किटी पार्टी – आरती असवानी

किटी पार्टी खत्म हो चुकी थी, सुधा जूठे बर्तन किचन में ले जा रही थी। कांता, सुजाता खास दोस्त थी सो मदद के लिए रुक गयी।

“बात जब सास या ससुराल की हो तब तो सब सहेलियाँ खूब बढ़ चढ़ कर चर्चा करती हैं, लेकिन जैसे ही पति के मदद की बात आती है तो हम तीनों चुप हो जाती हैं।”

“हाँ कांता, कैसे 14 फ़्लोर वाले गुप्ता जी किचन में पत्नी के साथ ही काम करते हुए मेरी खिड़की से दिखते हैं| ऐसा जी जलता है, मेरे ये तो सिर्फ क्या कमी रह गयी खाने में, यही बताने आते हैं|”

“सुधा, तुम तो मदद की उम्मीद की करती हो, मैं और कांता तो सिर्फ सम्मान की भूखी हैं। अकेले में तुम लाख बुराई कर लो पर दोस्तों या रिश्तेदारों के सामने बस थोड़ी इज्जत रख लो|”

“हाँ यार, शायद हमारे दुःख मिलते जुलते हैं, तभी हमारी दोस्ती इतनी गहरी है।”

“हमारे दुःख नहीं हमारे पतियों के स्वभाव मिलते जुलते हैं|”

 

“अलग-अलग राज्यो से संबन्ध हैं हम तीनों का, फिर भी पति बिछुड़े हुए भाई तो नहीं? अपनी सासों से पता करो कभी बच्चों के साथ कुंभ के मेले में तो नहीं गयी थी?”

तीनों जोर जोर से हँसने लगी।

“कुछ भी कहो, किटी तो महीने में एक बार होती है पर हम तीनों 3-4 दिन में इंटर काम पर ही सही बतिया लें तो इतना मन हल्का हो जाता है।”

 

“सही है, हर बात माँ को बताओ वो भी सही नहीं लगता”|

“चलो बहनों बच्चे स्कूल से आने वाले है, कांता तुम लिफ्ट का बटन प्रेस करो, मैं लॉक करती हूँ| सुजाता तुम बच्चों के लिए गुलाब जामुन पैक करे हैं वो उठा लो”।

तीनों हंसती खिखिलाती लिफ्ट से नीचे उतर आई। बच्चों की बस आ गयी। बच्चों को लेकर अपने अपने घर चली गयी।




 

इस बार की किटी नमिता के घर थी। खुश मिजाज, हमेशा हंसती रहने वाली ,उसके साथ 10 मिन कोई बात कर ले तो वो अपने सारे गम भूल जाए। नमिता जॉब करती थी पति विदेश में थे बच्चे हॉस्टल में। किटी के लिए छुट्टी लेती थी क्युंकि वीकेंड पर बाकी लेडीज के पति बच्चे घर होते थे।

कांता ,सुजाता सुधा फोन पर बतियाने लगे क्या पहनना है।

 

” अरे! नमिता बहुत सिंपल रहती है उसके घर कुछ भी पहन कर  चलो टेंशन नहीं। “

 

“हाँ, ये तो सही है। “

 

तीनों तैयार होकर पहुंची। नमिता ने बहुत अच्छा अरेंजमेंट कर रखा था। सब सहेलियों ने खूब एंजॉय किया। सब नमिता को धन्यवाद दिया और सब घर के लिए निकलने लगी।

 

सुधा अपने फ्लैट की चाबी नमिता के घर भूल गयी। कांता सुजाता को लिफ्ट के पास रुकने का बोल वो चाबी लेने चली गयी।

 

“यार, ये सुधा चाबी लेने गयी थी अब तक नहीं आई चल कर देखते है। “

 

सुधा दरवाजे के पास खड़ी कुछ सुन रही थी कांता सुजाता भी वही रुक गयी।

 

कुछ देर बाद डोर बेल बजाई।

 

नमिता आँसू पोछते हुए डोर खोला।

 

” अरे! क्या हुआ कुछ रह गया क्या। “

 




“सुधा के फ्लैट की चाबी रह गयी। वही लेने आये है”

चाबी ली और तीनो सुधा के घर चली गयी।

 

“क्या हुआ सुधा हमें अपने घर क्यो ले आई? क्या सुन लिया ऐसा तूने”

 

“यार, विश्वास ही नहीं हो रहा इतना खुश मिजाज इंसान अपनी हंसी के पीछे इतना दुःख छिपाये हुए है। “

“क्या हुआ बहन खुल कर बता, पहेलियाँ मत बुझा”

 

“नमिता एक तलाकशुदा है, बच्चे पति के पास हैं केस चल रहा है बच्चों की कस्टडी के लिए, जब मै चाबी लेने गयी तब वो किसी वकील से बात कर रही थी। “

” यार मन में इतना दुःख हो तो कोई बिना बांटे इतना खुश कैसे रह सकता है। “

 

तीनों से सोच लिया था कि वो नमिता से इस बारे में बात करेंगी

 

“पर कैसे? जब तक कोई अपना दुःख खुद ना बांटे आप कैसे मरहम लगाने पहुँच जाओगे। “

“यार , हम किसी की निजी जिंदगी के बारे में कैसे बोल सकते है जब तक वो खुद ना बताये”।

 

एक दिन बच्चों को लेने के लिए तीनों बस स्टॉप पर खड़ी थी। नमिता ऑफिस से लौट रही थी।

“नमिता, आज लंच में ही घर आ गयी तबियत ठीक है?”

