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क्या गलत क्या सही – जयसिंह भारद्वाज

वर्किंग वीमेन हॉस्टल के अपने रूम में बैठी रंजना रो रही थी और सोच रही थी कि उसने जो किया वह सही किया या नहीं किया…! एक तरफ बचपन की सहेली औऱ दूसरी तरफ भावी पति…!

बचपन से साथ साथ बड़ी और पढ़ी रंजना और मालिनी जब जॉब के लिए अलग अलग हुई तो रोज़ रोज़ का मिलना कम हो गया। रंजना अपना शहर छोड़ कर कानपुर में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हो गयी जबकि मालिनी कानपुर से कुछ किलोमीटर दूर एक कस्बे के सरकारी अस्पताल में स्टाफ नर्स नियुक्त हुई। वह वहीं कस्बे में ही रहने भी लगी थी।

कई महीनों बाद एक वीकेंड पर जब मालिनी और रंजना की एक कैफे में मुलाकात हुई तो मालिनी ने कॉफी सिप करते हुए लड़कियों की चिट्चैट का प्रमुख विषय बन चुके आज़ादी और स्वच्छन्दता की चर्चा शुरू करते हुए अपने सहकर्मी डॉक्टर नीलेश के साथ पहली बार बिताए गए रोमांटिक पलों का कुछ ऐसा विवरण प्रस्तुत किया कि रंजना का कोमल और कुँवारा मन भी इस शारीरिक स्थिति को एक बार महसूस करने के लिए लालायित हो उठा।

शीघ्र ही उसने अपने सहकर्मी बॉयफ्रैंड धर्मेश से अपनी लालसा की अभिव्यक्ति कर दी। चौंक कर धर्मेश उसे देखने लगा तब रंजना बोली, “धर्मेश! ऐसे क्यों घूर रहे हो?”

“रंजना, क्या कह रही हो.. यह कभी सोचा आपने!”

“कई दिन सोचने के बाद ही बोल सकी हूँ। यह सामान्य सी बात है आजकल तो… “

“होगी.. किन्तु मेरे लिए नहीं और न उसके लिए जिसे मैं चाहता हूँ। मैं अपना कुँवारापन अपनी भावी पत्नी के लिए सुरक्षित रखना चाहता हूँ और अपेक्षा करता हूँ कि मेरी पत्नी भी अक्षतयौवना ही होगी। दैट्स आल।”

“ओह! ठीक है। मैं इस बात को पीछे छोड़ रही हूँ क्योंकि मैं अभी तुम्हें छोड़ पाने की मनःस्थिति में नहीं हूँ।”

“तुम चाहो तो हम खुशी खुशी ब्रेकअप कर सकते हैं.. तुम अपनी लिप्सा के लिए स्वतंत्र हो जाओगी।”

“नहीं, बोल दिया न मैंने कि इस बात को अपने मस्तिष्क से अब बाहर निकाल कर दूर फेंक चुकी हूँ। मुझे तुम्हारी मित्रता प्रिय है। बस! दैट्स इट।”

कई महीनों बाद एक शाम जब रंजना अपने रूम में चाय पी रही थी तब मालिनी उससे मिलने आयी। उसका चेहरा उतरा हुआ था। रंजना ने उसे चाय का मग देते हुए उसकी परेशानी का कारण जानना चाहा तो वह घबराये हुए स्वर में बोली, “यार रंजना! मेरे पीरियड्स मिस हो गए हैं”



“मगर कैसे? यार! तुम लोग तो मेडिकल फील्ड के बन्दे हो तब कैसे?” आश्चर्य से रंजना बोली।

“बस यार! उस दिन सेफ्टी बबल नहीं था और वे मेरे सेफ डेज भी थे इसलिए रिस्क ले लिया.. जो अब भारी पड़ गया।” मालिनी ने डूबते हुए स्वर में कहा।

“अरे यार मालिनी! तुम  कैसे ऐसा कर सकती हो। उफ्फ… अब क्या सोचा है?”

