मानसी-मानसी, खुश खबरी, कल पापा हमारे पास आ रहे है,तीन दिन रहेंगे।ओह, पापा, आपने हमे माफ कर दिया,इससे बढ़कर हमारे लिये कुछ भी नही।
क्यों, राजेश क्या अब मेरी बिरादरी बदल गयी है जो दो वर्ष पहले मुझे ताना देकर सुनाई गई थी,या अब अपने बेटे से कुछ जरूरत आन पड़ी है?
ये कैसा रिएक्शन है तुम्हारा, मानसी।पिछली बातों को अब तक मन मे लिये बैठी हो?अपने बच्चों पर माता पिता अपना अधिकार समझते है,जब वह नही मिलता तो कुछ तो असामान्य होता ही है।मानसी पापा को कोई कमी नही है,वे आज भी इस स्थिति में है जो हमे ही इस जन्म में घर बैठे खिला सके।मानसी तुमने मुझे निराश किया है।मुझे तुमसे ऐसी आशा नही थी।
अच्छे बड़े व्यापारी शिवशंकर जी के जीवन मे हलचल तब मच गयी जब एकलौते बेटे राजेश ने अपनी माँ के सामने एक गैर बिरादरी की लड़की से शादी की घोषणा कर दी।स्वाभाविक रूप से शिवशंकर जी बिफर पड़े,उनकी प्रतिक्रिया यही थी,अरे नामुराद क्या हम मर गये थे या इतने गये बीते थे जो तेरे लायक एक छोरी भी बिरादरी में ना ढूंढ पाते,शहरी हवा में हमारा नाम डूबा रहा है।साफ सुन ले मैं उस गैर बिरादरी वाली को स्वीकार करने वाला नही।
शिवशंकर जी ने अपना फैसला सुना दिया था,निर्णय राजेश को करना था।राजेश की शहर में जॉब थी,उसकी सहकर्मी ही मानसी थी,दोनो के मन मे प्रेम के बीज वही पनप गये थे।दोनो ने कोर्ट मैरिज का निर्णय ले,सूचना अपने घरवालों को भेज दी।जैसा अपेक्षित था,दोनो के घरवाले नही आये।
लगभग छः माह पूर्व ही राजेश की माँ का देहांत हो गया,सूचना मिलने पर राजेश ही गया,कोई वितंडावाद खड़ा न हो,वह मानसी को लेकर नही गया।मुखाग्नि राजेश से ही दिलवाई गयी।पहली बार राजेश ने महसूस किया कि उसके पिता नितांत अकेले हो गये हैं और अपने स्वाभाव के विपरीत चुप चाप रहने लगे हैं।
राजेश ने वापसी के समय पिता के चरणस्पर्श कर जाने की आज्ञा मांगी तो उन्होंने सर पर हाथ रख बस इतना कहा, मानसी को भी साथ ले आता। राजेश आश्चर्य से अपने पिता का मुँह देखता रह गया।उन्होंने दूसरी ओर चेहरा घुमा लिया था।
अकस्मात ही उनका फोन आया कि वे आ रहे हैं, तो राजेश पापा पापा कह रो पड़ा।शायद ये उसकी अन्दुरुनी खुशी के आँसू थे।इसी अतिरेक में उसने मानसी को पापा के आने की खुशख़बरी सुनाई थी,पर मानसी के रिएक्शन ने उसका दिल तोड़ दिया,वो तो दो वर्षों पूर्व की कड़वाहट को अपने अंदर लिये बैठी थी और उसे प्रकट भी कर रही थी।उसका उत्साह ठंडा पड़ गया था।
अगले दिन उसके पिता शिवशंकर जी आ गये। गनीमत रही राजेश के साथ मानसी ने भी उनके चरण स्पर्श कर लिये।पापा ने मानसी के सिर पर हाथ रखकर उसे खूब आशीर्वाद दिया।फिर अपना छोटा सा सूटकेस खोलकर उसमें से एक गले का सोने का हार और सोने के चार कंगन निकाल कर मानसी के हाथ मे रख कर बोले बेटा ये तेरे लिये राजेश की मां छोड़कर गयी है, कह रही थी मानसी को तो देख नही पायी,कम से कम उससे इन्हें पहनने को जरूर कह देना।तब लगा बेटी मैंने अपने बच्चों के साथ बहुत अन्याय कर दिया है,
अरे बच्चो पर क्यो मैंने तो अपनों पर ही अत्याचार कर दिया है।अपने झूठे आन मान में हमने अपने बच्चों को ही खो दिया।राजेश की माँ मानसी को देखने को अंत तक तड़फती रही,पर मैं ही निर्दयी निकला, पता नही ऊपर बैठी वो मुझे माफ़ भी करेगी या नही?
पापा की बाते सुन मानसी की आंखों से आंसू झरझर बह रहे थे।शिवशंकर जी तीन दिन बाद जाने को उद्धत हुए तो मानसी गले मे राजेश की मां का दिया हार और हाथों में कंगन पहनकर दौड़ी आयी,पापा पापा अब आप कही नही जायेंगे, यही रहेंगे हमारे पास अपने बच्चो के पास।कहते कहते मानसी शिवशंकर जी के पैरों से चिपट गयी,राजेश आज भी आश्चर्य में था,मानसी का यह रूप देखकर।बर्फ पिघल चुकी थी।शिवशंकर जी ने अचकचा कर राजेश और मानसी को अपने से चिपटा लिया।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित