किरचें लहू लुहान कर गयी” – उमा वर्मा

सुबह सुबह यश और गौरी ने सुनीता के पैर छू कर प्रणाम किया तो वह गदगद हो गई ।कितनी प्यारी और सुन्दर है मेरी बहू ।कल रात को पार्टी में भी सबने यही कहा था ” कहाँ से लाये इतनी सुन्दर और प्यारी बहु? सुनीता निहाल हो गई थी ।ढेरों आशीर्वाद देते हुए चाबियों का गुचछा बहू को थमा दिया था उसने और कहा– अब से यह घर, परिवार सब को संभालने की जिम्मेदारी तुम्हारे उपर ” मुझे अब निश्चिन्त होकर पूजा पाठ करने हैं ” और फिर गौरी ने सारा कुछ संभाल लिया ।सुबह उठकर नहा धोकर सबके लिए चाय नाश्ता तैयार करती ।फिर साफ सफाई और दोपहर के भोजन की तैयारी करती।सब को खिलाने के बाद सास के पैर दबाती।सुनीता अब अपना ध्यान पूजा पाठ करने में लगाने लगी थी ।सोचती ऐसी बहू मिलना कितने भाग्य की बात होती है ।कितनी अच्छी है गौरी ।भगवान करे सब को ऐसी बहू मिले।थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर शाम को चाय नाश्ता बनाती ।तबतक यश भी काम से घर आ जाता ।शाम को सुनीता के लिए फिर पूजा और आरती की तैयारी कर देती ।उसके पास समय ही नहीं बचता कि खुद और यश के तरफ भी सोचे।यश मन ही मन खीजता रहता ।एक दिन मौका पाकर गौरी को घेर लिया ” गौरी, लगता है तुम्हारी शादी मुझसे नहीं अम्मा से हुई है ” जब देखो, आगे पीछे उनके ही लगी रहती हो।अरे कभी मेरे बारे मे भी तो सोचो।गौरी सिर्फ मुस्कुरा देती ।




रात को खाना बना, खिला कर, रसोई समेट लेती ।फिर सोने से पहले सास के पैरों में तेल मालिश कर देती ।तबतक रात के बारह बज जाता ।वह सोने जाती तो यश सो चुका होता ।उसकी इस दिन चर्या से यश परेशान हो गया ।इसे तो मेरा कुछ खयाल ही नहीं है ।नहीं, कोई तो उपाय सोचना ही होगा ।उधर सुनीता अब निश्चिन्त होकर पूजा पाठ करती ।खा,पीकर मुहल्ले में पड़ोसियो के यहाँ घूमने चली जाती ।सभी लोग तारीफ करते ” वाह सुनीता, तुम तो बड़ी भाग्यशाली हो जो तुम्हे इतनी अच्छी बहू मिली है ।एक दिन रास्ते में यश को अमित मिल गया ।” कहो भाई, कैसा चल रहा है? खूब मस्ती कट रही है न भाभी के साथ? ” अरे कहाँ? उसे तो समय ही नहीं है मेरे लिए ।जब देखो अम्मा की सेवा में लगी रहती है ।” हाँ तो, इसमें गलत क्या है? तुम को तो खुश होना चाहिए कि वह तुम्हारी माँ को खुश रखती है ।वरना आज कल की बहू कहाँ सोचती है इतना ।” वह सब तो ठीक है, लेकिन उसे मेरे बारे मे भी तो सोचना चाहिए ।अभी नयी नयी शादी हुई है ।हमारे भी तो कुछ अरमान हैं ।सबकुछ निबटा कर रात को बारह बजे सोने आती है ।मैं भी थका मांदा सो चुका होता हूँ ।क्या फायदा ऐसी शादी से । अब तुम ही कोई रास्ता बताओ।बहुत सुना था कि तुम हर समस्या का हल चुटकियों में निकाल सकते हो ।मेरा भी हल निकालो दोस्त ।” बस,इतनी सी बात ।? अभी तो यहाँ अम्मा हैं ।कल तुम हमारे यहाँ आ जाना ।देखते हैं कुछ उपाय करते हैं ।दूसरे दिन शाम को यश अमित के यहाँ पहुंचा । चाय नाश्ता हुआ ।




” अब बताओ? क्या करना है? ” ” देखो यश ,तुम अपनी अम्मा से उनके बनाये खाने की तारीफ करते रहो।कहो कि तुम जो बनाती हो न अम्मा वह बात गौरी में कहाँ? तुम्हारे हाथ से बनाये खाने का तो कोई जवाब नहीं है ।कितने दिन हो गये ।तुम ही फिर से बनाओ न अम्मा ।अमित की सलाह पर यश खुश हो गया ।खुश होकर घर आया ।सुनीता बेटे को खुश देख कर सवाल कर बैठी।” क्या बात है बेटा, बड़ी खुश नजर आ रहे हो ” नहीं अम्मा, आज तुम्हारे हाथ के खाने की याद आ गई ।कितना अच्छा बनाती थी तुम? गौरी में वह बात कहाँ? फिर से अपने हाथ से बनाकर खिलाओ न अम्मा ।अम्मा गदगद हो गई थी ।अगले दिन से वह रसोई में जुट गयी।भला बेटे की पसंद की बात कैसे न मानती ।अब यश और गौरी रोज शाम को घूमने जाते ।अम्मा रसोई में जुटे रहती ।अम्मा खाना जल्दी बना कर खिला भी देती ।अम्मा की तारीफ करते हुए बेटा पत्नी को इशारा करता।गौरी सीधी सादी थी लेकिन पति का मान भी रखना था ।दो दिन के बाद अमित आया ।” कहो? कैसी चल रही है? ” ” चलना क्या, तुम्हारे कहे अनुसार अम्मा को रसोई में लगा दिया ।अब गौरी को फुर्सत ही फुर्सत है ।अम्मा खुश हो गई, सोचती है बेटा उसके बनाये खाने के लिए कितना इच्छुक है ।कितना मानता है मेरा बेटा ।अभी भी माँ के हाथ का खाना चाहता है ।अम्मा दरवाजे पर नाश्ते की ट्रे लिए उनकी बात सुन रही थी ।” इतना बड़ा छल? अपने ही बेटे के द्वारा? मन का शीशा छनाक से टूट गया ।उसकी किरचें लहू लुहान कर गयी सुनीता को।”

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