ख्वाइशों के बुलबुले – कविता भड़ाना

“मैं चली मैं चली, देखो प्यार की गली

मुझे रोके ना कोई, मैं चली मैं चली”

जब जब सायरा बानो जी का ये गाना देखती हूं, मेरे हृदय पर जैसे सांप लोटने लगता है, तन बदन में आग लग जाती है और ईर्ष्या के मारे मेरा ब्लड प्रेशर हाई होकर ब्लास्ट हो जाता है…. अरे नहीं नहीं सायरा बानो जी की खूबसूरती से जलन की वजह से नहीं, बल्कि जब उन्हें और उनकी सखियों को अदाओं के साथ साइकिल चलाते देखती हूं तो मेरा यही हाल होता है …

अब क्या बताऊं बचपन से ही ये लोहे का घोड़ा मुझे बहुत भाता है, सिपाही की तरह तन कर बैठ जाओ और लगाओ फिर अपनी सल्तनत के चक्कर पर चक्कर…

पर हाय मेरी फूटी किस्मत, ये लोहे का घोड़ा मुझ से हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रखता आया है.. कितने पापड़ बेले इसे अपना बनाने के लिए, पर ये बेवफा अपनी सवारी तो दूर की बात मुझ से कभी ठीक से संभाला भी नही गया…

दिल को भी समझाने लगी की ये सुख मेरी किस्मत में है ही नही… ऐसे ही दिन गुजर रहे थे की अचानक””

एक दिन बजार से आते वक्त लगा की कोई पीछे से मेरा नाम पूरे जोश से पुकार रहा है, पीछे मुड़ कर देखा तो आंखे विस्मय से फटकर बाहर निकल गई, मेरी सबसे प्रिय सहेली जो मेरी तरह ही साइकिल चलाने में अनाड़ी थी,

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काले सूट में बालो में लाल दुपट्टा बांध कर बड़ी अदा और नजाकत के साथ, सायरा बानो स्टाइल में लोहे के घोड़े पर सवार होकर मेरी तरफ ही आ रही थी….. प्राणप्रिय सहेली आज मुझे अपनी सौत लग रही थी जो मेरे प्रेमी को लेकर भागे जा रही थी…. आज मन ही मन दृढ़ निश्चय किया और प्रतिज्ञा ली की अब तो साइकिल सीख कर ही रहूंगी और अपनी भीष्म प्रतिज्ञा जब अपनी माता श्री को बताई तो उन्होंने चोट लगने, हाथ पैर टूटने की दुहाई दी और अपने तरकश से आखिरी बाण निकाला की टूटी फूटी कन्या से कोई विवाह भी नही करेगा…पर में तो कसम खा चुकी थी की ये किला तो फतेह कर के ही रहूंगी…. 

अगले दिन मुंह अंधेरे ही खाली गली में निकल पड़ी अपने पिताजी की साइकिल लेकर, इतनी सुबह एक तो कोई देखेगा नही और फिर कुछ दिनों में जब एक्सपर्ट की तरह सबके सामने से साइकिल लेकर सायरा बानो की तरह अदाएं बिखेरते हुए निकलूंगी तो कसम से क्या मजा आयेगा…..

अभी खयालों में उड़ ही रही थी और साइकिल पर बैठ पैडल मार लड़खड़ाते हुए बढ़ी ही थी की देखा सामने से मिश्रा अंकल की गाए खूंटा उखाड़ कर भागती हुई मेरी तरफ ही आ रही है घबराहट के मारे बजाए हैंडल घुमाने के मैने सामने से आती गाय को ही साइकिल की सीधी  टक्कर दे मारी …..

उसके बाद?..क्या उसके बाद… में नाली में औंधे मुंह और साइकिल मेरे ऊपर … किसी तरह बदबु मारती नाली से मिश्रा अंकल ने निकाला और टूटी साइकिल के साथ मुझे घर छोड़ आए…अब आगे तो क्या बताऊं, मां पिताजी ने इतना सुनाया की अपने इस सपने को अपनो के लिए ही कुर्बान कर दिया….पर कहते है ना की पहला प्यार अगर अधूरा रह जाए तो कमबख्त बड़ा दर्द देता है..




शादी के बाद गाड़ी चलाने का भूत सवार हुआ और आश्चर्य नहीं करना क्योंकि गाड़ी तो में बढ़िया चला लेती हू, पर कसम से आज भी सड़क पर किसी को साइकिल चलाते देखती हूं तो कसक सी उठती है और आज भी सपने में सायरा बानो की जगह खुद को साइकिल चलाते गुनगुनाते हुए  देखती हूं…..

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कविता भड़ाना

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