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क्या बच्चे हमारा ख्याल नहीं रखेंगे – डी अरुणा 

बिल्कुल स्वस्थ 72 वर्षीय पति शाम की भ्रमण के बाद आए। पत्नी सुधा ने पानी का गिलास बढ़ाया देखा पति कुंदन जी के हाथ थरथरा रहे थे और अचानक से जबान लड़खड़ा गई। बड़े बेटे शेखर को आवाज लगाई। जल्दी से सरकारी अस्पताल ले गए। सरकारी अस्पताल में सभी प्रकार के टेस्ट की सुविधा ना थी। कुछ टेस्ट करवाने बाहर भेजते थे ।

सुधा चाहती थी किसी प्राइवेट क्लीनिक ले जाए ताकि सभी टेस्ट एक ही जगह आसानी से उपलब्ध हो जाए। शेखर को दबे शब्दों में बोली भी ।

“मां बहुत खर्चीला है… मेरे पास इतने पैसे नहीं… बुला अपने छोटे बेटे को.. उसके बाबा नहीं है क्या? उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं ?मैं ही हमेशा खर्च करूं? संपत्ति में हिस्सेदार तो वह भी बनेगा… काम के समय कोई नहीं। साल में एक बार आता है कुछ आपके हाथ थमा चला जाता है ।हो गया… इतने में ही अपने काम की इतिश्री मान लेता है।

 सुधा का दिल दुख से भर गया। पिता की इलाज के खर्च में भी बंटवारा….। 4 बच्चे माता पिता के लिए भारी नहीं पड़ते… पर माता-पिता हर बच्चे पर भारी पड़ जाते हैं। जबकि दोनों ही बेटे अच्छे पदों पर थे ।

  बड़े को लगता वह अकेला क्यों माता पिता के इलाज में खर्च करें ?जब संपत्ति का बंटवारा होगा तो समान हिस्सेदारी छोटे की भी होगी। उसे अधिक हिस्सा तो नहीं मिलेगा कि उसने अपने पिता के लिए खर्च किया।

   वहीं छोटा बेटा सोचता, माता-पिता के साथ बने बनाए मकान में बड़ा भाई रह रहा… उसे कोई किराया नहीं देना पड़ता.. घर की सब सुख सुविधा का उपभोग करता… पिता के पेंशन का भी फायदा उठा रहा… फिर वह क्यों खर्च करें ?साल में एक बार जब आता तो माता के हाथ में कुछ थमा चला जाता।




    सुधा और कुंदन जी ने साथ बुरा वक्त भी देखा और अच्छा वक्त भी। एक दूसरे के साथ की उन्हें अब बेहद आवश्यकता है ।एक दूसरे के बिना उम्र के इस पड़ाव पर जीना मुश्किल है। उनका मौन ही उनका संवाद है।। बोलने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती ।एक दूसरे को समझ जाते हैं।

   

      बड़े बेटे की बातों ने सुधा को ना मर्माहत किया बल्कि कुछ सोचने और कड़े कदम उठाने पर भी मजबूर किया।

        कुंदन अपना पेंशन घर खर्च में लगा दिया करते थे ताकि माता पिता उन्हें अतिरिक्त बोझ न लगे।आखिर शेखर उनका बेटा है  पैसे लेकर वह कहां जाएंगे?

 

कुंदन जी स्वस्थ हो आने के बाद पेंशन का एक हिस्सा पति पत्नी के इलाज के लिए जमा करने लगे ।साथ ही बेटे को हिदायत भी दी कि अब से बेटा घर का किराया दे ताकि जरूरत पड़ने पर वे प्राइवेट अस्पताल में इलाज कर सके। चाहे तो वह घर में रहे या छोड़ दे…. तुम्हारी बातों ने जीवन की कड़वी सच्चाई दिखा दी …हमें लगता था क्या बच्चे हमारा ख्याल नहीं रखेंगे? तुमने हमें गलत साबित कर दिया।




अपने पेंशन के रुपयों से खाना बनाने वाले को लगा लेंगे। जिनके बेटे नहीं… क्या वे मां-बाप जिंदा नहीं रहते ? हम भी वैसे ही जी लेंगे …पर इलाज के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे ।

तुम लोगों को पढ़ा लिखा इस काबिल बना दिया कि खुद के पैरों पर खड़े हो सको।खुद की संपत्ति मकान जो इच्छा है बनवाओ। मेरी संपत्ति में हिस्सेदार बनने का विचार त्याग दो ।

कल को तुम भी उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचेंगे। मत भूलो जीवन के इस दौर से सबको गुजरना पड़ता है.. तब क्या करोगे?

 

ऐसे कड़े कदम उठाने के लिए बच्चों ने ही मजबूर किया वरना सुधा और कुंदन चाहते नहीं थे बच्चों के प्रति ऐसा कड़ा रुख अपनाएं। जीवन के अनुभव कई सबक सिखा जाती है।

जीवन के बुरे अनुभव, कड़ी तपतपाती धूप सी है तो अपनों का साथ,प्यार,अपनापन घनी छांव सी है..यही तो जीवन है।

#कभी धूप कभी छांव 

डी अरुणा 

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