खुल गई आँखें – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

रीता लाख कोशिशों के बावजूद भी अपने पति निकुंज को खुश नहीं कर पा रही थी,जब से उसकी शादी हुई

थी,वो अपनी पूरी कोशिश करती कि अपने पति की सब बातों को माने,उसे उसकी मनपसंद डिशेज बनाकर

खिलाए पर निकुंज हमेशा बाहर वालों की,पड़ोसियों की और अपने ऑफिस की लेडीज की ही तारीफें

करता।

रीता को लगता कि वो निकुंज की तरह सुंदर,स्मार्ट और पढ़ी लिखी नहीं है,शायद इसलिए वो नाराज़ रहता है

उससे,उसने शादी भी रीता से अपने परिवार के दबाव में आकर ही की है।

एक बार रीता की सास ससुर कुछ दिन उनके साथ रहने को आए उनके घर जब उन्होंने अपने बेटे निकुंज की

ये हरकतें देखीं उन्हें बहुत बुरा लगा।

अक्सर निकुंज, रीता का दिया खाना टिफिन में बचा लाता और अपनी किसी कुलीग का खाना उसके

टिफिन में दिखता।जैसे रीता ने कढ़ी बनाई,वो तो भरी हुई लौटा लाता और दूसरे डिब्बे में आलू गोभी की

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सब्जी के चिह्न मिलते यानि उसने किसी और का खाना खाया है।

कुछ पूछो तो सीधे कह देता..मुझसे ये बेस्वाद खाना नहीं खाया जाता,इसने अपनी मां से कुछ नहीं सीखा है

मां!ये एकदम गंवार औरत है।

रीता की आंखों में आंसू छलक उठते पर वो उन्हें पी जाती।

अब तो निकुंज उसे पड़ोसिनों के सामने भी जलील करने से नहीं चूकता,मां बाप कुछ कहते तो उन्हें ये कहकर

चुप करा देता कि आपने इस जंगली लड़की को उसके पल्लू बांध कर वैसे ही कोई अच्छा काम नहीं किया

,अब मैं उसे निभा रहा हूं ये कम बड़ी बात है?

अगले महीने रीता के इकलौते छोटे भाई का विवाह था,उसने निकुंज को अपने साथ जाने की बहुत रिक्वेस्ट

की लेकिन उसने साफ मना कर दिया,बस तुम्हें जाने की इजाजत दे रहा हूं,इसे एहसान मानो मेरा…शादी होते

ही लौट आना तुरंत।

बेचारी उस बात को ही उसका प्यार समझ चली गई एक हफ्ते को अपने मायके।

अगले ही दिन,निकुंज को तेज बुखार आ गया।उसके माता पिता भी गुस्से में वहां से पहले ही जा चुके

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थे,निकुंज ने फोन कर उन्हें फिर से आने को कहा कि रीता मायके में है,आप लोग आ जाओ दोबारा कुछ दिन

को।

उसकी मां बोली,”क्यों पड़ोसी और स्टाफ वाले कहां हैं,उनसे ही करा ले।”

निकुंज चुप रहा,कमजोरी में चीख भी न सका।

अगले ही दिन, जब उसे कुछ होश आया तो मां बाप सामने दिखे,रीता उसे काढ़ा बनाकर पिला रही थी और

उसके और पर ठंडी पट्टियां रख रही थी,निकुंज को तेज बुखार था और जिसके सर पर चढ़ने का खतरा था।

अगले कुछ घंटों बाद ,डॉक्टर ने आकर निकुंज को चैक किया और उसका बुखार उतर गया था।वो मुस्कराते

हुए बोले, “नाउ ही इज आउट ऑफ डेंजर…।”

आंख खोलते ही वो बोला,”मुझे किसने अच्छा किया?आप लोग कब आए मां?”

“मिस्टर निकुंज!आपकी वाइफ ने,बड़े लकी हैं आप जो आपको इतनी अच्छी पत्नी मिली है,पूरी रात आपके

सिरहाने बैठकर सेवा की इसने आपकी।”

“पर वो तो अपने भाई के यहां गई थी,वो कब आई?”उसने पूछा,वो मिस शीना का फोन आया था कल रात,वो

अपने सर्वेंट को भेज देंगी,वो क्यों नहीं आया अभी तक?”

“अभी भी अक्ल नहीं आई तुझे?अब तो समझ जा कि पड़ोसी,पड़ोसी ही होते हैं और अपने घरवाले अपने

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होते हैं,बाहर और घरवालों में यही तो अंतर होता है।”उसकी मां बोली।

तभी रीता ने उसके गले में नैपकिन लगाया और चम्मच से उसके मुंह में सूप डालने लगी।

“तुम शादी छोड़ कर लौट आई मेरे पास,क्यों?”वो आश्चर्य से बोला।

“शादी,आपसे बढ़के थोड़े ही है मेरे लिए, कोई बात नहीं, मैं शादी के वीडियो देख लूंगी फिर मेरे घरवाले भी

आपकी सलामती पहले चाहते हैं,मेरे वहां न होने से भाई की शादी नहीं रुकेगी,लेकिन आपको कुछ भी हो

जाता तो हम सबकी जिंदगी जरूर रुक जाती।*

निकुंज की आंखों में पश्चाताप के आंसू बहने लगे।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

#पड़ोसियों और परिवार में यही तो अंतर होता है

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