“हमने एक गायनी से मिलकर अबॉर्शन की डेट तय कर ली है। मैं चाहती हूँ कि तुम उस समय मेरे पास रहो। इससे मुझे बड़ा सम्बल मिलेगा। क्या तुम आ सकोगी..?” बड़ी आशा से रंजना को देखते हुए मालिनी ने कहा।

उसके दोनों कन्धों पर अपनी हथेलियाँ रखते हुए रंजना बोली, “क्यों नही! अवश्य। मैं उस दिन तेरे पास अवश्य रहूँगी मेरी जान! चिंता न कर तू।”

अगले दिन ऑफिस में लंच के समय जब रंजना ने धर्मेश से इस विषय में विस्तृत जानकारी शेयर की तो चौंकते हुए बोला, “क्या तुम पागल हो गयी हो रंजना! तुम अपनी कुँवारी सहेली के अबॉर्शन के समय उसके पास रहना चाहती हो?”

“तो, इसमें क्या बुराई है धर्मेश! वह मेरी बचपन की सहेली है।”

“रंजना, वह मेरा ही कस्बा है और तुम्हें मैं अपने परिवार वालों से मिला भी चुका हूँ। ऐसे में यदि तुम्हें वहाँ मेरे किसी पहचान या परिवार वाले ने देख लिया तो भविष्य में हम विवाह भी नहीं कर सकेंगे। और एक बात और सुन लो कि ऐसे दुष्चरित्र मित्र तुम्हारे आसपास भी नहीं होने चाहिए। मुझे नापसन्द हैं ऐसे लोग। तुम चाहो तो ब्रेकअप..”

“ओके ओके ओके.. मैं नहीं जाऊँगी” कह कर रंजना ने अधखाया टिफिन बन्द किया और उठ गई।

निर्धारित सुबह आठ बजे मालिनी ने रंजना को फोन करके बताया कि आज बारह बजे का समय दिया गायनी ने अतः वह समय पर आ जाये।

रंजना ने कहा, “सॉरी यार मालिनी! अचानक से बॉस ने छुट्टी कैंसिल करके एक अर्जेंट प्रोजेक्ट दे दिया है, यार मैं नहीं आ पा रही हूँ.. सॉरी अगेन यार..!”

“अरे रंजना! ऐसा मत कर यार! मैं तो मर जाउंगी लेबर रूम में ही, सच्ची में! यह सब किसी अन्य से शेयर भी तो नहीं कर सकती तेरे सिवाय…यार तू आ.. कैसे भी करके तू आजा यार..” मिन्नत भरे स्वर में मालिनी बोली तो अपनी सिसकियों को रोकते हुए रंजना ने कहा, “मालिनी, मेरी जॉब चली जायेगी यदि मैं आज ऑफिस न गयी तो.. प्लीज समझ यार तू! नीलेश तो रहेगा न वहाँ पर।”

“अरे नीलेश के पास होने और तेरे पास होने में बहुत अंतर है। चल ठीक है यार, तू अपनी जॉब सिक्योर कर। मैं ज़िंदा रही तो कॉल करती हूँ।ओके बॉय।”

रंजना के बॉय करने से पहले ही मालिनी ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

अब रूम में बैठे बैठे सुबकते हुए रंजना सोच रही है कि उसने सही  निर्णय लिया कि नहीं! एक तरफ बचपन की सहेली और दूसरी तरफ उसका भावी जीवनसाथी! उफ्फ! वह क्या करे!


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नीलेश व मालिनी डॉक्टर रीना माथुर के रूम में बैठे हैं और डॉक्टर भविष्य में प्रिकॉशन लेने व सावधान रहने को कहते हुए उन्हें इलाज के लिए मेंटली प्रीपेयर कर रही हैं। कुछ मिनटों के बाद उन्होंने एक नर्स के साथ मालिनी को लेबर रूम ले जाने को कहा और नीलेश को बाहर प्रतीक्षा करने को कह कर वे स्वयं सर्जिकल दस्ताने पहनने लगीं।

डॉक्टर के रूम से बाहर आते ही मालिनी ने देखा कि रंजना सामने खड़ी उसकी प्रतीक्षा कर रही है। वह दौड़ कर उसके गले लग गयी और सिसकने लगी। रंजना ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा, “चिंता मत कर तू, तेरी सहेली तेरे साथ रहेगी लेबर रूम में। चल … चलते हैं।”

