें नहीं बताना चाहता था दीया… देवप्रसाद जी की बहू और राम प्रसाद की बीवी पार्लर चलाएगी। क्या कहेंगे लोग…क्या इज्जत रह जाएगी समाज में हमारी… दीया की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि राम तेज आवाज में कहता है।

मम्मी मैम ने डायरी में नोट दिया है अगर फीस नहीं आई तो स्कूल बंद करवा देंगी। मम्मी, पापा ने अभी तक फीस क्यूं नहीं दिया…रानू ने स्कूल से आते ही बैग से डायरी निकाल दीया की ओर बढ़ा दिया।

बच्चों पापा से कुछ मत पूछना… मैं बात कर लूँगी… बच्चों को दुलराती दीया ने कहा।

राम क्या है ये…डिनर के बाद टीवी के सामने बैठे राम के आगे डायरी रख दीया ने पूछा।

भूल गया था…

बस बहुत हो गया राम… तुम्हारी इज्जत के चक्कर में मैं बच्चों का भविष्य और अपने घर को अंधकार में विलीन होते नहीं देख सकती… दीया दृढ़ निश्चय से कहती है।

नहीं दीया बिल्कुल नहीं…जो बात अभी बाहर नहीं गई है, तुम्हारी इस हरकत से सोसाइटी जान जाएगी। रसूख है हमारा सोसायटी में…राम दीया की बात पर उग्र हो उठा।

और पार्लर के लिए सारी सामग्री कहां से लाओगी…राम के चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान थी।

उसका इंतजाम आपकी इज्जत की सहायता से हो गया है श्रीमान…आपने सोसाइटी में अपने रसूख और इज्जत दिखाने के लिए जो भारी भरकम जेवर बनवा कर दिए थे…बस वो काम आ गए… दीया कहती है।

एक बात और राम ना तो ये रसूख और ना ही समाज का नकली इज्जत ही हमें रोटी देने आएगी और ना ही हमारे बच्चों का भविष्य संवारने आएगी। ऐसी इज्जत तुम्हें ही मुबारक हो। मेहनत से बड़ी कोई इज्जत नहीं होती है…




भाषण बंद करो दीया… दीया की बात का जब राम के पास कोई जवाब नहीं बचा तो वो चिल्ला उठा और दीया उस पर एक नजर डाल बच्चों के कमरे की ओर बढ़ गई।

आज अपने एम्प्लॉय के साथ पार्लर के एक साल होने की खुशी में केक काटती दीया सबसे बोनस देने की बात करती है और सभी के चेहरे पर खुशी देख अपने फैसले पर गर्व का अनुभव कर रही थी।

#इज्जत 

आरती झा आद्या

दिल्ली

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