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किसे होना चाहिये शर्मसार – संगीता त्रिपाठी

“वो देखो अमित की मम्मी को देखो, कितनी अजीब सी लगती हैं,”नील के ये कहते ही बच्चों के एक झुण्ड के साथ उनकी मॉर्डन ड्रेस पहने मम्मियों की निगाहें अमित की मम्मी पर पड़ीं, व्यंग की मुस्कान सबके चेहरे पर आ गई। बॉर्डर वाली साड़ी, तेल से चिपके बाल, माथे पर गोल बड़ी बिंदी, होठों पर बिना लिपस्टिक की,मुस्कान की परतें..पैरों में रंगहीन सैंडल।

तभी माही की मम्मी बोलीं “ये टीचर पेरेंट्स मीटिंग में क्या बोल पायेंगी, इंग्लिश का एक वर्ड तो आता नहीं “। सारी मम्मियां हँस पड़ीं। हँसी की आवाज अमित के कानों पर पड़ी, मम्मी को लेकर वो शर्मसार हो गया। पता नहीं ये मम्मी भी अपने को बदलना नहीं चाहती, “मम्मी आप भी  मॉर्डन ड्रेस क्यों नहीं पहनतीं, देखिये सबकी मम्मी कितनी सुन्दर ड्रेस पहनी हैं। मुझे आपके साथ चलने में शर्म आ रही, पापा को भी अभी टूर पर जाना था।”बेटे का हाथ कस कर पकड़ सरला जी कुछ नहीं बोलीं।

जब अमित की बारी आई, तो सरला जी बेटे का हाथ पकड़ टीचर के सामने पहुँची।

मॉर्डन लिबास में लिपटी मॉर्डन मम्मियों की उत्सुकता बढ़ गई। “ये क्या “टीचर ने खड़े होकर अमित की मम्मी सरला जी का स्वागत किया। कई जोड़ी ऑंखें हैरानी से फैल गईं। आशा के विपरीत मैडम क्रिस्टिना सरला जी के बैठने के बाद ही अपनी चेयर पर बैठीं। कभी हिंदी में ना बोलने वाली क्रिस्टिना, सरला जी से हिंदी में बात कर रही थीं।सबने एक दूसरे को आश्चर्य से देखा। अमित और सरला जी उठ गये, क्रिस्टिना मैडम दरवाज़े तक दोनों को छोड़ने गईं।

“नेक्स्ट, नील गुप्ता “क्रिस्टिना मैडम ने आवाज लगाई। नील और उसकी मम्मी नीलोफर आगे आ गये। कम्प्लेन और तारीफ के दौर के बाद नीलोफर ने पूछा -मैम एक बात बताइये, आप क्लास में या कहीं भी हिंदी में बात नहीं करतीं पर आज अमित की मम्मी के संग आप हिंदी में बात कर रही थीं, ऐसी क्या बात थी, सरला जी में कि आप हिंदी बोलने पर मजबूर हो गईं।



“देखिये, किसी के वेशभूषा से उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन ना करें।आपको शायद नहीं पता, सरला जी हिंदी की उत्कृष्ट लेखिका हैं, उनकी किताब भी आ चुकी है। हिंदी बोलना पिछड़ेपन की निशानी नहीं हैं, ना ही साड़ी पहनना पिछड़ापन है, वेशभूषा से किसी के व्यक्तित्व को ना मापे। एक बार मैं स्कूटी से स्कूल से वापस आ रही थी , मेरी स्कूटी अँधेरे के कारण एक गड्डे में फंस गई। बारिश बहुत तेज थी।मैं आवाज लगा रही थी, पर कोई मदद के लिये नहीं आया, उधर मेरे घर ना पहुँचने पर सरला जी ने मेरे घर जा बच्चों को नाश्ता करा, पड़ोसयों के संग ढूढ़ने निकलीं। स्कूल के रास्ते में उन्हें मेरी आवाज सुनाई  दी, मुझे गड्डे से बाहर निकाल कर घर लाईं। अगर उस दिन सरला जी ने हिम्मत ना दिखाई होती तो आज मैं यहाँ नहीं होती।

पहले मैं भी उनका मूल्यांकन, पहनावे और हिंदी बोलने की वजह से कमतर आंकती थी, पर उस दिन जिस तरह उन्होंने मेरी सहायता की, मैं मानवता की कीमत समझ गई, अपनी सोच पर शर्मसार हो गई।मानवता के लिये पढ़े -लिखें होना या अमीर -गरीब होना या पहनावा इसका माप -दंड नहीं हैं। मानवीय मूल्य तो वो संस्कार हैं, जिसके पास हैं वो सबसे अमीर है।मैं और सरला जी एक ही सोसाइटी में रहते हैं ऊपर- नीचे, मै अपनी शिक्षा के दम्भ में किसी से मेल -जोल नहीं रखती थी। मैं सिंगल पेरेंट्स हूँ,अब मुझे समझ में आया, मैं कितनी गलत थी,मेल -जोल बहुत जरुरी है। सरला जी ने सिर्फ मेरी ही नहीं बल्कि बहुत लोगों की मदद की है।वो पहनावे से मॉर्डन जरूर नहीं हैं पर विचारों से बहुत मॉर्डन हैं।

मैडम क्रिस्टिना की बात सुन सबकी ऑंखें शर्म से झुक गईं। बिल्कुल सही कहा उन्होंने।पहनावे या लुक्स से दूसरों को थोड़े समय के लिये कुछ लोग को प्रभावित कर सकते हैं पर सुन्दर व्यवहार से आप हमेशा सबको को प्रभावित कर सकते हैं।

आप क्या कहती हो सखियों, मॉर्डन कपड़े ना पहनने वाली या अंग्रेजी में ना बोलने वालों को शर्मसार होना चाहिये या उन लोगों को शर्मसार होना चाहिये जो मानवीय मूल्य को खो कर स्वार्थी बन चुके हैं।अक्सर देखा हैं साड़ी पहनने वाली बहनजी या भाभी जी बन जाती और मॉर्डन लिबास वाली मैम या मैडम…., सही कह रही हूँ ना…।

 

                            -संगीता त्रिपाठी

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