 

“नहीं माईग्रेन, का दर्द उठ रहा था “

 

“ओह”

 

” कुछ नहीं है टैबलेट खाकर सो जाऊंगी शाम तक ठीक हो जाऊंगी” ऐसा बोल नमिता चली गयी।

 

शाम के टाइम फोन कर सुधा ने हाल चाल लेने के लिए काल किया तो नमिता ने फोन नहीं उठाया ।नमिता, सुधा के टॉवर में ही रहती थी तो देखने चली गयी।

 

नमिता ने दरवाजा खोला।

 

“फोन नहीं उठाया तो मुझे चिंता हो गयी सो देखने चली आई। “

 

“सो स्वीट ऑफ यू, कम इन डियर, ” नमिता ने आदर सहित सुधा को बिठाया।

नमिता ने सुधा की आँखों में ही बहुत सारे सवाल पढ़ लिए।

 

” मै जानती हूँ तुमने उस दिन सब सुन लिया था और उस दिन से तुम परेशांन हो कि नमिता इतनी अकेली है फिर खुश कैसे अपने परिवार के होते हुए वो अकेले कैसे खुश रह लेती है। “




“सॉरी नमिता वो सब अनजाने में मैंने सुन लिया था पर ये सच है, मै सच में जानना चाहती हूँ कि आप अंदर से इतने अकेले ,दुखी होकर कैसे झूठी मुस्कान चेहरे पर रख सकते हो। “

नमिता मुस्कुराते हुए, ” दर्द बांटना आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। नहीं बांट पाती तभी तो मयिग्रैन की मरीज हूँ “

 

“ऐसा कुछ नहीं है दोस्त तुम लोगो के पास बच्चे पति ऑफिस भेजने के बाद टाइम रहता है सो आप दुःख दर्द बांट कर कम कर लेते हो। ऐक्चुअल्ली सामने वाला हमसे ज्यादा परेशान ये सुन कर या फिर कोई पूरी तरह से सुखी नहीं ये दो बाते है हमारा दर्द कम कर देती है।

मेरे पास टाइम ही नहीं रहता अगर मैं फ्री बैठू तो सोच सोच कर ही मर जाऊँ। मेरे पति ने ऐसा क्यों किया? , मेरे बच्चे कैसे रह रहे होंगे? और जहाँ तक खुश रहने की बात है तो ये पूरी तरह से आपके हाथ में है ,मुझे खुश रहना है अगर मैंने सोच लिया तो मुझे कोई दुःखी नही कर सकता।

 

ऑफिस में इतना काम रहता है फिर भी मैं रोज अनाथ आश्रम जाती हूँ उन बेसहारा बच्चों को प्यार दे उनको सहारा देने से मन को सुकूँ मिलता है।

हमारे हाथ में सिर्फ कर्म करना है सो मैंने दुआएं कमाने का सोच रखा है ,हो सकता है इन बच्चों की दुआओ से मुझे मेरे बच्चे मिल जाए।

 

अगर आप अपने आस पास का माहौल सकरात्मक रखोगे , हर चीज में अच्छा देखोगे तो दुःख दर्द आपके पास आये बिना  ये सोच कर ही लौट जायेंगे कि यहाँ हमारे लिए कोई जगह ही नहीं “

 

” बस यही मेरे खुश रहने का और मुस्कुराहट का राज है और इतना मजबूत मुझे ईश्वर में लगाया गया मेरा ध्यान बनाता है “

 

सुधा की नजरो में नमिता के लिए इतनी इज्जत बढ़ गयी थी उसने खुशी से नमिता को गले लगा लिया।

 

” आज तुमने तो मेरा जीवन के प्रति नजरिया ही बदल दिया ” सुधा ने विदा ली।

 

सुधा अगले दिन कांता सुजाता को सारी बातें बताने पहुंची।

 

” हमें पता है तुम क्या बोलने आई हो नमिता हमारे दुखियारी क्लब का न्यू मेंबर है। ” सुजाता बोली

 

“अरे! सुनो तो सही हमारा दुःख तो नमिता के सामने हाथी के समक्ष चींटि है।”

 

कांता सुजाता की आँख भी नम हो गयी। सुधा बोली, “दोस्तों, हाँ ये सच है कि सब का स्वभाव अलग होता है, हम एक दम से इतने सकरात्मक नहीं हो सकते। पर कोशिश तो कर सकते हैं।”

 

“आज तीनों हम एक दूसरे से वादा करते हैं आपस में पति की सास ससुराल की गॉसिप नहीं छोड़ेंगे, वो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, (हँसते हुए) लेकिन ईश्वर से कभी शिकायत नहीं करेंगे। इतना खुश रहेंगे कि नेगेटिविटी हमारे आस पास भी ना फटक सके।”

सुधा, कांता, सुजाता के क्लब में नमिता की न्यू मेंबर की तरह एंट्री हो चुकी थी।

 

दोस्तों जीवन में सबके परेशानियाँ आती हैं| ये हमारे देखने का नजरिया है जो उस परेशानी को छोटा या बड़ा बनाता है। हम जैसा सोचते हैं वैसा ही आस पास का माहौल हो जाता है सो सकरात्मक रहें।

#दर्द

धन्यवाद

आरती असवानी

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