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रंजना मालिनी को लेकर उसके कमरे में गयी और उस रात उसके साथ ठहर गयी। रात में मालिनी के पूछने पर उसके बगल में लेटी रंजना ने बताया कि किस तरह से धर्मेश ने उसे रोका था और कैसे मना करने के बाद उसने मंथन किया कि यदि आज वह अपनी सहेली की सहायता नहीं कर पा रही है तो क्या पता वह भविष्य में अपने परिवार की सहायता भी कर पायेगी या नहीं। गलती किसी से कैसी भी हो सकती है। उसे सुधरने का अवसर दिया जाना चाहिए न कि उससे सम्बन्ध विच्छेद कर लेना चाहिए। जेलों में भी खूंखार अपराधियों को सुधारने के लिए वर्कशॉप ऑर्गनाइज की जाती और उनकी प्रॉपर काउंसलिंग भी की जाती है जिसके परिणाम सकारात्मक आ भी रहे हैं। अपराधी जेल से निकल समाज की मुख्यधारा से जुड़कर शेष जीवन को सभ्य नागरिक की तरह बिता भी रहे हैं। अभी तो बात बात में धर्मेश ब्रेकअप की बात कह देता है किंतु विवाह के बाद वह तलाक की बात भी कह सकता है। ठीक है कि धर्मेश के अपने कुछ ठोस सिद्धांत हैं किंतु इतना अधिक स्ट्रेस लेकर तो वह सम्बन्ध को नहीं झेल सकेगी। इसलिए उसने प्यार के ऊपर दोस्ती को रखा और स्कूटी उठाकर चली आयी।

मालिनी बड़ी सावधानी से उससे लिपटते हुए बोली,”रंजना, तूने एक बड़ा निर्णय लिया है। मैं कृतज्ञ हो गयी हूँ तेरी।”

मालिनी के गाल पर एक मीठी चपत मारते हुए रंजना मुस्कुराते हुए बोली, “ये सब छोड़ और यह बता कि लेबर रूम के अंदर जाकर क्या देखा तूने कि अबॉर्शन का विचार ही छोड़ दिया!”

“सुन! जब मैं अंदर गयी तो दरवाजे के बगल में एक बकेट रखी थी जिसमें एक भ्रूण के कुछ हिस्से दिख गए। बस, मेरे अंदर एक हूक उठी और अंतर्मन ने कहा कि हमारी गलती, असावधानी या आनन्द के पलों का दण्ड किसी अजन्मे और निर्दोष बच्चे को क्यों मिले? एक गलती को सुधारने के प्रयास में मैं यह दूसरी गलती करने जा रही थी। बस मैंने अपना निर्णय बदल दिया और तुझे लेकर बाहर निकल आयी। उसके बाद तो तू जानती ही है कि कैसे नीलेश को तुरन्त विवाह के लिए मनाया औऱ अब मैं तेरे साथ निश्चिंत हो कर बातें कर रही हूँ। अब मैं दूसरी लड़कियों को भी विवाह से पहले शरीरिक सम्बन्ध न बनाने के लिए समझाऊंगी और अपना उदाहरण भी दूंगी। ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि धर्मेश भी तुम्हारे इस निर्णय को समझ सके और तू भी सुखद जीवन जी सके। मैं एकबार धर्मेश से अवश्य मिलूँगी और सब डाउट क्लियर करने का प्रयत्न भी करूँगी।”

एक माह बाद एक मंदिर में एक दूसरे को जयमाला पहनाकर मालिनी व नीलेश एक दूसरे के हो गए। यह युगल अब शहर के एक बड़े गेस्ट हाउस में एक मण्डप के नीचे रंजना के धर्मेश के साथ लिए जा रहे फेरों का साक्षी बन रहा है। बाद में दोनों दम्पतियों का संयुक्त रिसेप्शन आरम्भ हुआ जिसमें शहर के प्रतिष्ठित लोगों, इष्टमित्रों, रिश्तेदारों के साथ दोनों दम्पतियों के पारिवारिक सदस्य भी हास-परिहास के साथ भोज का आनन्द ले रहे हैं।

          ★समाप्त★

(कहानी उद्देश्य किसी भी प्रकार के अवैध सम्बन्धों को बढ़ावा देना कदापि नहीं है बल्कि मुश्किल में पड़े मित्र की सहायता करने के लिए मूल्यवान वस्तु को भी उत्सर्ग करने से न हिचकने को प्रदर्शित करना है। कहानी पढ़कर ऐसा करना विवशता नहीं है किन्तु इस पर मनन-विचार करना अवश्य है क्योंकि हमारी नन्हीं सी सहायता किसी के जीवन को बदलने वाली भी बन सकती है – जयसिंह भारद्वाज)

©जयसिंह भारद्वाज, फतेहपुर (उ.प्र.)

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